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29 मई 2022, इतवार* *स्वर्गारोहण का पर्व*

 *CATHOLIC BIBLE MINISTRY ✞*


*29 मई 2022, इतवार*

*स्वर्गारोहण का पर्व*

*पहला पाठ*
प्रेरित-चरित 1:1-11



1 थेओफिलुस! मैंने अपनी पहली पुस्तक में उन सब बातों का वर्णन किया,

2) जिन्हें ईसा उस दिन तक करते और सिखाते रहे जिस दिन वह स्वर्ग में आरोहित कर लिये गये। उस से पहले ईसा ने अपने प्रेरितों को, जिन्हें उन्होंने स्वयं चुना था, पवित्र आत्मा द्वारा अपना कार्य सौंप दिया।

3) ईसा ने अपने दुःख भोग के बाद उन प्रेरितों को बहुत से प्रमाण दिये कि वह जीवित हैं। वह चालीस दिन तक उन्हें दिखाई देते रहे और उनके साथ ईश्वर के राज्य के विषय में बात करते रहे।

4) ईसा ने प्रेरितों के साथ भोजन करते समय उन्हें आदेश दिया कि वे येरुसालेम नहीं छोड़े, बल्कि पिता ने जो प्रतिज्ञा की, उसकी प्रतीक्षा करते रहें। उन्होंने कहा, ‘‘मैंने तुम लोगों को उस प्रतिज्ञा के विषय में बता दिया है।

5) योहन जल का बपतिस्मा देता था, परन्तु थोड़े ही दिनों बाद तुम लोगों को पवित्र आत्मा का बपतिस्मा दिया जायेगा’’।

6) जब वे ईसा के साथ एकत्र थे, तो उन्होंने यह प्रश्न किया- ‘‘प्रभु! क्या आप इस समय इस्राएल का राज्य पुनः स्थापित करेंगे ?’’

7) ईसा ने उत्तर दिया, ‘‘पिता ने जो काल और मुहूर्त अपने निजी अधिकार से निश्चित किये हैं, तुम लोगों को उन्हें जानने का अधिकार नहीं है।

8) किन्तु पवित्र आत्मा तुम लोगों पर उतरेगा और तुम्हें सामर्थ्य प्रदान करेगा और तुम लोग येरुसालेम, सारी यहूदिया और सामरिया में तथा पृथ्वी के अन्तिम छोर तक मेरे साक्षी होंगे।’’

9) इतना कहने के बाद ईसा उनके देखते-देखते आरोहित कर लिये गये और एक बादल ने उन्हें शिष्यों की आँखों से ओझल कर दिया।

10) ईसा के चले जाते समय प्रेरित आकाश की ओर एकटक देख ही रहे थे कि उज्ज्वल वस्त्र पहने दो पुरुष उनके पास अचानक आ खड़े हुए और

11) बोले, ‘‘गलीलियो! आप लोग आकाश की ओर क्यों देखते रहते हैं? वही ईसा, जो आप लोगों के बीच से स्वर्ग में आरोहित कर दिये गये हैं, उसी तरह लौटेंगे, जिस तरह आप लोगों ने उन्हें जाते देखा है।’’

💦 *दूसरा पाठ*
एफ़ेसियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 1:17-23

17) महिमामय पिता, हमारे प्रभु ईसा मसीह का ईश्वर, आप लोगों को प्रज्ञा तथा आध्यात्मिक दृष्टि प्रदान करे, जिससे आप उसे सचमुच जान जायें।

18) वह आप लोगों के मन की आँखों को ज्योति प्रदान करे, जिससे आप यह देख सकें कि उसके द्वारा बुलाये जाने के कारण आप लोगों की आशा कितनी महान् है और सन्तों के साथ आप लोगों को जो विरासत मिली है, वह कितनी वैभवपूर्ण तथा महिमामय है,

19) और हम विश्वासियों के कल्याण के लिए सक्रिय रहने वाले ईश्वर का वही सामर्थ्य कितना अपार है।

20) ईश्वर ने मसीह वही सामर्थ्य प्रदर्शित किया, जब उसने मृतकों में से उन्हें पुनर्जीवित किया और स्वर्ग में अपने दाहिने बैठाया।

21) स्वर्ग में कितने ही प्राणी क्यों न हों और उनका नाम कितना ही महान् क्यों न हो, उन सब के ऊपर ईश्वर ने इस युग के लिए और आने वाले युग के लिए मसीह को स्थान दिया।

22) उसने सब कुछ मसीह के पैरों तले डाल दिया और उन को सब कुछ पर अधिकर दे कर कलीसिया का शीर्ष नियुक्त किया।

23) कलीसिया मसीह का शरीर और उनकी परिपूर्णता है। मसीह सब कुछ, सब तरह से, पूर्णता तक पहुँचाते हैं।

