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मंगलवार, 02 नवंबर, 2021

 

मंगलवार, 02 नवंबर, 2021

सब मृतविश्वासियों का स्मरणोत्सव

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पहला मिस्सा

पहला पाठ : योब का ग्रन्थ 19:1,23-27


1) अय्यूब ने उत्तर देते हुए कहाः

23 (23-24) ओह! कौन मेरे ये शब्द लिखेगा? कौन इन्हें लोहे की छेनी और शीशे से किसी स्मारक पर अंकित करेगा? इन्हें सदा के लिए चट्टान पर उत्कीर्ण करेगा?

25) मैं यह जानता हूँ कि मेरा रक्षक जीवित हैं और वह अंत में पृथ्वी पर खड़ा हो जायेगा।

26) जब मैं जागूँगा, मैं खड़ा हो जाऊँगा, तब मैं इसी शरीर में ईश्वर के दर्शन करूँगा।

27) मैं स्वयं उसके दर्शन करूँगा, मेरी ही आँखे उसे देखेंगी। मेरा हृदय उसके दर्शनों के लिए तरसता है।


अथवा -पहला पाठ : रोमियों 5:5-11


5) आशा व्यर्थ नहीं होती, क्योंकि ईश्वर ने हमें पवित्र आत्मा प्रदान किया है और उसके द्वारा ही ईश्वर का प्रेम हमारे हृदयों में उमड़ पड़ा है।

6) हम निस्सहाय ही थे, जब मसीह निर्धारित समय पर विधर्मियों के लिए मर गये।

7) धार्मिक मनुष्य के लिए शायद ही कोई अपने प्राण अर्पित करे। फिर भी हो सकता है कि भले मनुष्य के लिए कोई मरने को तैयार हो जाये,

8) किन्तु हम पापी ही थे, जब मसीह हमारे लिए मर गये थे। इस से ईश्वर ने हमारे प्रति अपने प्रेम का प्रमाण दिया है।

9) जब हम मसीह के रक्त के कारण धार्मिक माने गये, तो हम निश्चिय ही मसीह द्वारा ईश्वर के दण्ड से बच जायेंगे।

10) हम शत्रु ही थे, जब ईश्वर के साथ हमारा मेल उसके पुत्र की मृत्यु द्वारा हो गया था और उसके साथ मेल हो जाने के बाद उसके पुत्र के जीवन द्वारा निश्चय ही हमारा उद्धार होगा।

11) इतना ही नहीं, अब तो हमारे प्रभु ईसा मसीह द्वारा ईश्वर से हमारा मेल हो गया है; इसलिए हम उन्हीं के द्वारा ईश्वर पर भरोसा रख कर आनन्दित हैं।


सुसमाचार : योहन 6:37-40


37) पिता जिन्हें मुझ को सौंप देता है, वे सब मेरे पास आयेंगे और जो मेरे पास आता है, मैं उसे कभी नहीं ठुकराऊँगा ;

38) क्योंकि मैं अपनी इच्छा नहीं, बल्कि जिसने मुझे भेजा, उसकी इच्छा पूरी करने के लिए स्वर्ग से उतरा हूँ।

39) जिसने मुझे भेजा, उसकी इच्छा यह है कि जिन्हें उसने मुझे सौंपा है, मैं उन में से एक का भी सर्वनाश न होने दूँ, बल्कि उन सब को अन्तिम दिन पुनर्जीवित कर दूँ।

40) मेरे पिता की इच्छा यह है कि जो पुत्र को पहचान कर उस में विश्वास करता है, उसे अनन्द जीवन प्राप्त हो। मैं उसे अन्तिम दिन पुनर्जीवित कर दूँगा।"


दूसरा मिस्सा

पहला पाठ : इसायाह 25:6-9


6) विश्वमण्डल का प्रभु इस प्रर्वत पर सब राष्ट्रों के लिए एक भोज का प्रबन्ध करेगाः उस में रसदार मांस परोसा जायेगा और पुरानी तथा बढ़िया अंगूरी।

