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राख-बुधवार 17 फरवरी 2021, बुधवार

 

17 फरवरी 2021, बुधवार

राख-बुधवार

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पहला पाठ : योएल 2:12-18

12) प्रभु यह कहता है, "अब तुम लोग उपवास करो और रोते तथा शोक मनाते हुए, पूरे हृदय से मेरे पास आओ"।

13) अपने वस्त्र फाड कर नहीं, बल्कि हृदय से पश्चात्ताप करो और अपने प्रभु-ईश्वर के पास लौट जाओ; क्योंकि वह करूणामय, दयालु, अत्यन्त सहनशील और दयासागर है और वह सहज की द्रवित हो जाता है।

14) क्या जाने, वह द्रवित हो जाये और तुम्हें आशीर्वाद प्रदान करे। तब तुम लोग अपने प्रभु-ईश्वर को बलि और तर्पण चढाओगे।

15) सियोन पर्वत पर तुरही बजाओ। उपवास घोषित करो।

16) सभा की बैठक बुलाओ जनता की इकट्ठा करो; बूढ़ों बालकों और दुधमुँहे बच्चों को भी बुला लो। दुलहा और दुलहिन अपना कमरा छोड कर चले आयें।

17) प्रभु-ईश्वर की सेवा करने वाले याजक मन्दिर में वेदी के सामने रोते हुए इस प्रकार प्रार्थना करे, "प्रभु! अपनी प्रजा पर दया कर। अपने लोगों का अपमान न होने दे, राष्टों में उनका उपहास न होने दे गैर-यहूदी यह न कहने पायें कि उनका ईश्वर कहा रह गया"।

18) तब प्रभु ने अपने देश की सुध ली और अपनी प्रजा को बचा लिया।

दूसरा पाठ : 2 कुरिन्थियों 5:20-6:2

5:20) इसलिए हम मसीह के राजदूत हैं, मानों ईश्वर हमारे द्वारा आप लोगों से अनुरोध कर रहा हो। हम मसीह के नाम पर आप से यह विनती करते हैं कि आप लोग ईश्वर से मेल कर लें।

21) मसीह का कोई पाप नहीं था। फिर भी ईश्वर ने हमारे कल्याण के लिए उन्हें पाप का भागी बनाया, जिससे हम उनके द्वारा ईश्वर की पवित्रता के भागी बन सकें।

6:1) ईश्वर के सहयोगी होने के नाते हम आप लोगों से यह अनुरोध करते हैं कि आप को ईश्वर की जो कृपा मिली है, उसे व्यर्थ न होने दे;

2) क्योंकि वह कहता है - उपयुक्त समय में मैंने तुम्हारी ुसुनी; कल्याण के दिन मैंने तुम्हारी सहायता की। और देखिए, अभी उपयुक्त समय है, अभी कल्याण का दिन है।

सुसमाचार : सन्त मत्ती का सुसमाचार ‍6:1-6,16-18

1) "सावधान रहो। लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए अपने धर्मकार्यो का प्रदर्शन न करो, नहीं तो तुम अपने स्वर्गिक पिता के पुरस्कार से वंचित रह जाओगे।

2) जब तुम दान देते हो, तो इसका ढिंढोरा नहीं पिटवाओ।ढोंगी सभागृहों और गलियों में ऐसा ही किया करते हैं, जिससे लोग उनकी प्रशंसा करें। मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ- वे अपना पुरस्कार पा चुके हैं।

3) जब तुम दान देते हो, तो तुम्हारा बायाँ हाथ यह न जानने पाये कि तुम्हारा दायाँ हाथ क्या कर रहा है।

4) तुम्हारा दान गुप्त रहे और तुम्हारा पिता, जो सब कुछ देखता है, तुम्हें पुरस्कार देगा।

5) "ढोगियों की तरह प्रार्थना नहीं करो। वे सभागृहों में और चैकों पर खड़ा हो कर प्रार्थना करना पंसद करते हैं, जिससे लोग उन्हें देखें। मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ- वे अपना पुरस्कार पा चुके हैं।

6) जब तुम प्रार्थना करते हो, तो अपने कमरें में जा कर द्वार बंद कर लो और एकान्त में अपने पिता से प्रार्थना करो। तुम्हारा पिता, जो एकांत को भी देखता है, तुम्हें पुरस्कार देगा।

16 ढोंगियों की तरह मुँह उदास बना कर उपवास नहीं करो। वे अपना मुँह मलिन बना लेते हैं, जिससे लोग यह समझें कि वे उपवास कर रहें हैं। मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ- वे अपना पुरस्कार पा चुके हैं।

17) जब तुम उपवास करते हो, तो अपने सिर में तेल लगाओ और अपना मुँह धो लो,

18) जिससे लोगों को नहीं, केवल तुम्हारे पिता को, जो अदृश्य है, यह पता चले कि तुम उपवास कर रहे हो। तुम्हारा पिता, जो अदृश्य को भी देखता है, तुम्हें पुरस्कार देगा।


