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30 जनवरी 2022, इतवार

 

30 जनवरी 2022, इतवार

सामान्य काल का चौथा इतवार



📒 पहला पाठ : यिरमियाह का ग्रन्थ 1:4-5,17-19

4) प्रभु की वाणी मुझे यह कहते हुए सुनाई पड़ी-

5) “माता के गर्भ में तुम को रचने से पहले ही, मैंने तुम को जान लिया। तुम्हारे जन्म से पहले ही, मैंने तुम को पवत्रि किया। मैंने तुम को राष्ट्रों का नबी नियुक्त किया।“

17) अब तुम कमर कस कर तैयार हो जाओ और मैं तुम्हें जो कुछ बताऊँ, वह सब सुना दो। तुम उनके सामने भयभीत मत हो, नहीं तो मैं तुम को उनके सामने भयभीत बना दूँगा।

18) देखो! इस सारे देश के सामने, यूदा के राजाओं, इसके अमीरों, इसके याजकों और इसके सब निवासियों के सामने, मैं आज तुम को एक सुदृढ़ नगर के सदृश, लोहे के खम्भे और काँसे की दीवार की तरह खड़ा करता हूँ।

19) वे तुम्हारे विरुद्ध लडेंगे, किन्तु तुम को हराने में असमर्थ होंगे; क्योंकि मैं तुम्हारी रक्षा करने के लिए तुम्हारे साथ रहूँगा।“ यह प्रभु की वाणी है।


📒 दूसरा पाठ : कुरिन्थियों के नाम सन्त पौलुस का पहला पत्र 12:31-13:13


31) आप लोग उच्चतर वरदानों की अभिलाषा किया करें। मैं अब आप लोगों को सर्वोत्तम मार्ग दिखाता चाहता हूँ।

1) मैं भले ही मनुष्यों तथा स्वर्गदूतों की सब भाषाएँ बोलूं; किन्तु यदि मुझ में प्रेम का अभाव है, तो मैं खनखनाता घडि़याल या झनझनाती झाँझ मात्र हूँ।

2) मुझे भले ही भविष्यवाणी का वरदान मिला हो, मैं सभी रहस्य जानता होऊँ, मुझे समस्त ज्ञान प्राप्त हो गया हो, मेरा विश्वास इतना परिपूर्ण हो कि मैं पहाड़ों को हटा सकूँ; किन्तु यदि मुझ में प्रेम का अभाव हैं, तो मैं कुछ भी नहीं हूँ।

3) मैं भले ही अपनी सारी सम्पत्ति दान कर दूँ और अपना शरीर भस्म होने के लिए अर्पित करूँ; किन्तु यदि मुझ में प्रेम का अभाव है, तो इस से मुझे कुछ भी लाभ नहीं।

4) प्रेम सहनशील और दयालु है। प्रेम न तो ईर्ष्या करता है, न डींग मारता, न घमण्ड, करता है।

5) प्रेम अशोभनीय व्यवहार नहीं करता। वह अपना स्वार्थ नहीं खोजता। प्रेम न तो झुंझलाता है और न बुराई का लेखा रखता है।

6) वह दूसरों के पाप से नहीं, बल्कि उनके सदाचरण से प्रसन्न होता है।

7) वह सब-कुछ ढाँक देता है, सब-कुछ पर विश्वास करता है, सब-कुछ की आशा करता है और सब-कुछ सह लेता है।

8) भविष्यवाणियाँ जाती रहेंगी, भाषाएँ मौन हो जायेंगी और ज्ञान मिट जायेगा, किन्तु प्रेम का कभी अन्त नहीं होगा;

9) क्योंकि हमारा ज्ञान तथा हमारी भविष्यवाणियाँ अपूर्ण हैं

10) और जब पूर्णता आ जायेगी, तो जो अपूर्ण है, वह जाता रहेगा।

11) मैं जब बच्चा था, तो बच्चों की तरह बोलता, सोचता और समझता था; किन्तु सयाना हो जाने पर मैंने बचकानी बातें छोड़ दीं।

12) अभी तो हमें आईने में धुँधला-सा दिखाई देता है, परन्तु तब हम आमने-सामने देखेंगे। अभी तो मेरा ज्ञान अपूर्ण है; परन्तु तब मैं उसी तरह पूर्ण रूप से जान जाऊँगा, जिस तरह ईश्वर मुझे जान गया है।

13) अभी तो विश्वास, भरोसा और प्रेम-ये तीनों बने हुए हैं। किन्तु उनमें प्रेम ही सब से महान् हैं।


📒 सुसमाचार : सन्त लूकस का सुसमाचार 4:21-30


21) तब वह उन से कहने लगे, ’’धर्मग्रन्थ का यह कथन आज तुम लोगों के सामने पूरा हो गया है’’।

22) सब उनकी प्रशंसा करते रहे। वे उनके मनोहर शब्द सुन कर अचम्भे में पड़ जाते और कहते थे, ’’क्या यह युसूफ़ का बेटा नहीं है?’’

