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मार्च 12, 2023, इतवार चालीसा काल का तीसरा इतवार

 

मार्च 12, 2023, इतवार

चालीसा काल का तीसरा इतवार




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📒 पहला पाठ : निर्गमन 17:3-7



3) लोगों को बड़ी प्यास लगी और वे यह कर मूसा के विरुद्ध भुनभुना रहे थे, ''क्या आप हमें इसलिए मिस्र से निकाल लाये कि हम अपने बाल-बच्चों और पशुओं के साथ प्यास से मर जायें?''

4) मूसा ने प्रभु की दुहाई दे कर कहा, ''मैं इन लोगों का क्या करूँ? ये मुझे पत्थरों से मार डालने पर उतारू हैं।''

5) प्रभु ने मूसा को यह उत्तर दिया, ''इस्राएल के कुछ नेताओं के साथ-साथ लोगों के आगे-आगे चलो। अपने हाथ में वह डण्डा ले लो, जिसे तुमने नील नदी पर मारा था और आगे बढ़ते जाओ।

6) मैं वहाँ होरेब की उस चट्टान पर तुम्हारे सामने खड़ा रहूँगा। तुम उस चट्टान पर डण्डे से प्रहार करो। उस से पानी फूट निकलेगा और लोगों को पीने को मिलेगा।'' मूसा ने इस्राएल के नेताओं के सामने ऐसा ही किया।

7) उसने उस स्थान का नाम "मस्सा" और "मरीबा" रखा; क्योंकि इस्राएलियों ने उसके साथ विवाद किया था और यह कह कर ईश्वर को चुनौती दी थी, ईश्वर हमारे साथ है या नहीं?''



📕 दूसरा पाठ : रोमियों 5:1-2,5-8


1) ईश्वर ने हमारे विश्वास के कारण हमें धार्मिक माना है। हम अपने प्रभु ईसा मसीह द्वारा ईश्वर से मेल बनाये रखें।

2) मसीह ने हमारे लिए उस अनुग्रह का द्वार खोला है, जो हमें प्राप्त हो गया है। हम इस बात पर गौरव करें कि हमें ईश्वर की महिमा के भागी बनने की आशा है।

5) आशा व्यर्थ नहीं होती, क्योंकि ईश्वर ने हमें पवित्र आत्मा प्रदान किया है और उसके द्वारा ही ईश्वर का प्रेम हमारे हृदयों में उमड़ पड़ा है।

6) हम निस्सहाय ही थे, जब मसीह निर्धारित समय पर विधर्मियों के लिए मर गये।

7) धार्मिक मनुष्य के लिए शायद ही कोई अपने प्राण अर्पित करे। फिर भी हो सकता है कि भले मनुष्य के लिए कोई मरने को तैयार हो जाये,

8) किन्तु हम पापी ही थे, जब मसीह हमारे लिए मर गये थे। इस से ईश्वर ने हमारे प्रति अपने प्रेम का प्रमाण दिया है।


📙 सुसमाचार : योहन 4:5-42 अथवा 4:5-15,19-26, 39-42


5) वह समारिया के सुख़ार नामक नगर पहुँचे। यह उस भूमि के निकट है, जिसे याकूब ने अपने पुत्र यूसुफ़ को दिया था।

6) वहाँ याकूब का झरना है। ईसा यात्रा से थक गये थे, इसलिए वह झरने के पास बैठ गये। उस समय दोपहर हो चला था।

7) एक समारी स्त्री पानी भरने आयी। ईसा ने उस से कहा, "मुझे पानी पिला दो",

8) क्योंकि उनके शिष्य नगर में भोजन खरीदने गये थे। यहूदी लोग समारियों से कोई सम्बन्ध नहीं रखते।

9) इसलिए समारी स्त्री ने उन से कहा, "यह क्या कि आप यहूदी हो कर भी मुझ समारी स्त्री से पीने के लिए पानी माँगते हैं?"

10) ईसा ने उत्तर दिया, "यदि तुम ईश्वर का वरदान पहचानती और यह जानती कि वह कौन है, जो तुम से कहता है- मुझे पानी पिला दो, तो तुम उस से माँगती और और वह तुम्हें संजीवन जल देता"।

11) स्त्री ने उन से कहा, "महोदय! पानी खींचने के लिए आपके पास कुछ भी नहीं है और कुआँ गहरा है; तो आप को वह संजीवन जल कहाँ से मिलेगा?

