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Catholic Bible readings for today 14 February 2021

 Daily Mass Readings for Sunday, 14 February 2021

SIXTH SUNDAY IN ORDINARY TIME

Also Read:Mass Reading Reflection for 14 Feb 2021

First Reading: Leviticus 13: 1-2, 44-46


1 And the Lord spoke to Moses and Aaron, saying:

2 The man in whose skin or flesh shalt arise a different colour or a blister, or as it were something shining, that is, the stroke of the leprosy, shall be brought to Aaron the priest, or any one of his sons.

44 Now whosoever shall be defiled with the leprosy, and is separated by the judgment of the priest,

45 Shall have his clothes hanging loose, his head bare, his mouth covered with a cloth, and he shall cry out that he is defiled and unclean.

46 All the time that he is a leper and unclean, he shall dwell alone without the camp.

Responsorial Psalm: Psalms 32: 1-2, 5, 11 (7)



1 To David himself, understanding. Blessed are they whose iniquities are forgiven, and whose sins are covered.

2 Blessed is the man to whom the Lord hath not imputed sin, and in whose spirit there is no guile.

5 I have acknowledged my sin to thee, and my injustice I have not concealed. I said I will confess against myself my injustice to the Lord: and thou hast forgiven the wickedness of my sin.

11 Be glad in the Lord, and rejoice, ye just, and glory, all ye right of heart.

(7 Thou art my refuge from the trouble which hath encompassed me: my joy, deliver me from them that surround me.)


Second Reading: First Corinthians 10: 31 – 11: 1



31 Therefore, whether you eat or drink, or whatsoever else you do, do all to the glory of God.

32 Be without offence to the Jews, and to the Gentiles, and to the church of God:

33 As I also in all things please all men, not seeking that which is profitable to myself, but to many, that may be saved.

11:1 Be ye followers of me, as I also am of Christ.

Gospel: Mark 1: 40-45


40 And there came a leper to him, beseeching him, and kneeling down said to him: If thou wilt, thou canst make me clean.

41 And Jesus having compassion on him, stretched forth his hand; and touching him, saith to him: I will. Be thou made clean.

42 And when he had spoken, immediately the leprosy departed from him, and he was made clean.

43 And he strictly charged him, and forthwith sent him away.

44 And he saith to him: See thou tell no one; but go, shew thyself to the high priest, and offer for thy cleansing the things that Moses commanded, for a testimony to them.

45 But he being gone out, began to publish and to blaze abroad the word: so that he could not openly go into the city, but was without in desert places: and they flocked to him from all sides.

✍️Br. Biniush Topno

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आज का पवित्र वचन वर्ष का छठ्वा सामान्य रविवार 14 फरवरी 2021, इतवार

 

14 फरवरी 2021, इतवार

वर्ष का छठ्वा सामान्य रविवार

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पहला पाठ : लेवी ग्रन्थ 13:1-2,44-46



1) प्रभु ने मूसा और हारून से यह कहा,

2) यदि किसी मनुष्य के चमड़े पर सूजन, पपड़ी या फूल दिखाई पड़े और चमड़े में चर्मरोग हो जाने का डर हो, तो वह मनुष्य याजक हारून अथवा उसके पुत्रों में किसी के पास लाया जाये।

44) तो वह व्यक्ति रोगी और अशुद्ध है। याजक उसे अशुद्ध घोषित करे, क्योंकि यह उसके सिर पर चर्मरोग है।

45) चर्मरोगी फटे कपड़े पहन ले। उसके बाल बिखरे हुए हों। वह अपना मुँह ढक कर "अशुद्ध, अशुद्ध!" चिल्लाता रहे।

46) वह तब तक अशुद्ध होगा, जब तक उसका रोग दूर न हो। वह अलग रहेगा और शिविर के बाहर निवास करेगा।



दूसरा पाठ : कुरिन्थियों के नाम सन्त पौलुस का पहला पत्र 10:31-11:1



31) इसलिए आप लोग चाहे खायें या पियें, या जो कुछ भी करें, सब ईश्वर की महिमा के लिए करें।

32) आप किसी के लिए पाप का कारण न बनें- न यहूदियों के लिए, न यूनानियों और न ईश्वर की कलीसिया के लिए।

