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08 मई 2022, इतवार पास्का का चौथा इतवार

08 मई 2022, इतवार पास्का का चौथा इतवार 🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥
पहला पाठ :प्रेरित-चरित . 13:14,43-52 14) पौलुस और बरनाबस पेरगे से आगे बढ़ कर पिसिदिया के अंताखिया पहुँचे। वे विश्राम के दिन सभागृह में जा कर बैठ गये। 43) सभा के विसर्जन के बाद बहुत-से यहूदी और भक्त नवदीक्षित पौलुस और बरनाबस के पीछे हो लिये। पौलुस और बरनाबस ने उन से बात की और आग्रह किया कि वे ईश्वर की कृपा में दृढ़ बने रहें। 44) अगले विश्राम-दिवस नगर के प्रायः सब लोग ईश्वर का वचन सुनने के लिए इकट्ठे हो गये। 45) यहूदी इतनी बड़ी भीड़ देख कर ईर्ष्या से जल रहे थे और पौलुस की निंदा करते हुए उसकी बातों का खण्डन करते रहे। 46) पौलुस और बरनाबस ने निडर हो कर कहा, "यह आवश्यक था कि पहले आप लोगों को ईश्वर का वचन सुनाया जाये, परन्तु आप लोग इसे अस्वीकार करते हैं और अपने को अनंत जीवन के योग्य नहीं समझते; इसलिए हम अब गैर-यहूदियों के पास जाते हैं। 47) प्रभु ने हमें यह आदेश दिया है, मैंने तुम्हें राष्ट्रों की ज्योति बना दिया हैं, जिससे तुम्हारे द्वारा मुक्ति का संदेश पृथ्वी के सीमांतों तक फैल जाये।" 48) गैर-यहूदी यह सुन कर आनन्दित हो गये और ईश्वर के वचन की स्तृति करते रहे। जितने लोग अनंत जीवन के लिए चुने गये थे, उन्होंने विश्वास किया 49) और सारे प्रदेश में प्रभु का वचन फैल गया। 50) किंतु यहूदियों ने प्रतिष्ठित भक्त महिलाओं तथा नगर के नेताओ को उभाड़ा, पौलुस तथा बरनाबस के विरुद्ध उपद्रव खड़ा कर दिया और उन्हें अपने इलाके से निकाल दिया। 51) पौलुस और बरनाबस उन्हें चेतावनी देने के लिए अपने पैरों की धूल झाड़ कर इकोनियुम चले गये। 52) शिष्य आनन्द और पवित्र आत्मा से परिपूर्ण थे। दूसरा पाठ : प्रकाशना 7:9, 14-17 9) इसके बाद मैंने सभी राष्ट्रों, वंशों, प्रजातियों और भाषाओं का एक ऐसा विशाल जनसमूह देखा, जिसकी गिनती कोई भी नहीं कर सकता। वे उजले वस्त्र पहने तथा हाथ में खजूर की डालियाँ लिये सिंहासन तथा मेमने के सामने खड़े थे 10) और ऊँचे स्वर से पुकार-पुकार कर कह रहे थे, "सिंहासन पर विराजमान हमारे ईश्वर और मेमने की जय!" 11) तब सिंहासन के चारों ओर खड़े स्वर्गदूत, वयोवृद्ध और चार प्राणी, सब-के-सब सिंहासन के सामने मुँह के बल गिर पड़े और उन्होंने यह कहते हुए ईश्वर की आराधना की, 12) "आमेन! हमारे ईश्वर को अनन्त काल तक स्तुति, महिमा, प्रज्ञा, धन्यवाद, सम्मान, सामर्थ्य और शक्ति ! आमेन !" 13) वयोवृद्धों में एक ने मुझ से कहा, "ये उजले वस्त्र पहने कौन हैं और कहाँ से आये हैं? 14) मैंने उत्तर दिया, "महोदय! आप ही जानते हैं" और उसने मुझ से कहाँ, "ये वे लोग हैं, जो महासंकट से निकल कर आये हैं। इन्होंने मेमने के रक्त से अपने वस्त्र धो कर उजले कर लिये हैं। 