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गुरुवार, 07 अक्टूबर, 2021

 गुरुवार, 07 अक्टूबर, 2021

वर्ष का सताईसवाँ सामान्य सप्ताह

धन्य कुँवारी मरियम माला की महारानी : स्मृति

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पहला पाठ : प्रेरित-चरित 1:12-14

12) प्रेरित जैतून नामक पहाड़ से येरुसालेम लौटे। यह पहाड़ येरुसालेम के निकट, विश्राम-दिवस की यात्रा की दूरी पर है।


13) वहाँ पहुँच कर वे अटारी पर चढ़े, जहाँ वे ठहरे हुए थे। वे थे-पेत्रुस तथा योहन, याकूब तथा सिमोन, जो उत्साही कहलाता था और याकूब का पुत्र यूदस।


14) ये सब एकहृदय हो कर नारियों, ईसा की माता मरियम तथा उनके भाइयों के साथ प्रार्थना में लगे रहते थे।


सुसमाचार : सन्त लूकस 01:26-38

26) छठे महीने स्वर्गदूत गब्रिएल, ईश्वर की ओर से, गलीलिया के नाजरेत नामक नगर में एक कुँवारी के पास भेजा गया,


27) जिसकी मँगनी दाऊद के घराने के यूसुफ नामक पुरुष से हुई थी, और उस कुँवारी का नाम था मरियम।


29) वह इन शब्दों से घबरा गयी और मन में सोचती रही कि इस प्रणाम का अभिप्राय क्या है।


30) तब स्वर्गदूत ने उस से कहा, ’’मरियम! डरिए नहीं। आप को ईश्वर की कृपा प्राप्त है।


31) देखिए, आप गर्भवती होंगी, पुत्र प्रसव करेंगी और उनका नाम ईसा रखेंगी।


32) वे महान् होंगे और सर्वोच्च प्रभु के पुत्र कहलायेंगे। प्रभु-ईश्वर उन्हें उनके पिता दाऊद का सिंहासन प्रदान करेगा,


33) वे याकूब के घराने पर सदा-सर्वदा राज्य करेंगे और उनके राज्य का अन्त नहीं होगा।’’


34) पर मरियम ने स्वर्गदूत से कहा, ’’यह कैसे हो सकता है? मेरा तो पुरुष से संसर्ग नहीं है।’’


35) स्वर्गदूत ने उत्तर दिया, ’’पवित्र आत्मा आप पर उतरेगा और सर्वोच्च प्रभु की शक्ति की छाया आप पर पड़ेगी। इसलिए जो आप से उत्पन्न होंगे, वे पवित्र होंगे और ईश्वर के पुत्र कहलायेंगे।


36) देखिए, बुढ़ापे में आपकी कुटुम्बिनी एलीज़बेथ के भी पुत्र होने वाला है। अब उसका, जो बाँझ कहलाती थी, छठा महीना हो रहा है;


37) क्योंकि ईश्वर के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है।’’


38) मरियम ने कहा, ’’देखिए, मैं प्रभु की दासी हूँ। आपका कथन मुझ में पूरा हो जाये।’’ और स्वर्गदूत उसके पास से चला गया।


📚 मनन-चिंतन

रोज़री की माता का पर्व कलीसिया के सबसे प्रेरक पर्वों में से एक है। यह तुरंत हमारे विचार को माता मरियम और उनकी सबसे लोकप्रिय आम प्रार्थना माला विनती की ओर ले जाता है। पर्व को इतना लोकप्रिय और शक्तिशाली बनाने के लिए इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। 7 अक्टूबर 1571 को एक समूह की सेना ने तुर्की की नाभि सेना को हराया था। सन्त पापा पायस पान्चवे ने जीत का श्रेय धन्य कुंवारी मरियम की मध्यस्था को दिया, जिसे युद्ध के दिन पूरे यूरोप में माला विनती करने के अभियान के माध्यम से आमंत्रित किया गया था। यह ख्रिस्तीय देशों की एक ऐतिहासिक जीत थी क्योंकि तुर्की साम्राज्य ख्रिस्तीय दुनिया विशेषकर यूरोप के लिए खतरा था। यदि तुर्की सेना को युद्ध जीतती, तो यूरोप का सांस्कृतिक, धार्मिक चेहरा पहले जैसा नहीं होता। तब से, माला विनती के माध्यम से मरियम की भक्ति दूर-दूर तक बढ़ी है। लोगों ने ईश्वर की शक्ति का अनुभव किया है और रोजरी की माता मरियम के माध्यम से चमत्कारी अनुग्रह प्राप्त किया है।



📚 REFLECTION


The feast of Our Lady of Rosary is one of the most inspiring feasts in the church. It immediately takes our thought to blessed Mother Mary and the most common prayer Rosary. The historical background plays an important role for the feast to be so popular and powerful. It was on 7th October 1571 that the army of a league defeated the Turkey navel army. Pope St. Pius V attributed the victory to the intercession of the Blessed Virgin Mary, who was invoked on the day of the battle through a campaign to pray the Rosary throughout Europe. It was a landmark victory of the Christian countries as the Turkey empire was threatening the Christian world especially Europe. If the turkey forces were to win the battle, then the cultural, religious face of Europe would not have been the same.