7) वह इस पर्वत पर से सब लोगों तथा सब राष्ट्रों के लिए कफ़न और शोक के वस्त्र हटा देगा,

8) श्वह सदा के लिए मृत्यु समाप्त करेगा। प्रभु-ईश्वर सबों के मुख से आँसू पोंछ डालेगा। वह समस्त पृथ्वी पर से अपनी प्रजा का कलंक दूर कर देगा। प्रभु ने यह कहा है।

9) उस दिन लोग कहेंगे - “देखो! यही हमारा ईश्वर है। इसका भरोसा था। यह हमारा उद्धार करता है। यही प्रभु है, इसी पर भरोसा था। हम उल्लसित हो कर आनन्द मनायें, क्योंकि यह हमें मुक्ति प्रदान करता है।“


अथवा -पहला पाठ : रोमियों 8:14-23


14) लेकिन यदि आप आत्मा की प्रेरणा से शरीर की वासनाओें का दमन करेंगे, तो आप को जीवन प्राप्त होगा।

15) जो लोग ईश्वर के आत्मा से संचालित हैं, वे सब ईश्वर के पुत्र हैं- आप लोगों को दासों का मनोभाव नहीं मिला, जिस से प्रेरित हो कर आप फिर डरने लगें। आप लोगों को गोद लिये पुत्रों का मनोभाव मिला, जिस से प्रेरित हो कर हम पुकार कर कहते हैं, "अब्बा, हे पिता!

16) आत्मा स्वयं हमें आश्वासन देता है कि हम सचमुच ईश्वर की सन्तान हैं।

17) यदि हम उसकी सन्तान हैं, तो हम उसकी विरासत के भागी हैं-हम मसीह के साथ ईश्वर की विरासत के भागी हैं। यदि हम उनके साथ दुःख भोगते हैं, तो हम उनके साथ महिमान्वित होंगे।

18) मैं समझता हूँ कि हम में जो महिमा प्रकट होने को है, उसकी तुलना में इस समय का दुःख नगण्य है;

19) क्योंकि समस्त सृष्टि उत्कण्ठा से उस दिन की प्रतीक्षा कर रही है, जब ईश्वर के पुत्र प्रकट हो जायेंगे।

20) यह सृष्टि तो इस संसार की असारता के अधीन हो गयी है-अपनी इच्छा से नहीं, बल्कि उसकी इच्छा से, जिसने उसे अधीन बनाया है- किन्तु यह आशा भी बनी रही

21) कि वह असारता की दासता से मुक्त हो जायेगी और ईश्वर की सन्तान की महिमामय स्वतन्त्रता की सहभागी बनेगी।

22) हम जानते हैं कि समस्त सृष्टि अब तक मानो प्रसव-पीड़ा में कराहती रही है और सृष्टि ही नहीं, हम भी भीतर-ही-भीतर कराहते हैं।

23) हमें तो पवित्र आत्मा के पहले कृपा-दान मिल चुके हैं, लेकिन इस ईश्वर की सन्तान बनने की और अपने शरीर की मुक्ति की राह देख रहे हैं।


सुसमाचार : मत्ती 25:31-46


31) "जब मानव पुत्र सब स्वर्गदुतों के साथ अपनी महिमा-सहित आयेगा, तो वह अपने महिमामय सिंहासन पर विराजमान होगा

32) और सभी राष्ट्र उसके सम्मुख एकत्र किये जायेंगे। जिस तरह चरवाहा भेड़ों को बकरियों से अलग करता है, उसी तरह वह लोगों को एक दूसरे से अलग कर देगा।

33) वह भेड़ों को अपने दायें और बकरियों को अपने बायें खड़ा कर देखा।

34) "तब राजा अपने दायें के लोगों से कहेंगे, ’मेरे पिता के कृपापात्रों! आओ और उस राज्य के अधिकारी बनो, जो संसार के प्रारम्भ से तुम लोगों के लिए तैयार किया गया है;