अथवा

💦*दूसरा पाठ*
इब्रानियों 9:24-28, 10:19-23

24) क्योंकि ईसा ने हाथ के बने हुए उस मन्दिर में प्रवेश नहीं किया, जो वास्तविक मन्दिर का प्रतीक मात्र है। उन्होंने स्वर्ग में प्रवेश किया है, जिससे वह हमारी ओर से ईश्वर के सामने उपस्थित हो सकें।

25) प्रधानयाजक किसी दूसरे का रक्त ले कर प्रतिवर्ष परमपावन मन्दिर-गर्भ में प्रवेश करता है। ईसा के लिए इस तरह अपने को बार-बार अर्पित करने की आवश्यकता नहीं है।

26) यदि ऐसा होता तो संसार के प्रारम्भ से उन्हें बार-बार दुःख भोगना पड़ता, किन्तु अब युग के अन्त में वह एक ही बार प्रकट हुए, जिससे वह आत्मबलिदान द्वारा पाप को मिटा दें।

27) जिस तरह मनुष्यों के लिए एक ही बार मरना और इसके बाद उनका न्याय होना निर्धारित है,

28) उसी तरह मसीह बहुतों के पाप हरने के लिए एक ही बार अर्पित हुए। वह दूसरी बार प्रकट हो जायेंगे- पाप के कारण नहीं, बल्कि उन लोगों को मुक्ति दिलाने के लिए, जो उनकी प्रतीक्षा करते हैं।

19) भाइयो! ईसा का रक्त हमें निर्भय हो कर परमपावन मन्दिर-गर्भ में प्रवेश करने का आश्वासन देता है।

20) उन्होंने हमारे लिए एक नवीन तथा जीवन्त मार्ग खोल दिया, जो उनके शरीर-रूपी परदे से हो कर जाता है।

21) अब हमें एक महान् पुरोहित प्राप्त हैं, जो ईश्वर के घराने पर नियुक्त किये गये हैं।

22) इसलिए हम अपने हृदय को पाप के दोष से मुक्त कर और अपने शरीर को स्वच्छ जल से धो कर निष्कपट हृदय से तथा परिपूर्ण विश्वास के साथ ईश्वर के पास चलें।

23) हम अपने भरोसे का साक्ष्य देने में अटल एवं दृढ़ बने रहें, क्योंकि जिसने हमें वचन दिया है, वह सत्यप्रतिज्ञ है

💦 *सुसमाचार*
लूकस 24:46-53

46) और उन से कहा, "ऐसा ही लिखा है कि मसीह दुःख भोगेंगे, तीसरे दिन मृतकों में से जी उठेंगे

47) और उनके नाम पर येरूसालेम से ले कर सभी राष्ट्रों को पापक्षमा के लिए पश्चात्ताप का उपदेश दिया जायेगा।

48) तुम इन बातों के साक्षी हो।

49) देखों, मेरे पिता ने जिस वरदान की प्रतिज्ञा की है, उसे मैं तुम्हारे पास भेजूँगा। इसलिए तुम लोग शहर में तब तक बने रहो, जब तक ऊपर की शक्ति से सम्पन्न न हो जाओ।"

50) इसके बाद ईसा उन्हें बेथानिया तक ले गये और उन्होंने अपने हाथ उठा कर उन्हें आशिष दी।

51) आशिष देते-देते वह उनकी आँखों से ओझल हो गये और स्वर्ग में आरोहित कर लिये गये।

52) वे उन्हें दण्डवत् कर बड़े आनन्द के साथ येरूसालेम लौटे

53) और ईश्वर की स्तुति करते हुए सारा समय मन्दिर में बिताते थे।

💦 *मनन-चिंतन*
जब जीवन उल्टा और कठिन हो जाता है तो आप क्या करते हैं? आज के पहले पाठ में हम पाते हैं कि स्टीफ़न अँधेरे में फँस के उनका जीवन उलट गया था । लेकिन यह पूरी तरह सही नहीं है। आप यह भी कह सकते हैं कि स्टीफन का अंत हो गया ; स्टीफन का दिन खराब चल रहा है, लेकिन यह सच नहीं है। स्टीफन सबसे अच्छे दिन बिता रहे हैं। स्टीफन जीने के लिए मर रहा है। जब वह मरता है तो उसे स्वर्ग की ओर देखने और उस महिमा को देखने का सौभाग्य प्राप्त होता है जो विश्वासियों की प्रतीक्षा में है। सुसमाचार में, यीशु आपके और मेरे लिए प्रार्थना करते हैं। यीशु उन सभी के लिए प्रार्थना करते हैं जो सदियों से उन पर विश्वास करेंगे। वह एकता के लिए प्रार्थना करता है, एकरूपता के लिए नहीं। अगर यीशु हमारी एकता के लिए प्रार्थना कर रहे हैं तो वह उन सीमाओं और मतभेदों को भी पहचान और अस्वीकार कर रहे हैं जो हमें विभाजित करते हैं। एकता हमारे मतभेदों को दूर करने में है; यह प्यार के बारे में है। ईश्वर से, अपने पड़ोसी से, स्वयं से और अपने शत्रु से हमें प्रेम करना है ।

✍ - Br. Biniush Topno

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