About Me

My photo
Duliajan, Assam, India
Catholic Bibile Ministry में आप सबों को जय येसु ओर प्यार भरा आप सबों का स्वागत है। Catholic Bibile Ministry offers Daily Mass Readings, Prayers, Quotes, Bible Online, Yearly plan to read bible, Saint of the day and much more. Kindly note that this site is maintained by a small group of enthusiastic Catholics and this is not from any Church or any Religious Organization. For any queries contact us through the e-mail address given below. 👉 E-mail catholicbibleministry21@gmail.com

Daily Mass Readings for Friday, 26 March 2021

 Daily Mass Readings for Friday, 26 March 2021


First Reading: Jeremiah 20:10-13


10 For I heard the reproaches of many, and terror on every side: Persecute him, and let us persecute him: from all the men that were my familiars, and continued at my side: if by any means he may be deceived, and we may prevail against him, and be revenged on him.

11 But the Lord is with me as a strong warrior: therefore they that persecute me shall fall, and shall be weak: they shall be greatly confounded, because they have not understood the everlasting reproach, which never shall be effaced.

12 And thou, O Lord of hosts, prover of the just, who seest the reins and the heart: let me see, I beseech thee, thy vengeance on them: for to thee I have laid open my cause.

13 Sing ye to the Lord, praise the Lord: because he hath delivered the soul of the poor out of the hand of the wicked.

Responsorial Psalm: Psalms 18: 2-3a, 3bc-4, 5-6, 7


R. (7) In my affliction I called upon the Lord, and I cried to my God: And he heard my voice.

2 I will love thee, O Lord, my strength:

3 The Lord is my firmament, my refuge, and my deliverer.

R. In my affliction I called upon the Lord, and I cried to my God: And he heard my voice.

3 My God is my helper, and in him will I put my trust. My protector and the horn of my salvation, and my support.

4 Praising I will call upon the Lord: and I shall be saved from my enemies.

R. In my affliction I called upon the Lord, and I cried to my God: And he heard my voice.

5 The sorrows of death surrounded me: and the torrents of iniquity troubled me.

6 The sorrows of hell encompassed me: and the snares of death prevented me.

R. In my affliction I called upon the Lord, and I cried to my God: And he heard my voice.

7 In my affliction I called upon the Lord, and I cried to my God: And he heard my voice from his holy temple: and my cry before him came into his ears.

R. In my affliction I called upon the Lord, and I cried to my God: And he heard my voice.

Verse Before the Gospel: John 6: 63c, 68c

63c, 68cThe words that I have spoken to you, are spirit and life. Thou hast the words of eternal life.

Gospel: John 10: 31-42


31 The Jews then took up stones to stone him.

32 Jesus answered them: Many good works I have shewed you from my Father; for which of these works do you stone me?

33 The Jews answered him: For a good work we stone thee not, but for blasphemy; and because that thou, being a man, maketh thyself God.

34 Jesus answered them: Is it not written in your law: I said you are gods?

35 If he called them gods, to whom the word of God was spoken, and the scripture cannot be broken;

36 Do you say of him whom the Father hath sanctified and sent into the world: Thou blasphemest, because I said, I am the Son of God?

37 If I do not the works of my Father, believe me not.

38 But if I do, though you will not believe me, believe the works: that you may know and believe that the Father is in me, and I in the Father.

