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मंगलवार, 10 अगस्त, 2021

 

मंगलवार, 10 अगस्त, 2021

वर्ष का उन्नीसवाँ सामान्य सप्ताह

संत लौरेंस (उपयाजक और शहीद) – पर्व

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पहला पाठ : 2 कुरिन्थियों 9:6-10



6) इस बात का ध्यान रखें कि जो कम बोता है, वह कम लुनता है और जो अधिक बोता है, वह अधिक लुनता है।

7) हर एक ने अपने मन में जिनता निश्चित किया है, उतना ही दे। वह अनिच्छा से अथवा लाचारी से ऐसा न करे, क्योंकि ‘‘ईश्वर प्रसन्नता से देने वाले को प्यार करता है’’।

8) ईश्वर आप लोगों को प्रचुर मात्रा में हर प्रकार का वरदान देने में समर्थ है, जिससे आप को कभी किसी तरह की कोई कमी नहीं हो, बल्कि हर भले काम के लिए चन्दा देने के लिए भी बहुत कुछ बच जाये।

9) धर्मग्रन्थ में लिखा है- उसने उदारतापूर्वक दरिद्रों को दान दिया है, उसकी धार्मिकता सदा बनी रहती है।

10) जो बोने वाले को बीज और खाने वाले को भोजन देता है, वह आप को बोने के लिए बीज देगा, उसे बढ़ायेगा और आपकी उदारता की अच्छी फसल उत्पन्न करेगा।



सुसमाचार :योहन 12:24-26



24) मैं तुम लोगो से यह कहता हूँ- जब तक गेंहूँ का दाना मिटटी में गिर कर नहीं मर जाता, तब तक वह अकेला ही रहता है; परंतु यदि वह मर जाता है, तो बहुत फल देता है।

25) जो अपने जीवन को प्यार करता है, वह उसका सर्वनाश करता है और जो इस संसार में अपने जीवन से बैर करता है, वह उसे अनंत जीवन के लिये सुरक्षित रखता है।

26) यदि कोई मेरी सेवा करना चाहता है तो वह मेरा अनुसरण करे। जहाँ मैं हूँ वहीं मेरा सेवक भी होगा। जो मेरी सेवा करेगा, मेरा पिता उस को सम्मान प्रदान करेगा।



📚 मनन-चिंतन



गेहूँ के दाने को फल पैदा करने के लिए सिर्फ मरने से काम नहीं चलेगा। इसे 'पृथ्वी में गिरना' चाहिए, मिटटी में गिरना चाहिए। जहाँ से उसे एक नए जीवन की शुरुआत के लिए पर्याप्त उर्वरता, और खनिज पदार्थ प्राप्त होंगे। हम भी पाने जीवन में अपने दम पर कुछ हासिल नहीं कर पाएंगे। हमें उस पोषण की आवश्यकता है जो येसु प्रदान हमें करते है, क्योंकि वही हमारा जीवन है। "मार्ग सत्य और जीवन मैं हूँ। "

येसु यहां कहते हैं कि 'सेवा करना' और 'अनुसरण करना' एक ही बात है। यह हम पर निर्भर नहीं करता कि हम उनकी सेवा कैसे करें या कहाँ करें। हमें पहले उनका अनुसरण करना चाहिए और उन्हें हमें उस स्थान तक ले जाने देना चाहिए जहां वे सेवा या सेवकाई के लिए हमें ले जाना चाहते हैं। एक शिष्य यह नहीं कह सकता, 'मैंने इसे अपने तरीके से किया!' नहीं शिष्य यदि अपने तरीके से ही काम करे और अपना जीवन जीए तो वह शिष्य नहीं अपनी मर्ज़ी का मालिक है।



📚 REFLECTION



It will not do for the grain of wheat just to die in order to produce fruit. It must ‘fall into the earth’. We will achieve nothing on our own. We need the nourishment which Jesus provides, for he is our life. "I am the way, the truth and the life."

Jesus says here that ‘serving’ and ‘following’ him are the same thing. It is not for us to choose how or where to serve him. We must follow first and let him lead us to where he wants us to serve. A disciple cannot say, ‘I did it my way!’ One who does things his way, cannot be called a disciple for he is the master of his own will.


 -Br Biniush topno


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