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जून 02, 2024, इतवार ख्रीस्त के पवित्रतम शरीर और रक्त का समारोह (Corpur Chrsisti)

 

ख्रीस्त के पवित्रतम शरीर और रक्त का समारोह (Corpur Chrsisti)

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📒 पहला पाठ : निर्गमन 24:3-8

3) मूसा ने सीनई पर्वत से उतर कर प्रभु के सब वचन और आदेश लोगों को सुनाये। लोगों ने एक स्वर से इस प्रकार उत्तर दिया, ''प्रभु ने जो कुछ कहा है, हम उसका पालन करेंगे।''

4) मूसा ने प्रभु के सब आदेश लिख दिये और दूसरे दिन, भोर को, उसने पर्वत के नीचे एक वेदी बनायी और इस्राएल के बारह वंषों के लिए बारह पत्थर खड़े कर दिये।

5) उसने इस्राएली नवयुवकों को आदेश दिया कि वे होम-बलि चढ़ायें और शांतियज्ञ के लिए बछड़ों का वध करें।

6) तब मूसा ने पशुओं का आधा रक्त पात्रों में इकट्ठा किया और आधा वेदी पर छिड़का।

7) उसने विधान की पुस्तक ली और उसे लोगों को पढ़ सुनाया। लोगों ने उत्तर दिया, प्रभु ने जो कुछ कहा है, हम उसके अनुसार चलेंगे और उसका पालन करेंगे।

8) इस पर मूसा ने रक्त ले लिया और उसे लोगों पर छिड़कते हुए कहा, ''यह उस विधान का रक्त है, जिसे प्रभु ने उन सब आदेशों के माध्यम से तुम लोगों के लिए निर्धारित किया है।

📒 दूसरा पाठ : इब्रानियों 9:11-15

11) किन्तु अब मसीह हमारे भावी कल्याण के प्रधानयाजक के रूप में आये हैं और उन्होंने एक ऐसे तम्बू को पार किया, जो यहूदियों के तम्बू से महान् तथा श्रेष्ठ है, जो मनुष्य के हाथ से नहीं बना और इस पृथ्वी का नहीं है।

12) उन्होंने बकरों तथा बछड़ों का नहीं, बल्कि अपना रक्त ले कर सदा के लिए एक ही बार परमपावन स्थान में प्रवेश किया और इस तरह हमारे लिए सदा-सर्वदा रहने वाला उद्धार प्राप्त किया है।

13) याजक बकरों तथा सांड़ों का रक्त और कलोर की राख अशुद्ध लोगों पर छिड़कता है और उनका शरीर फिर शुद्ध हो जाता है। यदि उस में पवित्र करने की शक्ति है,

14) तो फिर मसीह का रक्त, जिसे उन्होंने शाश्वत आत्मा के द्वारा निर्दोष बलि के रूप में ईश्वर को अर्पित किया, हमारे अन्तःकरण को पापों से क्यों नहीं शुद्ध करेगा और हमें जीवन्त ईश्वर की सेवा के योग्य बनायेगा?

15) मसीह पहले विधान के समय किये हुए अपराधों की क्षमा के लिए मर गये हैं और इस प्रकार वह एक नये विधान के मध्यस्थ हैं। ईश्वर जिन्हें बुलाते हैं, वे अब उसकी प्रतिज्ञा के अनुसार अनन्त काल तक बनी रहने वाली विरासत प्राप्त करते हैं।

📒 सुसमाचार : सन्त मारकुस का सुसमाचार 14:12-16,22-26

12) बेख़मीर रोटी के पहले दिन, जब पास्का के मेमने की बलि चढ़ायी जाती है, शिष्यों ने ईसा से कहा, ’’आप क्या चाहते हैं? हम कहाँ जा कर आपके लिए पास्का भोज की तैयारी करें?’’

13) ईसा ने दो शिष्यों को यह कहते हुए भेजा, ’’शहर जाओ। तुम्हें पानी का घड़ा लिये एक पुरुष मिलेगा। उसके पीछे-पीछे चलो।

14) और जिस घर में वह प्रवेश करे, उस घर के स्वामी से यह कहो, ’गुरुवर कहते हैं- मेरे लिए अतिथिशाला कहाँ हैं, जहाँ मैं अपने शिष्यों के साथ पास्का का भोजन करूँ?’

15) और वह तुम्हें ऊपर सजा-सजाया बड़ा कमरा दिखा देगा वहीं हम लोगों के लिए तैयार करो।’’

16) शिष्य चल पड़े। ईसा ने जैसा कहा था, उन्होंने शहर पहुँच कर सब कुछ वैसा ही पाया और पास्का-भोज की तैयारी कर ली।

22) उनके भोजन करते समय ईसा ने रोटी ले ली, और आशिष की प्रार्थना पढ़ने के बाद उसे तोड़ा और यह कहते हुए शिष्यों को दिया, ’’ले लो, यह मेरा शरीर है’’।

23) तब उन्होंने प्याला ले कर धन्यवाद की प्रार्थना पढ़ी और उसे शिष्यों को दिया और सब ने उस में से पीया।

24) ईसा ने उन से कहा, ’’यह मेरा रक्त है, विधान का रक्त, जो बहुतों के लिए बहाया जा रहा है।

25) मैं तुम से यह कहता हूँ- जब तक मैं ईश्वर के राज्य में नवीन रस न पी लूँ, तब तक मैं दाख का रस फिर नहीं पिऊँगा।’’

26) भजन गाने के बाद वे जैतून पहाड़ चल दिये।

📚 मनन-चिंतन

येसु सारी मानवजाति को मुक्ति देने के लिए आए थे। पिता ने, मानवता के प्रति अपने प्रेम से, अपने इकलौते पुत्र येसु को दुनिया में भेजा, ताकि वह स्वयं का बलिदान दे, मानवता को मुक्ति दे सकें। येसु ने यूखरिस्तीय संस्कार की स्थापना करते हुए मृत्यु को प्राप्त किया। यूखरिस्त में वह हमें अपना शरीर और रक्त देते हैं। उन्होंने इस संस्कार की स्थापना करने के लिए मृत्यु को गले लगाया। वह हमारे प्रति प्रेम से मरने को तैयार थे। यूखरिस्त ईश्वर के प्रेम का संस्कार है। यूखरिस्त ईश्वर के प्रेम का आत्म-उपहार है। येसु हमें बताते हैं कि हमें एक दूसरे से प्रेम करना चाहिए जैसे उन्होंने हमसे किया और वह यूखरिस्त में हमसे प्रेम करते रहते हैं। परमप्रसाद मंत हम इस प्रेम के संस्कार को प्राप्त करते हैं। हमें उसी तीव्रता से एक दूसरे से प्रेम करने का आह्वान किया जाता है। संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें ने अपने उद्बोधन ’साक्रमेन्तुम कारितातिस (नंबर 1) में कहते हैं, “प्रेम का संस्कार, पवित्र यूखरिस्त वह उपहार है जिसमें येसु मसीह स्वयं को हमें देते हैं। इस प्रकार वह हमारे लिए, हर एक पुरुष और महिला के लिए, ईश्वर के अनंत प्रेम को प्रकट करते हैं।” आइए हम यूखरिस्त से एक दूसरे से प्रेम करना सीखें।





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