39 They sought therefore to take him; and he escaped out of their hands.

40 And he went again beyond the Jordan, into that place where John was baptizing first; and there he abode.

41 And many resorted to him, and they said: John indeed did no sign.

42 But all things whatsoever John said of this man, were true. And many believed in him.


✍️- Br. Biniush Topno

Copyright © www.atpresentofficial.blogspot.com

Praise the lord


26 मार्च 2021, शुक्रवार चालीसे का पांचवां सप्ताह

 

26 मार्च 2021, शुक्रवार

चालीसे का पांचवां सप्ताह

🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥

पहला पाठ : यिरमियाह का ग्रन्थ 20:10-13


10) मैंने बहुतों को यह फुसफुसाते हुए सुना है- “चारों ओर आतंक फैला हुआ हैं। उस पर अभियोग लगाओ! हम उस पर अभियोग लगायें“। जो पहले मेरे मित्र थे, वे सब इस ताक में रहते हैं कि मैं कोई ग़लती कर बैठूँ और कहते हैं, “वह शायद भटक जायेगा और हम उस पर हावी हो कर उस से बदला लेंगे''।

11) परन्तु प्रभु एक पराक्रमी शूरवीर की तरह मेरे साथ हैं। मेरे विरोधी ठोकर खा कर गिर जायेंगे। वे मुझ पर हावी नहीं हो पायेंगे और अपनी हार का कटु अनुभव करेंगे। उनका अपयश सदा बना रहेगा।

12) विश्वमण्डल के प्रभु! तू धर्मी की परीक्षा करता और मन तथा हृदय की थाह लेता है। मैं अपने को तुझ पर छोड़ता हूँ। मैं दूखूँगा कि तू उन लोगों से क्या बदला लेता है।

13) प्रभु का गीत गाओ! प्रभु की स्तुति करो! क्योंकि वह दरिद्रों के प्राणों को दुष्टों के हाथ से छुडाता है।


सुसमाचार : सन्त योहन का सुसमाचार 10:31-42


31) यहँदियों ने ईसा को मार डालने के लिये फिर पत्थर उठाये।

32) ईसा ने उन से कहा, मैनें अपने पिता के सामर्थ्य से तुम लोगों के सामने बहुत से अच्छे कार्य किये हैं। उन में किस कार्य के लिये मुझे पत्थरों से मार डालना चाहते हो?

33) यहूदियों ने उत्तर दिया, किसी अच्छे कार्य के लिये नहीं, बल्कि ईश-निन्दा के लिये हम तुम को पत्थरों से मार डालना चाहते हैं क्योंकि तुम मनुष्य होकर अपने को ईश्वर मानते हो।

34) ईसा ने कहा, ’’क्या तुम लोगो की संहिता में यह नहीं लिखा है, मैने कहा तुम देवता हो?

35) जिन को ईश्वर का संदेश दिया गया था, यदि संहिता ने उन को देवता कहा- और धर्मग्रंथ की बात टल नहीं सकती-

36) तो जिसे पिता ने अधिकार प्रदान कर संसार में भेजा है, उस से तुम लोग यह कैसे कहते हो- तुम ईश-निन्दा करते हो; क्योंकि मैने कहा, मैं ईश्वर का पुत्र हूँ?

37) यदि मैं अपने पिता के कार्य नहीं करता, तो मुझ पर विश्वास न करो।

38) किन्तु यदि मैं उन्हें करता हूँँ, तो मुझ पर विश्वास नहीं करने पर भी तुम कार्यों पर ही विश्वास करो, जिससे तुम यह जान जाओ और समझ लो कि पिता मुझ में है और मैं पिता में हूँ।’’

39) इस पर उन्होंने फिर ईसा को गिरफ़्तार करने का प्रयत्न किया, परन्तु वे उनके हाथ से निकल गये।

40) ईसा यर्दन के पार उस जगह लौट गये, जहाँ पहले योहन बपतिस्मा दिया करता था, और वहीं रहने लगे।

41) बहुत-से लोग उनके पास आये। वे कहते थे, योहन ने तो कोई चमत्कार नहीं दिखाया, परंतु उसने इनके विषय में जो कुछ कहा, वह सब सच निकला।