📚 मनन-चिंतन


आज हम उपवास , त्याग और प्रार्थना के पवित्र समय, चालीसा काल की शुरुआत कर रहे हैं। आज के पहले पाठ की शुरुआत में प्रभु का वचन कहता है - अब तुम लोग उपवास करो और रोते तथा शोक मनाते हुए, पूरे हृदय से मेरे पास आओ"। अपने वस्त्र फाड कर नहीं, बल्कि हृदय से पश्चात्ताप करो और अपने प्रभु-ईश्वर के पास लौट जाओ; क्योंकि वह करूणामय, दयालु, अत्यन्त सहनशील और दयासागर है और वह सहज की द्रवित हो जाता है।" हम यहाँ पर तपस्याकाल का मूलभूत आह्वान सुन रहे हैं। इस आह्वन की सबसे पहली अवधारणा यह है कि हम सब पापी हैं और विभिन्न प्रकार से हम ईश्वर से दूर हो गए हैं। इसमें एक अवधारणा यह भी शामिल है कि जिस ईश्वर से हम दूर हो गए हैं वह करूणामय, दयालु, अत्यन्त सहनशील और दयासागर है जो हमारी वापसी के लिए तरसता है। वह न केवल हमारी वापसी के लिए तरसता है पर जैसा कि संत पौलुस आज के दूसरे पाठ बतलाते हैं कि जिस ईश्वर से हम दूर हो गए हैं वह अपने बेटे येसु के द्वारा हमें ढूढ़ने निकल पड़ा है। वे कहते हैं - "मसीह का कोई पाप नहीं था। फिर भी ईश्वर ने हमारे कल्याण के लिए उन्हें पाप का भागी बनाया, जिससे हम उनके द्वारा ईश्वर की पवित्रता के भागी बन सकें। " कितना शक्तिशाली वचन है! ईश्वर ने अपने पुत्र को हमारे जैसा बनने के लिए भेजा ताकि हम भी उनके समान बन सकें। अपने पुत्र में ईश्वर हमारी पापमय स्थिति की ओर कूच किया ताकि हम परमेश्वर की भलाई की ओर यात्रा कर सकें। कितनी सुन्दर बात है।

आज के दिन हमारे माथे पर लगाई जाने वाली राख दुनिया को बताती है कि हम पापी हैं। फिर भी, हमें जो राख मिली है, वह एक क्रूस के आकार में है, जो यह घोषणा करता है कि हम एक ऐसे ईश्वर को मानते हैं जिसका प्यार हमारे पाप से अधिक सामर्थ्यवान है। जैसा कि पौलुस ने रोमियों को लिखे अपने पत्र में घोषणा की है, - "किन्तु हम पापी ही थे, जब मसीह हमारे लिए मर गये थे। इस से ईश्वर ने हमारे प्रति अपने प्रेम का प्रमाण दिया है।" (रोमी 5 :8) आज के सुसमाचार में बतलाई गयी प्रार्थना, उपवास और दान देने की तीन प्रथाएँ, मसीह में हमारे लिए ईश्वर के प्रेम का जवाब देने के तीन पारंपरिक तरीके हैं; उस ईश्वर की ओर यात्रा करने के तीन तरीके हैं जो हमारी ओर यात्रा करते हैं। ये तीनों कार्य, ईश्वर के पास लौट आने के आह्वान का प्रत्युत्तर है - "अब तुम लोग उपवास करो और रोते तथा शोक मनाते हुए, पूरे हृदय से मेरे पास आओ"। इन तीन तपस्याकाल की प्रथाओं को बारीकी से आपस में जोड़ा गया है। हमारा उपवास, और दान प्रार्थना की सेवा में होना चाहिए । हम स्वयं में मर जाते हैं ताकि ईश्वर और हमारे भाइयों बहनों के प्रति और अधिक पूर्णता से जी सकें। आमेन।



📚 REFLECTION



The first line of the first reading for the season of Lent is in the form of an invitation from God. There it is at the beginning of today’s first reading, ‘Come back to me with all your heart, fasting, weeping, mourning… turn to the Lord your God again, for he is all tenderness and compassion’. We are hearing there the fundamental call of Lent. The call involves firstly a recognition that we are sinners, that in various ways we have turned away from God. It also involves a recognition that the God we have turned away from is a God of tenderness and compassion who longs for our return. Saint Paul in today’s second reading goes further and reminds us that the God from whom we have turned away has sought us out and continues to seek us out in the person of his Son Jesus. ‘For our sake, God make the sinless one into sin, so that in him we might become the goodness of God’. What a powerful statement that is! God sent his Son to become like us so that we might become like him. God in his Son journeyed towards our sinful condition so that we might journey towards God’s goodness.