35) क्योंकि मैं भूखा था और तुमने मुझे खिलाया; मैं प्यासा था तुमने मुझे पिलाया; मैं परदेशी था और तुमने मुझको अपने यहाँ ठहराया;

36) मैं नंगा था तुमने मुझे पहनाया; मैं बीमार था और तुम मुझ से भेंट करने आये; मैं बन्दी था और तुम मुझ से मिलने आये।’

37) इस पर धर्मी उन कहेंगे, ’प्रभु! हमने कब आप को भूखा देखा और खिलाया? कब प्यासा देखा और पिलाया?

38) हमने कब आपको परदेशी देखा और अपने यहाँ ठहराया? कब नंगा देखा और पहनाया ?

39) कब आप को बीमार या बन्दी देखा और आप से मिलने आये?"

40) राजा उन्हें यह उत्तरदेंगे, ’मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ- तुमने मेरे भाइयों में से किसी एक के लिए, चाहे वह कितना ही छोटा क्यों न हो, जो कुछ किया, वह तुमने मेरे लिए ही किया’।

41) "तब वे अपने बायें के लोगों से कहेंगे, ’शापितों! मुझ से दूर हट जाओ। उस अनन्त आग में जाओ, जो शैतान और उसके दूतों के लिए तैयार की गई है;

42) क्योंकि मैं भूखा था और तुम लोगों ने मुझे नहीं खिलाया; मैं प्यासा था और तुमने मुझे नहीं पिलाया;

43) मैं परदेशी था और तुमने मुझे अपने यहाँ नहीं ठहराया; मैं नंगा था और तुमने मुझे नहीं पहनाया; मैं बीमार और बन्दी था और तुम मुझ से नहीं मिलने आये’।

44) इस पर वे भी उन से पूछेंगे, ’प्रभु! हमने कब आप को भूखा, प्यासा, परदेशी, नंगा, बीमार या बन्दी देखा और आपकी सेवा नहीं की?"

45) तब राजा उन्हें उत्तर देंगे, ’मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ - जो कुछ तुमने मेरे छोटे-से-छोटे भाइयों में से किसी एक के लिए नहीं किया, वह तुमने मेरे लिए भी नहीं किया’।

46) और ये अनन्त दण्ड भोगने जायेंगे, परन्तु धर्मी अनन्त जीवन में प्रवेश करेंगे।"


तीसरा मिस्सा

पहला पाठ : प्रज्ञा ग्रन्थ 3:1-9


1) धर्मियों की आत्माएँ ईश्वर के हाथ में हैं। उन्हें कभी कोई कष्ट नहीं होगा।

2) मूर्ख लोगों को लगा कि वे मर गये हैं। वे उनका संसार से उठ जाना घोर विपत्ति मानते थे।

3) और यह समझते थे कि हमारे बीच से चले जाने के बाद उनका सर्वनाश हो गया है; किन्तु धर्मियों को शान्ति का निवास मिला है।

4) मनुष्यों को लगा कि विधर्मियों को दण्ड मिल रहा है, किन्तु वे अमरत्व की आशा करते थे।

5 थोड़ा कष्ट सहने के बाद उन्हें महान् पुरस्कार दिया जायेगा। ईश्वर ने उनकी परीक्षा ली और उन्हें अपने योग्य पाया है।

6) ईश्वर ने घरिया में सोने की तरह उन्हें परखा और होम-बलि की तरह उन्हें स्वीकार किया।

7) ईश्वर के आगमन के दिन वे ठूँठी के खेत में धधकती चिनगारियों की तरह चमकेंगे।

8) वे राष्ट्रों का शासन करेंगे; वे देशों पर राज्य करेंगे, किन्तु प्रभु सदा-सर्वदा उनका राजा बना रहेगा।

9) जो ईश्वर पर भरोसा रखते हैं, वे सत्य को जान जायेंगे; जो प्रेम में दृढ़ रहते हैं, वे उसके पास रहेंगे; क्योंकि जिन्हें ईश्वर ने चुना है, वे कृपा तथा दया प्राप्त करेंगे।