42) और वहाँ बहुत से लोगों ने उन में विश्वास किया।


📚 मनन-चिंतन


आज के दोनों पाठों में हम देखते है कि यिरमियाह ईश्वर की वाणी सुनाने के कारण, सच बोलने के कारण उनको विरोध का सामना करना पडता है। और सुसमाचार में येसु पिता की वाणी सुनाने के कारण और पिता के साथ उनके संबध के बारे में बोलने के कारण विरोध का सामना करना पडता है। लेकिन वे सच्चाई से पीछे नहीं हटते।

लोग शुरूवात में येसु को समझ नहीं पाये। क्योंकि लोगों ने सोचा कि येसु एक नबी है। संत मत्ती 16ः13से हम पढते है ईसा ने शिष्यों से पूछा, मानव पुत्र कौन है, इस विषय में लोग क्या कहते हैं? उन्होंने उत्तर दिया, कुछ लोग कहते हैं योहन बपतिस्ता; कुछ कहते हैं-एलियस; और कुछ लोग कहते हैं-येेरेमियस अथवा नबियों में से कोई। इसलिए यहूदियों ने येसु से कहा तुम ईश निन्दा कर रहे हो क्योंकि तुम मनुष्य हो कर अपने को ईश्वर मानते हो। हॉ यह सही है उस समय लोग येसु को सही रूप में समझ नहीं पाये। येसु ईश्वर के एकलौते पुत्र है इसलिए येसु स्वयं ईश्वर है। संत योहत अपने सुसमाचार ये सच्चाई बताते हुए शुरू करते है 1ः1- आदि में शब्द था, शब्द ईश्वर के साथ था और शब्द ईश्वर था। संत पौलूस येसु के बारे में कहते है फिलिप्पियों 2ः6-7 वह वास्तव में ईश्वर थे और उन को पूरा अधिकार था कि वह ईश्वर की बराबरी करें, फिर भी उन्होंने दास का रूप धारण कर तथा मनुष्यों के समान बन कर अपने को दीन हीन बना लिया।

येसु ने अपने शिष्यों से पूछा तूम क्या कहते हो कि मैं कौन हॅू? पेत्रुस ने कहाः आप मसीह है, आप जीवन्त ईश्वर के पुत्र है। आईए इस चालिसा काल में येसु को और गहराई में जानने कि कोशीष करें और उनके साथ गहरा संबध रखें। हमारे लिए संत पौलूस की प्रार्थना यह हैं एफेसियों 3ः17-18 कि विश्वास द्वारा मसीह आपके ह्रदयों में निवास करें, प्रेम में आपकी जडें गहरी हों और नींव सुदृढ़ हो। इस तरह, आप लोग अन्य सभी सन्तों के साथ मसीह के प्रेम की लम्बाई, चौडाई, ऊॅचाई और गहराई समझ सकेंगे।




📚 REFLECTION



In today’s both the readings we have the same theme that Jeremiah faces opposition for having proclaimed the word of God, having proclaimed the truth. In the Gospel also we have the same thing that Jesus having proclaimed the truth about him, he faces opposition. However they remain for the truth.

The Jews could not understand Jesus in the beginning. Because the Jews though Jesus was a prophet. Mt 16:13-14 Jesus asked his disciples: who do people say that the Son of Man is? And they said “Some say John the Baptist, but others Elijah, and still others Jeremiah or one of the prophets.” Therefore the Jews said to Jesus that he is blaspheming, because he being a human claiming to be God. Jesus was speaking the truth but the people could not grasp it.

Jesus being the only Son of the Father is God himself. St. John begins his gospel with this 1:1 in the beginning was the Word, and the Word was with God and the word was God. St. Paul says the same in Philip 2:6-7 though he was in the form of God, did not regard equality with God as something to be exploited, but emptied himself, taking the form of a slave, being born in human likeness and being found in human form, he humbled himself.

Jesus asked his disciples that what do you say about me? And Peter said that you are the Christ the Son of the living God. Dear friends, come during this season of lent let us make effort to know Jesus more and more and make our relationship with him deeper. St. Paul’s prayer for us is that Eph 3:17-18 and that Christ may dwell in your hearts through faith, as you are being rooted and grounded in love. I pray that you may have the power to comprehend, with all the saints, what is the breadth and length and height and depth of the love of Christ.



