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शनिवार, 18 सितम्बर, 2021 वर्ष का चौबीसवाँ सामान्य सप्ताह

 

शनिवार, 18 सितम्बर, 2021

वर्ष का चौबीसवाँ सामान्य सप्ताह

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पहला पाठ : 1 तिमथी 6:13-16


13) ईश्वर जो सब को जीवन प्रदान करता है और ईसा मसीह, जिन्होंने पोंतियुस पिलातुस के सम्मुख अपना उत्तम साक्ष्य दिया, दोनों को साक्षी बना कर मैं तुम को यह आदेश देता हूँ।

14) कि हमारे प्रभु ईसा मसीह की अभिव्यक्ति के दिन तक अपना धर्म निष्कलंक तथा निर्दोष बनाये रखो।

15) यह अभिव्यक्ति यथासमय परमधन्य तथा एक मात्र अधीश्वर के द्वारा हो जायेगी। वह राजाओं का राजा और प्रभुओं का प्रभु है,

16) जो अमरता का एकमात्र स्रोत है, जो अगम्य ज्योति में निवास करता है, जिसे न तो किसी मनुष्य ने कभी देखा है और न कोई देख सकता है। उसे सम्मान तथा अनन्त काल तक बना रहने वाला सामर्थ्य! आमेन!


सुसमाचार : सन्त लूकस 8:4-15


4) एक विशाल जनसमूह एकत्र हो रहा था और नगर-नगर से लोग ईसा के पास आ रहे थे। उस समय उन्होंने यह दृष्टान्त सुनाया,

5) "कोई बोने वाला बीज बोने निकला। बोते-बोते कुछ बीज रास्ते के किनारे गिरे। वे पैरों से रौंदे गये और आकाश के पक्षियों ने उन्हें चुग लिया।

6) कुछ बीज पथरीली भूमि पर गिरे। वे उग कर नमी के अभाव में झुलस गये।

7) कुछ बीज काँटों में गिरे। साथ-साथ बढ़ने वाले काँटों ने उन्हें दबा दिया।

8) कुछ बीज अच्छी भूमि पर गिरे। वे उग कर सौ गुना फल लाये।" इतना कहने के बाद वह पुकार कर बोले, "जिसके सुनने के कान हों, वह सुन ले"।

9) शिष्यों ने उन से इस दृष्टान्त का अर्थ पूछा।

10) उन्होंने उन से कहा, "तुम लोगों को ईश्वर के राज्य का भेद जानने का वरदान मिला है। दूसरों को केवल दृष्टान्त मिले, जिससे वे देखते हुए भी नहीं देखें और सुनते हुए भी नहीं समझें।

11) "दृष्टान्त का अर्थ इस प्रकार है। ईश्वर का वचन बीज है।

12) रास्ते के किनारे गिरे हुए बीज वे लोग हैं, जो सुनते हैं, परन्तु कहीं ऐसा न हो कि वे विश्वास करें और मुक्ति प्राप्त कर लें, इसलिए शैतान आ कर उनके हृदय से वचन ले जाता है।

13) चट्टान पर गिरे हुए बीज वे लोग हैं, जो वचन सुनते ही प्रसन्नता से ग्रहण करते हैं, किन्तु जिन में जड़ नहीं है। वे कुछ ही समय तक विश्वास करते हैं और संकट के समय विचलित हो जाते हैं।

14) काँटों में गिरे हुए बीज वे लोग हैं, जो सुनते हैं, परन्तु आगे चल कर वे चिन्ता, धन-सम्पत्ति और जीवन का भोग-विलास से दब जाते हैं और परिपक्वता तक नहीं पहुँच पाते।

15) अच्छी भूमि पर गिरे हुए बीज वे लोग हैं, जो सच्चे और निष्कपट हृदय से वचन सुन कर सुरक्षित रखते और अपने धैर्य के कारण फल लाते हैं।


📚 मनन-चिंतन


दृष्टान्तों के जरियें प्रभु येसु ने कई रहस्यों को हमारे सामने प्रकट किया है तथा स्वर्गिक बातों को समझाने की कोशिश की है। प्रभु के वचन की वृद्धि के लिए प्रभु येसु बीज बोने वाले का दृष्टांत सुनाते है। यहॉं पर वचन या बीज की क्षमता नहीं अपितु उसे ग्रहण करने वाले हृदय या भूमि की महत्ता पर जोर दिया गया है। प्रभु के वचन में हर प्रकार की क्षमता है कि वह अधिक फल उत्पन्न करें; जिस प्रकार धर्मग्रन्थ में लिखा है, ‘‘मेरी वाणी मेरे मुख से निकल कर व्यर्थ ही मेरे पास नहीं लौटती।’’(इसायह 55ः11), ‘‘आकाश और पृथ्वी टल जायें, तो टल जायें, परंतु मेरे शब्द नहीं टल सकते।’’(मत्ती 24ः35)

परंतु जरूरत है तो उसे ग्रहण करने वाले अच्छे भूमि की। जिस प्रकार अलग अलग तरह की भूमि इस दृष्टांत में बताया गया है वह प्रत्येक मनुष्यों के हृदयांे की स्थिति को इंगित करता है। यह जरूरी नहीं कि अभी हम सबका हृदय अच्छी भूमि के समान हो परंतु हम उसको अच्छी भूमि के समान बना सकते है। यदि हम चाहते है कि प्रभु का वचन हमारे जीवन में फलप्रद हो तो हमें मेंहनत करने की जरूरत है और अपने हृदय रूपी भूमि से हर प्रकार की बाधा को हटाकर अच्छी भूमि में परिवर्तित करने की जरूरत है। प्रभु का वचन हम सबके जीवन में अधिक फल उत्पन्न करें आईये इसके लिए हम प्रयास करें।



📚 REFLECTION



Lord Jesus has tried to reveal many mysteries and to explain heavenly things through the parables. For the growth of God’s word Lord Jesus tells about the parable of a Sower. Here not the potency of word or seed but the receptive heart or soil is been given more stress. In the word of God there is all potency to bear much fruit, as it is written in the scripture, “My word that goes out from my mouth; it will not return to me empty” (Isa 55:11), “Heaven and earth will pass away, but my words will never pass away.” (Mt 24:35)

But what is needed is the good soil for its reception. As the different kinds of soil or surface area are mentioned in this parable it indicates the different state of hearts of each person. It is not necessary that at present our heart may be like that of good soil but we can make it to be a good soil. If we want the word of God to bear much fruit then we need to work hard and removing all the obstacles from our heart we can transform it to a good soil or good heart. Let’s put our effort so that God’s word may bear much fruit in our lives.


 -Br Biniush Topno


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Praise the Lord!