12) क्या आप हमारे पिता याकूब से भी महान् हैं? उन्होंने हमें यह कुआँ दिया। वह स्वयं, उनके पुत्र और उनके पशु भी उस से पानी पीते थे।"

13) ईसा ने कहा, "जो यह पानी पीता है, उसे फिर प्यास लगेगी,

14) किन्तु जो मेरा दिया हुआ जल पीता है, उसे फिर कभी प्यास नहीं लगेगी। जो जल मैं उसे प्रदान करूँगा, वह उस में वह स्रोत बन जायेगा, जो अनन्त जीवन के लिए उमड़ता रहता है।“

15) इस पर स्त्री ने कहा, "महोदय! मुझे वह जल दीजिए, जिससे मुझे फिर प्यास न लगे और मुझे यहाँ पानी भरने नहीं आना पड़े"।

16) ईसा ने उस से कहा, "जा कर अपने पति को यहाँ बुला लाओ"।

17) स्त्री ने उत्तर दिया, "मेरा कोई पति नहीं नहीं है"। ईसा ने उस से कहा, "तुमने ठीक ही कहा कि मेरा कोई पति नहीं है।

18) तुम्हारे पाँच पति रह चुके हैं और जिसके साथ अभी रहती हो, वह तुम्हारा पति नहीं है। यह तुमने ठीक ही कहा।"

19) स्त्री ने उन से कहा, "महोदय! मैं समझ गयी- आप नबी हैं।

20) हमारे पुरखे इस पहाड़ पर आराधना करते थे और आप लोग कहते हैं कि येरूसालेम में आराधना करनी चाहिए।"

21) ईसा ने उस से कहा, "नारी ! मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ कि वह समय आ रहा है, जब तुम लोग न तो इस पहाड़ पर पिता की आराधना करोगे और न येरूसोलेम में ही।

22) तुम लोग जिसकी आराधना करते हो, उसे नहीं जानते। हम लोग जिसकी आराधना करते हैं, उसे जानते हैं, क्योंकि मुक्ति यहूदियों से ही प्रारम्भ होती हैं

23) परन्तु वह समय आ रहा है, आ ही गया है, जब सच्चे आराधक आत्मा और सच्चाई से पिता की आराधना करेंगे। पिता ऐसे ही आराधकों को चाहता है।

24) ईश्वर आत्मा है। उसके आराधकों को चाहिए कि वे आत्मा और सच्चाई से उसकी आराधना करें।"

25) स्त्री ने कहा, "मैं जानती हूँ कि मसीह, जो खीस्त कहलाते हैं, आने वाले हैं। जब वे आयेंगे, तो हमें सब कुछ बता देंगे।"

26) ईसा ने उस से कहा, "मैं, जो तुम से बोल रहा हूँ, वहीं हूँ"।

27) उसी समय शिष्य आ गये और उन्हें एक स्त्री के साथ बातें करते देख कर अचम्भे में पड़ गये; फिर भी किसी ने यह नहीं कहा, ‘इस से आप को क्या?’ अथवा ‘आप इस से क्यों बातें करते हैं?’

28) उस स्त्री ने अपना घड़ा वहीं छोड़ दिया और नगर जा कर लोगों से कहा,

29) "चलिए, एक मनुष्य को देखिए, जिसने मुझे वह सब जो मैंने किया, बता दिया है। कहीं वह मसीह तो नहीं हैं?"

30) इसलिए वे लोग नगर से निकल कर ईसा से मिलने आये।

31) इस बीच उनके शिष्य उन से यह कहते हुए अनुरोध करते रहे, "गुरुवर! खा लीखिए"।

32) उन्होंने उन से कहा, "खाने के लिए मेरे पास वह भोजन है, जिसके विषय में तुम लोग कुछ नहीं जानते"।

33) इस पर शिष्य आपस में बोले, "क्या कोई उनके लिए खाने को कुछ ले आया है?"

