22 जनवरी - वर्ष का तीसरा सामान्य रविवार
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📒 पहला पाठ : इसायाह 8:23-9:3
8:23) जहाँ पहले विषाद था, वहाँ अन्धकार नहीं होगा। प्रभु ने भूतकाल में ज़बुलोन तथा नफ़्ताली के प्रान्तों को अपमानित होने दिया है, किन्तु भविष्य में यह यर्दन के उस पार, समुद्र के मार्ग को, गैर-यहूदियों की गलीलिया को महिमा प्रदान करेगा।
9:1) अन्धकार में भटकने वाले लोगों ने एक महती ज्योति देखी है, अन्धकारमय प्रदेश में रहने वालों पर ज्योति का उदय हुआ है।
2) तूने उन लोगों का आनन्द और उल्लास प्रदान किया है। जैसे फ़सल लुनते समय या लूट बाँटते समय उल्लास होता है, वे वैसे ही तेरे सामने आनन्द मना रहे हैं।
3) उन पर रखा हुआ भारी जूआ, उनके कन्धों पर लटकने वाली बहँगी, उन पर अत्याचार करने वाले का डण्डा- यह सब तूने तोड़ डाला है, जैसा कि मिदयान के दिन हुआ था।
📕 दूसरा पाठ : 1कुरिन्थियों 1:10-13,17
10) भाइयो! हमारे प्रभु ईसा मसीह के नाम पर मैं आप लोगों से यह अनुरोध करता हूँ - आप लोग एकमत होकर दलबन्दी से दूर रहें। आप एक दूसरे से मेल-मिलाप करें और हृदय तथा मन से पूर्ण रूप से एक हो जायें।
11) ख्लोए के घर वालों से मुझे पता चला कि आप लोगों में फूट पड़ गयी है।
12) मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि आप लोगों में प्रत्येक अपना-अपना राग अलापता है: "मैं पौलुस का हूँ": "मैं अपोल्लोस का हूँ"; "मैं केफस का हूँ" और "मैं मसीह का हूँ";।
13) क्या मसीह खण्ड-खण्ड हो गये हैं? क्या पौलुस आप लोगों के लिए क्रूस मर गये हैं? क्या आप लोगों को पौलुस के नाम पर बपतिस्मा मिला है?
17) क्योंकि मसीह ने मुझे बपतिस्मा देने नहीं; बल्कि सुसमाचार का प्रचार करने भेजा। मैंने इस कार्य के लिए अलंकृत भाषा का व्यवहार नहीं किया, जिससे मसीह के क्रूस के सन्देश का प्रभाव फीका न पड़े।
📙 सुसमाचार : मत्ती 14:12-23 (अथवा 12-17)
(12) ईसा ने जब यह सुना कि योहन गिरफ्तार हो गया है, तो वे गलीलिया चले गये।
(13) वे नाज़रेत नगर छोड कर, ज़बुलोन और नफ्ताली के प्रान्त में, समुद्र के किनारे बसे हुए कफ़रनाहूम नगर में रहने लगे।
(14) इस तरह नबी इसायस का यह कथन पूरा हुआ-
(15) ज़बुलोन प्रान्त! नफ्ताली प्रान्त! समुद्र के पथ पर, यर्दन के उस पार, ग़ैर-यहूदियों की गलीलिया! अंधकार में रहने
(16) वाले लोगों ने एक महती ज्योति देखी; मृत्यु के अन्धकारमय प्रदेश में रहने वालों पर ज्योति का उदय हुआ।
(17) उस समय से ईसा उपदेश देने और यह कहने लगे, "पश्चात्ताप करो। स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है।"
(18) गलीलिया के समुद्र के किनारे टहलते हुए ईसा ने दो भाइयों को देखा-सिमोन, जो पेत्रुस कहलाता है, और उसके भाई अन्द्रेयस को। वे समुद्र में जाल डाल रहे थे, क्योंकि वे मछुए थे।
(19) ईसा ने उन से कहा, "मेरे पीछे चले आओ। मैं तुम्हें मनुष्यों के मछुए बनाऊँगा।"
(20) वे तुरंत अपने जाल छोड़ कर उनके पीछे हो लिए।
(21) वहाँ से आगे बढ़ने पर ईसा ने और दो भाइयों को देखा- जे़बेदी के पुत्र याकूब और उसके भाई योहन को। वे अपने पिता जे़बेदी के साथ नाव में अपने जाल मरम्मत कर रहे थे।
(22) ईसा ने उन्हें बुलाया। वे तुरंत नाव और अपने पिता को छोड़ कर उनके पीछे हो लिये।
(23) ईसा उनके सभागृहों में शिक्षा देते, राज्य के सुसमाचार का प्रचार करते और लोगों की हर तरह की बीमारी और निर्बलता दूर करते हुए, सारी गलीलिया में घूमते रहते थे।
