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गुरुवार, 16 सितम्बर, 2021 वर्ष का चौबीसवाँ सामान्य सप्ताह

 

गुरुवार, 16 सितम्बर, 2021

वर्ष का चौबीसवाँ सामान्य सप्ताह

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पहला पाठ : 1तिमथी 4:12-16.


12) तुम्हारी कम उम्र के कारण कोई तुम्हारा तिरस्कार न करे। तुम वचन, कर्म, प्रेम, विश्वास और शुद्धता में विश्वासियों के आदर्श बनो।

13) मेरे आने तक धर्मग्रन्थ का पाठ करने और प्रवचन तथा शिक्षा देने में लगे रहो।

14) उस कृपादान की उपेक्षा मत करो, जो तुम में विद्यमान है और तुम्हें, भविष्यवाणी के अनुसार, अध्यक्ष-समुदाय के हस्तारोपण के समय प्राप्त हो गया है।

15) इन बातों का ध्यान रखों और इन में पूर्ण रूप से लीन रहो, जिससे सब लोग तुम्हारी उन्नति देख सकें।

16) तुम इन बातों में दृढ़ बने रहो। अपने तथा अपनी शिक्षा के विषय में सावधान रहो। ऐसा करने से तुम अपनी तथा अपने श्रोताओं की मुक्ति का कारण बनोगे।



सुसमाचार : सन्त लूकस 7:36-50

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36) किसी फ़रीसी ने ईसा को अपने यहाँ भोजन करने का निमन्त्रण दिया। वे उस फ़रीसी के घर आ कर भोजन करने बैठे।

37) नगर की एक पापिनी स्त्री को यह पता चला कि ईसा फ़रीसी के यहाँ भोजन कर रहे हैं। वह संगमरमर के पात्र में इत्र ले कर आयी

38) और रोती हुई ईसा के चरणों के पास खड़ी हो गयी। उसके आँसू उनके चरण भिगोने लगे, इसलिए उसने उन्हें अपने केशों से पोंछ लिया और उनके चरणो को चूम-चूम कर उन पर इत्र लगाया।

39) जिस फ़रीसी ने ईसा को निमन्त्रण दिया था, उसने यह देख कर मन-ही-मन कहा, "यदि वह आदमी नबी होता, तो जरूर जाना जाता कि जो स्त्री इसे छू रही है, वह कौन और कैसी है-वह तो पापिनी है"।

40) इस पर ईसा ने उस से कहा, "सिमोन, मुझे तुम से कुछ कहना है"। उसने उत्तर दिया, "गुरूवर! कहिए"।

41) "किसी महाजन के दो कर्जदार थे। एक पाँच सौ दीनार का ऋणी था और दूसरा, पचास का।

42) उनके पास कर्ज अदा करने के लिए कुछ नहीं था, इसलिए महाजन ने दोनों को माफ़ कर दिया। उन दोनों में से कौन उसे अधिक प्यार करेगा?"

43) सिमोन ने उत्तर दिया, "मेरी समझ में तो वही, जिसका अधिक ऋण माफ हुआ"। ईसा ने उस से कहा, "तुम्हारा निर्णय सही है।"।

44) तब उन्होंने उस स्त्री की ओर मुड़ कर सिमोन से कहा, "इस स्त्री को देखते हो? मैं तुम्हारे घर आया, तुमने मुझे पैर धोने के लिए पानी नहीं दिया; पर इसने मेरे पैर अपने आँसुओं से धोये और अपने केशों से पोंछे।

45) तुमने मेरा चुम्बन नहीं किया, परन्तु यह जब से भीतर आयी है, मेरे पैर चूमती रही है।

46) तुमने मेरे सिर में तेल नहीं लगाया, पर इसने मेरे पैरों पर इत्र लगाया है।

47) इसलिए मैं तुम से कहता हूँ, इसके बहुत-से पाप क्षमा हो गये हैं, क्योंकि इसने बहुत प्यार दिखाया है। पर जिसे कम क्षमा किया गया, वह कम प्यार दिखाता है।"

48) तब ईसा ने उस स्त्री से कहा, "तुम्हारे पाप क्षमा हो गये हैं"।

49) साथ भोजन करने वाले मन-ही-मन कहने लगे, "यह कौन है जो पापों को भी क्षमा करता है?"

50) पर ईसा ने उस स्त्री से कहा, "तुम्हारे विश्वास ने तुम्हारा उद्धार किया है। शान्ति प्राप्त कर जाओ।"



📚 मनन-चिंतन



जब हम पाप करते है तो हम न केवल अपने लिए दुख लाते है परंतु हम तीन रिश्तों में दरार भी ले आते है। वह है स्वयं और ईश्वर के बीच में रिश्ता, स्वयं और दूसरे व्यक्ति के बीच में रिश्ता और अपने स्वयं के बीच में रिश्ता। एक बार यह रिश्ते में दरार आ जाये ंतो यह इतने आसानी से नहीं जुड़ता। यह तभी जुड़ सकता है जब हमारे पापों को क्षमा मिल जाये।

पापों को क्षमा करने का अधिकार येसु के पास है जिसे वे अर्ध्दांगरोगी की घटना में स्पष्ट भी करते है, ‘‘किन्तु इसलिए कि तुम लोग यह जान लो कि मानव पुत्र को पृथ्वी पर पाप क्षमा करने का अधिकार मिला है - तब वे अर्ध्दांगरोगी से बोले - ‘उठो और अपनी खाट उठा कर घर जाओ’।’’ (मत्ती 9ः6)।

आज के सुसमाचार में प्रभु येसु एक पापिनी स्त्री के पापों को क्षमा करते है जो अपने ऑंसू से येसु के चरणों को भिंगोती है और अपने केशों से पोंछने के बाद उनके चरणों को चूमकर और उन पर इत्र लगाती है। उसका इस प्रकार का व्यवहार अपने पापों के प्रति पश्च्ताप को दर्शाता है। एक सच्चा पश्चाताप हमारे जीवन में परिवर्तन ला सकता है। सबसे पहले तो हमें प्रभु येसु की क्षमा प्राप्त होती है और हमारे तीनों रिश्तों को जोड़ती है जिससे हमारे अंदर खोया हुआ आनंद और शांति फिर से लौट आता है। हम जब कभी भी येसु के पास जाये एक पश्चातापी हृदय लेकर येसु के पास जायें जिससे हम उसके क्षमा और आशिषांे को अपने जीवन में ग्रहण कर सकें।



📚 REFLECTION



When we sin then we not only bring sorrows to ourselves but also bring the breakage in three relationships; and that is relationship between oneself and God, relationship between oneself and others and relationship between oneself. Once the breakage comes in this relationship it is not easy to restore it. It can be restored only when we receive forgiveness or absolution for our sins.

Jesus has the authority to forgive sins which he makes it clear in the incident of paralyzed man where Jesus says, “But I want you to know that the Son of Man has authority on earth to forgive sins. So he said to the paralyzed man, ‘Get up, take your mat and go home.’”

In today’s gospel Jesus forgives the sins of a woman who bathe his feet with her tears and drying them with her hair continued kissing his feet and anointed them with the ointment. This kind of behavior of hers demonstrates the true repentance for her sins. A true repentance can bring change in our lives. First thing what we receive is forgiveness from Jesus which restores the three relationships which brings back the lost inner peace and joy back to us. Whenever we go to Jesus we must always go with a repentant heart so that we can receive forgiveness and graces in our lives.


 -Br Biniush Topno


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Praise the Lord!