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शनिवार, 29 मई, 2021 वर्ष का आठवाँ सामान्य सप्ताह

 

शनिवार, 29 मई, 2021

वर्ष का आठवाँ सामान्य सप्ताह


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पहला पाठ : प्रवक्ता ग्रन्थ 51:12-20



12) तू अपने पर भरोसा रखने वालों की रक्षा करता और उन्हें उनके शत्रुओं के पंजे से छुड़ाता है।

13) मैंने पृथ्वी पर से प्रभु की दुहाई दी और मृत्यु से रक्षा की प्रार्थन की।

14) मैने कहा, "प्रभु! तू मेरा पिता है! घमण्डी शत्रुओं के सामने, मुझे विपत्ति के दिन, असहाय नहीं छोड़।

15) मैं निरन्तर तेरा नाम धन्य कहूँगा, मैं धन्यवाद के गीत गाता रहूँगा।" मेरी प्रार्थना सुनी गयी,

16) क्योंकि तूने मुझे विनाश से बचाया और विपत्ति से मेरा उद्धार किया।

17) इस कारण मैं तेरा धन्यवाद और तेरी स्तुति करूँगा, मैं प्रभु का नाम धन्य कहूँगा।

18) अपनी यात्राएँ प्रारम्भ करने से पहले मैं युवावस्था में आग्रह के साथ प्रज्ञा के लिए प्रार्थना करता था।

19) मैं मन्दिर के प्रांगण में उसके लिए अनुरोध करता था और अन्त तक उसे प्राप्त करने का प्रयत्न करता रहूँगा। वह फलते-फूलते हुए अंगूर की तरह मुझ में विकसित हो कर

20) मुझे आनन्दित करती रही। मैं सीधे मार्ग पर आगे बढ़ता गया और बचपन से ही प्रज्ञा का अनुगामी बना।



सुसमाचार : मारकुस 11:27-33



27) वे फिर येरूसालेम आये। जब ईसा मन्दिर में टहल रहे थे, तो महायाजक, शास्त्री और नेता उनेक पास आ कर बोले,

28) “आप किस अधिकार से यह सब कर रहे हैं? किसने आप को यह सब करने का अधिकार दिया?“

29) ईसा ने उन्हें उत्तर दिया, “मैं भी आप लोगों से एक प्रश्न पूछना चाहता हूँ। यदि आप मुझे इसका उत्तर देंगे, तो मैं भी आप को बता दूँगा कि मैं किस अधिकार से यह सब कर रहा हूँ।

30) बताइए, योहन का बपतिस्मा स्वर्ग का था अथवा मनुष्यों का?"

31) वे यह कहते हुए आपस में परामर्श करते थे- “यदि हम कहें, ’स्वर्ग का’, तो वह कहेंगे, ’तब आप लोगों ने उस पर विश्वास क्यों नहीं किया’।

32) यदि हम कहें, “मनुष्यों का, तो....।“ वे जनता से डरते थे। क्योंकि सब योहन को नबी मानते थे।

33) इसलिए उन्होंने ईसा को उत्तर दिया, “हम नहीं जानते"। इस पर ईसा ने उन से कहा,“ तब मैं भी आप लोगों को नहीं बताऊँगा कि मैं किस अधिकार से यह सब कर रहा हूँ"।



📚 मनन-चिंतन



‘‘आप किस अधिकार से यह सब कर रहे हैं? किसने आप को यह सब करने का अधिकार दिया?’’ यह प्रश्न महायाजक, शास्त्री और नेताओं के द्वारा उस घटना के बाद पूॅंछा गया जब येसु ने मंदिर में बेचने और खरीदने वालों को बाहर कर दिया था। उस समय के अनुसार मंदिर और उसमें होने वाली गतिविधियों में महायाजक, शास्त्रियों और नेताओं का अधिकार होता था, वे वहॉं के कर्ता-धर्ता होते थे।

येसु द्वारा मंदिर में किये गये कार्य के लिए वे उनसे पॅूंछते है कि किस अधिकार के साथ यह सब किया। इस सवाल का जवाब देने के लिए येसु उनसे प्रश्न पूॅंछते है, ’योहन का बपतिस्मा स्वर्ग का था अथवा मनुष्यों का?’ उनके जवाब नहीं देने के कारण येसु उनसे कहते है, ’तब मै भी नहीं बताऊॅंगा कि मैं किस अधिकार से यह सब कर रहा हॅंू’।

इस पूरी घटना में हमें प्रभु येसु के अधिकार के विषय में मनन चिंतन करने का अवसर मिलता है। प्रभु येसु का अधिकार इस संसार से नहीं परंतु पिता ईश्वर से है। येसु मत्ती 28ः18 में कहते है, ’’मुझे स्वर्ग में और पृथ्वी पर पूरा अधिकार मिला है।’’ योहन 3ः31,33ब-35 कहता है, ‘‘जो ऊपर से आता है, वह सर्वोपरि है। जो पृथ्वी का है, वह पृथ्वी की बातें बोलता है। जो स्वर्ग से आता है, वह सर्वोपरि है। जिसे ईश्वर ने भेजा है, वह ईश्वर के ही शब्द बोलता है; क्योंकि ईश्वर उसे प्रचुर मात्रा में पवित्र आत्मा प्रदान करता है। पिता पुत्र को प्यार करता है औरउसने उसके हाथ सब कुछ दे दिया है।’’ इन वचनों से हमें पता चलता है कि येसु का सभी पर अधिकार है तथा जिसने येसु को भेजा है उन्हीं के द्वारा येसु को अधिकार भी प्राप्त है।

प्रभु येसु ने जो किया पूर्ण अधिकार के साथ किया जो उन्हें पिता से प्राप्त था। और उसी अधिकार के साथ वे अपने शिष्यों को इस संसार में भेजते है। आईये हम प्रार्थना करें कि जो अधिकार हमें येसु से मिला है इस संसार में ईश्वर की योजना को पूर्ण करने हेतु हम उसे पहचाने और उसी अनुसार कार्य करें। आमेन!



📚 REFLECTION



“By what authority are you doing these things? Who gave you this authority to do them?” This question was asked by the chief priest, scribes and the elders after the incident of chasing the buyers and sellers from the Temple by Jesus. According to that time chief priest, scribes and elders had the authority over the temple and the activities happening in the temple, they were the whole doer.

They ask Jesus’ authority over the things he did in the temple. Answering to the question Jesus asks them a question, ‘Did the baptism of John come from heaven, or was it of human origin? When they were not able to answer Jesus tells them, ‘Neither will I tell you by what authority I am doing these things.

In this whole incident we get an opportunity to meditate upon the authority of Jesus. The Authority of Jesus is not from this world but from the Father Almighty. Mt 28:18 says, “All authority in heaven and on earth has been given to me.” John 3:31, 34-35 says, “The one who comes from above is above all; the one who is of the earth belongs to the earth and speaks about earthly things. The one who comes from heaven is above all. He whom God has sent speaks the words of God, for he gives the Spirit without measure. The Father loves the Son and has placed all things in his hands.” Through these words of God we come to know that Jesus have authority over everything and the One who has send Jesus, from Him only he received the authority also.

Whatever Jesus did, he did with full authority which he received from the Father. And with that authority he sends his disciples to the world. Let’s pray that the authority what we have received from Jesus in order to fulfill God’s plan, we may able to recognize it and act according to it. Amen!


 -Br Biniush Topno



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Praise the Lord!