📚 मनन-चिंतन
आज ईशवचन-इतवार है। संत पापा फ्रांसिस आज हम सभी को ईश्वर के वचन पर ध्यान केंद्रित करने के लिए आमंत्रित करते हैं। उनके अनुसार, साधारण समय के तीसरे रविवार को हमें ईश्वर के वचन के इतवार के रूप में मनाना चाहिए। इस दिन हमें ईश्वर के वचन का उत्सव मनाना चाहिए, ईशवचन के अध्ययन और प्रसार के लिए अपने आप को समर्पित करना चाहिए। येसु अपने सभी शिष्यों की एकता चाहते थे और उन्होंने इस के लिए अपने पिता से प्रार्थना भी की थी। ईश्वर के वचन में सभी ख्रस्तीय संप्रदायों को एकजुट करने की शक्ति है। हम सब ईश्वर के वचन को मानते हैं और हम इसमें अपनी एकता पाते हैं। ईश्वर का वचन हमें यहूदियों तथा अन्य संप्रदायों के ख्रीस्तीय विश्वासियों के साथ एकजुट होने में मदद करता है। संयोग से इस वर्ष ईशवचन का उत्सव ख्रीस्तीय एकता सप्ताह के तुरन्त बाद आता है। द्वितीय वतिकान महासभा के बाद, कैथोलिक कलीसिया ईश्वर के वचन रूपी खजाने को फिर से खोज रही है। मत्ती 4: 4 में प्रभु येसु कहते हैं, "मनुष्य रोटी से ही नहीं, बल्कि ईश्वर के मुँह से निकलने वाले हरेक शब्द से जीता है"। ईश्वर का वचन हमारी रोज़ की रोटी है। संत पौलुस कहते हैं, "पूरा धर्मग्रन्थ ईश्वर की प्रेरणा से लिखा गया है। वह शिक्षा देने के लिए, भ्रान्त धारणाओं का खण्डन करने के लिए, जीवन के सुधार के लिए और सदाचरण का प्रशिक्षण देने के लिए उपयोगी है। जिससे ईश्वर-भक्त सुयोग्य और हर प्रकार के सत्कार्य के लिए उपयुक्त बन जाये।” (2तिमथी 3: 16-17)। आइए हम अपने दैनिक जीवन में प्रभु के वचन को उचित महत्व दें और उसके बारे में अपनी समझ को गहरा करने के लिए भी संकल्प करें और शब्द से बने मांस से प्यार करें।
📚 REFLECTION
Today is Word of God Sunday. Pope Francis invites all of us today to concentrate on and celebrate the Word of God. According to him, the Third Sunday of Ordinary time is to be celebrated as Word of God Sunday “to be devoted to the celebration, study and dissemination of the word of God”. Jesus wanted the unity of all his disciples. The Word of God has the power to unite all Christian denominations. The Word of God is common to us and we find our unity in it. The Word of God helps us to feel united with the Jewish people as well as with Christians of other denominations. Coincidently the celebration of the Word of God this year immediately follows the celebration of the Unity Octave. After the Second Vatican Council, the Catholic Church has been rediscovering the richness of the Word of God and the treasure we have in it. In Mt 4:4 Jesus says, “One does not live by bread alone, but by every word that comes from the mouth of God”. Word of God is our daily bread. St. Paul says, “All scripture is inspired by God and is useful for teaching, for reproof, for correction, and for training in righteousness, so that everyone who belongs to God may be proficient, equipped for every good work.” (2Tim 3:16-17) Let us give due importance to the Word of God in our daily lives. Let us also make a resolution to deepen our understanding of the Word of God and love the Word made flesh.
