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Bible readings for today 06 December 2020

SECOND SUNDAY OF ADVENT

Advent

Lectionary: 5

Comfort, give comfort to my people,
says your God.
Speak tenderly to Jerusalem, and proclaim to her
that her service is at an end,
her guilt is expiated;
indeed, she has received from the hand of the LORD
double for all her sins.

A voice cries out:
In the desert prepare the way of the LORD!
Make straight in the wasteland a highway for our God!
Every valley shall be filled in,
every mountain and hill shall be made low;
the rugged land shall be made a plain,
the rough country, a broad valley.
Then the glory of the LORD shall be revealed,
and all people shall see it together;
for the mouth of the LORD has spoken.

Go up on to a high mountain,
Zion, herald of glad tidings;
cry out at the top of your voice,
Jerusalem, herald of good news!
Fear not to cry out
and say to the cities of Judah:
Here is your God!
Here comes with power
the Lord GOD,
who rules by his strong arm;
here is his reward with him,
his recompense before him.
Like a shepherd he feeds his flock;
in his arms he gathers the lambs,
carrying them in his bosom,
and leading the ewes with care.

Responsorial Psalm

R. (8) Lord, let us see your kindness, and grant us your salvation.
I will hear what God proclaims;
the LORD—for he proclaims peace to his people.
Near indeed is his salvation to those who fear him,
glory dwelling in our land.
R. Lord, let us see your kindness, and grant us your salvation.
Kindness and truth shall meet;
justice and peace shall kiss.
Truth shall spring out of the earth,
and justice shall look down from heaven.
R. Lord, let us see your kindness, and grant us your salvation.
The LORD himself will give his benefits;
our land shall yield its increase.
Justice shall walk before him,
and prepare the way of his steps.
R. Lord, let us see your kindness, and grant us your salvation.

Reading 2

Do not ignore this one fact, beloved,
that with the Lord one day is like a thousand years
and a thousand years like one day.
The Lord does not delay his promise, as some regard “delay,”
but he is patient with you,
not wishing that any should perish
but that all should come to repentance.
But the day of the Lord will come like a thief,
and then the heavens will pass away with a mighty roar
and the elements will be dissolved by fire,
and the earth and everything done on it will be found out.

Since everything is to be dissolved in this way,
what sort of persons ought you to be,
conducting yourselves in holiness and devotion,
waiting for and hastening the coming of the day of God,
because of which the heavens will be dissolved in flames
and the elements melted by fire.
But according to his promise
we await new heavens and a new earth
in which righteousness dwells.
Therefore, beloved, since you await these things,
be eager to be found without spot or blemish before him, at peace.

Alleluia

R. Alleluia, alleluia.
Prepare the way of the Lord, make straight his paths:
All flesh shall see the salvation of God.
R. Alleluia, alleluia.

Gospel

The beginning of the gospel of Jesus Christ the Son of God.

As it is written in Isaiah the prophet:
Behold, I am sending my messenger ahead of you;
he will prepare your way.
A voice of one crying out in the desert:
“Prepare the way of the Lord,
make straight his paths.”

John the Baptist appeared in the desert
proclaiming a baptism of repentance for the forgiveness of sins.
People of the whole Judean countryside
and all the inhabitants of Jerusalem
were going out to him
and were being baptized by him in the Jordan River
as they acknowledged their sins.
John was clothed in camel’s hair,
with a leather belt around his waist.
He fed on locusts and wild honey.
And this is what he proclaimed:
“One mightier than I is coming after me.
I am not worthy to stoop and loosen the thongs of his sandals.
I have baptized you with water;
he will baptize you with the Holy Spirit.”