34) इस पर ईसा ने उन से कहा, "जिसने मुझे भेजा, उसकी इच्छा पर चलना और उसका कार्य पूरा करना, यही भेरा भोजन है।

35) "क्या तुम यह नहीं कहते कि अब कटनी के चार महीने रह गये हैं? परन्तु मैं तुम लोगों से कहता हूँ - आँखें उठा कर खेतों को देखो। वे कटनी के लिए पक चुके हैं।

36) अब तक लुनने वाला मजदूरी पाता और अनन्त जीवन के लिए फसल जमा करता है, जिससे बोने वाला और लुनने वाला, दोनों मिल कर आनन्द मनायें;

37) क्योंकि यहाँ यह कहावत ठीक उतरती है- एक बोता है और दूसरा लुनता है।

38) मैंने तुम लोगों को वह खेत लुनने भेजा, जिस में तुमने परिश्रम नहीं किया है- दूसरों ने परिश्रम किया और तुम्हें उनके परिश्रम का फल मिल रहा है।"

39) उस स्त्री ने कहा था- ‘उन्होंने मुझे वह सब, जो मैंने किया, बता दिया है-। इस कारण उस नगर के बहुत-से समारियों ने ईसा में विश्वास किया।

40) इसलिए जब वे उनके पास आये, तो उन्होंने अनुरोध किया कि आप हमारे यहाँ रहिए। वह दो दिन वहीं रहे।

41) बहुत-से अन्य लोगों ने उनका उपदेश सुन कर उन में विश्वास किया

42) और उस स्त्री से कहा, "अब हम तुम्हारे कहने के कारण ही विश्वास नहीं करते। हमने स्वयं सुन लिया है और हम जान गये है कि वह सचमुच संसार के मुक्तिदाता हैं।"


📚 मनन-चिंतन


प्यास लगने पर हम पानी का ढुढ़ते हैं, अगर प्यास तीव्र होती हैं तो एक बूँद पानी भी हमारी प्यास को राहत दे सकता है। जल हमारे जीवन से जुड़ा एक महत्तवपूर्ण तत्व हैं। बिन जल जीवन अंसभव हैं। मरूभूमि में इस्त्राएली लोग मूसा के विरूद्व भुनभुनानें लगे। यात्रा लम्बी थी और चारों ओर पानी नही था। प्रभु अपने लोगों के लिए पानी का प्रबंध करते हैं। वे चट्टान से पानी निकालकर लोगों को तृप्त करते हैं। प्रभु के लिए सब कुछ संभव हैं।

विश्वास के कारण लोग प्रभु की आखों मे प्रिय एवं धर्मी बन जातें हैं। ऐसे भी लोग हैं जो बिना देखे ही प्रभु के कार्यो पर विश्वास करते हैं। ऐसे लोगों के लिए प्रभु अनुगृह का द्वार खोल देते हैं। प्रभु येसु ने अपने प्राण अर्पित कर यह कार्य किया है। समारी स्त्री ने भी उस अनंत जीवन के जल को ढुढ़ लिया। उस स्त्री के विश्वास से उसे उस जल को ग्रहण करने का अनुग्रह प्राप्त हुआ। अपने विश्वास से वह अन्य लोगों को भी उस जल के पास ले आती हैं। प्रभु येसु स्वयं वह जल है, जिनके हृदय से वह अंनत जीवन की धारा फूट निकलती हैं। संत योहन 7:37-39 में हम पढ़ते हैं, “पर्व के अन्तिम और मुख्य दिन ईसा उठ खड़े हुए और उन्होंने पुकार कर कहा, "यदि कोई प्यासा हो, तो वह मेरे पास आये। जो मुझ में विश्वास करता है, वह अपनी प्यास बुझाये।" जैसा कि धर्म-ग्रन्थ में लिखा है- उसके अन्तस्तल से संजीवन जल की नदियाँ बह निकलेंगी। उन्होंने यह बात उस आत्मा के विषय में कही, जो उन में विश्वास करने वालों को प्राप्त होगा।” आईए, हम भी उसी झरने के पास जायें और अपनी प्यास बुझायें।




📚 REFLECTION

We look for water when we are thirsty. If the thirst is intense then even a drop of water can give relief to us. Water is an important element related to our life. Without water life is impossible. In the desert the Israelites grumbled against Moses. The journey was long and there was no water around. The Lord provides water for his people. He satisfies the people by providing them water from the rock. Everything is possible for the Lord.

