फरवरी 19, 2023 - सामान्य काल का सातवां रविवार
🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥
📒 पहला पाठ : लेवी 19:1-2,17-18
1) प्रभु मूसा से बोला,
2) ''इस्राएलियों के सारे समुदाय से यह कहो - पवित्र बनो, क्योंकि मैं प्रभु, तुम्हारा ईश्वर, पवित्र हूँ।
17) अपने भाई के प्रति अपने हृदय में बैर मत रखो। यदि तुम्हारा पड़ोसी कोई अपराध करे, तो उसे डाँटो। नहीं तो तुम उसके पाप के भागी बनोगे।
18) तुम न तो बदला लो और न तो अपने देश-भाइयों से मनमुटाव रखो। तुम अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करो। मैं प्रभु हूँ।
📕 दूसरा पाठ : 1 कुरिन्थियों 3:16-23
16) क्या आप यह नहीं जानते कि आप ईश्वर के मन्दिर हैं और ईश्वर का आत्मा आप में निवास करता है?
17) यदि कोई ईश्वर का मन्दिर नष्ट करेगा, तो ईश्वर उसे नष्ट करेगा; क्योंकि ईश्वर का मन्दिर पवित्र है और वह मन्दिर आप लोग हैं।
18) कोई अपने को धोखा न दे। यदि आप लोगों में कोई अपने को संसार की दृष्टि से ज्ञानी समझता हो, तो वह सचमुच ज्ञानी बनने के लिए अपने को मूर्ख बना ले;
19) क्योंकि इस संसार का ज्ञान इ्रश्वर की दृष्टि में ’मूर्खता’ है। धर्मग्रन्थ में यह लिखा है- वह ज्ञानियों को उनकी चतुराई से ही फँसाता है
20) और प्रभु जानता है कि ज्ञानियों के तर्क-वितर्क निस्सार हैं।
21) इसलिए कोई मनुष्यों पर गर्व न करे सब कुछ आपका है।
22) चाहे वह पौलुस, अपोल्लोस अथवा कैफ़स हो, संसार हो, जीवन अथवा मरण हो, भूत अथवा भविष्य हो-वह सब आपका है।
23) परन्तु आप मसीह के और मसीह ईश्वर के हैं।
📙 सुसमाचार : मत्ती 5:38-48
(38) तुम लोगों ने सुना है कि कहा गया है- आँख के बदले आँख, दाँत के बदले दाँत।
(39) परन्तु मैं तुम से कहता हूँ - दुष्ट का सामना नहीं करो। यदि कोई तुम्हारे दाहिने गाल पर थप्पड मारे, तो दूसरा भी उसके सामने कर दो।
(40) जो मुक़दमा लड़ कर तुम्हारा कुरता लेना चाहता है, उसे अपनी चादर भी ले लेने दो।
(41) और यदि कोई तुम्हें आधा कोस बेगार में ले जाये, तो उसके साथ कोस भर चले जाओ।
(42) जो तुम से माँगता है, उसे दे दो और जो तुम से उधार लेना चाहता है, उस से मुँह न मोड़ो।
(43) "तुम लोगों ने सुना है कि कहा गया है- अपने पड़ोसी से प्रेम करो और अपने बैरी से बैर।
(44) परन्तु मैं तुम से कहता हूँ - अपने शत्रुओं से प्रेम करो और जो तुम पर अत्याचार करते हैं, उनके लिए प्रार्थना करो।
(45) इस से तुम अपने स्वर्गिक पिता की संतान बन जाओगे; क्योंकि वह भले और बुरे, दोनों पर अपना सूर्य उगाता तथा धर्मी और अधर्मी, दोनों पर पानी बरसाता है।
(46) यदि तुम उन्हीं से प्रेम करत हो, जो तुम से प्रेम करते हैं, तो पुरस्कार का दावा कैसे कर सकते हो? क्या नाकेदार भी ऐसा नहीं करते ?
(47) और यदि तुम अपने भाइयों को ही नमस्कार करते हो, तो क्या बडा काम करते हो? क्या गै़र -यहूदी भी ऐसा नहीं करते?
(48) इसलिए तुम पूर्ण बनो, जैसे तुम्हारा स्वर्गिक पिता पूर्ण है।
📚 मनन-चिंतन
आज का सुसमाचार येसु के पहाड़ी उपदेश का एक हिस्सा है और इसमें धर्मी और पवित्र जीवन जीने की शिक्षा दी गई है। इस अंश में, येसु संहिता के शब्दों से परे जाने और इसे गहरे और अधिक सार्थक तरीके से पूरा करने के महत्व पर बल दे रहा है।
पदसंख्याएं 38-42 में, येसु ‘‘आंख के बदले आंख’’ और ’’दांत के बदले दांत’’ की अवधारणा पर चर्चा कर रहे हैं जो प्राचीन काल में सजा का सिद्धांत था। येसु सिखाते है कि बदला लेने के बजाय, हमें ’’दूसरा गाल आगे करना चाहिए’’ और ’’अपने शत्रुओं से प्रेम करना चाहिए।’’ वह क्षमा और करुणा के महत्व और बदला लेने की इच्छा से ऊपर उठने की आवश्यकता पर बल दे रहे है।
पदसंख्याएं 43-48 में, येसु अपने शत्रुओं से प्रेम करने के बारे में शिक्षा को जारी रखते है। वह उन लोगों के लिए प्यार करने और प्रार्थना करने के महत्व पर जोर देते है जो हमें चोट पहुँचाते हैं और हमें पूर्णता के लिए प्रयास करने के लिए कहते हैं, ठीक वैसे ही जैसे ईश्वर पूर्ण है।
यह हमें बताता है कि येसु की शिक्षाओं का पालन करना हमेशा आसान नहीं होगा परंतु चुनौतियों के साथ होगा, लेकिन एक धर्मी और पवित्र जीवन जीने के लिए यह हमारे लिए आवश्यक है।
📚 REFLECTION
Today’s gospel is a part of Jesus' Sermon on the Mount and contains teachings on how to live a righteous and holy life. In this passage, Jesus is emphasizing the importance of going beyond the letter of the law and fulfilling it in a deeper and more meaningful way.
In verses 38-42, Jesus is discussing the concept of "an eye for an eye" and "a tooth for a tooth" which was a principle of punishment in ancient times. Jesus teaches that instead of taking revenge, we should "turn the other cheek" and "love our enemies." He is emphasizing the importance of forgiveness and compassion, and the need to rise above the desire for revenge.
In verses 43-48, Jesus continues to teach about loving one's enemies. He is emphasizing the importance of loving and praying for those who hurt us and striving for perfection, just as God is perfect.
It tells us that following Jesus’ teachings may not always be easy and may come with challenges, but it is necessary in order to live a righteous and holy life.
✍ -Br. Biniush Topno
No comments:
Post a Comment