The ashes that we wear on this day tell the world that we are sinners. Yet, those ashes we received are in the shape of a cross, which proclaims that we believe in a God whose love is stronger than our sin. As Paul declares in his letter to the Romans, ‘God demonstrates his love for us, in that while we still were sinners, Christ died for us’. The three practices of almsgiving, prayer and fasting that Jesus speaks about in the gospel reading are three traditional ways of responding to God’s love for us in Christ, three ways of journeying towards God who has journeyed towards us. They are three ways of responding to that call of God at the beginning of the first reading, ‘Come back to me with all your heart’. These three Lenten practices are closely interlinked. Fasting is in the service of prayer and almsgiving. We die to ourselves so as to live more fully towards God and our fellow human being.



मनन-चिंतन-2



किसी स्कूल के कई बच्चे बीमार हो रहे थे। इसका कारण यह पाया गया कि उस स्कूल के पीने के पानी की टंकी में समय के चलते बहुत गन्दगी थी। उस पानी को पीने से बच्चे बीमार हो रहे थे। हम जानते हैं कि पानी की टंकियों को समय-समय पर साफ़ करना ज़रूरी है। मशीनों के अच्छे कामकाज के लिए यह जरूरी है कि हम समय-समय पर कुछ तरल पदार्थ (lubricant) का इस्तेमाल करें। हमारे शारीरिक जीवन के लिए यह ज़रूरी है कि हम प्रतिदिन नहायें-धोयें। इसी प्रकार हमारे आध्यात्मिक जीवन के लिए यह ज़रूरी है कि हम समय-समय पर निश्चल हो कर अपने जीवन की बढ़ती गंदगी को साफ कर अपने जीवन को नवीन बनायें।

इसी सिध्दान्त को अपनाते हुए कलीसिया की पूजन-विधि में हम चालीसा काल को प्रमुख स्थान देते हैं। आज, राख बुधवार के दिन हम चालीसा-काल में प्रवेश कर रहे हैं। यह पश्चात्ताप तथा मनपरिवर्तन का समय होता है। इसलिए आज के पहले पाठ में संत पौलुस अनुरोध करते हैं, “हम मसीह के नाम पर आप से यह विनती करते हैं कि आप लोग ईश्वर से मेल कर लें।” ईश्वर से मुलाकात करने के लिए हमें पवित्र बनना चाहिए। नबी यिरमियाह के ग्रन्थ के अध्याय 26 में हम देखते हैं कि नबी येरूसालेम के मंदिर के फाटक पर खडे हो कर मंदिर में प्रवेश करने वाले लोगों से कहते हैं, “अपना आचरण सुधारो” (यिरमियाह 26:13)।

प्रभु ईश्वर से मुलाकात करने के लिए, उनकी कृपाओं के योग्य बनने के लिए हमें अपना आचरण सुधारना होगा। संत योहन बपतिस्ता का भी यही सन्देश था। आज की पूजन-विधि में पुरोहित हमारे माथे पर राख लगा कर हम को याद दिलाते हैं कि हम मिट्टी हैं और मिट्टी में मिल जायेंगे। उत्पत्ति 2:7 में पवित्र वचन कहता है, “प्रभु ने धरती की मिट्टी से मनुष्य को गढ़ा और उसके नथनों में प्राणवायु फूँक दी। इस प्रकार मनुष्य एक सजीव सत्व बन गया।” हमारा यह शरीर मिट्टी से बना हुआ है और मिट्टी में वापस जायेगा। हमारी मृत्यु के बाद हमारा शरीर गाढ़ दिया जायेगा और कुछ ही दिनों में वह उस धरती की मिट्टी में मिल जायेगा जिससे उसे बनाया गया। लेकिन जीवन की क्षणभंगुरता के बारे में याद दिलाने के साथ-साथ आज की धर्मविधि हमें यह याद करने हेतु विवश करती है कि हमारी सृष्टि करते समय ईश्वर ने हमारे नथनों में प्राणवायु फूँक कर हम में से हरेक व्यक्ति को एक आत्मा प्रदान की जो अनन्त है। इसलिए लातीनी पूजन-विधि की ’मृतकों की स्मृति की अवतरणिका’ हमें याद दिलाती है मृत्यु हमारे जीवन का विनाश नहीं, बल्कि विकास है। इसलिए चालीसा काल में हम से आशा की जाती है कि हम शरीर से कहीं अधिक आत्मा पर ध्यान दें।

