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मंगलवार, 05 अक्टूबर, 2021

 

मंगलवार, 05 अक्टूबर, 2021

वर्ष का सताईसवाँ सामान्य सप्ताह

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पहला पाठ :योना का ग्रन्थ 3:1-10


1) प्रभु के वाणी योना को दूसरी बार यह कहते हुए सुनाई पडी,

2) ’’उठो! महानगर निनीवे जा कर वहाँ के लोगों को उपदेश दो, जैसा कि मैंने तुम्हें बताया है’’।

3) इस पर योना उठ खडा हुआ और प्रभु के आज्ञानुसार निनीवे चला गया। निनीवे एक बहुत बड़ा शहर था। उसे पार करने में तीन दिन लगते थे।

4) योना ने उस में प्रवेश किया और एक दिन की यात्रा पूरी करने के बाद वह इस प्रकार उपदेश देने, लगा ’’चालीस दिन के बाद निनीवे का विनाश किया जायेगा’’।

5) निनीवे के लोगों ने ईश्वर की बात पर विश्वास किया। उन्होंने उपवास की घोषणा की और बडों से लेकर छोटों तक सबों ने टाट ओढ लिया।

6) निनीवे के राजा ने यह खबर सुनी। उसने अपना सिंहासन छोड दिया, अपने वस्त्र उतार कर टाट पहन लिया और वह राख पर बैठ गया।

7) इसके बाद उसने निनीवे में यह आदेश घोषित किया, ’’यह राजा तथा उसके सामन्तों का आदेश है: चाहे मनुय हो या पशु, गाय-बैल हो या भेड-बकरी, कोई भी न तो खायेगा, न चरेगा और न पानी पियेगा।

8) सभी व्यक्ति टाट ओढ कर पूरी शक्ति से ईश्वर की दुहाई देंगे। सभी अपना कुमार्ग तथा अपने हाथों से होने वाले हिंसात्मक कार्य छोड दें।

9) क्या जाने ईश्वर द्रवित हो जाये, उसका क्रोध शान्त हो जाये और हमारा विनाश न हो’’।

10) ईश्वर ने देखा कि वे क्या कर रहे हैं और किस प्रकार उन्होंने कुमार्ग छोड दिया है, तो वह द्रवित हो गया और उसने जिस विपत्ति की धमकी दी थी, उसे उन पर नहीं आने दिया।



सुसमाचार : सन्त लूकस 10:38-42


38) ईसा यात्रा करते-करते एक गाँव आये और मरथा नामक महिला ने अपने यहाँ उनका स्वागत किया।

39) उसके मरियम नामक एक बहन थी, जो प्रभु के चरणों में बैठ कर उनकी शिक्षा सुनती रही।

40) परन्तु मरथा सेवा-सत्कार के अनेक कार्यों में व्यस्त थी। उसने पास आ कर कहा, ’’प्रभु! क्या आप यह ठीक समझते हैं कि मेरी बहन ने सेवा-सत्कार का पूरा भार मुझ पर ही छोड़ दिया है? उस से कहिए कि वह मेरी सहायता करे।’’

41) प्रभु ने उसे उत्तर दिया, ’’मरथा! मरथा! तुम बहुत-सी बातों के विषय में चिन्तित और व्यस्त हो;

42) फिर भी एक ही बात आवश्यक है। मरियम ने सब से उत्तम भाग चुन लिया है; वह उस से नहीं लिया जायेगा।’’


📚 मनन-चिंतन


आज का सुसमाचार जीवन के दो अत्यंत महत्वपूर्ण पहलुओं पर प्रकाश डालता है। काम और पूजा। मार्था और मरियम दो बहनें हैं जिनका येसु के प्रति बहुत भिन्न प्रकार का दृष्टिकोण था। मार्था येसु के लिए तैयारी करने में व्यस्त थी। वह अपने घर में प्रभु को प्रसन्न करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही थी। हालाँकि, मरियम अपनी बहन के साथ घर के कामों में शामिल नहीं थी। बल्कि उसने येसु के चरणों में बैठना और उनकी बातें सुनना चुना। मार्था येसु को उसकी कठिनाइयों की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए बुलाती है लेकिन हमें मरियम से कुछ भी नहीं सुनाई देता है। हम अच्छी तरह से यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि जब आप प्रभु के निकट होते हैं तो आपको और कुछ नहीं चाहिए होता है। यद्यपि हमारे पास कार्य की कमी हो सकती है, परमेश्वर की उपस्थिति जीवन में हमें जो कुछ भी चाहिए, उसका आश्वासन है। व्यस्त जीवन अच्छा है और काम बहुत जरूरी है लेकिन ईश्वर की कीमत पर नहीं। ईश्वर हमारे जीवन की सर्वोच्च और सर्वोच्च प्राथमिकता बनी रहती है।