Since then, the devotion to Mary through the Rosary has grown far and wide. People have experienced the power of God and obtained miraculous favors through the intercession of Our Lady of Rosary



मनन-चिंतन - 2

आज कलीसिया माला-विनती की माता मरिया का त्योहार मनाती है। माला-विनती पवित्र वचन पर मनन-चिंतन की प्रार्थना है। माला-विनती में हम ’प्रणाम मरिया” प्रार्थना बार-बार दोहराते हैं। “प्रणाम मरिया, कृपापूर्ण, प्रभु आपके साथ हैं” - यह लूकस 1:28 का पवित्र वचन है। प्रभु का दूत प्रभु का सन्देश लेकर आता है। अगर वह माता मरियम को प्रणाम करता है, तो वह प्रभु के आदेश के अनुसार ही करता है। अगर वह कहता है कि आप कृपापूर्ण है और प्रभु आपके साथ है, तो वह भी प्रभु की प्रेरणा से ही कहता है। “आप नारियों में धन्य हैं और धन्य हैं आप के गर्भ का फल येसु” – यह लूकस 1:42 का एलिज़बेथ द्वारा घोषित पवित्र वचन है। पवित्र वचन कहता है कि एलिज़बेथ पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होकर ऊँचे स्वर से बोल उठी (देखें लूकस 1:42)। ’प्रणाम मरिया’ प्रार्थना के दूसरे भाग में हम माता मरियम को ‘ईश्वर की माँ’ कह कर उनसे हम पापियों के लिए अब और हमारी मृत्यु के समय प्रार्थना करने की याचना करते हैं। माता मरियम एक ही समय पिता ईश्वर की बेटी हैं, पुत्र ईश्वर की माता हैं और पवित्र आत्मा की दुल्हन हैं। उनका बेटा येसु ईश्वर हैं, इसलिए येसु की माता होने के कारण उन्हें हम ’ईश्वर की माता’ कहते हैं। लूकस 1:43 में एलिज़बेथ उन्हें “मेरे प्रभु की माता” कहती हैं। परम्परा के अनुसार प्रभु येसु के सार्वजनिक कार्यों के शुरू होने से पहले ही संत यूसुफ़ की मृत्यु हुयी थी। प्रभु येसु की मृत्यु के समय माता मरियम क्रूस के नीचे खडी थी। संत यूसुफ़ और प्रभु येसु की मृत्यु के समय उपस्थित माता मरियम से ही हम अब और हमारी मृत्यु के समय हमारे लिए प्रार्थना करने की याचना करते हैं। इस प्रकार यह प्रार्थना ईशवचन तथा मुक्ति के रहस्यों का मनन-ध्यान है।


Today the Church celebrates the Feast of Our Lady of the Rosary. Rosary is a prayer based on the meditation of the Word of God. During the rosary we repeatedly recite ‘Hail Mary’. “Hail Mary, Full of Grace, the Lord is with you” – these are words from Lk 1:28. The angel of the Lord brings the message of the Lord to Mary. It is at the instruction of the Lord that the angel greets Mary in these words. It is at the inspiration of the Lord that the angel describes her as ‘full of grace’. “Blessed are you among women and blessed is the fruit of your womb Jesus” – these are the Word of the Lord uttered by Elizabeth. The Bible says, “And Elizabeth was filled with the Holy Spirit, and exclaimed with a loud cry” (Lk 1:42). These are, therefore, words inspired by the Spirit of the Lord. In the second part of the prayer we, addressing Mary as Mother of God, beg her to pray for us now and at the hour of our death. Jesus is God and therefore Jesus’ mother is Mother of God. Our Lady is at the same time the daughter of God the Father, mother of God the Son and the spouse of the Holy Spirit. In Lk 1:43 Elizabeth calls her ‘Mother of my Lord’. Thus this prayer is completely a meditation of the inspired Word of God and of the mysteries of our salvation. Who can pray for us now at the hour of our death better than Mary who not only lived with Jesus and Joseph, her husband, but also assisted them at their death?


✍ -Br Biniush Topno




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Praise the Lord!