33) मैं भी अपने हित का नहीं, बल्कि दूसरों के हित का ध्यान रख सब बातों में सब को प्रसन्न करने का प्रयत्न करता हूँ, जिससे वे मुक्ति प्राप्त कर सकें।

11:10) आप लोग मेरा अनुसरण करें, जिस तरह मैं मसीह का अनुसरण करता हूँ।



सुसमाचार : सन्त मारकुस 1:40-

45


40) एक कोढ़ी ईसा के पास आया और घुटने टेक कर उन से अनुनय-विनय करते हुए बोला, ’’आप चाहें तो मुझे शुद्ध कर सकते हैं’’।

41) ईसा को तरस हो आया। उन्होंने हाथ बढ़ाकर यह कहते हुए उसका स्पर्श किया, ’’मैं यही चाहता हूँ- शुद्ध हो जाओ’’।

42) उसी क्षण उसका कोढ़ दूर हुआ और वह शुद्ध हो गया।

43) ईसा ने उसे यह कड़ी चेतावनी देते हुए तुरन्त विदा किया,

44) ’’सावधान! किसी से कुछ न कहो। जा कर अपने को याजकों को दिखाओ और अपने शुद्धीकरण के लिए मूसा द्वारा निर्धारित भेंट चढ़ाओ, जिससे तुम्हारा स्वास्थ्यलाभ प्रमाणित हो जाये’’।

45) परन्तु वह वहाँ से विदा हो कर चारों ओर खुल कर इसकी चर्चा करने लगा। इस से ईसा के लिए प्रकट रूप से नगरों में जाना असम्भव हो गया; इसलिए वह निर्जन स्थानों में रहते थे फिर भी लोग चारों ओर से उनके पास आते थे।



📚 मनन-चिंतन



कोढ़ी की चंगाई मारकुस के सुसमाचार में तीसरी चगाई की कहानी है। पहली चंगाई की कहानी में, येसु ने अपने वचन के द्वारा एक व्यक्ति को चंगा किया। संभवतः, यीशु केवल एक शब्द के साथ कोढ़ी को ठीक कर सकते थे। फिर भी, येसु ने अपना हाथ फैलाया और कोढ़ी का स्पर्श किया। वह व्यक्ति एकाकीपन की प्रकृति का बहुत आदि हो गया था इसलिए उसे एक शब्द से अधिक यह दिखाने के लिए आवश्यक था कि उसका एकाकीपन खत्म हो गया था। दूषित होने और पूरे समुदाय को दूषित करने के जोखिम के कारण येसु का एक कोढ़ी को छूना यहूदी कानून के खिलाफ था। हालाँकि, येसु को पता था कि उसके भीतर काम कर रही ईश्वर की शक्ति कभी भी मानवीय स्थिति से दूषित नहीं हो सकती। यीशु के भीतर ईश्वरीय जीवन की शक्ति,मौजूद थी वहीँ कोढ़ी के भीतर मृत्यु की शक्ति। येसु एक ऐसे ईश्वर को प्रकट करता है जो हमारे जीवन को जीवनदायी तरीके से छूना चाहता है, चाहे हमारा जीवन कितना भी टूटा-फूटा या कुरूप क्यों न हो, येसु हमें छूकर नया बनाना चाहते हैं।




📚 REFLECTION




The healing of the leper is the third healing story in Mark’s Gospel. In the first healing story, Jesus healed a man by means of his word. Presumably, Jesus could have healed the leper just with a word, ‘Be cured’. Yet, Jesus chose to stretch out his hand and touch the leper. Such was the nature of this man’s isolation that more than a word was needed to show that his isolation was over. He needed to be touched, to be held. It was against the Jewish law to touch a leper, because of the risk of being contaminated and contaminating the whole community. However, Jesus knew that God’s power at work within him could never be contaminated by the human condition. The power of life, of God’s life, within Jesus was stronger that the power of death within the leper. Jesus reveals a God who wants to touch our lives in a life-giving way, regardless of how broken or ugly or hopeless our lives might seem to us or to others. The Lord not only speaks his word to us; he connects with each of us in ways that are concrete and personal. Let us experience Jesus in our personal prayers and everyday life concretely.