प्रवचन
प्रिय भाइयो-बहनों ईश्वर लोगों को विभिन्न प्रकार से बुलाते हैं। कभी अकेले में बुलाते हैं तो कभी समुदाय के रूप में बुलाते हैं। किसी को व्यक्ति विशिष्ट को बुलाने के उदाहरण बाइबिल में अनेक हैं। समुदाय के रूप में बुलाने का उदाहरण इस्राएली जनता है। ईश्वर विभिन्न मकसदों व उद्देश्यों के लिए बुलाते हैं। कभी किसी को किसी से स्वतंत्र होने के लिए बुलाते हैं तो कभी किसी के अधिनस्त रहने के लिए बुलाते हैं। कभी किसी वस्तु को त्यागने के लिए तो कभी किसी को अपनाने के लिए; कभी किसी के पास जाने के लिए तो कभी किसी से दूर जाने के लिए; कभी बोलने के लिए तो कभी एकांत में शांत बैठने के लिए; कभी किसी कार्य विशेष को करने के लिए तो कभी कुछ कार्यों से परहेज के लिए बुलाते हैं। ये सारी बातें हमें बाइबिल में मिलेगी। हर व्यक्ति ईश्वर के द्वारा बुलाया गया है। कोई व्यक्ति ईश्वर के बुलाहट से वंचित नहीं है। बस इतना है कि कोई ईश्वर की बुलाहट के अनुसार जीवन जीते हैं तो काई अपनी मर्जी का। जो बुलाहट का जीवन जीते हैं वे समाज के लिए मद्द एवं अनिवार्य सिद्ध होते हैं लेकिन जो अपनी मर्जी का जीवन जीते हैं वे समाज के लिए घतक व अनावश्यक सिद्ध हो सकते हैं। तो आवश्यकता है अपनी बुलाहट को सुनने व पहचानने की और उसके अनुसार जीवन जीने की।
आज के प्रथम पाठ में अंधकार में भटकने वालों से अहवान किया गया है कि वे ज्योंति को पहचाने और उसे स्वीकार करे। ‘अंधकार’ का अभिप्राय यहॉं पाप हो सकता है या दुःख-पीड़ा, संकट या किसी प्रकार की कठिनाई हैं जिससे लोग परेशान हो गये हो। यह ज्योति उनके लिए एक बहुत ही राहत देने वाली है। यह ज्योति एक तरह से उन्हें मुक्ति देने वाली है। अतः अंधकार में भटकने वाले लोग उस ज्योति को अपनाने के लिए बुलाये गये हैं।
दूसरे पाठ में हम देखते हैं कि कुरिंथ की कलीसिया विभाजन से ग्रसित है। वे प्रभु येसु को छोड़कर उनके प्राचारक को ही सब कुछ मान बैठें हैं। अतः संत पौलुस येसु को अपनाने व स्वीकार करने के लिए अहवान करते हैं। उनकी उस समय की बुलाहट है कि वे सुसमाचार-प्रचारकों या नेतृत्व करने वालों को नहीं बल्कि येसु मसीह को अपनायें।
सुसमाचार में हम देखते हैं कि योहन गिरफ्तार हो चुका है। येसु अपने मिशन-कार्यों की शुरूआत करते हैं। वे अपने मिशन-कार्यों का आरम्भ इन शब्दों से करते हैं-‘‘पश्चाताप करो। स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है।’’ योहन ने पश्चाताप पर उपदेश दिया था। अतः योहन जहॉं से अन्त करते हैं येसु वहीं से शुरू करते हैं। अपने मिशन-कार्य के दौर में येसु ने दो भाइयों को-पेत्रुस और अन्द्रेयस को देखा। येसु ने उनसे कहा-‘‘मेरे पीछे चले आओ। मैं तुम्हें मनुष्यों के मछुए बनाऊॅंगा।’’ बस ये चंद शब्द थे जिन्हे सुनते ही, बिना विलम्ब वे उनके पीछे हो लिए। कुछ दूर आगे बढ़ने पर येसु ने ज़ेबेदी के पुत्र याकूब और उसके भाई योहन को पाया। येसु ने उन्हे भी बुलाया। वे भी अपनी नाव व पिता को छोड़कर येसु के पीछे हो लिए। उनका नाव अपने और पिता को छोड़ना बहुत ही बडे त्याग को दर्शाता है। उन्हें हर प्रकार के रिश्तों को तोड़ना व छोड़ना पड़ा। इतना ही नहीं उन्हें अपना पेशा जिससे उनकी जीविका चलती थी भी छोड़ना पड़ा। उन्हें अपने आप को खाली करना पड़ा ताकि येसु उन्हें भर सके।