15) इसलिए ये ईश्वर के सिंहासन के सामने ख़ड़े रहते और दिन-रात उसके मन्दिर में उसकी सेवा करते हैं । वह, जो सिंहासन पर विराजमान है, इनके साथ निवास करेगा। 16) इन्हें फिर कभी न तो भूख लगेगी और न प्यास, इन्हें न तो धूप से कष्ष्ट होगा और न किसी प्रकार के ताप से; 17) क्योंकि सिंहासन के सामने विद्यमान मेमना इनका चरवाहा होगा और इन्हें संजीवन जल के स्रोत के पास ले चलेगा और ईश्वर इनकी आँखों से सब आँसू पोंछ डालेगा।" ***सुसमाचार : योहन 10:27-30 27) मेरी भेडें मेरी आवाज पहचानती है। मै उन्हें जानता हँ और वे मेरा अनुसरण करती हैं। 28) मै उन्हें अनंत जीवन प्रदान करता हूँँ। उनका कभी सर्वनाश नहीं होगा और उन्हें मुझ से कोई नहीं छीन सकेगा। 29) उन्हें मेरे पिता ने मुझे दिया है वह सब से महान है। उन्हें पिता से कोई नहीं छीन सकता। 30) मैं और पिता एक हैं। 📚 मनन-चिंतन- 2 ऐसी कई आवाजें हैं जो हर व्यक्ति हर दिन सुनता है। इतनी सारी आवाजों के बीच, लोग कैसे बता सकते हैं कि वे वास्तव में कौन सी आवाज सुन रहे हैं? वे आवाजें जो वास्तव में सुनी जाती हैं, उनका अनुसरण किया जाता है और हम भेद कर सकते हैं कि वे किस प्रकार की आवाजें हैं। क्या हम उन्हें पहचान सकते हैं? पास्का काल के दौरान चौथे रविवार को गुड शेफर्ड रविवार कहा जाता है क्योंकि सुसमाचार भला गड़ेरिया के बारे में प्रकाश डालता है जो यीशु है। आज हमारे सुसमाचार में, यीशु ने कहा: “मेरी भेड़ें मेरी आवाज़ पहचानती हैं, मैं उन्हें जानता हूं और वे मेरे पीछे पीछे चलती हैं। मैं उन्हें अनन्त जीवन देता हूं, और वे कभी नाश न होंगी" (पद 27-28)। यहाँ इस मार्ग में, इसका अर्थ है कि यीशु एक चरवाहे की तरह प्यार करता है और हमारी परवाह करता है और हमें उसे भेड़ों की तरह उस पर भरोसा करना चाहिए और उसका अनुसरण करना चाहिए। यीशु को अच्छे चरवाहे के रूप में दर्शाया गया है। संक्षेप में, यह रविवार किसी भी व्यक्ति के लिए है जो किसी भी समूह या उपक्रम का मुखिया या नेता है।हम सब अपने भला गड़ेरिया यीशु के समान बनें। आइए हम भी शिष्यों की तरह अच्छे अनुयायी बनें . 📚 REFLECTION The fourth Sunday during Easter Season is called the Good Shepherd Sunday because the gospel talks about good shepherd who is Jesus. In our gospel today, Jesus said: “My sheep hear my voice, I know them and they follow me. I give them eternal life and they shall never perish,” (vv. 27-28). But it does mean that we are dumb animals who blindly led by another. Just like what a lady had said: “I am a person not a sheep,” when she attended a Bible class. The Bible is filled with different forms of literary styles. Like for example: “I am the vine you are the branches” or “fishers of men”. Here in this passage, it means that Jesus loves and cares for us like a shepherd and must trust and follow Him like sheep. Jesus