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Duliajan, Assam, India
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गुरुवार, 04 नवंबर, 2021

 

गुरुवार, 04 नवंबर, 2021

वर्ष का इकत्तीसवाँ सामान्य सप्ताह

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पहला पाठ: रोमियों 14:7-12

7) कारण, हम में कोई न तो अपने लिए जीता है और न अपने लिए मरता है।

8) यदि हम जीते रहते हैं, तो प्रभु के लिए जीते हैं और यदि मरते हैं, तो प्रभु के लिए मरते हैं। इस प्रकार हम चाहे जीते रहें या मर जायें, हम प्रभु के ही हैं।

9) मसीह इसलिए मर गये और जी उठे कि वह मृतकों तथा जीवितों, दोनों के प्रभु हो जायें।

10) तो, आप क्यों अपने भाई का न्याय करते हैं? आप क्यों अपने भाई को तुच्छ समझते हैं? हम सब ईश्वर के न्यायासन के सामने खड़े होंगे,

11) क्योंकि धर्मग्रन्थ में लिखा है-प्रभु यह कहता है, अपनी अमरता की सौगन्ध! हर घुटना मेरे सामने झुकेगा और हर कण्ठ ईश्वर को स्वीकार करेगा।

12) इस से स्पष्ट है कि हम में हर एक को अपने-अपने कर्मों का लेखा ईश्वर को देना पड़ेगा।

सुसमाचार : सन्त लूकस 15:1-10

1) ईसा का उपदेश सुनने के लिए नाकेदार और पापी उनके पास आया करते थे।

2 फ़रीसी और शास्त्री यह कहते हुए भुनभुनाते थे, "यह मनुष्य पापियों का स्वागत करता है और उनके साथ खाता-पीता है"।

3) इस पर ईसा ने उन को यह दृष्टान्त सुनाया,

4) "यदि तुम्हारे एक सौ भेड़ें हों और उन में एक भी भटक जाये, तो तुम लोगों में कौन ऐसा होगा, जो निन्यानबे भेड़ों को निर्जन प्रदेश में छोड़ कर न जाये और उस भटकी हुई को तब तक न खोजता रहे, जब तक वह उसे नहीं पाये?

5) पाने पर वह आनन्दित हो कर उसे अपने कन्धों पर रख लेता है

6) और घर आ कर अपने मित्रों और पड़ोसियों को बुलाता है और उन से कहता है, ’मेरे साथ आनन्द मनाओ, क्योंकि मैंने अपनी भटकी हुई भेड़़ को पा लिया है’।

7) मैं तुम से कहता हूँ, इसी प्रकार निन्यानबे धर्मियों की अपेक्षा, जिन्हें पश्चात्ताप की आवश्यकता नहीं है, एक पश्चात्तापी पापी के लिए स्वर्ग में अधिक आनन्द मनाया जायेगा।

8) "अथवा कौन ऐसी स्त्री होगी, जिसके पास दस सिक्के हों और उन में एक भी खो जाये, तो बत्ती जला कर और घर बुहार कर सावधानी से तब तक न खोजती रहे, जब तक वह उसे नहीं पाये?

9) पाने पर वह अपनी सखियों और पड़ोसिनों को बुला कर कहती है, ’मेरे साथ आनन्द मनाओ, क्योंकि मैंने जो सिक्का खोया था, उसे पा लिया है’।

10) मैं तुम से कहता हूँ, इसी प्रकार ईश्वर के दूत एक पश्चात्तापी पापी के लिए आनन्द मनाते हैं।"

मनन-चिंतन

खाेई हुई भेड और खोए हुए सिक्के के दृष्टांत के माध्यम से प्रभु येसु कमजोर वर्गो के प्रति हमारी जिम्मेदारिया को ईश्वरी प्रेम के तीन पहलुओ द्वारा याद दिलाता है। दोनो घटनाओ से यह अभिव्यक्त किया है कि ।

(1) प्रत्येक के लिए चिंताः- ईश्वर प्रत्येक व्यक्ति के लिए व्यक्तिगत रूप से चिंतित रहते है। खोई भेड और खोए हुए सिक्के के प्रति चिंता महिला और चरवाहे को अपना समय और ऊर्जा देकर खतरनाक जोखिम उठाने की प्रेरणा देते है।

(2) प्यार की तलाशः- चरवाहा भेड को अपने आप लौटने का इंतजार नहीं करता न ही महिला खोए हुए सिक्के ढूडने के लिए उचित समय की प्रतिक्षा करती है ।

चरवाहा तुरन्त बाहर निकल जाता है, और महिला सूरज की रोशनी की प्रतिक्षा न करके दीया जलाती है । उसी तरह जब हम ईश्वर की दृष्टि से ओझल हो जाते है उसी क्षण ईश्वर हमारे खोज में निकल जाते है ।

