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गुरुवार, 23 सितम्बर, 2021 वर्ष का पच्चीसवाँ सामान्य सप्ताह

 

गुरुवार, 23 सितम्बर, 2021

वर्ष का पच्चीसवाँ सामान्य सप्ताह

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पहला पाठ : हग्गय का ग्रन्थ 1 :1-8


1) राजा दारा के शासनकाल के दूसरे वर्ष के छठे महीने के प्रथम दिन नबी हग्गय के माध्यम से, शअलतीएल के पुत्र, यूदा के राज्यपाल ज़रूबबाबेल और योसादाक के पुत्र प्रधानयाजक योशुआ को प्रभु की यह वाणी प्राप्त हुईः

2) ’’यह विश्वमण्डल के प्रभु की वाणी है। यह राष्ट्र कहता है- अभी प्रभु के मन्दिर के पुनर्निर्माण का समय नहीं आया है।

3) किन्तु नबी हग्गय के माध्यम से प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ी-

4) जब यह मन्दिर टूटा-फुटा पडा है, तो क्या यह समय तुम लोगों के लिए अच्छी तरह आच्छादित घरों में रहने का है?

5) इसलिए विश्वमण्डल का प्रभु यह कहता है।

6) तुम अपनी स्थिति पर विचार करो। तुमने बहुत बोया, किन्तु कम लुनते हो; तुम खाते तो हो, किन्तु तुम्हें तृप्ति नहीं मिलती; तुम पीते हो, किन्तु तुम्हारी प्यास नहीं बुझती; तुम कपडे पहनते हो, किन्तु तुम्हारा शरीर गरम नहीं रहता; मज़दूर अपना वेतन तो पाता है, किन्तु उसे छेद वाली थैली में रखता है।

7) ’’विश्वमण्डल का प्रभु यह कहता हैं: तुम अपनी स्थिति पर विचार करो।

8) पहाड़ी प्रदेश जा कर लकडी ले आओ और मन्दिर फिर बनाओ। मैं उस से प्रसन्न होऊँगा और उस में अपनी महिमा प्रकट करूँगा।



सुसमाचार : सन्त लूकस 9:7-9



7) राजा हेरोद उन सब बातों की चर्चा सुन कर असमंजस में पड़ गया, क्योंकि कुछ लोग कहते थे कि योहन मृतकों में से जी उठा है।

8) कुछ कहते थे कि एलियस प्रकट हुआ है और कुछ लोग कहते थे कि पुराने नबियों में से कोई जी उठा है।

9) हरोद ने कहा, ’’योहन का तो मैंने सिर कटवा दिया। फिर यह कौन है, जिसके विषय में ऐसी बातें सुनता हूँ?’’ और वह ईसा को देखने के लिए उत्सुक था।



मनन-चिंतन



येसु के बारे में सुनकर अलग अलग लोगों की अलग अलग प्रतिक्रिया होती थी। जो लोग अपने जीवन में किसी बिमारी या परेशानियों से जूझ रहे थे उनके लिए येसु एक सांत्वना एवं आशा था। परंतु जिनके मन में गलत भावनाये थी उनके लिए येसु के प्रति ईर्षा और नफरत थी। आज के सुसमाचार में हम राजा हेरोद के बारे में सुनते है जो प्रभु येसु की चर्चा सुनकर असमंजस में पड़ जाता है और घबरा जाता है क्यांेकि उसके द्वारा एक सच्चे इंसान की मृत्यु हुई थी जो निडरता पूर्वक सत्य पर चलता था और सच का साथ देता था। उसको लगा येसु वही योहन है जो फिर से जी उठा है। येसु की चर्चा हेरोद के लिए भय की प्रतिक्रिया उत्पन्न करता है। लोग चाहे कितना भी सत्य को मिटाना चाहे परंतु सत्य मिटता नहीं परंतु वह और भी प्रबल रूप में उभर कर सामने आता है।



📚 REFLECTION


People had various reactions listening about Jesus. For the people who were struggling from their sickness and problems for them Jesus was a comfort and a hope, but for the people who had wrong intensions in their minds for them there was jealousy and hatredness towards Jesus. In today’s gospel we hear about Herod who got perplexed and fear after hearing about Jesus because by him a true person was killed who used to walk bravely in the way of truth and was always standing for the truth. He felt that Jesus is that same John who now has been raised from the dead. To hear about Jesus brought the reaction of perplexity in Herod. People whatever they do to eradicate the truth but the truth never dies but it comes forward more strongly.



मनन-चिंतन - 2


चोर को हमेशा पुलिस का डर रहता है। जब कभी हम कुछ गलत कार्य करते हैं, हमारा यह विचार रहता है कि यह बात कोई न जान पाये। राजा हेरोद ने एक बडी गलती की थी। उसने अपने भाई फिलिप की पत्नि से विवाह किया था। संत योहन बपतिस्ता ने उस हरकत को गलत ठहराया। इस पर राजा ने उसे बन्दीगृह में डलवा दिया तथा उसका सिर कटवा दिया। लेकिन उसका पाप उसका पीछा करता रहा। उसे चैन की नींद नहीं आती थी। उसे मालूम था कि उसका कर्म बहुत बुरा था। उसका मन शान्ति से वंचित रह गया। जब वह येसु के सार्वजनिक कार्यों के बारे में सुनता है, उसे संदेह होता है कि कहीं संत योहन बपतिस्ता जिसका सिर उसने कटवा दिया था पुनर्जीवित तो नहीं हुआ! इस प्रकार वह असंमंजस में पड जाता है। पाप हमें बेचैन कर देता है और हमारे अन्दर अशान्ति पैदा करता है। क्योंकि पाप उस शैतान का कार्य है जो “केवल चुराने, मारने और नष्ट करने आता है” (योहन 10:10)। हम पाप तथा उसकी वासनाओं से छुटकारा पाने के लिए पश्चात्तपपूर्ण हृदय से प्रभु येसु के चरणों में जायें।




A thief is always afraid of the police. Whenever we do something wrong, our concern is that no one should discover it. King Herod had committed a grave sin. He married his brother Philip’s wife. St. John the Baptist pointed out this sin to him and pressed him to repent. The king was annoyed and he imprisoned him and got him beheaded. Although St. John was physically eliminated from the scene, the king’s sin kept haunting him. He was disturbed in his mind. He was deprived of peace. When he heard of Jesus, he began to doubt whether St. John the Baptist whom he beheaded came back to life again. He was confused. Our sins leave us confused and disturbed because they come from the devil who “comes to steal and to kill” (Jn 10:10).


 -Br. Biniush Topno


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Praise the Lord!