मनन-चिंतन-2


जब ईसा गलीलिया में घूम-घूमकर लोगों को उपदेश देते थे, विभिन्न चमत्कार करते थे, तो बहुत सारे लोग आश्चर्य में पड़ जाते थे और सब के मन में यही प्रश्न होता था कि यह कौन है? (मारकुस 4:41 लूकस 4:22) इस प्रकार का प्रश्न पिलातुस के मन में भी था इसलिए वह सत्य को जानना चाहता था (देखिए योहन18:38)। प्रभु येसु ने संत योहन के सुसमाचार के द्वारा अपने विषय में कई सारी बातें इस विषय में बताई है कि वे कौन हैं। वे कहते हैं, ’’जीवन की रोटी मैं हूँ’’, ‘‘संसार की ज्योति मैं हूँ’’, ‘‘पुनरूत्थान और जीवन मैं हूँ,’’ ’’मार्ग, सत्य और जीवन मैं हूँ,’’ ’’मैं दाखलता हूँ,’’ और ’’भला गडेरिया मैं हूँ,’’। आज का सुसमाचार हमें चरवाहा और भेड़ों के बीच के रिश्ते पर मनन चिंतन करने के लिए आह्वान करता है।

प्रभु येसु संत योहन के सुसमाचार 10:11 में कहते हैं कि भला गडेरिया मैं हूँ। भले गडेरिये के कुछ गुण होते हैं जैसे- भला गडेरिया अपनी भेड़ों के लिए अपने प्राण दे देता है, अपने भेड़ों को जानता है, भेड़ों को हरे मैदानों में बैठाता और शांत जल के पास ले जा कर उनमें नवजीवन का संचार करता है। भला चरवाहा एक भेड़ के भटक जाने पर निन्यानवे भेडों को छोड़ उस भटकी हुई भेड़ को खोजने जाता है। ये सब गुण हम प्रभु येसु के जीवन में पाते हैं। प्रभु येसु सचमुच में भले गडेरिये है जो अपनी भेड़ों के लिए अपने प्राण अर्पित करते है। वे भटकी हुई भेड़ की खोज में जाते है। प्रभु ने अपने जीवन के द्वारा यह सिद्ध किया कि वे सचमुच में भले गडेरिया है।

लेकिन आज का सुसमाचार भले गडेरिये के ऊपर नहीं परन्तु भली भेड़ के ऊपर है। आज हम सब के लिए बड़ा प्रश्न यह है कि प्रभु येसु तो सचमुच में भले गडेरिये हैं परंतु क्या हम उस भले गडेरिये की भली भेड़ें हैं। वे हम सभी भेड़ों को नाम से जानते हैं और सदा हमें अपने पास बुलाते हैं, पर क्या हम भली भेड़ के समान अपना जीवन व्यतीत करते हैं?

भली भेड़ या सच्ची भेड़ का चिन्ह क्या है? आज का सुसमाचार के अनुसार सच्ची भेड़ भले चरवाहे की आवाज़ पहचानती है तथा उनका अनुसरण करती है। प्रभु येसु या ईश्वर की आवाज़ पहचानना एक सच्ची भेड़ की अहम निशानी है। बाइबिल में हम देखते हैं कि कौन-कौन ईश्वर की आवाज़ पहचानता एवं सुनता था।