मत्ती 15:13 में प्रभु येसु कहते हैं, “जो पौधा मेरे स्वर्गिक पिता ने नहीं रोपा है, वह उखाड़ा जायेगा।” मत्ती 13:24-30 में प्रभु हमें बताते हैं जिस खेत में प्रभु ईश्वर पवित्र वचन के अच्छे बीज बोते हैं, उस में जब लोग सो जाते हैं तब शैतान जंगली बीज बो कर चला जाता है। विश्वासी लोग पवित्र वचन सुनते और संस्कारों में भाग लेते रहते हैं। फिर भी हमारे जीवन में हम कई बार “सो जाते हैं”, अर्थात हम आध्यात्मिक रीति से सतर्क नहीं रह पाते हैं। ऐसे अवसरों में कुछ बुराईयाँ हमारे अन्दर प्रवेश करती हैं और कभी-कभी जड़ भी पकड़ लेती है। चालीसा-काल ऐसी सब बुराईयों को उखाड़ कर फेंकने का समय है, ऐसे सब पौधों को जिन्हें हमारे स्वर्गिक पिता ने नहीं रोंपा है, उखाड़ कर फ़ेंकने का समय है। अगर हम इस प्रक्रिया को नहीं अपनायेंगे, तो हम अपने ईश्वर की कृपाओं से वंचित रह जायेंगे। यिरमियाह 4:14 में पवित्र वचन कहता है, “येरुसालेम! अपने हृदय से बुराई निकाल दे, जिससे तू बच सके! तेरे बुरे विचार तुझ से कब निकलेंगे?”

पवित्र वचन हमारे अन्दर पश्चात्ताप उत्पन्न करता है। दक्षिण भारत के एक शहर में राजू नाम का एक कुख्यात ड़ाकू रहता है। वह ’काला सांप’ नाम से जाना जाता था। एक दिन एक बडी रकम की चोरी में वह पकडा गया। लेकिन उसने अपना जुर्म कबूल नहीं किया। पुलिसवालों ने उसे बहुत मारा और लॉकअप में डाल दिया। कुछ देर बाद थानेदार को उस पर तरस आया क्योंकि उसने सुबह से कुछ भी नहीं खाया था। उन्होंने एक पुलिसकर्मी से कहा कि उसे दो-तीन समोसे खिला दो। उसने उसे समोसे ला दिये। कुछ देर बार लोकअप से राजू के जोर-जोर से रोने की आवाज सुनायी दी। थानेदार और पुलिसकर्मी वहाँ पहुच गये। थानेदार ने उससे पूछा, “राजू, तुम्हें क्या हो गया?” राजू ने कहा, मैं बहुत बडा पापी हूँ। मैंने आज और पहले भी बहुत बुरे कार्य किये। मैंने कई बार चोरी की, आज भी मैंने चोरी की। मैंने कई बार लोगों चोट पहुँचायी, तंग किया। मुझे सजा दिला दो।“ थानेदार ने पूछा, “यह तुम्हें क्या हुआ; हमने तुम्हें बहुत बार पकडा और मारा। आज भी हमने तुम्हें बहुत मारा, फ़िर भी तुमने कभी तुम्हारा जुर्म स्वीकार नहीं किया। अब तुम्हें क्या हो गया?” उसने कहा, “पुलिसवाले ने मुझे समोसे ला दिये। मैं ने उसे खाया। फिर मैंने उस कागज़ को देखा जिसमें वह समोसे बाँध कर लाया था। उस कागज़ पर बाइबिल के कुछ वाक्य लिखे हुए थे। उन वचनों ने मेरे हृदय को छेदा। अब मुझे मेरे पापों का एहसास है। मुझे आप लोगों से और ईश्वर से माफ़ी माँगना चाहिए।” उसी दिन उस का जीवन बदल गया। अब वह ईश्वर की सेवा में लोगों को सुसमाचार सुनाता रहता है। जो ईश्वर के करीब आता है, जो ईशवचन सुनता है और जो ईश्वर का अनुभव करता है, उसे अपने पापों पर पश्चात्ताप महसूस होता है और उसका जीवन बदलने लगता है।

नबी इसायाह के द्वारा प्रभु हमें विश्वास दिलाते हैं कि वे हम पर दया करेंगे। वे कहते हैं, “याकूब! इस बात पर विचार करो। इस्राएल! तुम मेरे सेवक हो। इस बात पर विचार करो। मैंने तुम को गढ़ा और अपना सेवक बनाया। इस्राएल! तुम मेरे साथ विश्वासघात नहीं करोगे। मैंने बादल की तरह तुम्हारे अपराध, कोहरे की तरह तुम्हारे पाप मिटा दिये। मेरे पास लौटो, क्योंकि मैं तुम्हारा उद्धारक हूँ।“ (इसायाह 44:21-22) आईए हम पश्चात्तापपूर्ण हृदय से तथा अपने जीवन में बदलाव लाने के दृढ़संकल्प के साथ आज की धर्म-विधि में भाग ले कर चालीसा काल में प्रवेश करें।

 -Br. Biniush Topno


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