By faith, people become dear and righteous in the eyes of the Lord. There are people who believe in the works of the Lord without seeing them. For such people the Lord opens the door of grace. Lord Jesus has done this work by sacrificing his life. The Samaritan woman also found that water of eternal life. By faith, that woman got the grace to accept that spring of water. By her faith, she also leads other people to that water. The Lord Jesus Himself is the water from whose heart springs the stream of eternal life. In Saint John 7:37-39 we read, “On the last and main day of the feast, Jesus stood up and cried out, “On the last day of the festival, the great day, while Jesus was standing there, he cried out, “Let anyone who is thirsty come to me, and let the one who believes in me drink. As the scripture has said, ‘Out of the believer’s heart shall flow rivers of living water.’” Come, let us also go to the same spring and quench our thirst.



📚 मनन-चिंतन -2

येसु का समारी स्त्री से वार्तालाप धनी आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि से भरा है। यह घटना हमें सिखाती है जब हमारा जीवन येसु के संपर्क में आता है तो कितना चमत्कारिक परिवर्तन हो जाता है। समारी स्त्री अनेक प्रकार से एक दुखी महिला थी। वह समारी थी जो सामाजिक रूप से तुच्छ समझे जाते थे। वह पुरूष प्रधान समाज में स्त्री थी। इन सब से बढकर वह नैतिक रूप से संदेहात्मक चरित्र की महिला थी। इन सब नकारात्कम बातों के बावजूद भी वह एक ऐसी स्त्री के रूप में उभर कर सामने  है जो येसु को एक नबी तथा संसार में आने वाले मसीहा के रूप में पहचानती, स्वीकारती तथा दूसरों के सामने इसकी घोषणा करती है।

समारी स्त्री की इस विजय के पीछे का राज है उसकी अपने जीवन के अंर्ततम में झांकने की शक्ति एवं योग्यता। स्त्री ने बिना किसी झिझक के साथ येसु से अपने जीवन के बारे में बात की तथा सच्चाई को बताया तथा जो येसु ने उसे बताया उसे स्वीकारा। उसके इस खुलेपन तथा ईमानदारी के कारण येसु उसके जीवन को बदल देते हैं।

चालीसे का काल समारी स्त्री के समान अपने अंर्तत्तम में झांकने का समय है। हमें भी समारी स्त्री के समान अपने जीवन के अंधकारमय पहलुओं को येसु के सामने प्रकट करना चाहिये जिससे वे हमारे जीवन को बदल सके। यदि हम ऐसा कर सकेंगे तो अवश्य ही यह काल हमारे लिये फलदायक सिद्ध होगा।



📚 REFLECTION

Jesus’ encounter with the Samaritan woman is rich with spiritual insights. It tells us what wonders Jesus can do when we come in touch with him. The Samaritan woman on many accounts was the woman in distress. She was a Samaritan- a social outcast, she was a woman in male dominated society and moreover she was a woman of dubious moral character. Inspite of all these negative points against her she ends up as someone who recognizes Jesus as a prophet and the Messiah.

The reason for her triumph is her ability to introspect her life in the light Jesus. When Jesus asks her about her personal life, an area which normal people would not like to talk to strangers, she shows boldness and confidence in Jesus. She shows openness to be corrected by Jesus and be changed. And once she did that Jesus was able change her life. From an outcast personality she becomes a missionary who brings people to Jesus. She teaches that to be an effective evangelizer we need to first meet Jesus in our personal life.

The season of Lent is a time where God invites to introspect our life and bring out the dark area to him and confess our weakness and sinfulness. If we take courage and open ourselves to him than our life story too will be changed in and through Jesus.



प्रवचन - 01

संवाद या बातचीत रिश्ते बनाने तथा उन्हें बनाये रखने में बहुत ही महत्वपूर्व भूमिका निभाता है। संवाद के द्वारा हम लोगों तक पहुँच सकते हैं, उनकी भावनाओं तथा मनस्थिति को समझ सकते हैं। हम अपने जीवन में निरंतर लोगों से संवाद करते हैं।

हम किन लोगों से बात करते हैं? हम ज्यादात्तर परिस्थितियों में केवल उन्हीं लोगों से बातचीत करते हैं जिन्हें हम जानते एवं पसंद करते हैं। हम लोगों से सकारात्मक प्रतिक्रिया की आशा रखकर भी संवाद स्थापित करने की कोशिश करते हैं। किन्तु अनजान, बदनाम, फालतू लोगों से हम दूरी ही बनाये रखते हैं। जब हमें लोगों से कोई लाभ की आशा नहीं होती तो हम ज्यादा उनके बारे में सोचते भी नहीं है। येसु का समारी स्त्री के साथ संवाद ईश्वर के स्वाभाव को समझने में एक महत्वपूर्ण अध्याय है। इस संवाद के द्वारा येसु न सिर्फ समारी स्त्री को बल्कि सारी मानवजाति को सिखाते हैं कि ईश्वर स्वयं ही कैसे सब की सुधि लेता है, चाहे वे कितने ही बदनाम, भूले-बिसरे या दयनीय क्यों न हो।