मनन-चिंतन



लेवी ग्रंथ में यहूदी लोगों को यह बताया गया था कि कुष्ठ रोगी के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए। आज के पहले पाठ में हम इसी बात का विवरण पाते हैं। ’’चर्मरोगी फटे कपड़े पहन ले। उसके बाल बिखरे हुए हों। वह अपना मुँह ढक कर अशुद्ध, अशुद्ध! चिल्लाता रहे। वह तब तक अशुद्ध होगा, जब तक उसका रोग दूर न हो। वह अलग रहेगा और शिविर के बाहर निवास करेगा।’’

यहूदी लोग कुष्ठ रोगियों के साथ इसी प्रकार का व्यवहार किया करते थे। येसु के समय भी यही प्रक्रिया प्रचलन में थी। येसु का हृदय दीन-दुखियों, रोगियों एवं निराश्रितों के प्रति बडा ही दयालु था। यही कारण है कि प्रभु येसु का कुष्ठ रोगी के प्रति एकदम विपरीत दृष्टिकोण था। येसु रोगी को पिता परमेश्वर की दयामय दृष्टि से देखते है। शायद रोगी भी येसु में इस दया को देखता है इसलिए वह कुष्ठ रोगी ’चिल्लाकर दूर भागने’ के बजाए येसु के करीब आता है तथा उनसे चंगाई की गुहार लगाता है। येसु को रोगी पर तरस आता है तथा वे उसे चंगाई प्रदान करते हैं। येसु का प्रेम उस रोगी के प्रति इतना गहरा था कि येसु उससे बातचीत करते है तथा फिर उसको छूकर शुद्धता प्रदान करते हैं। इस प्रकार येसु का उस पर तरस आना, वार्तालाप करना तथा उसको स्पर्श कर चंगाई प्रदान करना मानव के प्रति ईश्वर के मर्मस्पर्शी प्रेम की तीव्रता तथा गहराई को दर्शाता है। येसु उस रोगी का इतना ध्यान रखते हैं कि उससे कहते हैं, ’’जाकर अपने को याजकों को दिखाओ और अपने शुद्धीकरण के लिए मूसा द्वारा निर्धारित भंेट चढ़ाओ, जिससे तुम्हारा स्वास्थ्यलाभ प्रमाणित हो जाये।’’ ऐसा करने से लोग उसकी शुद्धता को अधिकारिक रूप से स्वीकार करेगे अन्यथा लोग उसे अभी भी अशुद्ध मान कर दण्डित कर सकते थे।

प्रभु येसु का जीवन हम मानवों के प्रति ईश्वर के प्रेम की तीव्रता को दर्शाता है। येसु मनुष्यों के उत्थान के लिए प्रयत्नशील थे। इस दौरान उन्होंने इस ईश्वरीय प्रेम की गहराई को दिखलाया जैसे नाईन की विधवा के एकलौते बेटे के निधन पर उसकी स्थिति को देखकर येसु को तरस हो आता है। येसु बिना किसी निवेदन के ही उस मृत युवक को पुनःजीवित कर देते है। (लूकस 7:11-17) येसु का यह कार्य मानवीय वेदना तथा शोक के प्रति ईश्वरीय संवेदनशीलता को प्रदर्शित करता है। लाजरूस की मृत्यु पर उसकी बहनों तथा परिजनों के विलाप पर येसु को इतना तरस हो आता है कि वे स्वयं ही रो पडते हैं। (योहन 11:35) इसी प्रकार जब येसु बेथेस्दा में पडे अर्द्धांगरोगी को देखते है तो वे स्वयं उसके पास जाकर उससे बातचीत कर उसका हाल पूछते हैं। इस बातचीत के दौरान उन्हें मालूम चलता कि वह पिछले 38 वर्षों से बीमार है तथा इस दयनीय स्थिति में है। येसु का हृदय अवश्य ही द्रविद हो उठा होगा इसलिए वे उसे राहत पहुॅचाने की पहल स्वयं करते है। येसु उसकी मजबूरी तथा दुःख के प्रति संवेदनशीलता दिखलाते हुये उससे कहते हैं, ’’उठ कर खडे हो जाओ; अपनी चारपाई उठाओं और चलो।’’ (योहन 5:8)