आज का पवित्र वचन 06 दिसंबर 2020 आगमन का दूसरा रविवार

 

06 दिसंबर 2020
आगमन का दूसरा रविवार

🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥

📒 पहला पाठ: इसायाह का ग्रन्थ 40:1-5.9-11

1) तुम्हारा ईश्वर यह कहता है, “मेरी प्रजा को सान्त्वना दो, सान्त्वना दो।

2) यरुसालेम को ढारस बँधओ और पुकार कर उस से यह कहो कि उसकी विपत्ति के दिन समाप्त हो गये हैं और उसके पाप का प्रायश्चित हो चुका है। प्रभु-ईश्वर के हाथ से उसे सभी अपराधों का पूरा-पूरा दण्ड मिल चुका हैं।“

3) यह आवाज़ आ रही है, “निर्जन प्रदेश में प्रभु का मार्ग तैयार करो। हमारे ईश्वर के लिए मैदान में रास्ता सीधा कर दो।

4) हर एक घाटी भर दी जाये। हर एक पहाड़ और पहाड़ी समतल की जाये, खड़ी चट्ठान को मैदान और कगार को घाटी बना दिया जाये।

5) तब प्रभु-ईश्वर की महिमा प्रकट हो जायेगी और सब शरीरधारी उसे देखेंगे; क्योंकि प्रभु ने ऐसा ही कहा है।“

9) सियोन को शुभ सन्देश सुनाने वाले! ऊँचे पहाड़ पर चढ़ो। यरुसालेम को शुभ सन्देश सुनाने वाले! अपनी आवाज़ ऊँची कर दो। निडर हो कर यूदा के नगरों से पुकार कर यह कहोः “यही तुम्हारा ईश्वर है।“

10) देखो प्रभु-ईश्वर सामध्र्य के साथ आ रहा है। वह सब कुछ अपने अधीन कर लेगा। वह अपना पुरस्कार अपने साथ ला रहा है और उसका विजयोपहार भी उसके साथ है।

11) वह गड़ेरिये की तरह अपना रेवड़ चराता है। वह मेमने को उठा कर अपनी छाती से लगा लेता और दूध पिलाने वाली भेडें धीरे-धीरे ले चलता है।

📕 दूसरा पाठ : पेत्रुस का दूसरा पत्र 3:8-14

8) प्यारे भाइयो! यह बात अवश्य याद रखें कि प्रभु की दृष्टि में एक दिन हज़ार वर्ष के समान है और हज़ार वर्ष एक दिन के समान।

9) प्रभु अपनी प्रतिज्ञाएं पूरी करने में विलम्ब नहीं करता, जैसा कि कुछ लोग समझते हैं। किन्तु वह आप लोगों के प्रति सहनशील है और यह चाहता है कि किसी का सर्वनाश नहीं हो, बल्कि सब-के-सब पश्चाताप करें।

10) प्रभु का दिन चोर की तरह आयेगा। उस दिन आकाश गरजता हुआ विलीन हो जायेगा, मूलतत्व जल कर पिघल जायेंगे और पृथ्वी तथा उस पर जो कुछ है, वह सब भस्म हो जायेगा।

11) यदि यह सब इस प्रकार नष्ट होने को है, तो आप लोगों को चाहिए कि पवित्र तथा भक्तिपूर्ण जीवन व्यतीत करें

12) और उत्सुकता से इ्रश्वर के दिन की प्रतीक्षा करें। उस दिन आकाश जल कर विलीन हो जायेगा और मूलतत्व ताप के कारण पिघल जायेंगे।

13) हम उसकी पतिज्ञा के आधार पर एक नये आकाश तथा एक नयी पृथ्वी की प्रतीक्षा करते हैं; जहाँ धार्मिकता निवास करेगी।

14) इसलिए, प्यारे भाइयो! इन बातों की प्रतीक्षा करते हुए इस प्रकार प्रयत्न करते रहे कि आप लोग प्रभु की दृष्टि में निष्कलंक, निर्दोष तथा उसके अनुकूल हों।

📙 सुसमाचार : सन्त मारकुस 1:1-8

1) ईश्वर के पुत्र ईसा मसीह के सुसमाचार का प्रारम्भ।

2) नबी इसायस के ग्रन्थों में लिखा है- मैं अपने दूत को तुम्हारे आगे भेजता हूँ। वह तुम्हारा मार्ग तैयार करेगा।

3) निर्जन प्रदेश में पुकारने वाले की आवाज़- प्रभु का मार्ग तैयार करो; उसके पथ सीधे कर दो।