23) ईसा ने उन से कहा, ’’तुम लोग निश्चय ही मुझे यह कहावत सुना दोगे-वैद्य! अपना ही इलाज करो। कफ़रनाहूम में जो कुछ हुआ है, हमने उसके बारे में सुना है। वह सब अपनी मातृभूमि में भी कर दिखाइए।’’

24) फिर ईसा ने कहा, ’’मैं तुम से यह कहता हूँ-अपनी मातृभूमि में नबी का स्वागत नहीं होता।

25) मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ कि जब एलियस के दिनों में साढ़े तीन वर्षों तक पानी नहीं बरसा और सारे देश में घोर अकाल पड़ा था, तो उस समय इस्राएल में बहुत-सी विधवाएँ थीं।

26) फिर भी एलियस उन में किसी के पास नहीं भेजा गया-वह सिदोन के सरेप्ता की एक विधवा के पास ही भेजा गया था।

27) और नबी एलिसेयस के दिनों में इस्राएल में बहुत-से कोढ़ी थे। फिर भी उन में कोई नहीं, बल्कि सीरी नामन ही निरोग किया गया था।’’

28) यह सुन कर सभागृह के सब लोग बहुत क्रुद्ध हो गये।

29) वे उठ खड़े हुए और उन्होंने ईसा को नगर से बाहर निकाल दिया। उनका नगर जिस पहाड़ी पर बसा था, वे ईसा को उसकी चोटी तक ले गये, ताकि उन्हें नीचे गिरा दें,

30) परन्तु वे उनके बीच से निकल कर चले गये।


📚 मनन-चिंतन


अपने घोषणापत्र की प्रस्तुति के तुरंत बाद, येसु को अपने गाँव के लोगों से परिचित होने के कारण विरोध का सामना करना पड़ा। ऐसा कहा जाता है, परिचितता अवमानना को जन्म देती है। येसु के मामले में वास्तव में यही हुआ था। उन्होंने दावा किया था कि वे ईश्वर के अभिषिक्त हैं। नाज़रेथ के लोग येसु से बहुत परिचित थे और मसीह के रूप में उनकी नई पहचान को वे आसानी से स्वीकार नहीं कर पा रहे थे। उन्होंने उन्हें एक साधारण बढ़ई के रूप में देखा था। वे इस सच्चाई को नहीं समझ सके कि येसु ही मसीह हो सकते हैं। उन्हें उन पर शक था। इस अवमानना ने उनमें से कुछ लोगों को हिंसक विरोध करने के लिए प्रेरित किया। येसु कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करते हैं बल्कि वहां से चले जाते हैं। कभी-कभी हम भी दूसरों का न्याय करने में अधीर होते हैं और लोगों की निंदा करने से पहले सभी तथ्यों को नहीं देखते हैं। हमारी अधीरता से कई पहल टूट जाती हैं। आइए हम ईश्वर के तरीकों को जानने के लिए दिव्य ज्ञान की तलाश करें। संत पौलुस हमें याद दिलाते हैं, "प्रेम सहनशील और दयालु है। प्रेम न तो ईर्ष्या करता है, न डींग मारता, न घमण्ड, करता है। प्रेम अशोभनीय व्यवहार नहीं करता।" (1कुरिन्थियों 13:4)।



📚 REFLECTION

Immediately after the presentation of his manifesto, Jesus faced opposition caused by familiarity of the people of his village. It is said, familiarity breeds contempt. This is what really happened in the case of Jesus who claimed to be the anointed one of God. The people of Nazareth were too familiar with Jesus and could not easily accept his newly revealed identity as the Messiah. They had seen him as an ordinary carpenter. They could not understand the truth that Jesus could be the Messiah. They were skeptic about him. This contempt led some of them to violent opposition. Jesus does not react but moves away from there. Sometimes we too are impatient in judging others and do not look into all facts before condemning people. Many initiatives are torn down by our impatience. Let us seek the divine wisdom to know the ways of God. St. Paul reminds us, “Love is patient; love is kind; love is not envious or boastful or arrogant or rude” (1Cor 13:4).