यहूदी लोग समारियों से कोई भी संबंध नहीं रखते थे। इसका कारण उनकी धार्मिक, सामाजिक तथा ऐतिहासिक पृष्ठभूमि थी। इसके अलावा अनजानी महिलाओं से सार्वजनिक स्थलों पर बातचीत करना भी सामाजिक रूप से वर्जित था। स्थिति और भी अधिक गंभीर बन जाती है जब इसके अलावा वह स्त्री अकेली तथा बदनाम भी हो। येसु इस सब बातों से परिचित थे कि वह स्त्री समारी थी, अकेली ही सार्वजनिक जगह पर थी तथा संदेहात्मक चरित्र की थी। इस सब के बावजूद भी येसु उससे संवाद करने की पहल करते हैं। जब स्त्री कोई रूचि नहीं दिखाती तो येसु उसे बातों में लगाये रखने का प्रयत्न करते हैं। किन्तु समारी स्त्री निरंतर संवाद की दिशा को भटकाने का प्रयास करती है। लेकिन येसु जो उसका उद्धार करना चाहते थे इस संवाद को रचनात्मक बनाये रखने का प्रयास करते हैं। येसु उसे सहज महसूस करने हेतु अनेक बातें करते हुये उसे उसके जीवन के उस पहलू को बताते हैं जिससे उसका जीवन परिवर्तित हो जाता है। अंत में जब वह येसु को मसीह के रूप में पहचान लेती है तो आसपास के अनेक लोगों को येसु के बारे में बताती तथा उन्हें येसु के पास लाती है।

संवाद दूसरों के प्रति हमारी रूचि तथा रिश्ते की गहरायी को दर्शाता है। जिन लोगों को हम खोना नहीं चाहते हम उनसे लगातार संपर्क तथा संवाद बनाये रखना चाहते हैं। ईश्वर भी हम में रूचि लेते तथा हमें खोना नहीं चाहते हैं। यह ईश्वर का स्वाभाव है कि वह निरंतर हमसे संपर्क एवं संवाद बनाने की कोशिश करते हैं। आदम और हेवा वाटिका में ईश्वर की उपस्थिति में रहते थे। किन्तु जब उन्होंने पाप किया तो वे छिप गये। ईश्वर ऐसी स्थिति में भी उनसे बात करते जाते हैं। वे आदम को पुकारते हुये पूछते हैं, ’’तुम कहॉ हो?’’ (उत्पत्ति 3:8) ईश्वर जानते थे कि आदम ने क्या किया तथा वह कहॉ है किन्तु ईश्वर आदम को यह महसूस करवाना चाहते थे कि वह पाप के द्वारा कहॉ पहुँच गया है। ईश्वर उसे उसकी स्थिति से अवगत कराना चाहते थे। आदम और हेवा के साथ लम्बे संवाद के दौरान ईश्वर उन्हें आने वाले कठिन जीवन तथा परिस्थितियों से अवगत कराते हैं। वे उन्हें वाटिका से निकालते तो हैं किन्तु उन्हें त्यागते नहीं हैं। वे उनकी नग्नता को ढांकते हैं, ’’प्रभु-ईश्वर ने आदम और उसकी पत्नी के लिये खाल के कपडे बनाये और उन्हें पहनाया’’ (उत्पति 3:21)