थोमस अलवा इडिसन एक बहुत ही सुप्रसिद्ध एवं बहुकृतिक अविष्कारक माने जाते हैं। इडिसन की शिक्षिका ने कहा था कि इडिसन कुछ सिखने के लायक नहीं है। वह इतना मूर्ख है कि कुछ नहीं सीख सकता है। बारह वर्ष की आयु में उसे विद्यायल से निकाला गया था क्योंकि लोग उसको गूंगा समझते थे। गणित तो उससे बनती नहीं थी। वह ध्यान केन्द्रित नहीं कर सकता था। इतना ही नहीं उसे शब्दों और भाषाओं में भी कठिनाई थी। उसकी अनुत्पादकता के कारण उसे पेशों से भी भगा दिया गया था।
इडिसन ने अपने पेशे के दौर में लगभग 1,093 अविष्कार कर डाले। इडिसन के लिए हर असफलता सफलता के पत्थरों पर पैर रखने के भॉंति था। इलेकट्रिक बल्ब बनाने की कोशिश में वे सैकड़ो बार असफल रहे। फिर भी बड़ी मासुमियत कहते थे कि -‘‘मैंने यह सिखा कि मुझे 999 तरीकों से इलेकट्रिक बल्ब बनाना नही आता।
सन् 1914 ई. में थोमस इडिसन का कारोड़ों रूपये का नुकसान हो गया जब उसके प्रयोगशाला में आग लग गयी। उनके वर्षों की खोज, उपकरण, वर्षों की परिश्रम का बहुमूल्य अभिलेख सब जलकर राख बन गई। दूसरे दिन सुबह जब वे अपनी आशाओं, सपनों आकांक्षाओं, अभिलाषाओं की राखों के बीच चल रहे थे तो 67 वर्ष के सज्जन इडिसन ने कहा-‘‘महाविपदा में महामूल्य है क्योंकि हमारी हर गलती जल जाती है। ईश्वर को शुक्रिया। हम पुनः शुरूआत कर सकते हैं।’’ अत्याधिक निराशा में अविचलित रहने के हीरो थे थोमस इडिसन। थोमस इडिसन की काबिलयत को उसकी शिक्षिका नहीं देख सकी। थोमस इडिसन को उसकी शिक्षिका कुछ सिखने या करने के लायक नहीं समझती थी। उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की होगी कि थोमस इडिसन इतने महान अविष्कारक बनेंगे।
उसी प्रकार हम येसु के शिष्यों को देखते हैं। यह सच है कि वे एक साधारण मछुआरे थे। शायद ज्यादा कुछ पढ़े-लिखे भी नहीं रहे होगें। संभवताः मछली फंसाने के अलावा और कुछ ज्यादा ज्ञान उनमें नहीं रह होगा। दुनिया की नज़रों में साधारण मछुए येसु के इतने विशाल मिशन-कार्य के लायक भी नहीं रहे होंगे। पर उनमें कुछ गुण थे जिसे येसु जानते थे, जिसे सिर्फ येसु ने देखा था। इसलिए येसु ने उन साधारण मछुओं को बुलाया। वे जो दुनिया की नज़रों में जीरो थे येसु के मिशन-कार्यों में हीरो बन गये। ये नहीं कि उनमें कमजोरियॉं नहीं थी। मानव स्वभाव की कमजोरियॉं उनमें भी थी। लेकिन जब कोई बुलाहट को स्वीकार कर उसके अनुसार कार्य करते हैं तो मनुष्य की कमजोरियॉं भी ताकत बनकर उभर आती है। अवगुण सगुण में बदल जाते हैं। ईश्वर हर मनुष्य को सुसमाचार प्रसार के लिए ही नहीं बुलाते हैं। हर मनुष्य की बुलाहट अलग-अलग हो सकती है। अतः हरेक को अपनी-अपनी बुलाहट पहचानने और स्वीकार करने की आवश्यकता है। यदि कोई अपने बुलाहट को पहचानने और उसके अनुसार कार्य करता है तो वह उस क्षेत्र में हीरो बन जाता है।
तो आइये जब हम इस समारोह में भाग ले रहें हैं तो ईश्वर से प्रार्थना करें कि हम ईश्वर की बुलाहट को पहचान सकें और उसके अनुसार कार्य कर सकें।
✍ -Br. Biniush Topno
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