is depicted as the Good Shepherd. But the term ‘shepherd’ embraces all who have executive powers and have something to do with administration, direction, management or guidance of people. In short, this Sunday is for anyone who is the head or leader of any group or undertaking. Leaders, are to be pro-God, pro-people, pro-country, pro-environment; a person with integrity and transparency; a person of peace, justice and love and many more which are related to Christian principles. It is to become a leader after the heart of Jesus or Christ like. मनन-चिंतन 2 जब ईसा गलीलिया में घूम-घूमकर लोगों को उपदेश देते थे, विभिन्न चमत्कार करते थे, तो बहुत सारे लोग आश्चर्य में पड़ जाते थे और सब के मन में यही प्रश्न होता था कि यह कौन है? (मारकुस 4:41 लूकस 4:22) इस प्रकार का प्रश्न पिलातुस के मन में भी था इसलिए वह सत्य को जानना चाहता था (देखिए योहन18:38)। प्रभु येसु ने संत योहन के सुसमाचार के द्वारा अपने विषय में कई सारी बातें इस विषय में बताई है कि वे कौन हैं। वे कहते हैं, ’’जीवन की रोटी मैं हूँ’’, ‘‘संसार की ज्योति मैं हूँ’’, ‘‘पुनरूत्थान और जीवन मैं हूँ,’’ ’’मार्ग, सत्य और जीवन मैं हूँ,’’ ’’मैं दाखलता हूँ,’’ और ’’भला गडेरिया मैं हूँ,’’। आज का सुसमाचार हमें चरवाहा और भेड़ों के बीच के रिश्ते पर मनन चिंतन करने के लिए आह्वान करता है। प्रभु येसु संत योहन के सुसमाचार 10:11 में कहते हैं कि भला गडेरिया मैं हूँ। भले गडेरिये के कुछ गुण होते हैं जैसे- भला गडेरिया अपनी भेड़ों के लिए अपने प्राण दे देता है, अपने भेड़ों को जानता है, भेड़ों को हरे मैदानों में बैठाता और शांत जल के पास ले जा कर उनमें नवजीवन का संचार करता है। भला चरवाहा एक भेड़ के भटक जाने पर निन्यानवे भेडों को छोड़ उस भटकी हुई भेड़ को खोजने जाता है। ये सब गुण हम प्रभु येसु के जीवन में पाते हैं। प्रभु येसु सचमुच में भले गडेरिये है जो अपनी भेड़ों के लिए अपने प्राण अर्पित करते है। वे भटकी हुई भेड़ की खोज में जाते है। प्रभु ने अपने जीवन के द्वारा यह सिद्ध किया कि वे सचमुच में भले गडेरिया है। लेकिन आज का सुसमाचार भले गडेरिये के ऊपर नहीं परन्तु भली भेड़ के ऊपर है। आज हम सब के लिए बड़ा प्रश्न यह है कि प्रभु येसु तो सचमुच में भले गडेरिये हैं परंतु क्या हम उस भले गडेरिये की भली भेड़ें हैं। वे हम सभी भेड़ों को नाम से जानते हैं और सदा हमें अपने पास बुलाते हैं, पर क्या हम भली भेड़ के समान अपना जीवन व्यतीत करते हैं? भली भेड़ या सच्ची भेड़ का चिन्ह क्या है? आज का सुसमाचार के अनुसार सच्ची भेड़ भले चरवाहे की आवाज़ पहचानती है तथा उनका अनुसरण करती है। प्रभु येसु या ईश्वर की आवाज़ पहचानना एक सच्ची भेड़ की अहम निशानी है। बाइबिल में हम देखते हैं कि कौन-कौन ईश्वर की आवाज़ पहचानता एवं सुनता था। बाइबिल में हम