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शुक्रवार, 16 जुलाई, 2021 वर्ष का पन्द्रहवाँ सामान्य सप्ताह माउन्ट कार्मल की माता मरियम

 

शुक्रवार, 16 जुलाई, 2021

वर्ष का पन्द्रहवाँ सामान्य सप्ताह

माउन्ट कार्मल की माता मरियम



पहला पाठ :निर्गमन 11:10-12:14


10) मूसा और हारून ने फिराउन के सामने ये सब चमत्कार दिखाये। परन्तु प्रभु ने फिराउन का हृदय कठोर कर दिया था। उसने इस्राएलियों को अपने देश से जाने की आज्ञा नहीं दी।

1) प्रभु ने मिस्र देश में मूसा और हारून से कहा,

2) ''यह तुम्हारे लिए आदिमास होगा; तुम इसे वर्ष का पहला महीना मान लो।

3) इस्राएल के सारे समुदाय को यह आदेश दो - इस महीने के दसवें दिन हर एक परिवार एक एक मेमना तैयार रखेगा।

4) यदि मेमना खाने के लिए किसी परिवार में कम लोग हों, तो जरूरत के अनुसार पास वाले घर से लोगों को बुलाओ। खाने वालों की संख्या निश्चित करने में हर एक की खाने की रुचि का ध्यान रखो।

5) उस मेमने में कोई दोश न हो। वह नर हो और एक साल का। वह भेड़ा हो अथवा बकरा।

6) महीने के दसवें दिन तक उसे रख लो। शाम को सब इस्राएली उसका वध करेंगे।

7) जिन घरों में मेमना खाया जायेगा, दरवाजों की चौखट पर उसका लोहू पोत दिया जाये।

8) उसी रात बेखमीर रोटी और कड़वे साग के साथ मेमने का भूना हुआ मांस खाया जायेगा।

9) इस में से कच्चा या उबला हुआ कुछ मत खाओं, बल्कि सिर, पैरों और अँतड़ियों के साथ पूरे को आग में भून कर खाओं।

10) अगले दिन के लिए कुछ भी नहीं रखा जायेगा। जो कुछ बच गया हो, उसे भोर के पहले ही जला दोगे।

11) तुम लोग चप्पल पहन कर, कमर कस कर तथा हाथ में डण्डा लिये खाओगे। तुम जल्दी-जल्दी खाओगे, क्योंकि यह प्रभु का पास्का है।

12) उसी रात मैं, प्रभु मिस्र देश का परिभ्रमण करूँगा, मिस्र देश में मनुष्यों और पशुओं के सभी पहलौठे बच्चों को मार डालूँगा और मिस्र के सभी देवताओं को भी दण्ड दूँगा।

13) तुम लोहू पोत कर दिखा दोगे कि तुम किन घरों में रहते हो। वह लोहू देख कर मैं तुम लोगों को छोड़ दूँगा, इस तरह जब मैं मिस्र देश को दण्ड दूँगा, तुम विपत्ति से बच जाओगे।

14) तुम उस दिन का स्मरण रखोगे और उसे प्रभु के आदर में पर्व के रूप में मनाओगे। तुम उसे सभी पीढ़ियों के लिए अनन्त काल तक पर्व घोषित करोगे।


सुसमाचार : मत्ती 12:1-8


1) ईसा किसी विश्राम के दिन गेहूँ के खेतों से हो कर जा रहे थे। उनके शिष्यों को भूख लगी और वे बालें तोड़-तोड़ कर खाने लगे।

2) यह देख कर फ़रीसियों ने ईसा से कहा, ’’देखिए, जो काम विश्राम के दिन मना है, आपके शिष्य वही कर रहे हैं’’।

3) ईसा ने उन से कहा, ’’क्या तुम लोगों ने यह नहीं पढ़ा कि जब दाऊद और उनके साथियों को भूख लगी, तो दाऊद ने क्या किया था?

4) उन्होंने ईश-मन्दिर में जा कर भेंट की रोटियाँ खायीं। याजकों को छोड़ न तो उन को उन्हें खाने की आज्ञा थी और न उनके साथियों को।

5) अथवा क्या तुम लोगों ने संहिता में यह नहीं पढ़ा कि याजक विश्राम के दिन का नियम तोड़ते तो हैं, पर दोषी नहीं होते?

