25 अगस्त 2020
वर्ष का इक्कीसवाँ सामान्य सप्ताह, मंगलवार
📒 पहला पाठ : थेसलनीकियों के नाम सन्त पौलुस का दूसरा पत्र 2:1-3a,14-17
1) भाइयो! हमारे प्रभु ईसा मसीह के पुनरागमन और उनके सामने हम लोगों के एकत्र होने के विषय में हमारा एक निवेदन, यह है।
2) किसी भविष्यवाणी, वक्तव्य अथवा पत्र से, जो मेरे कहे जाते हैं, आप लोग आसानी से यह समझ कर न उत्तेजित हों या घबरायें कि प्रभु का दिन आ चुका है।
3) कोई आप लोगों को किसी भी तरह न बहकाये।
14) उसने हमारे सुसमाचार द्वारा आप को बुलाया, जिससे आप हमारे प्रभु ईसा मसीह की महिमा के भागी बनें।
15) इसलिए, भाइयो! आप ढारस रखें और उस शिक्षा में दृढ़ बने रहें, जो आप को हम से मौखिक रूप से या पत्र द्वारा मिली है।
16) हमारे प्रभु ईसा मसीह स्वयं तथा ईश्वर, हमारा पिता - जिसने हमें इतना प्यार किया और हमें चिरस्थायी सान्त्वना तथा उज्जवल आशा का वरदान दिया है-
17) आप लोगों को सान्त्वना देते रहें तथा हर प्रकार के भले काम और बात में सुदृढ़़ बनाये रखें।
📙 सुसमाचार : सन्त मत्ती का सुसमाचार 23:23-26
23) ’’ढोंगी शास्त्रियों और फरीसियों! धिक्कार तुम लोगों को! तुम पुदीने, सौंप और जीरे का दशमांश तो देते हो, किन्तु न्याय, दया और ईमानदारी, संहिता की मुख्य बातों की उपेक्षा करते हो। इन्हें करते रहना और उनकी भी उपेक्षा नहीं करना तुम्हारे लिए उचित था।
24) अन्धे नेताओ! तुम मच्छर छानते हो, किन्तु ऊँट निगल जाते हो।
25) ’’ढोंगी शास्त्रियों और फरीसियों! धिक्कार तुम लोगों को! तुम प्याले और थाली को बाहर से माँजते हो, किन्तु भीतर वे लूट और असंयम से भरे हुए हैं।
26) अन्धे फ़रीसी! पहले भीतर से प्याले को साफ़ कर लो, जिससे वह बाहर से भी साफ़ हो जाये।
📚 मनन-चिंतन
आम तौर पर हम देखते हैं कि प्रभु येसु कठोर शब्दों अथवा ग़लत भाषा का प्रयोग नहीं करते भले ही उन्हें कोई कितना भी उकसाए। वे विरले ही क्रोधित या आपा खोते हुए दिखाई देते हैं। लेकिन जब कुछ गम्भीर बात थी, तो उन्हें कभी-कभी ग़ुस्सा भी आया। ऐसा उदाहरण हम मन्दिर में देखते हैं। (देखें योहन 2:13-16)। वह क्रोधित हुए क्योंकि उन्होंने देखा कि लोगों ने ईश्वर के निवास स्थान को व्यवसाय के स्थान में बदल दिया है। वह ईश्वर को पाने का पवित्र स्थान था लेकिन उन्होंने उसे चोर और लुटेरों का अड्डा बना कर रख दिया था, इसलिए प्रभु को ग़ुस्सा आया।
आज की दुनिया में भी हम ऐसी स्थिति देखते हैं, जहाँ ज़िम्मेदार व्यक्ति ईश्वर के नियमों को बदलते और अपने स्वार्थ के लिए तोड़ते-मरोड़ते हैं। वे ईश्वर नियमों की ग़लत व्याख्या करते हैं। वे नियम जो लोगों के लिए ईश्वर के क़रीब आने के मार्गदर्शक थे, उन्हें कुछ ज़िम्मेदारों ने लोगों के लिए अनावश्यक भार में बदल दिया है। जो धर्मगुरु लोगों को ईश्वर के नियमों पर चलने में मदद करने के लिए थे, वे लोगों को ईश्वर से दूर जाने का कारण बन रहे थे। प्रभु येसु ऐसे नेताओं को ढोंगी कहकर बुलाते हैं, ढोंगी, अर्थात जो वास्तव में कुछ और हैं, लेकिन दिखाते कुछ और हैं। ऐसे लोगों से ईश्वर क्रुद्ध होता है। क्या मेरे किसी व्यवहार से ईश्वर को ग़ुस्सा आता है?