4) इसी के अनुसार योहन बपतिस्ता निर्जन प्रदेश में प्रकट हुआ, जो पापक्षमा के लिए पश्चाताप के बपतिस्मा का उपदेश देता था।

5) सारी यहूदिया और येरुसालेम के लोग योहन के पास आते और अपने पाप स्वीकार करते हुए यर्दन नदी में उस से बपतिस्मा ग्रहण करते थे।

6) योहन ऊँट के रोओं का कपड़ा पहने और कमर में चमड़े का पट्टा बाँधे रहता था। उसका भोजन टिड्डियाँ और वन का मधु था।

7) वह अपने उपदेश में कहा करता था, ’’जो मेरे बाद आने वाले हैं, वह मुझ से अधिक शक्तिशाली हैं। मैं तो झुक कर उनके जूते का फ़ीता खोलने योग्य भी नहीं हूँ।

8) मैंने तुम लोगों को जल से बपतिस्मा दिया है। वह तुम्हें पवित्र आत्मा से बपतिस्मा देंगे।’’

📚 मनन-चिंतन

आज आगमन का दूसरा रविवार है। आज के सुसमाचार में, संत मारकुस सन्त योहन बपतिस्ता को नबी इसायाह की भविष्यवाणी के पूर्तिकरण के रूप में प्रस्तुत करते हैं। जब कोई राजा किसी अभियान में जाता था, विशेष रूप से उन्हें किसी बंजर या ऊबड़-खाबड़ इलाके से गुजरना पड़ता था, तब उनके सामने कोई अग्रदूत जाता था और उनके लिए रास्ता तैयार करता था। एसे अग्रदूतों को कभी पुल बनाना, पहाड़ को समतल करना, पत्थरों को हटाना या फ़िर घाटियों को भरना पड़ता था। उस प्रसंग को लेते हुए, नबी इसायाह योहन बपतिस्ता के बारे में भविष्यवाणी करते हैं, जिसे मसीहा के लिए रास्ता तैयार करने का कार्य सौंपा गया है।

आज जब हम प्रभु के आगमन की तैयारी के बारे में सोचते हैं तब हम पश्चात्ताप और मनपरिवर्तन के पाँच चरणों को याद रखें।

1. हमारे पापों के लिए खेद महसूस करना। 2 कुरिन्थियों 7: 9-10 में संत पौलुस दो प्रकार के दुख के बारे में बताते हैं। वे कहते हैं, "जो दुःख ईश्वर की इच्छानुसार स्वीकार किया जाता है, उस से ऐसा कल्याणकारी हृदय-परिवर्तन होता है कि खेद का प्रश्न ही नहीं उठता। संसार के दुःख से मृत्यु उत्पन्न होती है।" हमें पाप के कारण निराश होने की आवश्यकता नहीं है। बल्कि हमें उन पापों के लिए दुख महसूस होना चाहिए जो हमने किए हैं और हमारे मार्ग को बदलने का निर्णय लेना चाहिए। तत्पंश्चात हमें फिर से ईश्वर की ओर अभिमुख होना चाहिए।

2. पापों को स्वीकार करना और त्यागना: हमें अपने पिता के पास वापस आने वाले उड़ाऊ पुत्र की तरह अपना दुख व्यक्त करना चाहिए। उसने अपने पिता से कहा, '' पिता जी! मैने स्वर्ग के विरुद्ध और आपके प्रति पाप किया है। मैं आपका पुत्र कहलाने योग्य नहीं रहा।” (लूकस 15:21)

3. संशोधन करना या बदलाव लाना: हम पवित्र बाइबिल में ज़केयुस को ऐसा करते हुए पाते हैं। लूकस 19: 8 में हम पढ़ते हैं, "ज़केयुस ने दृढ़ता से प्रभु से कहा, "प्रभु! देखिए, मैं अपनी आधी सम्पत्ति ग़रीबों को दूँगा और मैंने जिन लोगों के साथ किसी बात में बेईमानी की है, उन्हें उसका चौगुना लौटा दूँगा"।

4. प्रभु की आज्ञाओं का पालन करना: हमें अपने प्रभु ईश्वर के निर्देशों के अनुसार जीना शुरू करना होगा। हमें प्रभु की इच्छा को स्वीकार करते हुए जीवन बिताना होगा।

