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12 सितंबर का पवित्र वचन

 

12 सितंबर 2020, शनिवार
कुँवारी मरियम का पवित्र नाम

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📒 पहला पाठ : 1 कुरिन्थियों 10:14-22

14) प्रिय भाइयो! आप मूर्तिपूजा से दूर रहें।

15) मैं आप लोगों को समझदार जान कर यह कह रहा हूँ। आप स्वयं मेरी बातों पर विचार करें।

16) क्या आशिष का प्याला, जिस पर हम आशिष की प्रार्थना पढ़ते हैं, हमें मसीह के रक्त का सहभागी नहीं बनाता? क्या वह रोटी, जिसे हम तोड़ते हैं, हमें मसीह के शरीर का सहभागी नहीं बनाती?

17) रोटी तो एक ही है, इसलिए अनेक होने पर भी हम एक हैं; क्योंकि हम सब एक ही रोटी के सहभागी हैं।

18) इस्राएलियों को देखिए! क्या बलि खाने वाले वेदी के सहभागी नहीं हैं?

19) मैं यह नहीं कहता कि देवता को चढ़ाये हुए मांस की कोई विशेषता है अथवा यह कि देवमूर्तियों का कुछ महत्व है।

20) किन्तु-धर्मग्रन्थ के अनुसार- गैर-यहूदियों के बलिदान ईश्वर को नहीं, बल्कि अपदूतों को चढ़ाये जाते हैं। मैं यह नहीं चाहता कि आप लोग अपदूतों के सहभागी बनें।

21) आप प्रभु का प्याला और अपदूतों का प्याला, दोनों नहीं पी सकते। आप प्रभु की मेज़ और अपदूतों की मेज़, दोनों के सहभागी नहीं बन सकते।

22) क्या हम प्रभु को चुनौती देना चाहते हैं? क्या हम उस से बलवान् हैं?


सुसमाचार : लूकस 6:43-49

43) "कोई अच्छा पेड़ बुरा फल नहीं देता और न कोई बुरा पेड़ अच्छा फल देता है।

44) हर पेड़ अपने फल से पहचाना जाता है। लोग न तो कँटीली झाडि़यों से अंजीर तोड़ते हैं और न ऊँटकटारों से अंगूर।

45) अच्छा मनुष्य अपने हृदय के अच्छे भण्डार से अच्छी चीजे़ं निकालता है और जो बुरा है, वह अपने बुरे भण्डार से बुरी चीज़ें निकालता है; क्योंकि जो हृदय में भरा है, वहीं तो मुँह से बाहर आता है।

46) "जब तुम मेरा कहना नहीं मानते, तो ’प्रभु! प्रभु! कह कर मुझे क्यों पुकारते हो?

47) जो मेरे पास आ कर मेरी बातें सुनता और उन पर चलता है-जानते हो, वह किसके सदृश है?

48) वह उस मनुष्य के सदृश है, जो घर बनाते समय गहरा खोदता और उसकी नींव चट्टान पर डालता है। बाढ़ आती है, और जलप्रवाह उस मकान से टकराता है, किन्तु वह उसे ढा नहीं पाता; क्योंकि वह घर बहुत मज़बूत बना है।

49) परन्तु जो मेरी बातें सुनता है और उन पर नहीं चलता, वह उस मनुष्य के सदृश है, जो बिना नींव डाले भूमितल पर अपना घर बनाता है। जल-प्रवाह की टक्कर लगते ही वह घर ढह जाता है और उसका सर्वनाश हो जाता है।"

कुँवारी मरियम का पवित्र नाम

📒 पहला पाठ : गलातियों 4:4-7

4) किन्तु समय पूरा हो जाने पर ईश्वर ने अपने पुत्र को भेजा। वह एक नारी से उत्पन्न हुए और संहिता के अधीन रहे,

5) जिससे वह संहिता क अधीन रहने वालों को छुड़ा सकें और हम ईश्वर के दत्तक पुत्र बन जायें।

6) आप लोग पुत्र ही हैं। इसका प्रमाण यह है कि ईश्वर ने हमारे हृदयों में अपने पुत्र का आत्मा भेजा है, जो यह पुकार कर कहता है -"अब्बा! पिता!" इसलिए अब आप दास नहीं, पुत्र हैं और पुत्र होने के नाते आप ईश्वर की कृपा से विरासत के अधिकारी भी हैं।

7) इसलिए अब आप दास नहीं, पुत्र हैं और पुत्र होने के नाते आप ईश्वर की कृपा से विरासत के अधिकारी भी हैं।

अथवा - पहला पाठ : एफ़ेसियों 1:3-6

3) धन्य है हमारे प्रभु ईसा मसीह का ईश्वर और पिता! उसने मसीह द्वारा हम लोगों को स्वर्ग के हर प्रकार के आध्यात्मिक वरदान प्रदान किये हैं।

4) उसने संसार की सृष्टि से पहले मसीह में हम को चुना, जिससे हम मसीह से संयुक्त हो कर उसकी दृष्टि में पवित्र तथा निष्कलंक बनें।

