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वर्ष का सोलहवाँ इतवार 17 जुलाई 2022,

 

17 जुलाई 2022, इतवार

वर्ष का सोलहवाँ इतवार



पहला पाठ : उत्पत्ति: 18:1-10



1) इब्राहीम मामरे के बलूत के पास दिन की तेज गरमी के समय अपने तम्बू के द्वार पर बैठा हुआ था कि प्रभु उस को दिखाई दिया।

2) इब्राहीम ने आँख उठा कर देखा कि तीन पुरुष उसके सामने खडे हैं। उन्हें देखते ही वह तम्बू के द्वार से उन से मिलने के लिए दौड़ा और दण्डवत् कर

3) बोला, ''प्रभु! यदि मुझ पर आपकी कृपा हो, तो अपने सेवक के सामने से यों ही न चले जायें।

4) आप आज्ञा दे, तो मैं पानी मंगवाता हूँ। आप पैर धो कर वृक्ष के नीचे विश्राम करें।

5) इतने में मैं रोटी लाऊँगा। आप जलपान करने के बाद ही आगे बढ़ें। आप तो इसलिए अपने सेवक के यहाँ आए हैं।''

6) उन्होंने उत्तर दिया, ''तुम जैसा कहते हो, वैसा ही करो''। इब्राहीम ने तम्बू के भीतर दौड़ कर सारा से कहा ''जल्दी से तीन पसेरी मैदा गूंध कर फुलके तैयार करो''।

7) तब इब्राहीम ने ढोरों के पास दौड़ कर एक अच्छा मोटा बछड़ा लिया और नौकर को दिया, जो उसे जल्दी से पकाने गया।

8) बाद में इब्राहीम ने दही, दूध और पकाया हुआ बछड़ा ले कर उनके सामने रख दिया और जब तक वे खाते रहे, वह वृक्ष के नीचे खड़ा रहा।

9) उन्होंने इब्राहीम से पूछा, ''तुम्हारी पत्नी सारा कहाँ है?'' उसने उत्तर दिया, ''वह तम्बू के अन्दर है''।

10) इस पर अतिथि ने कहा, ''मैं एक वर्ष के बाद फिर तुम्हारे पास आऊँगा। उस समय तक तुम्हारी पत्नी को एक पुत्र होगा।''



दुसरा पाठ : कलोसियों : 1:24-28



24) इस समय मैं आप लोगों के लिए जो कष्ट पाता हूँ, उसके कारण प्रसन्न हूँ। मसीह ने अपने शरीर अर्थात् कलीसिया के लिए जो दुःख भोगा है, उस में जो कमी रह गयी है, मैं उसे अपने शरीर में पूरा करता हूँ।

25) मैं ईश्वर के विधान के अनुसार कलीसिया का सेवक बन गया हूँ, जिससे मैं आप लोगों को ईश्वर का वह सन्देश,

26) वह रहस्य सुनाऊँ, जो युगों तथा पीढ़ियों तक गुप्त रहा और अब उसके सन्तों के लिए प्रकट किया गया है।

27) ईश्वर ने उन्हें दिखलाना चाहा कि गैर-यहूदियों में इस रहस्य की कितनी महिमामय समृद्धि है। वह रहस्य यह है कि मसीह आप लोगों के बीच हैं और उन में आप लोगों की महिमा की आशा है।

28) हम उन्हीं मसीह का प्रचार करते हैं, प्रत्येक मनुष्य को उपदेश देते और प्रत्येक मनुष्य को पूर्ण ज्ञान की शिक्षा देते हैं, जिससे हम प्रत्येक मनुष्य को मसीह में पूर्णता तक पहुँचा सकें।



सुसमाचार :लुकस 10:38-42



38) ईसा यात्रा करते-करते एक गाँव आये और मरथा नामक महिला ने अपने यहाँ उनका स्वागत किया।

39) उसके मरियम नामक एक बहन थी, जो प्रभु के चरणों में बैठ कर उनकी शिक्षा सुनती रही।