मार्था की तरह, हम भले ही अद्भुत और न्यायोचित कार्य कर रहे हों, लेकिन अगर यह हमें प्रभु से दूर रख रहा है, तो निश्चित ही जीवन में कुछ असुविधा और शून्यता पैदा होगी। इसलिए जब ईश्वर निकट हो, तो हम उनके साथ रहें। मरियम एक आलसी महिला नहीं थी कि वह काम टालने करने की कोशिश कर रही थी, बल्कि उस समय जब येसु ने घर में प्रवेश किया तो उसने काम करना बंद कर दिया और अपना समय उन्हें समर्पित कर दिया।




📚 REFLECTION



Today’s Gospel throws light on the two very important aspects of life. work and worship. Martha and Mary are two sisters who had a very different types of approaches towards Jesus. Martha was busy in making preparation for Jesus. She was leaving no room in making the Lord comfortable in her house. However, Mary was not involved in the household work with her sister. She rather chose to sit at the feet of Jesus and listen to him. Martha calls out Jesus to draw his attention towards her difficulties but we hear nothing from Mary. We may well conclude that when you are near the Lord there is nothing more you need. Although we may be lacking in action the presence of God is the assurance of everything we need in life. a busy life is good and work is very essential but not at the cost of God. God remains the supreme and the topmost priority of our life.

Like Martha, we may be doing wonderful and justifiable work but if it is keeping us away from the Lord then there is bound to arise some discomfiture and void. Therefore, when the Lord is near let us be with him. Mary was not a lazy woman that she was trying void work but rather at that moment when Jesus entered the house she stopped working and devoted her time to him..



मनन-चिंतन - 2



बेथानिया की मरियम के बारे में प्रभु येसु कहते हैं, “मरियम ने सब से उत्तम भाग चुन लिया है” (लूकस 10:42)। मरियम ने कौन-सा भाग चुन लिया था? पवित्र वचन कहता है कि मरियम “प्रभु के चरणों में बैठ कर उनकी शिक्षा सुनती रही” (लूकस 10:39)। यह एकमात्र वह बात है जो ज़रूरी है। प्रभु के चरणों में बैठ कर उनका वचन सुनना सब से उत्तम भाग है। प्रभु कहते हैं कि मरथा बहुत-सी बातों के बारे में चिन्तित और व्यस्थ थी। क्या हमारे बारे में भी यह सच नहीं है? क्या हम भी बहुत-सी बातों के बारे में चिन्तित और व्यस्थ नहीं हैं? प्रभु कहते हैं, “तुम सब से पहले ईश्वर के राज्य और उसकी धार्मिकता की खोज में लगे रहो और ये सब चीजें, तुम्हें यों ही मिल जायेंगी” (मत्ति 6:33)। लूकस 10:23-24 में हम पढ़ते हैं, “प्रभु ने अपने शिष्यों की ओर मुड़ कर एकान्त में उन से कहा, "धन्य हैं वे आँखें, जो वह देखती हैं जिसे तुम देख रहे हो! क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ - तुम जो बातें देख रहे हो, उन्हें कितने ही नबी और राजा देखना चाहते थे, परन्तु उन्होंने उन्हें नहीं देखा और जो बातें तुम सुन रहे हो, वे उन्हें सुनना चाहते थे, परन्तु उन्होंने उन्हें नहीं सुना।" मरियम का यह सौभाग्य था कि वह प्रभु ईश्वर के मुँह से उनकी वाणी सुन सकी। मरथा ने उस अवसर को गँवा दिया।




About Mary of Bethany Jesus says, “Mary has chosen the better part” (Lk 10:42). What did Mary choose? The Bible says, “Mary … sat at the Lord’s feet and listened to what he was saying” (Mt 10:39). Sitting at the Lord’s feet listening to the Word of God is the better part, the only thing that is necessary. About Martha Jesus says that she was worried and troubled about many things. Is this not true about us too? The Lord says, “strive first for the kingdom of God and his righteousness, and all these things will be given to you as well” (Mt 6:33). Once Jesus said to his disciples, “Blessed are the eyes that see what you see! 24 For I tell you that many prophets and kings desired to see what you see, but did not see it, and to hear what you hear, but did not hear it.” (Lk 10:23-24). Mary was fortunate to listen to Word of God from God’s own mouth. Martha wasted that opportunity.


 -Br. Biniush Topno


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Praise the Lord!