इस प्रकार का संवाद प्रभु-ईश्वर काइन के साथ भी करते हैं। जब काइन अपने भाई हाबिल के प्रति ईर्ष्यालु बन जाता है तो ईश्वर उसे आगामी परिणाम से सचेत करते हैं। किन्तु काइन ईश्वर की वाणी पर ध्यान नहीं देता और अपने भाई की हत्या कर देता है। इसके बावजूद भी प्रभु-ईश्वर काइन से बात करने आते हैं तथा पूछते हैं, ’’तुम्हारा भाई हाबिल कहॉ है?’’ (उत्पत्ति 4:9) प्रभु-ईश्वर तो जानते थे कि काइन ने क्या किया है किन्तु वे चाहते हैं कि काइन इस बात को महसूस करे कि उसका भाई अब जीवित नहीं हैं। काइन को उसकी पापमय परिस्थिति से अवगत कराकर ईश्वर उसे रक्षा का चिन्ह प्रदान करते हैं, ’’जो काइन का वध करेगा, उस से इसका सात गुना बदला लिया जायेगा।’’ कहीं ऐसा न हो कि काइन से भेंट होने पर कोई उसका वध करे, इसलिये प्रभु ने काइन पर एक चिन्ह अंकित किया।’’ (उत्पति 4:15)

समारी स्त्री इस सांसारिक जीवन के सुख की खोज में थी। इसी खुशी को पाने में उसने कई बार विवाह किया। कोई साधारणः इतनी बार विवाह नहीं करता है। इस कारण यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है उस स्त्री में नैतिकता का अभाव था या वह मानवीय भोगविलास में जीवन का अर्थ ढूँढ रही थी। येसु जब समारी स्त्री से कहते हैं, ’’जाकर अपने पति को यहॉ बुला लाओ।’’ (योहन 4:16) तो येसु उससे उसके जीवन में झांकने के लिये कहते हैं मानो कि वे उससे पूछ रहे हो ’तुम्हारे कितने पति हैं?’ इसके प्रतिउत्तर में समारी स्त्री चलाकी से न तो सम्पूर्ण सच बोलती है और न तकनीकी रूप से झूठ। वह इतना की कहती है, ’’मेरा कोई पति नहीं है’’। येसु उसके उत्तर की सराहना करते हैं, ’’तुमने ठीक ही कहा कि मेरा कोई पति नहीं है’’ (योहन 4:17) तथा उसके अंदर छिपे अंधकारमय भाग को प्रकाश में लाते हुये कहते हैं, ’’तुम्हारे पॉच पति रह चुके हैं और जिसके साथ अभी रहती हो, वह तुम्हारा पति नहीं हैं।’’ (योहन 4:18) येसु जब उसे उसके जीवन से जुडी इस सच्चाई को बताते है वह जान जाती है कि येसु कोई साधारण मनुष्य नहीं, बल्कि नबी है।

ईश्वर जब बात करते हैं तो वह एक सार्थक एवं उद्देश्यपूर्ण संवाद होता है। ईश्वर हमारी भलाई तथा उद्धार के लिये हमारे जीवन के पहलुओं पर प्रकाश डालते हैं जिससे हम ईश्वर की वाणी के प्रकाश में स्वयं के जीवन को समझे तथा आवश्यक सुधार लाये तथा इन सबसे ऊपर ईश्वर को पहचाने।



प्रवचन - 02

कुछ वर्ष पहले Hurricane Andrew तुफान दक्षिणी फ्लोरिडा का सर्वनाश कर दिया था। ऊॅंचे-ऊॅंचे मकाने समतल हो गये थे। पेड़-पौधे उखड़ गये थे। मानवीय जीवन बुरी तरह तहस-नहस व अस्तव्यस्त हो गया था। इस बिगड़ी हुई हालात से उभरने के लिए नेशनल गार्ड को बुलाया गया। अतः नेशनल गार्ड को खोयी हुई प्रकृतिक सादृश्य को पुनःस्थापित करना था। साथ-ही-साथ तात्कालिक मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति भी कराना था। सर्वप्रथम गार्डों ने उन लोगों के बीच स्वच्छ पेय जल उपलब्ध कराया जिनका जीवन तुफान व पानी से तबाही हो गयी थी। हर प्रकार के आभाव व नुकसान के मघ्य लोगों को जीवित व स्वस्थ्य रखने के लिए स्वच्छ पेयजल की नितान्त आवश्यकता थी। कल्पना कीजिए एक नेशनल गार्ड के आदमी स्वच्छ पेयजल की टंकी-ट्रक के बगल में खडे़ अन्डरू तुफान के शिकार लोगों के लिए स्वच्छ पेयजल का वितरण कर रहे हैं।

हाल ही में इसी प्रकार की घटना का दृश्य रवानडा में देखने को मिला था जहॉं हजारों-लाखों लोग हैजा से मर गये जबतक कि सयुक्त राष्ट्र, अमेरिका एवं अन्य देशों को एक साथ लाकर स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था नहीं किया गया। अतः यह उन तमाम मरते लोगों के लिए संजीवन जल प्रदान किया।

क्या हम येसु के पास जाते हैं जो हमारे एक मात्र प्यास बुझाने वाले हैं जो हममें स्रोत बन अनन्त जीवन के लिए उमड़ता रहेगा?