इसी प्रकार येसु उन सभी लोगों को, जो बीमारी, पाप, सामाजिक प्रतिबंध, गरीबी आदि के कारण अस्पर्शता का जीवन बिता रहे थे उनको पुनः सामाजिक एवं स्वस्थ जीवन में लाते हैं। येसु का यह प्रेम हमारे लिये भी एक उदाहरण एवं आदर्श है। भले समारी के दृष्टांत द्वारा येसु हमें सिखलाते है कि हमारा व्यवहार भी उस भले समारी के समान होना चाहिये जिसने बिना किसी हिचकिचहाट के उस घायल अधमरे व्यक्ति की मदद के लिये अपना यथेष्ठ प्रयत्न किया। उस समारी द्वारा की गयी सेवा हमारे लिए येसु की शिक्षा है। समारी ने पास जाकर उस घायल के घावों की मरहम-पट्टी की तथा उसे उसकी ही सवारी पर बैठा कर उसकी सेवाशुश्रूणा की तथा यह भी सुनिश्चित किया कि उसे आगे सब प्रकार की मदद मिलती रहे। हमें भी लोगों के पास जाकर, बातचीत करके, उनकी समस्याओं को दया के साथ दूर करने का हर संभव प्रयत्न करना चाहिए। जब हम लोगों की तकलीफ, बीमारी तथा मजबूरी में सहायता करते हैं तो हम अप्रत्यक्ष तौर पर येसु का ही स्पर्श करते; येसु की ही सेवा करते है तथा येसु के जीवन को अपनाते है। संत मत्ती के सुसमाचार अध्याय 25 में येसु ने इस बात को बडे ही स्पष्ट रूप से समझाया है कि जो परोपकार के कार्य हम दरिद्रों के लिए करते है वह हम वास्तव में येसु के लिए करते हैं। प्रभु का कहना है कि न्याय के दिन वे दीनदुखियों की सेवा करने वालों से कहेंगे कि ’’ मैं भूखा था और तुमने मुझे खिलाया, मैं प्यासा था तुमने मुझे पिलाया, मैं परदेशी था और तुमने मुझको अपने यहाँ ठहराया, मैं नंगा था तुमने मुझे पहनाया, मैं बीमार था और तुम मुझ से भेंट करने आये, मैं बन्दी था और तुम मुझ से मिलने आये।’.....तुमने मेरे भाइयों में से किसी एक के लिए, चाहे वह कितना ही छोटा क्यों न हो, जो कुछ किया, वह तुमने मेरे लिए ही किया’। (मत्ती 25:35-40) तथा उन्हें इस शब्दों के साथ पुरस्कृत करेंगे, ’’शाबाश, भले और ईमानदार सेवक! ....अपने स्वामी के आनन्द के सहभागी बनो।’’ (मत्ती 25:21)

आइये हम भी येसु के समान दीन-दुखियों के जीवन का पूर्ण प्रेम, संवेदनशीलता तथा तीव्रता के साथ उद्धार करे। हमारे सामने भी अनेक संतों के ज्वलंत उदाहरण है जिन्होंने येसु के समान लोगों की सेवा की। संत फादर देमियन ने कुष्ठ रोगियों की सेवा की तथा उनकी सेवा करते हुये वे स्वयं भी कुष्ठ रोगी बन गये। कुष्ठ से ग्रस्त होने पर भी वे दुःखी नहीं हुए बल्कि अपने उत्साह का बनाये रखते हुये अंतिम क्षण तक रोगियों की सेवा करते हुये मर गये। संत मदर तेरेसा का जीवन दया की प्रतिमूर्ति था। वे हर जरूरतमंद के लिए एक भली समारी थी। मदर का जीवन का जीवन लोगों की सेवा में इतना डूब गया था कि दया का दूसरा नाम ही मदद तेरेसा बन गया था। हमें भी इन संतों के जीवन से सीख लेकर येसु के समान लोगों की सेवा करना चाहिए।

Br. Biniush Topno

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Praise the Lord!