अथवा -पहला पाठ : प्रकाशना 21:1-7


1) तब मैंने एक नया आकाश और एक नयी पृथ्वी देखी। पुराना आकाश तथा पुरानी पृथ्वी, दोनों लुप्त हो गये थे और समुद्र भी नहीं रह गया था।

2) मैंने पवित्र नगर, नवीन येरुसालेम को ईश्वर के यहाँ से आकाश में उतरते देखा। वह अपने दुल्हे के लिए सजायी हुई दुल्हन की तरह अलंकृत था।

3) तब मुझे सिंहासन से एक गम्भीर वाणी यह कहते सुनाई पड़ी, "देखो, यह है मनुष्यों के बीच ईश्वर का निवास! वह उनके बीच निवास करेगा। वे उसकी प्रजा होंगे और ईश्वर स्वयं उनके बीच रह कर उनका अपना ईश्वर होगा।

4) वह उनकी आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा। इसके बाद न मृत्यु रहेगी, न शोक, न विलाप और न दुःख, क्योंकि पुरानी बातें बीत चुकी हैं।"

5) तब सिंहासन पर विराजमान व्यक्ति ने कहा, "मैं सब कुछ नया बना देता हूँ"।

6) इसके बाद उसने कहा, "ये बातें लिखो, क्योंकि ये विश्वासनीय और सत्य हैं"। उसने मुझ से कहा, "समाप्त हो गया है। आल्फा और ओमेगा, आदि और अन्त, मैं हूँ। मैं प्यासे को संजीवन जल के स्त्रोत से मुफ़्त में पिलाउँगा।

7) यह विजयी की विरासत है। मैं उसका ईश्वर होउँगा और वह मेरा पुत्र होगा।


सुसमाचार : मत्ती 5:1-12


(1) ईसा यह विशाल जनसमूह देखकर पहाड़ी पर चढ़े और बैठ गए। उनके शिष्य उनके पास आये।

(2) और वे यह कहते हुए उन्हें शिक्षा देने लगेः

(3) "धन्य हैं वे, जो अपने को दीन-हीन समझते हैं! स्वर्गराज्य उन्हीं का है।

(4) धन्य हैं वे जो नम्र हैं! उन्हें प्रतिज्ञात देश प्राप्त होगा।

(5) धन्य हैं वे, जो शोक करते हैं! उन्हें सान्त्वना मिलेगी।

(6) घन्य हैं, वे, जो धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं! वे तृप्त किये जायेंगे।

(7) धन्य हैं वे, जो दयालू हैं! उन पर दया की जायेगी।

(8) धन्य हैं वे, जिनका हृदय निर्मल हैं! वे ईश्वर के दर्शन करेंगे।

(9) धन्य हैं वे, जो मेल कराते हैं! वे ईश्वर के पुत्र कहलायेंगे।

(10) धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के कारण अत्याचार सहते हैं! स्वर्गराज्य उन्हीं का है।

(11) धन्य हो तुम जब लोग मेरे कारण तुम्हारा अपमान करते हैं, तुम पर अत्याचार करते हैं और तरह-तरह के झूठे दोष लगाते हैं।

(12) खुश हो और आनन्द मनाओ - स्वर्ग में तुम्हें महान् पुरस्कार प्राप्त होगा। तुम्हारे पहले के नबियों पर भी उन्होंने इसी तरह अत्याचार किया।


