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गुरुवार, 30 सितम्बर, 2021 वर्ष का छ्ब्बीसवाँ सामान्य सप्ताह

 

गुरुवार, 30 सितम्बर, 2021

वर्ष का छ्ब्बीसवाँ सामान्य सप्ताह

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पहला पाठ : नहेम्या का ग्रन्थ 8:1-12


1) समस्त इस्राएली जलद्वार के सामने के चैक में एकत्र हुए और उन्होंने एज़्रा से निवेदन किया कि वह प्रभु द्वारा इस्राएल को प्रदत्त मूसा की संहिता का ग्रन्थ ले आये।

2) पुरोहित एज्ऱा सभा में संहिता का ग्रन्थ ले आया। सभा में पुरुष, स्त्रियाँ और समझ सकने वाले बालक उपस्थित थे। यह सातवें मास का पहला दिन था।

3) उसने सबेरे से ले कर दोपहर तक जलद्वार के सामने के चैक में स्त्री-पुरुषों और समझ सकने वाले बालकों को ग्रन्थ पढ़ कर सुनाया। सब लोग संहिता का ग्रन्थ ध्यान से सुनते रहे।

4) शास्त्री एज़ा विशेष रूप से तैयार किये हुए लकड़ी के मंच पर खड़ा था। उसकी दाहिनी और मत्तित्या, शेमा, अनाया, ऊरीया, हिलकीया और मासेया थे और उसकी बायीं ओर पदाया, मीशाएल, मलकीया, हाशुम, हशबद्दाना, ज़कर्या और मशुल्लाम थे।

5) एज्ऱा लोगों से ऊँची जगह पर था। उसने सबों के देखने में ग्रन्थ खोल दिया। जब ग्रन्थ खोला गया, तो सारी जनता उठ खड़ी हुई।

6) तब एज्ऱा ने प्रभु, महान् ईश्वर का स्तुतिगान किया और सब लोगों ने हाथ उठा कर उत्तर दिया, "आमेन, आमेन!" इसके बाद वे झुक गये और मुँह के बल गिर कर उन्होंने प्रभु को दण्डवत् किया।

7) इसके बाद येशूआ, बानी, शेरेब्या, यामीन, अक्कूब, शब्बतय, होदीया, मासेया, कलीटा, अज़र्या, योज़ाबाद, हानान और पलाया, इन लेवियों ने लोगों को संहिता का अर्थ समझाया और वे खड़े हो कर सुनते रहे।

8) उन्होंने ईश्वर की संहिता का ग्रन्थ पढ़ कर सुनाया, इसका अनुवाद किया और इसका अर्थ समझाया, जिससे लोग पाठ समझ सकें।

9) इसके बाद राज्यपाल, नहेम्या, याजक तथा शास्त्री एज़्रा और लोगों को समझाने वाले लेवियों ने सारी जनता से कहा, "यह दिन तुम्हारे प्रभु-ईश्वर के लिए पवित्र है। उदास हो कर मत रोओ"; क्योंकि सब लोग संहिता का पाठ सुन कर रोते थे।

10) तब एज्ऱा ने उन से कहा, "जा कर रसदार मांस खाओ, मीठी अंगूरी पी लो और जिसके लिए कुछ नहीं बन सका, उसके पास एक हिस्सा भेज दो; क्योंकि यह दिन हमारे प्रभु के लिए पवित्र है। उदास मत हो। प्रभु के आनन्द में तुम्हारा बल है।"

11) लेवियों ने यह कहते हुए लोगों को शान्त कर दिया, "शान्त रहो, क्योंकि यह दिन पवित्र है। उदास मत हो।"

12) तब सब लोग खाने-पीने गये। उन्होंने दूसरों के पास हिस्से भेज दिये और उल्लास के साथ आनन्द मनाया; क्योंकि उन्होंने अपने को दी हुई शिक्षा को समझा था।



सुसमाचार : लूकस 10:1-12


1) इसके बाद प्रभु ने अन्य बहत्तर शिष्य नियुक्त किये और जिस-जिस नगर और गाँव में वे स्वयं जाने वाले थे, वहाँ दो-दो करके उन्हें अपने आगे भेजा।

2) उन्होंने उन से कहा, "फ़सल तो बहुत है, परन्तु मज़दूर थोड़े हैं; इसलिए फ़सल के स्वामी से विनती करो कि वह अपनी फ़सल काटने के लिए मज़दूरों को भेजे।

3) जाओ, मैं तुम्हें भेडि़यों के बीच भेड़ों की तरह भेजता हूँ।

4) तुम न थैली, न झोली और न जूते ले जाओ और रास्तें में किसी को नमस्कार मत करो।

5) जिस घर में प्रवेश करते हो, सब से पहले यह कहो, ’इस घर को शान्ति!’

