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सोमवार, 06 दिसंबर, 2021

 

सोमवार, 06 दिसंबर, 2021

आगमन का दूसरा सप्ताह

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पहला पाठ: इसायाह का ग्रन्थ 35:1-10



1) मरुस्थल और निर्जल प्रदेश आनन्द मनायें। उजाड़ भूमि हर्शित हो कर फले-फूले,

2) वह कुमुदिनी की तरह खिल उठे, वह उल्लास और आनन्द के गीत गाये। उसे लेबानोन का गौरब दिया गया है, करमेल तथा शारोन की शोभा। लोग प्रभु की महिमा तथा हमारे ईश्वर के प्रताप के दर्शन करेंगे।

3 थके-माँदे हाथों को शक्ति दो, निर्बल पैरों को सुदढ़ बना दो।

4) घबराये हुए लोगों से कहो- “ढारस रखों डरो मत! देखो, तुम्हारा ईश्वर आ रहा है। वह बदला चुकाने आता है, वह प्रतिशोध लेने आता है, वह स्वयं तुम्हें बचाने आ रहा है।“

5) तब अन्धों की आँखें देखने और बहरों के कान सुनने लगेंगे। लँगड़ा हरिण की तरह छलाँग भरेगा। और गूँगे की जीभ आनन्द का गीत गायेगी।

6) मरुस्थल में जल की धाराएँ फूट निकलेंगी, रेतीले मैदानों में नदियाँ बह जायेंगी,

7) सूखी धरती झील बन जायेगी और प्यासी धरती में झरने निकलेंगे। जहाँ पहले सियारों की माँद थी, वहाँ सरकण्डे और बेंत उपजेंगे।

8) वहाँ एक राजमार्ग बिछा दिया जायेगा, जो ‘पवत्रि मार्ग’ कहलायेगा। कोई भी पापी उस पर नहीं चलेगा। प्रभु स्वयं यह मार्ग तैयार करेगा- नास्तिक भूल कर भी उस पर पैर नहीं रखेंगे।

9) वहाँ न तो कोई सिंह विचरेगा और न कोई हिंसक पशु मिलेगा। प्रभु की प्रजा उस पर चलेगी।

10) प्रभु ने जिन्हें मुक्त कर दिया है, वे ही उस पर लौटेंगे। वे गाते-बजाते हुए सियोन लौटेंगे, उनके मुख पर अपार आनन्द खिल उठेगा। वे हर्ष और उल्लास के साथ लौटेंगे। दुःख और विलाप का अन्त हो जायेगा।



सुसमाचार : सन्त लूकस 5:17-26



17) ईसा किसी दिन शिक्षा दे रहे थे। फरीसी और शास्त्री ईसा किसी दिन शिक्षा दे रहे थे। फ़रीसी और शास्त्री पास ही बैठे हुए थे। वे गलीलिया तथा यहूदिया के हर एक गाँव से और येरुसालेम से भी आये थे। प्रभु के सामर्थ्य से प्रेरित हो कर ईसा लोगों को चंगा क

18) उसी समय कुछ लोग खाट पर पड़े हुए एक अद्र्धांगरोगी को ले आये। वे उसे अन्दर ले जा कर ईसा के सामने रख देना चाहते थे।

19) भीड़ के कारण अद्र्धागरोगी को भीतर ले जाने का कोई उपाय न देख कर वे छत पर चढ़ गये और उन्होंने खपड़े हटा कर खाट के साथ अद्र्धांगरोगी को लोगों के बीच में ईसा सामने उतार दिया।

20) उनका विश्वास देख कर ईसा ने कहा, ’’भाई! तुम्हारे पाप क्षमा हो गये हैं’’।

21) इस पर शास्त्री और फ़रीसी सोचने लगे, ’’ईश-निन्दा करने वाला यह कौन है? ईश्वर के सिवा कौन पाप क्षमा कर सकता है?’’

22) उनके ये विचार जान कर ईसा ने उन से कहा, ’’मन-ही-मन क्या सोच रहे हो?

23) अधिक सहज क्या है-यह कहना, ’तुम्हारे पाप क्षमा हो गये हैं; अथवा यह कहना उठो, और चलो फिरो’?;

24) परन्तु इसलिए कि तुम लोग यह जान लो कि मानव पुत्र को पृथ्वी पर पाप क्षमा करने का अधिकार है, वह अद्र्धांगरोगी से बोले मैं तुम से कहता हूँ, उठो और अपनी खाट उठा कर घर जाओ।

25) उसी क्षण वह सब के सामने उठ खड़ा हुआ और अपनी खाट उठा कर ईश्वर की स्तुति करते हुए अपने घर चला गया।

26) सब-के-सब विस्मित हो कर ईश्वर की स्तुति करते रहे। उन पर भय छा गया और वे कहते थे, ’’आज हमने अद्भुत कार्य देखे हैं’’।



📚 मनन-चिंतन



आज के सुसमाचार में कुछ लोग एक अद्धांगरोगी को येसु के पास पूर्ण विश्वास के साथ लाते है। वहाँ पहुँचकर भारी भीड़ देखकर उन्हें सब कुछ असंभव सा लग रहा था। उन्हें लगा कि शायद हम येसु के पास नहीं पहुँच पायेंगे। फिर भी वह लोग सारी बाधाओ को पार कर छत से उस अर्धान्गरोगी को खाट सहित येसु के सामने उतार देते हैं। उसके विश्वास को देखकर येसु उसके पाप क्षमा कर देते हैं। वास्तव में वह मनुष्य पापमय जीवन में डूबा था। इसीलिये जैसे ही उसके पाप क्षमा हो गये। वह अपने आप स्वस्थ हो गया।

उसी प्रकार कभी कभी हमारे जीवन में परेशानिया आती है। हमे भी सब कुछ असंभव सा लगने लगता है। ऐसे विपरित परिस्थतियों में हमें अपने आपको येसु के पास लाना है। साथ ही साथ अपने ख्रीस्तीय भाई-बहनों को पवित्र यूखरिस्त में भाग लेने एवम पाप स्वीकार ग्रहण करने के लिए प्रेरित करना होगा। आइये हम येसु पर विशवास करें और एक दूसरे को क्षमा करे।




📚 REFLECTION



In today's gospel we hear that some people bring a paralytic to Jesus with a bright faith. After reaching to that place they saw a huge crowd and they felt it won't be possible to reach Jesus. By crossing all the barriers they brought down the paralytic by bringing him on a cot from terrace to Jesus. Looking on to the faith of the paralytic Jesus healed him. The paralytic was fully laid in the life of sins that is why when his sins were forgiven he was immediately healed.

In the same way we also face numerous difficulties in our life and we see these difficulties as unsolving problems. We should bring these difficult situations to Lord Jesus. Along with this we should also inspire our Christian brothers and sisters to take part in holy Eucharist and in the sacrament of confession. Come, let us have faith in Jesus and forgive each other.


 -Br. Biniush topno


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Praise the Lord!