बाइबिल में हम नूह, इब्राहिम, इसहाक, याकूब, युसूफ, मूसा, योशुआ, कई न्यायकर्ताओं, कई नबियों को जानते हैं जो ईश्वर की आवाज़ सुनते और उनका अनुसरण करते थे। हम अपने जीवन में किसकी आवाज़ बहुत अच्छी से पहचानते है? जाहिर सी बात है कि हम अपने जीवन में अपने माता-पिता या परिवार वालों की आवाज़ अच्छे से पहचानते हैं। वह किस लिए? क्योंकि हम अपना ज्यादातार समय अपने परिवार के साथ बिताते हैं तथा उनकी आवाज़ को सुनते रहते हैं। इसी तरह हम किसी व्यक्ति को पंसद करते हैं तथा रोजाना उससे बात करते हैं - आमने सामने या मोबाईल पर - तब हम उसकी आवाज़ को पहचानने लगेंगे। अर्थात् जितना ज्यादा सम्पर्क हम किसी भी व्यक्ति से बनाते हैं - चाहे वह परिवार का हो या परिवार से दूर का हो - उतना ज्यादा हम उसकी आवाज़ को पहचानते हैं। इसलिए अगर वे किसी अन्जान नम्बर से फोन करेंगे तब भी हम उनकी आवाज़ पहचान जायेंगें। आज के इस आधुनिक युग में क्या हम येसु की आवाज़ पहचानते हैं? येसु की आवाज़ कौन पहचान पायेगा? वही जो येसु के साथ ज्यादा सम्पर्क में रहा है। येसु के साथ सम्पर्क में रहने का तात्पर्य है उसके साथ प्रार्थना में जुडे रहना, रोजाना प्रार्थना करना, बाइबिल पठन करना, वचनों पर मनन चिंतन करना, यूखारिस्त में भाग लेना। इन सबके द्वारा हम येसु के सम्पर्क में बने रहते हैं। और जितना ज्यादा हम उनसे जुड़े रहेंगे उतने स्पष्ट रूप से हम येसु की आवाज़ सुन पायेंगे और पहचान पायेंगे।

येसु की आवाज़ सुनना ही काफी नहीं परन्तु उनका अनुसरण करना ही हमें स्च्ची भेड़ होने का दर्जा देता है। हम प्रभु की आवाज़ बाइबिल से, पवित्र आत्मा से, अभिषिक्त पुरोहितों से, प्रार्थनामय इंसान से सुन सकते हैं। परंतु उनका पालन करना या न करना हम पर निर्भर करता हैं। प्रभु कहते हैं कि जो मेरा अनुसरण करना चाहता है वह आत्मत्याग करे, अपना क्रूस उठायें और मेरे पीछे हो ले। प्रभु की वाणी के अनुसार चलने के लिए हमें सर्वप्रथम आत्मत्याग की जरूरत है। जब तक हम अपने शरीर की इच्छाओं का दमन नहीं करेंगे तब तक हम आत्मा के अनुसार नही चल पायेंगे क्योंकि ‘‘आत्मा और शरीर एक दूसरे के विरोधी है’’ (गलातियों 5:17)। इसलिए हमें हमेशा प्रार्थना करते रहना चाहिए क्योंकि आत्मा तो तत्पर है परन्तु शरीर दुर्बल है (देखिए मारकुस 14:38)। हम सब प्रभु की सच्ची भेड़ बनने के लिए बुलाये गये हैं। प्रभु कहते हैं, ‘‘मैं द्वार के सामने खड़ा हो कर खटखटाता हूँ। यदि कोई मेरी वाणी सुन कर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके यहाँ आ कर उसके साथ भोजन करूँगा और वह मेरे साथ’’ (प्रकाशना 3:20)। आज हम सब को उनकी आवाज़ पहचानते हुए उनका अनुसरण करने की जरूरत हैं जिससे हम उनके सच्चे शिष्य, सच्ची भेड़ सिद्ध हो जाएँ। ’’यदि तुम मेरी शिक्षा पर दृढ़ रहोगे, तो सचमुच मेरे शिष्य सिद्ध होगे’’ (योहन 8:31)


 -Biniush Topno


Copyright © www.atpresentofficial.blogspot.com
Praise the Lord!