नूह, इब्राहिम, इसहाक, याकूब, युसूफ, मूसा, योशुआ, कई न्यायकर्ताओं, कई नबियों को जानते हैं जो ईश्वर की आवाज़ सुनते और उनका अनुसरण करते थे। हम अपने जीवन में किसकी आवाज़ बहुत अच्छी से पहचानते है? जाहिर सी बात है कि हम अपने जीवन में अपने माता-पिता या परिवार वालों की आवाज़ अच्छे से पहचानते हैं। वह किस लिए? क्योंकि हम अपना ज्यादातार समय अपने परिवार के साथ बिताते हैं तथा उनकी आवाज़ को सुनते रहते हैं। इसी तरह हम किसी व्यक्ति को पंसद करते हैं तथा रोजाना उससे बात करते हैं - आमने सामने या मोबाईल पर - तब हम उसकी आवाज़ को पहचानने लगेंगे। अर्थात् जितना ज्यादा सम्पर्क हम किसी भी व्यक्ति से बनाते हैं - चाहे वह परिवार का हो या परिवार से दूर का हो - उतना ज्यादा हम उसकी आवाज़ को पहचानते हैं। इसलिए अगर वे किसी अन्जान नम्बर से फोन करेंगे तब भी हम उनकी आवाज़ पहचान जायेंगें। आज के इस आधुनिक युग में क्या हम येसु की आवाज़ पहचानते हैं? येसु की आवाज़ कौन पहचान पायेगा? वही जो येसु के साथ ज्यादा सम्पर्क में रहा है। येसु के साथ सम्पर्क में रहने का तात्पर्य है उसके साथ प्रार्थना में जुडे रहना, रोजाना प्रार्थना करना, बाइबिल पठन करना, वचनों पर मनन चिंतन करना, यूखारिस्त में भाग लेना। इन सबके द्वारा हम येसु के सम्पर्क में बने रहते हैं। और जितना ज्यादा हम उनसे जुड़े रहेंगे उतने स्पष्ट रूप से हम येसु की आवाज़ सुन पायेंगे और पहचान पायेंगे। येसु की आवाज़ सुनना ही काफी नहीं परन्तु उनका अनुसरण करना ही हमें स्च्ची भेड़ होने का दर्जा देता है। हम प्रभु की आवाज़ बाइबिल से, पवित्र आत्मा से, अभिषिक्त पुरोहितों से, प्रार्थनामय इंसान से सुन सकते हैं। परंतु उनका पालन करना या न करना हम पर निर्भर करता हैं। प्रभु कहते हैं कि जो मेरा अनुसरण करना चाहता है वह आत्मत्याग करे, अपना क्रूस उठायें और मेरे पीछे हो ले। प्रभु की वाणी के अनुसार चलने के लिए हमें सर्वप्रथम आत्मत्याग की जरूरत है। जब तक हम अपने शरीर की इच्छाओं का दमन नहीं करेंगे तब तक हम आत्मा के अनुसार नही चल पायेंगे क्योंकि ‘‘आत्मा और शरीर एक दूसरे के विरोधी है’’ (गलातियों 5:17)। इसलिए हमें हमेशा प्रार्थना करते रहना चाहिए क्योंकि आत्मा तो तत्पर है परन्तु शरीर दुर्बल है (देखिए मारकुस 14:38)। हम सब प्रभु की सच्ची भेड़ बनने के लिए बुलाये गये हैं। प्रभु कहते हैं, ‘‘मैं द्वार के सामने खड़ा हो कर खटखटाता हूँ। यदि कोई मेरी वाणी सुन कर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके यहाँ आ कर उसके साथ भोजन करूँगा और वह मेरे साथ’’ (प्रकाशना 3:20)। आज हम सब को उनकी आवाज़ पहचानते हुए उनका अनुसरण करने की जरूरत हैं जिससे हम उनके सच्चे शिष्य, सच्ची भेड़ सिद्ध हो जाएँ। ’’यदि तुम मेरी शिक्षा पर दृढ़ रहोगे, तो सचमुच मेरे शिष्य सिद्ध होगे’’ (योहन 8:31) ✍ -Biniush Topno  Copyright © www.catholicbibleministry1.blogspot.com Praise the Lord!