40) परन्तु मरथा सेवा-सत्कार के अनेक कार्यों में व्यस्त थी। उसने पास आ कर कहा, "प्रभु! क्या आप यह ठीक समझते हैं कि मेरी बहन ने सेवा-सत्कार का पूरा भार मुझ पर ही छोड़ दिया है? उस से कहिए कि वह मेरी सहायता करे।"

41) प्रभु ने उसे उत्तर दिया, "मरथा! मरथा! तुम बहुत-सी बातों के विषय में चिन्तित और व्यस्त हो;

42) फिर भी एक ही बात आवश्यक है। मरियम ने सब से उत्तम भाग चुन लिया है; वह उस से नहीं लिया जायेगा।"



📚 मनन-चिंतन



उत्तम भाग चुनना

मारथा की चिंता और व्याकुलता उसे येसु के साथ वास्तव में उपस्थित होने से रोकती हैं। यह चिंता और व्याकुलता उसकी बहन और स्वयं के बीच येसु और स्वयं के बीच एक अवरोध पैदा करने का कारण बनती है। वह सच्चे अतिथ्य के लिए ‘‘एक चीज की जरूरत’’ से चूक गई है। अपने अतिथि को सुनने से बडा कोई अतिथ्य नहीं है। हमारे जीवन की व्यस्तताओं के बीच हम कहीं अतिथि पर से ध्यान न हटा दें। हम ईश्वर की संतान है हमें ध्यान देना है की हमारा अतिथि कौन है? क्योंकि हमारे मेहमान भी हमारे मेजबान हैं। इसलिए हमें उत्तम भाग चुनने की आवश्यकता है।




📚 REFLECTION



Choosing the “Better Part”

Martha’s worry and distraction prevent her from being truly present with Jesus and cause her to drive a block between her sister and herself and between Jesus and herself. She has missed out on the “one thing needed” for true hospitality. There is no greater hospitality than listening to your guest. How much more so when the guest is Jesus! So Jesus says that Mary has chosen the better part, which will not be taken away from her. We do know that Jesus invites all of us who are worried and distracted by many things to sit and rest in his presence, to hear his words of grace and truth, to know that we are loved and valued as children of God, to be renewed in faith and strengthened for service. There is need for only one thing: attention to our guest. As it turns out, our guest is also our host, with abundant gifts to give. Therefore, Mary chose the agathēn merida, the better portion.




मनन-चिंतन - 2


प्रभु के चरणों में बैठ कर उनकी शिक्षा सुनना बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य होता है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय के भूतपूर्व न्यायाधीश डॉ. कुरियन जोसेफ़ रोज मिस्सा बलिदान में भाग लेते हैं। उनसे एक बार पूछा गया कि रोज मिस्सा बलिदान में भाग लेने के लिए आपको समय कहाँ से मिलता है। उन्होंने कहा कि मिस्सा बलिदान में भाग लिये बिना किसी दिन को शुरू करना मेरे लिए बहुत ही मुशकिल है। जब मैं मिस्सा बलिदान में भाग लेता हूँ तब प्रभु मुझे इतनी कृपा प्रदान करते हैं कि मेरे लिये विभिन्न कामों को करना बहुत ही सरल बन जाता है। प्रभु मेरी सहायता करते हैं। न्यायाधीश कुरियन जोसेफ अपने बच्चों से कहते हैं कि परीक्षा के दिन मिस्सा बलिदान में भाग लेना बहुत ही जरूरी है। मिस्सा बलिदान से प्राप्त कृपा के साथ आप परीक्षा सरलता से लिख सकते हैं क्योंकि पवित्र आत्मा जो सहायक है आपकी मदद करेंगे। कई लोग प्रार्थना में समय बिताना नहीं चाहते हैं। उनको लगता है कि वह समय की बरबादी है तथा उस समय उन्हें कुछ काम करना चाहिए।