6) मैं तुम से कहता हूँ- यहाँ वह है, जो मन्दिर से भी महान् है।

7) मैं बलिदान नहीं, बल्कि दया चाहता हूँ- यदि तुम लोगों ने इसका अर्थ समझ लिया होता, तो निर्दोषों को दोषी नहीं ठहराया होता;

8) क्योंकि मानव पुत्र विश्राम के दिन का स्वामी है।’’


📚 मनन-चिंतन


आज माता कलीसिया कारमेल पर्वत की माता मरियम का पर्व मनाती है. यह त्यौहार कारमेल धर्मसमाजों के लिए प्रमुख पर्व है, इसलिए आज हम विशेष रूप से उन्हें याद करें. इस त्यौहार की स्थापना पहले कारमेल की धर्मसमाजों के लिए सन 1332 में हुई थी, बाद में सन्त पापा बेनेडिक्ट 13वें ने 1726 में इसे पूरी कलीसिया के लिए पर्व घोषित किया. कहा जाता है कि माता मरियम ने 16 जुलाई 1251 में सन्त साइमन स्टॉक को दर्शन दिया और उसे एक स्कैपुलर (जिसे गले में पहनते हैं) दिया और वादा किया कि जो भी व्यक्ति इसे पहने हुए मृत्यु को प्राप्त करेगा वह नरक की आग में दण्ड से बच जायेगा. आज के दिन कारमेल की धर्म बहनें और पुरोहित इन स्कैपुलर को लोगों में बाँटते हैं. आखिर माता मरियम को यह आत्मविश्वास और अधिकार कहाँ से मिला कि वो इस तरह का वादा करती हैं? हम माता मरियम की प्रार्थना में भी उनसे 'अब और हमारे मरने के समय' प्रार्थना करने के लिए कहते हैं.

आज के सुसमाचार में हम देखते हैं कि प्रभु येसु की माता और उनके भाई उनसे मिलने आते हैं, लेकिन प्रभु येसु उनके सगे-सम्बन्धी बनने के लिए एक नया मापदण्ड देते हैं, एक नयी परिभाषा देते हैं, और वह यह है, कि जो कोई स्वर्गीय पिता की इच्छा पूरी करता है, वही है मेरी माता, मेरी बहन और मेरे भाई. माता मरियम का प्रभु येसु के साथ खून का रिश्ता था, लेकिन उससे भी बढ़कर ईश्वर के मुक्ति कार्य में सबसे बड़े मानवीय सहयोग का रिश्ता भी था. माता मरियम ने अपने जीवन में स्वर्गीय पिता की इच्छा पूरी की इसलिए वह उनकी सदा-सदा के लिए माँ बनीं. ईश्वर की इच्छा पूरी करने के लिए हमें बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है, कभी-कभी सारी दुनिया से भिड़ जाना पड़ता है. माता मरियम के ये शब्द "देखिये मैं प्रभु की दासी हूँ, आपका कथन मुझमें पूरा हो" हमारे लिए सदैव प्रेरणा स्रोत बने रहें. आमेन.



📚 REFLECTION



Today Mother Church celebrates the feast of Our Lady of Mount Carmel. This is the principal feast the Carmelite Order so let us bring them before the Lord in a special way. This Feast was first instituted for the Carmelites in 1332 and later on it was extended to the whole Church by Pope Benedict XIII in 1726. It is said that on 16th July 1251 Mother Mary appeared to St. Simon Stock and gave him the scapular and promised him that he who dies in this will not suffer eternal fire. On this day Carmel sisters and fathers distribute these scapulars among the people. What gives Mother Mary the confidence and authority to make such a promise? Even in the Hail Mary prayer we implore her prayers ‘now and at the hour of our death.’

In the Gospel today we see that mother and brothers of Jesus come to meet him. But Jesus gives us a new definition and criteria of being his kiths and kins. That criteria of being in the family is to do the will of the Heavenly Father. Whoever does so is the mother, brothers or sisters of Jesus. Mother Mary and Jesus had a bond of blood relationship, but more than there was relationship of greatest contribution in the salvific plan of God. Mother Mary was ready and always willing to do the will of God in her life, that’s why she became the mother of Jesus. We have to be ready to pay heavy price if we desire to do the will of God, we may have to face the whole world sometimes. May the words of Our Heavenly Mother “Behold the handmaid of the Lord, let it be with me according to your word” be our own words. Amen.


 -Fr. Johnson B.



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