📚 मनन-चिंतन -02


आप क्या करेगें? आपकी प्रतिक्रिया क्या होगी? क्या कभी आपने ठोकर खायी है? किसी ने हिन्दी में कहा है ’बिना ठोकर खाकर कोई ठाकुर नहीं बनता।

मानवीय, सामाजिक जीवन में तिरस्कार, अनादर या अस्वीकार का अनुभव कोई नई बात नहीं है। ठोकर खाना, नफरत सहन करना, तिरस्कार का अनुभव इन्सान को बनाता (make), बिगाड़ता (break), नीचे गिराता या ऊपर उठाता है। नौकरी के लिए जाओ, दाखिले के लिए जाओ, कई स्थानों पर लोगों को भेदभाव की सच्चाई का सामना करना पडता है।

आज के पहले पाठ में (यिरमियाह 1:4-15,17) नबी यिरमियाह के बुलावे के बारे में वर्णन किया गया है। प्रभु परमेश्वर नबी यिरमियाह को बुलाते समय कहते हैं-‘‘माता के गर्भ में रचने से पहले ही मैंने तुम्हें चुन लिया।’’ वह ईश्वर के ज्ञान में था, पूर्व निर्धारित नबी यिरमियाह चुन लिया गया था, नियुक्त किया गया था। ईश्वर उन्हें इस कार्य के लिए सशक्त, सक्षम बनाते हैं और चेतावनी भी देते हैं कि उन्हें तिरस्कार का सामना करना होगा और उन्हें ढ़ाढ़स देते हैं कि उन्हें घबराना नहीं चाहिए, डरना नहीं चाहिए, क्योंकि ईश्वर उन्हें आश्वासन देते हैं कि वे उनके साथ हैं और उनका उध्दार करेंगे। अपने विशेष कार्यों के लिए ईश्वर अपने चुने हुए लोगों को अलग रखते, पवित्र रखते ताकि वे दूसरों से अलग हो जो जीवित मछली की तरह रहते नहीं लेकिन मृत मछली के जैसे जो पानी के बहाव में बह जाता है।

ईश्वर के कार्य के लिए ईश्वर द्वारा चुने जाने पर और लोगों के द्वारा अस्वीकार या तिरस्कार का सामना करने पर एक असमजंस की स्थिति पैदा होती है। डर का कारण यह हो सकता है कि कोई जोखिम उठाना नहीं चाहता है। लेकिन नबी यिरमियाह हिम्मत नहीं हारते हैं क्योंकि जिनको ईश्वर बुलाते हैं, इस बुलावे के साथ-साथ उन्हें वे सशक्त और संपन्न भी करते हैं।

दूसरे पाठ के द्वारा संत पौलुस कुरिन्थियों के पहले पत्र में इस बात का उल्लेख करते हैं कि प्यार सब से बड़कर है, सर्वोपरि है। येसु को भी नबी यिरमियाह के सदृश्य अस्वीकार का सामना करना पड़ा जैसे कि संत योहन के सुसमाचार में हम पढ़ते हैं कि ईश्वर का रूप येसु मसीह में पूर्णरूप से प्रकट हुआ। वे अपने ही लोगों के बीच में आये और अपने ही लोगों ने उसे नहीं अपनाया। जब नाजरेत निवासी उनको अस्वीकार करते हैं तब इसकी प्रतिक्रिया में पुरानी कहावत प्रकट करते हैं कि अपने ही स्थान में नबी का आदर नहीं होता।

1. यह घटना हमें पुरानी कहावत याद दिलाती है - घर की मुर्गी दाल बराबर।

2. हम/वर्त्तमान में brand और label की दुनिया में जीते हैं और लोगों को भी label करते हैं।

3. बाहरी रूप रंग देखना और स्वीकार या अस्वीकार करना एक मानसिकता है ।

4. हम हमारी पूर्वधारणा या मानसिकता को छोड़ें और नवीन दृष्टिकोण अपनाएं। ताकि नाजरेत के निवासियों के समान ईसा या किसी अच्छी चीज का तिरस्कार न करें या साबूत या प्रमाण न मागें।

5. ईश्वर का नबी होना खतरों से, जोखिमों से भरा है। नबी बनने के लिए हिम्मत चाहिए, नबी होना कोई profession नहीं, पेशा नहीं लेकिन बुलाहट है।


 -Br. Biniush Topno


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