(3) आनंदित होनाः- चरवाहा और महिला दोनो भेड और सिक्के मिलने पर अपनी खुशी को दूसरों के साथ बाटते है । भेड और सिक्के के मिलने की खुशी एक उत्सव जैसे सभी लोगों के साथ मिलकर मनाया जाते है । यह उत्सव खोये लोगो

या चीजो को अपने ही समाज में एक सुखद अनुभव देते है ।

रासता भटकने में भेड को उसके घमंड और लापरवाही के लिए दोषी ठहराया जा सकता है लेकिन चरवाहा भेडों की रक्षा करने की जिम्मेदारी से किसी भी तरह से बच नहीं सकता । सिक्के के गायब होने के लिए पूरी तरह से महिला की लापरवाही ही जिम्मेदार है ।

दोनों दृष्टांत समाज के कमजोर वर्गो का तिरसकार करने नहीं बल्कि सभी को गले लगाकर एक अच्छंे ईसाई का व्यवहार प्रदर्शित करने का आमंत्रण देते है ।



REFLECTION

Through the parable of the lost sheep and the lost coin Jesus brings out three main facets of God’s Love and reminds us of the responsibility over the weaker sections.

1. Concern for the individual: God’s personal interest in each individual is expressed in both the parables. Individual concern for the lost sheep and the lost coin urges the shepherd and the women to take dangerous risk and spend time and energy to seek out the lost.

2. Seeking Love: The shepherd does not wait for the sheep to return by itself nor the women wait for the appropriate time to search for the lost coin. The shepherd steps out immediately and the women lights the lamp not waiting for the sunlight. God steps out the moment we go out of His sight.

3. Rejoicing Love: The shepherd and the women do not stop at the finding of sheep and the coin. They share their joy of their result through a celebration. The celebration is to make the lost ones comfortable in the group again.

The sheep may be blamed for its pride and carelessness in losing the way but the shepherd can in no way evade from his responsibility of protecting the sheep. The carelessness of the women is solely responsible for the missing of the coin.

Both the parables call for a responsible Christian behavior especially towards the weaker ones of the society. Not to despise anyone but to embrace everyone with love.


मनन-चिंतन - 2

संत लूकस के सुसमाचार के पंद्रहवें अध्याय में तीन दृष्टांत हैं - खोई हुई भेड़ का दृष्टान्त, खोये हुए सिक्के का और उड़ाऊ पुत्र का। इन सभी दृष्टान्तों में जो कुछ खो गया था उसे पाने पर खुशी मनायी जाती है। प्रभु येसु कहते हैं, "मैं तुम से कहता हूँ, निन्यानबे धर्मियों की अपेक्षा, जिन्हें पश्चात्ताप की आवश्यकता नहीं है, एक पश्चात्तापी पापी के लिए स्वर्ग में अधिक आनन्द मनाया जायेगा।" मेल-मिलाप एक ऐसा सेवा-कार्य है जो स्वर्ग में बहुत खुशी लाता है। इससे पता चलता है कि प्रभु पापियों के पश्चाताप की कितनी इच्छा रखते हैं। ईश्वर को अपने बच्चों के पापमय जीवन से बहुत दुख होता है। येसु के दुनिया में आने का उद्देश्य खोए हुए लोगों की तलाश करना और उन्हें बचाना था। वे कहते हैं, "मैं धर्मियों को नहीं, पापियों को पश्चाताप के लिए बुलाने आया हूँ” (लूकस 5:32)। यदि हम येसु से प्यार करते हैं, तो हमें पापियों को उनके पास वापस लाने के लिए उनको सहयोग देना होगा। संत याकूब कहते हैं, "मेरे भाइयो! यदि आप लोगों में कोई सच्चे मार्ग से भटके और कोई दूसरा उसे वापस ले आये, तो यह समझें कि जो किसी पापी को कुमार्ग से वापस ले आता है, वह उसकी आत्मा को मृत्यु से बचाता है और बहुत-से पाप ढाँक देता है।" (याकूब 5: 19-20)



REFLECTION

The fifteenth chapter of the Gospel of St. Luke has three parables – the parable of the lost sheep, that of the lost coin and that of the prodigal son. In all these parables there is great joy and celebration on finding what was lost. Jesus says, “I tell you, there will be more rejoicing in heaven over one sinner repenting than over ninety-nine upright people who have no need of repentance”. Reconciliation is a ministry which bring great joy to heaven. This shows how much the Lord desires the repentance of the sinful people. It pains God to find his children leading sinful life. The very purpose of Jesus’ coming into the world is to seek and save the lost. He says, “I have come to call not the righteous but sinners to repentance”. If we love Jesus, we need to join hands with him to bring the sinners back to him. St. James says, “My brethren, if any among you strays from the truth and one turns him back, let him know that he who turns a sinner from the error of his way will save his soul from death and will cover a multitude of sins.” (Jam 5:19-20)


 -Br Biniush Topno


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