आज के पाठों के विषय-वस्तु के रूप में प्रतिकात्मक पानी प्रबल होता नज़र आता है। पर यदि हम इन पर गहराई से मनन्‍-चिन्तन करेंगे तो ये ईश्वर प्रदत विश्वास रूपी वरदान पर हमारी समझ से संबंधित है। प्रथम पाठ में जो कि निर्गमन-ग्रन्थ से लिया गया है, इस्राएली लोग मरूभूमि में पानी के प्यास से हैरान व परेशान हैं। वे पानी के लिए रो रहे हैं। जब इस्राएली जनता का ईश्वर पर से भरोसा टूट रहा होता है तब मुसा ईश्वर के इस्राएली जनता को बचाने के सार्मथ्य पर विश्वास करता है। अब इस्राएली जनता का विश्वास घट रहा है, उन्हें संदेह होने लगा है कि ईश्वर ही ने उन्हें मिश्र देश से छुड़ाया। तो अब ईश्वर कहॉं हैं? जब इस्राइएली जनता ईश्वर की उपस्थिति को चुनौती देती है तो मूसा ईश्वर से दुहाई करता है। वह प्रार्थना करता है कि ईश्वर उनके लिए कुछ करे। तब ईश्वर होरेब पर्वत की एक चट्टान पर डण्डे से प्रहार करने की बात कहता है। मूसा ईश्वर पर विश्वास करते हुए उसके मार्गदर्शन के अनुसार चलता है। वह डण्डे से चट्टान पर प्रहार करता है। डण्डे से चट्टान पर प्रहार करते ही जल बह लिकता है। इस प्रकार ईश्वर की उपस्थिति प्रमाणित हो जाती है। इस्राएली जानता ने विश्वास किया कि ईश्वर ने उन्हें मरूभूमि में नहीं छोड़ा है वल्कि वह उनके साथ है।

आज का सुसमाचार भी एक तरह से प्रथम पाठ के भॉंति ही है जिसमें येसु एक समारी स्त्री को संजीवन जल प्रदान करने का वादा करते हैं जो स्रोत बन अनन्त जीवन के लिए उमड़ता रहेगा। येसु व समारी स्त्री दोनों ही प्यासे है। यह विदित होता है कि येसु व उनके शिष्य सुबह ही निकल पड़े है। दोपहर का समय है। प्यास लगना उचित ही है। अतः दोनों प्यासों की मुलाकात कुए के पास होती है। वास्तव में कुए के पास लोग न सिर्फ पानी भरने आते थे अपितु एक दूसरे के साथ भेट-मुलाकात के लिए भी आते थे। इस तरह से कई बातों की चर्चायें कुए के पास होती थी। अतः येसु की समारी स्त्री से मुलाकात कोई इत्ताफाक नहीं बल्कि योजनाबद्ध है। पर इसमें कोई शक नहीं कि दोनों प्यासे हैं। प्रारम्भिक तौर पर पता चलता है कि दोनों पानी के प्यासे हैं। पर यदि हम गहराई से जाएं तो हम पायेंगे कि उनका प्यास कुछ और है।