मनन-चिंतन - 2


आज के पाठ हमेे दिवंगत आत्माओ के लिए प्रार्थना करने के लिए और साथ ही साथ अपने जीवन और मृत्यु के विषय पर मनन् चिंतन करने के लिए आमंत्रित करते है । जो शुद्धिकरण अवस्था में है वे संत बनने/घोषित होने के मार्ग पर है इसलिए कलीसिया में दिवंगतों के लिए प्रार्थना करना एक प्राचीन प्रथा है । इसका आधार हम पढते है मक्काबियों के दूसरे ग्रन्थ 12ः45 ”इसलिए उसने (यूदस ने)े प्रायश्चित्त के बलिदान का प्रबन्ध किया, जिससे मृतक अपने पाप से मुक्त हो जाये“ । मृतकों के लिए प्रार्थना करने का प्राथमिक उद्धेश्य पापों का प्रायश्चित करना था । यह हमारा विश्वास है कि हमारी प्रार्थना और भेंट द्वारा ईश्वर शोधक अग्नि की आत्माओं पर दया दिखाएॅंगे और उनके पाप क्षमा कर उन्हें अनंत जीवन प्रदान करेंगे । आज के दिन हम भी अपने जीवन और मृत्यु पर चिंतन करें । प्रवक्ता ग्रन्ध 14ः18 में लिखा है “जिस तरह हरे पंेड के पत्तो में कुछ फूटकर निकलते और कुछ गिर जाते है उसी तरह शरीर धारियों कि पीढियों में होता है - कोेई मरती और कोई उत्पन्न होती है यह वाक्य हमें ब्रह्मांड़ के प्राकृतिक रखाव कि प्रक्रिया का स्मरण दिलाता है । एक दिन हम सबका मरना निश्चित है । हम स्वयं को उस दिन के लिए तैयार करने हेतु आज क्या कर सकते है ? आज हम एक अच्छे लक्ष्य/उद्धेश्य के साथ यात्रा कर सकते है। इस दौरान अपने प्रतिदिन जीवन में हमें छोटी-छोटी मृत्यु को बलिदानों और आत्मा रिक्तीकरण के माध्यम से अनुभव करने की आवश्यकता है । आज जब हम अपने प्रियजनो की दिवंगत आत्माओं का स्मरण कर उनके लिए प्रार्थना करते है, तो आइए हम भी भजनकार के साथ अपने लिए प्रार्थना करे, ”प्रभु ! मुझे बता कि मेरा अन्त कब होगा, मेंरे कितने दिन शेष है, जिससे मैं समॅझू कि मैं कितना क्षण भंगुर हूॅं ?“ स़्तोत्र 39ः5



REFLECTION


Today’s reading invites us to pray for the departed souls as well as to reflect about our life and death.

Those in purgatory are in the purification stage and they are saints in the making. Therefore to praying for the departed is a custom in the church. It has its base in 2Macc 12:45 where we read “Therefore he (Judas) made atonement for the dead, so that they might be delivered from their sins”. The primary purpose of praying for the dead was for the atonement of sins. It is our belief that through our prayers and offerings God will show mercy on the souls in purgatory, forgive their sins and reward them with eternal life.

We are also reminded to reflect on our life and death today. Sir. 14:18 reads “Like abundant leaves on a spreading tree that sheds some and puts forth others, so are the generations of flesh and blood; one dies and another is born”. This verse reminds us of the natural pattern and process of the universe in its maintenance.

One day all of us are sure to die. To prepare ourselves for that day is what we can do today. To journey with a good aim is what we can do today. For that we need to experience small deaths everyday of our life through sacrifices and self emptying.

As we pray for the departed souls of our beloved ones let us also pray for ourselves with the Psalmist “Lord let me know my end, and what is the measure of my days; let me know how fleeting my life is” Ps 39:4.