6) यदि वहाँ कोई शान्ति के योग्य होगा, तो उस पर तुम्हारी शान्ति ठहरेगी, नहीं तो वह तुम्हारे पास लौट आयेगी।

7) उसी घर में ठहरे रहो और उनके पास जो हो, वही खाओ-पियो; क्योंकि मज़दूर को मज़दूरी का अधिकार है। घर पर घर बदलते न रहो।

8) जिस नगर में प्रवेश करते हो और लोग तुम्हारा स्वागत करते हैं, तो जो कुछ तुम्हें परोसा जाये, वही खा लो।

9) वहाँ के रोगियों को चंगा करो और उन से कहो, ’ईश्वर का राज्य तुम्हारे निकट आ गया है’।

10) परन्तु यदि किसी नगर में प्रवेश करते हो और लोग तुम्हारा स्वागत नहीं करते, तो वहाँ के बाज़ारों में जा कर कहो,

11 ’अपने पैरों में लगी तुम्हारे नगर की धूल तक हम तुम्हारे सामने झाड़ देते हैं। तब भी यह जान लो कि ईश्वर का राज्य आ गया है।’

12) मैं तुम से यह कहता हूँ - न्याय के दिन उस नगर की दशा की अपेक्षा सोदोम की दशा कहीं अधिक सहनीय होगी।


मनन-चिंतन


आज के सुसमाचार में पुनः प्रभु येसु अपने बहत्तर शिष्यों को दो-दो करके ईश्वर का राज्य सुनाने और चंगाई करने भेजते हुये कहते है मै तुम्हें भेड़ियों के बीच भेड़ों की तरह भेजता हॅूं। भेडिया एक खूंखार जंगली जानवर है वहीं भेड़ निर्मल निर्दोष जानवर है। प्रभु को मालूम था कि संसार में लोग भेडियें के समान है इस पर भी वे अपने शिष्यों को भेड़ियों के समान नही परंतु एक भेड़ के समान भेजते है। संसार में कहावत है लोहा लोहे को काटता है अर्थात् अगर हमें दुश्मन को हराना है तो हमें उसके समान या उससे भी अधिक शक्तिशाली बनना है। परंतु प्रभु का दूसरा नजरियॉं है- प्रभु जानते थे कि नफरत से नफरत को नहीं हराया जा सकता, शत्रुता को शत्रुता से नहीं हराया जा सकता, कोध्र को कोध्र से नहीं हराया जा सकता परंतु दुश्मन को प्रेम से दोस्त बनाया जा सकता है जो अत्याचार करते है उनके लिए प्रार्थना करके उनको उनके पापो से बचाया जा सकता है। इसलिए वे उन्हें भेड़ के समान बिना संसारिक चीज़ों पर आश्रित हुये संसार में भेजते है क्योंकि देने वाला तो ईश्वर है।



📚 REFLECTION


In today’s gospel Jesus once again sends his 72 disciples two by two to proclaim God’s Kingdom and to heal by saying to them. Go on your way. See, I am sending you out like lambs into the midst of wolves. Wolf is a ravaneous animal whereas lamb is a simple and innocent animal. Jesus knew that people in the world be like the wolves even then also he sends his disciples not as a wolf but as a lamb. There is a saying in the world that Iron cuts iron that means to say if we want to defeat an enemy then we have to become strong like him or even stronger than him. But Jesus had different view- He knew that hatred cannot be defeated by hatred, enimity cannot be defeated by enemity, anger cannot be defeated by anger but an enemy can become a friend by love and those who persecute us can be saved from their sins by praying for them. That is why he sends them in the world without depending on the things of the world because the provider is God himself.


 -Br. Biniush Topno


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Praise the Lord!