5. प्रभु की ओर मुड़ना और प्रभु तथा प्रभु की प्रजा की सेवा करना।



📚 REFLECTION

Today is the Second Sunday of Advent. In today’s Gospel, St. Mark, the Evangelist introduces John the Baptist as the fulfillment of the prophecy of Prophet Isaiah. When the king was on a journey or an expedition especially through a barren and unfrequented or inhospitable country, there would be forerunners who would go ahead and prepare the way for him. Such forerunners had to make bridges, level mountains and fill valleys. Taking that context Prophet Isaiah prophesied about John the Baptist, the one who had to prepare the way for the Messiah.

Today when we think of preparing for the coming of the Lord we may list five steps:

1. Being sorry for our sins: In 2 Cor 7:9-10 St. Paul speaks about two types of sorrows. He says, “For godly grief produces a repentance that leads to salvation and brings no regret, but worldly grief produces death.” We need not and should not get frustrated with sin. On the other hand, we should be sorry for the sins we have committed and decide to change our path. We need retrace our path back to God.

2. Confessing and forsaking sins : We need to express our sorrow like the prodigal son who came to his Father and said, “‘Father, I have sinned against heaven and before you; I am no longer worthy to be called your son” (Lk 15:21)

3. Making amends: This we see being done by Zacchaeus. In Lk 19:8 we read, “Zacchaeus stood there and said to the Lord, “Look, half of my possessions, Lord, I will give to the poor; and if I have defrauded anyone of anything, I will pay back four times as much.”

4. Obeying the commandments of the Lord: We need to then start living according to the directions of our God. The will of God should be accepted.

5. Turning to the Lord and Serving the Lord and His people.


मनन-चिंतन - 2

ईश्वर प्यार है और इस प्यार को प्रकट करते हुए ईश्वर ने मनुष्य को रूप दिया। सृष्टिकर्ता प्रभु ने उसको अपने ही प्रतिरूप में बना कर इस दुनिया में भेजा ताकि मनुष्य, ईश्वर की सन्तान के रूप में पृथ्वी पर एक निर्दोष एवं निष्कलंक जीवन बिताए।

इतना ही नहीं, प्रभु ने उनके द्वारा बनायी हुई सब सृष्ट वस्तुओं पर मनुष्य को अधिकार दिया और कहा – “फलो-फूलो। पृथ्वी पर फैल जाओ और उसे अपने अधीन कर लो। समुद्र की मछलियों, आकाश के पक्षियों और पृथ्वी पर विचरने वाले सब जीव-जन्तुओं पर शासन करो।“ (उत्पत्ति 1:28) ताकि वह औचित्य और न्याय से संसार का शासन करे और निष्कपट हृदय से निर्णय दे (प्रज्ञा 9:3)

लेकिन मनुष्य ने ईश्वर की इच्छा के विपरीत पापमय जीवन बिताना और सृष्ट वस्तुओं का गलत इस्तेमाल करना शुरू किया। मानव-जाति के गरिमामय जीवन का पतन देख कर ईश्वर ने समय-समय पर अपने नबियों एवं धर्मात्माओं द्वारा मानव को पापमय जीवन त्याग कर एक पवित्र जीवन अपनाने के लिए प्रेरित किया। लेकिन सारा परिश्रम नाकाम रहा। इस कारण से मॉ से भी ज्यादा प्यार करने वाले प्रभु मानव को पापों से बचाने के लिए इनसान बन कर इस संसार में आये। इस महत्वपूर्ण घटना की याद दिलाने वाला पर्व मनाने के लिए हम तैयारी में लगे हुए हैं।