आज के सुसमाचार में हम देखते हैं कि प्रभु येसु ने बेथानिया में मरथा, मरियम और लाज़रुस के घर में प्रवेश किया। तब मरथा सेवा-सत्कार के अनेक कार्यों में व्यस्त थी जबकि मरियम प्रभु के चरणों में बैठ कर उनके वचन सुन रही थी। मरथा को लगता है कि वही सही कार्य कर रही है और मरियम उसकी सहायता नही कर रही है। वह प्रभु के पास आकर शिकायत करती है, "प्रभु! क्या आप यह ठीक समझते हैं कि मेरी बहन ने सेवा-सत्कार का पूरा भार मुझ पर ही छोड़ दिया है? उस से कहिए कि वह मेरी सहायता करे।" प्रभु ने उत्तर दिया, "मरथा! मरथा! तुम बहुत-सी बातों के विषय में चिन्तित और व्यस्त हो; फिर भी एक ही बात आवश्यक है। मरियम ने सब से उत्तम भाग चुन लिया है; वह उस से नहीं लिया जायेगा।"

मरथा और मरियम दोनों प्रभु येसु से प्रेम करते हैं। वे दोनों अपने-अपने तरीके से येसु के प्रति अपने प्रेम को प्रकट करती हैं। मरथा येसु के सेवा-सत्कार लगी रहती है। मरियम येसु के प्रति प्रेम उनके साथ रह कर प्रकट करती है। मुझे लगता है कि फ़रक इस बात में है कि मरथा येसु के प्रति अपने प्यार को प्रकट करती है, जबकि मरियम येसु के प्यार को अनुभव करने का प्रयत्न करती है। जब हम इस बात को समझने लगेंगे, तब हमें पता चलेगा कि येसु ने क्यों कहा कि मरियम ने सब से उत्तम भाग चुन लिया है। प्रभु येसु के प्रेम में लीन होना बहुत ही महत्वपूर्ण अनुभव होता है।

इस संदर्भ में यूखारिस्तीय आराधना के महत्व को भी हम समझ सकते हैं। आराधना के समय हम प्रभु ईश्वर के प्यार में लीन हो जाते हैं। संत पापा योहन पौलुस द्वितीय कहते हैं, “यूखारिस्तीय आराधना मानवीय हृदय में दुनिया का सब से दयामय और मुक्तिदायक परिवर्तन है”।

अक्टूबर 20, 2016 को मिस्सा बलिदान के दौरान संत पापा फ्रांसिस ने कहा, “शांतिपूर्ण रूप से यूखारिस्तीय आराधना में भाग लेना प्रभु को जानने का तरीका है। अमेरिका के मशहूर महाधर्माध्यक्ष फ़ुल्टन जे. शीन अपने व्यस्त जीवन में रोज कम से कम एक घंटा पवित्र यूखारिस्त के सामने बिताते थे। कलकत्ता की संत तेरेसा का कहना है कि यूखारिस्तीय आराधना का समय इस दुनिया के हमारे जीवन का सर्वोत्तम समय है और उस समय हमारी आत्मा और शरीर को एक नयी स्फ़ूर्ति, नयी चेतना और नयी शक्ति प्राप्त होती है। जब आप क्रूसित येसु की तस्वीर पर दृष्टि डालते हैं, तब आपको पता चलता है कि येसु ने आपको कितना प्यार किया था। मगर जब हम पवित्र यूखारिस्त पर दृष्टि डालते है, तब हमें पता चलता है कि अब, इस क्षण में येसु हमको कितना प्यार करते हैं।

इसी प्रकार का अनुभव स्तोत्रकार का भी था। इसलिए वह कहता है, “हजार दिनों तक और कहीं रहने की अपेक्षा एक दिन तेरे प्रांगण में बिताना अच्छा है। दुष्टों के शिविरों में रहने की अपेक्षा ईश्वर के मन्दिर की सीढ़ियों पर खड़ा होना अच्छा है; क्योंकि ईश्वर हमारी रक्षा करता और हमें कृपा तथा गौरव प्रदान करता है। वह सन्मार्ग पर चलने वालों पर अपने वरदान बरसाता है।“ (स्तोत्र 84:11-12)


 -Br. Biniush Topno


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