5) उसने प्रेम से प्रेरित हो कर आदि में ही निर्धारित किया कि हम ईसा मसीह द्वारा उसके दत्तक पुत्र बनेंगे। इस प्रकार उसने अपनी मंगलमय इच्छा के अनुसार

6) अपने अनुग्रह की महिमा प्रकट की है। वह अनुग्रह हमें उसके प्रिय पुत्र द्वारा मिला है,


सुसमाचार : लूकस 1:39-47

39) उन दिनों मरियम पहाड़ी प्रदेश में यूदा के एक नगर के लिए शीघ्रता से चल पड़ी।

40) उसने ज़करियस के घर में प्रवेश कर एलीज़बेथ का अभिवादन किया।

41) ज्यों ही एलीज़बेथ ने मरियम का अभिवादन सुना, बच्चा उसके गर्भ में उछल पड़ा और एलीज़बेथ पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गयी।

42) वह ऊँचे स्वर से बोली उठी, "आप नारियों में धन्य हैं और धन्य है आपके गर्भ का फल!

43) मुझे यह सौभाग्य कैसे प्राप्त हुआ कि मेरे प्रभु की माता मेरे पास आयीं?

44) क्योंकि देखिए, ज्यों ही आपका प्रणाम मेरे कानों में पड़ा, बच्चा मेरे गर्भ में आनन्द के मारे उछल पड़ा।

45) और धन्य हैं आप, जिन्होंने यह विश्वास किया कि प्रभु ने आप से जो कहा, वह पूरा हो जायेगा!"

46) तब मरियम बोल उठी, "मेरी आत्मा प्रभु का गुणगान करती है,

47) मेरा मन अपने मुक्तिदाता ईश्वर में आनन्द मनाता है;

📚 मनन-चिंतन

आज हम माता मरियम के पवित्र नाम का पर्व मानते हैं। मरियम के पवित्र नाम का बखान भक्त विश्वासी मंडली सदियों से करती आ रही है। और आज का यह पर्व हमारी मरियम के प्रति उसी श्रद्धा को दर्शाता है। मरियम के नाम के लगभग सत्तर अलग-अलग अर्थ हैं। उन सब में सबसे आकर्षक अर्थ है - "ईश्वर की प्रिय।"

अपने नाम के अनुरूप ही मरियम ज़रूर ईश्वर की प्रिय रही है। सभी मुष्यों में ईश्वर की मर्ज़ी को पूरी तरह से पूरा करने और ईश्वर को हमेशा प्रसन्न करने में मरियम सदा अग्रणी रहीं है, क्योंकि वह हमेशा पाप से मुक्त थी (निष्कलंक गर्भाधान), और इस तरह हमेशा सर्वशक्तिमान की प्यारी रही। अनंत काल से ईश्वर ने उनसे प्यार किया; प्यार से उसकी श्रष्टि की ; उसके प्रति प्रेम के कारण उसने उन्हें पाप से बचाए रखा; प्रेम के खातिर उसने उसे सब कृपाओं व अनुग्रह से सुशोभित किया। हर दृष्टि से उसका नाम पवित्र है।

इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि माता कलीसिया उनके नाम का सम्मान करती है। कोई आश्चर्य नहीं कि कलीसिया के संतों और पिताओं ने उसकी प्रशंसा की है। उदाहरण के लिए :

संत बॉनावेन्चर : "धन्य है वह मनुष्य जो तेरे नाम को प्यार करता है, हे! मरियम । हाँ, वास्तव में धन्य है वह जो तेरे प्यारे नाम को प्यार करता है, हे ईश्वर की माँ, तेरा नाम इतना शानदार और सराहनीय है, कि जो कोई, इसका स्मरण करता है, उसे मौत की घडी का कोई डर नहीं। "

तो, प्यारे विश्वासियों, स्वर्ग दूत गेब्रियल की तरह जब-जब हम रोजरी माला विनती करें, हम मरियम का नाम नित पुकारते रहें : "प्रणाम मरिया कृपापूर्ण प्रभु आपके साथ है---," और वह हम पापियों के लिए नित प्रार्थना करती रहेगी।



📚 REFLECTION

Today we honour the holy name of ‘Mary’ the Mother of God. The devout people of God have been honoring the holy name of Mary for centuries. And this feast of today shows the same reverence for our beloved Mother Mary. Mary’s name has about seventy different meanings. The most attractive meaning of them all is - "Beloved of God."

According to this meaning she has definitely been dear to God. In all matters, she has always been at the forefront in fulfilling God's will and pleasing God, as she was always free from sin (immaculate conception), and thus was always beloved of the Almighty. God loved her from the eternity; He created her with love; He kept her from sin because of his love for her; for the great love he adorned her with all the graces. From every point of view her name is sacred.

It is no wonder that the mother Church honors her name; No wonder she is praised by the saints and fathers of the church, for example : Saint Bonaventure: "Blessed is the man who loves your name, O Mary! Yes, indeed blessed is the one who loves your beloved name, O Mother of God, your name is so magnificent and admirable, that whoever honours your name, will have no fear of death.” So, dear brothers and sisters, as we pray, the Rosary, like the angel Gabriel, we keep on calling Mary's name constantly: "Hail Mary, full of Grace, the Lord is with you ---," and she will continue to pray for us sinners.