आज के तीनों पाठ हम से जो इस पर्व की तैयारी में लगे हुए हैं, यह आग्रह करते हैं कि अगर हमें मुक्तिदाता येसु मसीह को स्वीकार करना है तो अपना मार्ग सीधा करना होगा। ईश्वर जो स्वयं मार्ग हैं और हमें मार्ग दिखाने वाले हैं उस ईश्वर को हमारे जीवन में प्रवेश करने के लिए हमारे जीवन की ओर आने का मार्ग सीधा करने के लिए आज के तीनों पाठ हम से आग्रह करते हैं। कहने का मतलब यह है कि इस आगमन काल में हम गंभीरता से हमारे आध्यात्मिक जीवन की परिस्थिति की ओर निष्पक्ष रूप से देखें और येसु द्वारा बताये गये आदर्श जीवन के साथ तुलना करते हुए हम जॅाच कर देखें और जो अंतर है उसका हल करे। जो परिवर्तन या सुधार हमारे जीवन में अनिवार्य है वह जीवन में लाते हुए इस आगमन काल के लिए अपने आपको तैयार करें। क्योंकि हम ऎसा जीवन बिता रहे है कि हम यह नहीं जानते कि कल हमारा क्या हाल होगा। हमारा जीवन एक कुहरा मात्र है - वह एक क्षण दिखाई दे कर लुप्त हो जाता है।(याकूब 4:14)

जब तक हम अपने जीवन का मार्ग सीधा नहीं करते हैं तब तक हम प्रभु को अपने जीवन में स्वीकार कर नहीं कर पायेंगे और प्रभु के सेवक भी नहीं बन पायेंगे। नबी इ्सायाह के जीवन में एक समय था जब ईश्वर के लिए उनके जीवन में न तो पूर्ण रूप से मार्ग ही तैयार नहीं था और न ही रास्ता सीधा नहीं था। लेकिन वे ईश्वर से प्रार्थना करके अनुग्रह प्राप्त करते हैं। नबी इसायाह ने ईश्वर से कहा- “हाय! हाय! मैं नष्ट हुआ; क्योंकि मैं तो अशुद्ध होंठों वाला मनुष्य हॅू, अशुद्ध होंठों वाले मनुष्यों के बीच रहता हूँ”। वचन कहता है तुरन्त एक सराफीम अंगार से इसायाह के होंठों को स्पर्श करते हुए उनका पाप दूर करता है और अधर्म मिटाता है। (इसायाह 6:5-7) नबी इसायाह के समान, योहन बपतिस्ता भी निर्जन प्रदेश में प्रार्थना एवं उपवास में समय बिताते हुए उनके जीवन में प्रभु के लिए मार्ग तैयार करते हैं। इस के बाद ही वे दोनों, लोगों से आग्रह करते हैं कि वे भी प्रभु को स्वागत करने के लिए मार्ग तैयार करें; उसके पथ सीधे कर दें।

आज के पहले पाठ में नबी इसायाह बाबुल निर्वासन में जो लोग हैं उनको आश्वासन देते हुए कहते हैं कि ईश्वर शीघ्र ही उनका उद्धार करने वालें हैं और नवजीवन देने वाले हैं। लेकिन दिन आने से पहले सबको अपने आपको शुद्ध करके तैयार रहना होगा। दूसरे पाठ में भी संत पेत्रुस, प्रभु येसु के द्वितीय आगमन की प्रतीक्षा में रहने वाले विश्वासियों से, एक नये आकाश तथा एक नयी पृथ्वी की प्रतीक्षा करने वाले लोगों से कहते हैं कि वे पवित्र तथा भक्ति पूर्ण जीवन व्यतीत करते हुए, उत्सुकता से ईश्वर के दिन की प्रतीक्षा करें। (1पेत्रुस 3:11.13)

आईए हम भी प्रभु को स्वीकार करने के लिए अपने आपको तैयार करें। हमारे जीवन की अवस्था जो कुछ भी हो हम उसको ईश्वर के पास लायें। हमारे पाप सिंदूर की तरह लाल क्यों न हों, किरमिज की तरह मटमैले क्यों न हो, हम उनको प्रभु के पास लाए क्योंकि प्रभु के पास लाने से वे हिम की तरह उज्ज्वल हो जायेंगे और वे ऊन की तरह श्वेत हो जायेंगे। (इसायाह 1:18) ईश्वर के लिए कुछ भी असंभव नहीं है (लूकस 1:37) उनके कहने पर सूखी हड्डियों में जीवन आ सकता है। (एज़ेकिएल 37:1)

- Br. Biniush Topno

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Praise the Lord!