उनकी वर्तालाप की शुरूआत येसु के पानी माँगने से होती है। येसु समारिया शहर के एक कुऑं के पास आये और थोड़ी राहत पाने के लिए रूक गये। दोपहर के समय उस शहर की एक स्त्री पानी भरने आयी। येसु को प्यास लगी थी और उसके पास कुछ भी नहीं था जिससे वह स्वेच्छा से पानी भर कर पी सके। जबकि समारी स्त्री के पास पानी भरने के लिए बाल्टी व रस्सी था। अतः यह स्वाभाविक है कि येसु उसे पानी मांगता है। यह शिष्टता की बात होती अगर दोनों एक दूसरे की उपेक्षा करते। क्योंकि येसु एक यहुदी था और वह एक समारी। यहुदी और समारी आपस में मिलते-जुलते नहीं थे। दोनों ही एक दूसरे से नफरत और घृणा करते थे। कोई आदमी इस कदर किसी औरत से खुले आम बात नहीं कर सकता था। कुऑं के पास किसी से बाते करना तो और ही बड़ी बात थी। येसु प्यासा था और उसे पानी मांगने के अलावा कोई दूसरा साधन नहीं था। इसलिए उसने उससे पानी मांगा। यह सामाजिक तौर पर स्वीकार्य नहीं था। समारी स्त्री ने येसु को इस बात की याद दिलायी। पर येसु जाति व धर्म की जो धारणा थी उसके परे गये। येसु स्त्री-पुरूष के घेरा के पार गये। येसु ने अपमान और अपराध की कदर नहीं की। वह अच्छाई और बुराई के परे गया और येसु ने उस समारी स्त्री से पानी मांगा। दोपहर की गर्मी, बेशक येसु को प्यास लगी थी। पर इससे भी बढ़कर येसु के उस स्त्री की विश्वास व मुक्ति के प्यास गहरी थी।

येसु की तरह वह समारी स्त्री भी प्यासी थी। तभी तो वह पानी भरने आयी थी। लेकिन उसकी प्यास पानी से बढ़कर कुछ और के लिए थी जिसे येसु को समझ में आ गया था। उसे भावनाओं एवं संबंधों के अस्तव्यस्ता एवं हलचल से शांति चाहिए थी। उसे क्षमा चाहिए थी। उसे उस अपमानजनक स्थिति से जिसमें वह जी रही थी छुटकारा चाहिए था। उसे प्रेम चाहिए था जिसकी तलाश में वह पॉंच बार असफल हुयी थी। उसे किसी की जरूरत थी जिस पर वह भरोसा और विश्वास करे। उनकी वर्तालाप साधारण पानी से अनन्त जीवन के लिए उमड़ता पानी तक पहुँच गया। इस प्रकार उस स्त्री ने येसु को सर्वप्रथम एक यहुदी, फिर एक नबी, और अनन्तः एक मसीहा व मुक्तिदाता के रूप में पहंचाना।

वह सच्चे संबन्ध की प्यासी थी। बहिष्कृत समारियों के बीच वह एक बाहरी व्यक्ति के समान थी। वह लोगों के बीच बदनाम थी। उसके पॉंच पती रह चुके है। अब जिसके साथ थी वह उसका पती नहीं था। वह बारंबार इस्तेमाल की गयी और छोड़ी गयी थी।

वह ईश्वर के लिए भी प्यासी थी। जैसी ही उसे यह महसूस हुआ कि येसु एक साधारण यहुदी से बढ़कर हैं तो उसने अप्रत्यक्ष रूप से पूछा-’’ईश्वर कहॉं पाया जा सकता है?’’ येसु आत्मा और सच्चाई से पिता की आराधना करने की बात कहते हैं। इस प्रकार येसु ने उसकी हर प्यास को बुझाया। जैसे ही समारी स्त्री को यह एहसास हुआ कि येसु ही मसीहा हैं वह सबकुछ छोड़कर शहर की ओर, मसीहा के बारे बताने चली गयी। आश्चर्य की बात ये रही होगी कि ये वही लोग थे जो इनसे दूर रहना चाहते थे, जिन्होंने इसके साथ दुर्व्यवहार किया होगा, कुछ लोग उनके पती रहे होगें, किसी से उसका नजैयज संबन्ध रहा होगा। निःसदेह किसी-किसी ने इसपर विश्वास कर येसु से मिलने आये। वे येसु के पास आये क्योंकि वे प्यासे थे। येसु ने उनकी प्यास बुझाई।

इस्राएली जानता प्यासी थी। येसु व समारी स्त्री प्यासे थे। समारी शहर के लोग प्यासे थे। हम भी प्यासे हैं। दुनिया के अन्य लोग भी प्यासे हैं। पर प्रश्न उठता है कि हम किस चीज के प्यासे है? अनन्त जीवन के, भौतिक वस्तुओं के, शारीरिक आवश्यकताओं के, सत्ता व अधिकार के? आवश्यकता है हमें अपनी प्यास को जानकर येसु के पास आने की। येसु ही हमारी प्यास बुझा सकते हैं।



 -Biniush Topno


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Praise the Lord!