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शुक्रवार, 03 सितम्बर, 2021

 

शुक्रवार, 03 सितम्बर, 2021

वर्ष का बाईसवाँ सामान्य सप्ताह

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पहला पाठ : कलोसियों 1:15-20


15) ईसा मसीह अदृश्य ईश्वर के प्रतिरूप तथा समस्त सृष्टि के पहलौठे हैं;

16) क्योंकि उन्हीं के द्वारा सब कुछ की सृष्टि हुई है। सब कुछ - चाहे वह स्वर्ग में हो या पृथ्वी पर, चाहे दृश्य हो या अदृश्य, और स्वर्गदूतों की श्रेणियां भी - सब कुछ उनके द्वारा और उनके लिए सृष्ट किया गया है।

17) वह समस्त सृष्टि के पहले से विद्यमान हैं और समस्त सृष्टि उन में ही टिकी हुई है।

18) वही शरीर अर्थात् कलीसिया के शीर्ष हैं। वही मूल कारण हैं और मृतकों में से प्रथम जी उठने वाले भी, इसलिए वह सभी बातों में सर्वश्रेष्ठ हैं।

19) ईश्वर ने चाहा कि उन में सब प्रकार की परिपूर्णता हो।

20) मसीह ने क्रूस पर जो रक्त बहाया, उसके द्वारा ईश्वर ने शान्ति की स्थापना की। इस तरह ईश्वर ने उन्हीं के द्वारा सब कुछ का, चाहे वह पृथ्वी पर हो या स्वर्ग में, अपने से मेल कराया।


सुसमाचार : सन्त लूकस 5:33-39


33) उन्होंने ईसा से कहा "योहन के शिष्य बारम्बार उपवास करते हैं और प्रार्थना में लगे रहते हैं और फरीसियों के शिष्य भी ऐसा ही करते हैं, किन्तु आपके शिष्य खाते-पीते हैं"।

34) ईसा ने उन से कहा, "जब तक दुलहा उनके साथ हैं, क्या तुम बारातियों से उपवास करा सकते हो?

35) किन्तु वे दिन आयोंगे, जब दुलहा उनके स बिछुड़ जायेगा। उन दिनों वे उपवास करेंगे।"

36) ईसा ने उन्हें यह दृष्टान्त भी सुनाया, "कोई नया कपड़ा फाड़ कर पुराने कपड़े में पैबंद नहीं लगाता। नहीं तो वह नया कपड़ा फाड़ेगा और नये कपड़े का पैबंद पुराने कपड़े के साथ मेल भी नहीं खायेगा।

37) और कोई पुरानी मशकों में नयी अंगूरी नहीं भरता। नहीं तो नयी अंगूरी पुरानी मशकों को फाड़ देगी, अंगूरी बह जायेगी और मशकें बरबाद हो जायेंगी।

38) नयी अंगूरी को नयी मशकों में ही भरना चाहिए।

39) "कोई पुरानी अंगूरी पी कर नयी नहीं चाहता। वह तो कहता है, ’पुरानी ही अच्छी है।"


📚 मनन-चिंतन


येसु की शिक्षा फरीसी और शास्त्री के लिए यहुदी परंपरा से अलग और नई लगती थी तथा वे समझते थे कि येसु शिक्षा यहुदियों के नियम के विरूद्ध है, इस हेतु वे येसु से कई बार वाद विवाद और उनसे ईर्ष्या करते थे। येसु की शिक्षा यहुदी नियम के विरूद्ध नहीं परंतु उनकी पूर्णता है और इस बात को वे संत मत्ती के सुसमाचार में बताते है, ‘‘यह न समझो कि मैं संहिता अथवा नबियों के लेखों को रद्द करने आया हूॅं। उन्हे रद्द करने नहीं, बल्कि पूरा करने आया हॅंू।’’

येसु की शिक्षा दिखने में नवीन और अलग प्रतीत होती है परंतु वे संहिता के विरूद्ध नहीं है। प्रभु येसु की शिक्षा को गहराई पूर्वक वहीं समझ पाते है जो येसु ख्रीस्त में नये प्राणी बन गये है, जिस प्रकार संत पौलुस 2कुरि 5ः17 में कहते है, ‘‘यदि कोई मसीह के साथ एक हो गया है, तो वह नयी सृष्टि बन गया है’’। मसीह में नया व्यक्ति पुराने रीति रिवाजों से नहीं परंतु नियम के अथपूर्ण जीवन बिताता है और इसी चीज पर येसु जोर देते है कि लोगो द्वारा शुरू की गई परंपरा नहीं परंतु अर्थपूर्ण जीवन बिताना ज्यादा जरूरी है।



📚 REFLECTION



The teachings of Jesus for Pharisees and Scribes seem to be new and different from the Jewish tradition all the more they find the teachings of Jesus to be against the law, due to this they use to keep envy and keep on debating with Jesus. The teaching of Jesus is not against the law but it is the accomplishment of them and this thing Jesus tells in the Gospel of Matthew, “Do not think that I have come to abolish the law or the prophets; I have come not to abolish but to fulfil.”

The teachings of Jesus seem to be new and different but it is not against the law. The depth of Jesus’ teachings is understood only by them, who are new creation in Christ Jesus, as St. Paul tells in 2Cor. 5:17, “If anyone is in Christ, there is a new creation: everything old has passed away.” In Christ the new creation does not live the life based on merely following tradition without knowing but living the life meaningful to the law and to this only Lord Jesus gives stress that living life meaningfully is much more important than the man made traditions.


 -Br Biniush Topno


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