मनन-चिंतन - 2


आज कलीसिया सभी मृत विश्वासियों को याद करती है। मृत्यु के समय हमारा जीवन समाप्त नहीं होता बल्कि बदल जाता है। हम मृत्यु पर अमर हो जाते हैं। हमारी आत्मा सांसारिक निवास को छोड़कर स्वर्ग में चली जाती है। 1थेसलनीकियों 4: 13-20 में, संत पौलुस विश्वासियों से कहते हैं कि वे उन लोगों की तरह शोक न करें जिनकी कोई आशा नहीं है, लेकिन एक दूसरे को पुनर्जीवित प्रभु में आशा के साथ सांत्वना दें और प्रोत्साहित करें। काथलिक विश्वास के अनुसार मृत्यु पर प्रत्येक व्यक्ति विशेष न्याय (particular judgment) से गुजरता है और उसकी आत्मा की स्थिति के अनुसार कोई स्वर्ग या शोधकस्थल या नरक में जाता है। मृत्यु अनन्त जीवन का प्रवेश द्वार है। जो लोग स्वर्ग में हैं, उन्हें हमारी प्रार्थना की आवश्यकता नहीं है। जो नरक हैं उनकी मदद हमारी प्रार्थना से नहीं हो सकती। अमीर और लाज़रुस के दृष्टांत में, इब्राहीम नरक में पड़े अमीर आदमी से कहता है, “हमारे और तुम्हारे बीच एक भारी गर्त अवस्थित है; इसलिए यदि कोई तुम्हारे पास जाना भी चाहे, तो वह नहीं जा सकता और कोई भ़ी वहाँ से इस पार नहीं आ सकता” (लूकस 16:26)। जो नरक में हैं उनकी हालत अपरिवर्तनीय है। हमारी प्रार्थना केवल उन लोगों की मदद करती है जो शोधकस्थल में हैं, जो स्वर्गीय महिमा का आनंद लेने से पहले शुध्द किये जाने के समय से गुजरते हैं। चूँकि हम नहीं जानते कि कौन स्वर्ग में पहुँचा है या कौन नरक या शोधकस्थल में गया है, हम अपने सभी दिवंगत भाइयों और बहनों के लिए प्रार्थना करते रहते हैं। फिर भी हमारी प्रार्थनाएँ कभी बेकार नहीं जातीं। प्रभु प्रार्थना में हमारी उदारता और प्रेम को देखते हैं और बदले में हमें आशीर्वाद देते हैं। हम जिनके लिए प्रार्थना करते हैं अगर वे स्वर्ग में हैं, वे बदले में इश्वर के सिंहासन से सामने हमारे लिए मध्यस्थता करेंगे। हम सभी मृतविश्वासियों का स्मरणोत्सव मनाते हुए एक-दूसरे को भलाई करने के लिए प्रोत्साहित करें ताकि हम सब स्वर्ग पहुँच सकें और त्रिएकईश्वर के साथ अनन्त आनंद का अनुभव कर सकें। मृतविश्वासियों की आत्माएं ईश्वर की दया में शांति में निवास करें।



REFLECTION


Today the Church commemorates All the Faithful Departed. At death our life does not end but changes. We become immortal at death. Our soul leaves the earthly dwelling and moves to the heavenly one. In 1Thess 4:13-20, St. Paul tells the believers not to mourn like those who have no hope but to console and encourage one another with the hope in the Risen Lord. According to the Catholic faith at death each person undergoes the particular judgement and depending upon the status of one’s soul, one goes to heaven or purgatory or hell. Death is the entrance into everlasting life. Those who are in heaven do not need our prayers to assist them. Those who are hell cannot be helped by our prayers. In the parable of the rich man and Lazarus, Abraham tells the rich man in hell, “between you and us a great chasm has been fixed, so that those who might want to pass from here to you cannot do so, and no one can cross from there to us” (Lk 16:26). The condition of those who are hell is irreversible. Our prayer helps only those who are purgatory, who undergo a time of cleansing before they can enjoy the heavenly bliss. Since we do not know who has reached heaven or who has gone to hell or purgatory, we keep praying for all our departed brothers and sisters. Yet our prayers never go unrewarded. God sees our generosity and love in prayer and blesses us in return. If those for whom we pray are in heaven, they in turn will support us with their intercessions before the throne of God. As we celebrate the Commemoration of all the faithful departed, let us encourage one another to do good so as to reach heaven and enjoy the eternal bliss with the Holy Trinity.


 -Br Biniush Topno


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Praise the Lord!