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27 मार्च 2022, इतवार चालीसे का चौथा इतवार

 

27 मार्च 2022, इतवार

चालीसे का चौथा इतवार

पहला पाठ : योशुआ 5:9-12


9) प्रभु ने योशुआ से कहा आज मैंने तुम लोगों पर से मिस्र का कलंक दूर किया इसलिए उस स्थान का नाम आज तक गिलगाल है।

10) इस्राएलियों ने गिलगाल में पडाव डाला और वहाँ येरीखो के मैदान में, महीने के चैदहवें दिन शाम को पास्का पर्व मनाया।

11) पास्का के दूसरे दिन ही उन्होंने उस देश की उपज की बेख़मीर और अनाज की भुनी हुई बालें खायीं।

12) जिस दिन उन्होंने देश की उपज का अन्न पहले पहल खाया उसी दिन से मन्ना का गिरना बंद हो गया। मन्ना नहीं मिलने कारण इस्राएली उस समय से कनान देश की उपज का अन्न खाने लगे।



दूसरा पाठ : 2 कुरिन्थियों 5:17-21


17) इसका अर्थ यह है कि यदि कोई मसीह के साथ एक हो गया है, तो वह नयी सृष्टि बन गया है। पुरानी बातें समाप्त हो गयी हैं और सब कुछ नया हो गया है।

18) यह सब ईश्वर ने किया है- उसने मसीह के द्वारा अपने से हमारा मेल कराया और इस मेल-मिलाप का सेवा-कार्य हम प्रेरितों को सौंपा है।

19) इसका अर्थ यह है कि ईश्वर ने मनुष्यों के अपराध उनके ख़र्चे में न लिख कर मसीह के द्वारा अपने साथ संसार का मेल कराया और हमें इस मेल-मिलाप के सन्देश का प्रचार सौंपा है।

20) इसलिए हम मसीह के राजदूत हैं, मानों ईश्वर हमारे द्वारा आप लोगों से अनुरोध कर रहा हो। हम मसीह के नाम पर आप से यह विनती करते हैं कि आप लोग ईश्वर से मेल कर लें।

21) मसीह का कोई पाप नहीं था। फिर भी ईश्वर ने हमारे कल्याण के लिए उन्हें पाप का भागी बनाया, जिससे हम उनके द्वारा ईश्वर की पवित्रता के भागी बन सकें।



सुसमाचार : सन्त लूकस का सुसमाचार 15:1-3,11-32



1) ईसा का उपदेश सुनने के लिए नाकेदार और पापी उनके पास आया करते थे।

2 फ़रीसी और शास्त्री यह कहते हुए भुनभुनाते थे, "यह मनुष्य पापियों का स्वागत करता है और उनके साथ खाता-पीता है"।

3) इस पर ईसा ने उन को यह दृष्टान्त सुनाया,

11) ईसा ने कहा, "किसी मनुष्य के दो पुत्र थे।

12) छोटे ने अपने पिता से कहा, ’पिता जी! सम्पत्ति का जो भाग मेरा है, मुझे दे दीजिए’, और पिता ने उन में अपनी सम्पत्ति बाँट दी।

13 थोड़े ही दिनों बाद छोटा बेटा अपनी समस्त सम्पत्ति एकत्र कर किसी दूर देश चला गया और वहाँ उसने भोग-विलास में अपनी सम्पत्ति उड़ा दी।

14) जब वह सब कुछ ख़र्च कर चुका, तो उस देश में भारी अकाल पड़ा और उसकी हालत तंग हो गयी।

15) इसलिए वह उस देश के एक निवासी का नौकर बन गया, जिसने उसे अपने खेतों में सूअर चराने भेजा।

16) जो फलियाँ सूअर खाते थे, उन्हीं से वह अपना पेट भरना चाहता था, लेकिन कोई उसे उन में से कुछ नहीं देता था।

17) तब वह होश में आया और यह सोचता रहा-मेरे पिता के घर कितने ही मज़दूरों को ज़रूरत से ज़्यादा रोटी मिलती है और मैं यहाँ भूखों मर रहा हूँ।

18) मैं उठ कर अपने पिता के पास जाऊँगा और उन से कहूँगा, ’पिता जी! मैंने स्वर्ग के विरुद्ध और आपके प्रति पाप किया है।

19) मैं आपका पुत्र कहलाने योग्य नहीं रहा। मुझे अपने मज़दूरों में से एक जैसा रख लीजिए।’

20) तब वह उठ कर अपने पिता के घर की ओर चल पड़ा। वह दूर ही था कि उसके पिता ने उसे देख लिया और दया से द्रवित हो उठा। उसने दौड़ कर उसे गले लगा लिया और उसका चुम्बन किया।

21) तब पुत्र ने उस से कहा, ’पिता जी! मैने स्वर्ग के विरुद्ध और आपके प्रति पाप किया है। मैं आपका पुत्र कहलाने योग्य नहीं रहा।’

22) परन्तु पिता ने अपने नौकरों से कहा, ’जल्दी अच्छे-से-अच्छे कपड़े ला कर इस को पहनाओ और इसकी उँगली में अँगूठी और इसके पैरों में जूते पहना दो।

23) मोटा बछड़ा भी ला कर मारो। हम खायें और आनन्द मनायें;

24) क्योंकि मेरा यह बेटा मर गया था और फिर जी गया है, यह खो गया था और फिर मिल गया है।’ और वे आनन्द मनाने लगे।

25) "उसका जेठा लड़का खेत में था। जब वह लौट कर घर के निकट पहुँचा, तो उसे गाने-बजाने और नाचने की आवाज़ सुनाई पड़ी।

26) उसने एक नौकर को बुलाया और इसके विषय में पूछा।

27) इसने कहा, ’आपका भाई आया है और आपके पिता ने मोटा बछड़ा मारा है, क्योंकि उन्होंने उसे भला-चंगा वापस पाया है’।

28) इस पर वह क्रुद्ध हो गया और उसने घर के अन्दर जाना नहीं चाहा। तब उसका पिता उसे मनाने के लिए बाहर आया।

29) परन्तु उसने अपने पिता को उत्तर दिया, ’देखिए, मैं इतने बरसों से आपकी सेवा करता आया हूँ। मैंने कभी आपकी आज्ञा का उल्लंघन नहीं किया। फिर भी आपने कभी मुझे बकरी का बच्चा तक नहीं दिया, ताकि मैं अपने मित्रों के साथ आनन्द मनाऊँ।

30) पर जैसे ही आपका यह बेटा आया, जिसने वेश्याओं के पीछे आपकी सम्पत्ति उड़ा दी है, आपने उसके लिए मोटा बछड़ा मार डाला है।’

31) इस पर पिता ने उस से कहा, ’बेटा, तुम तो सदा मेरे साथ रहते हो और जो कुछ मेरा है, वह तुम्हारा है।

32) परन्तु आनन्द मनाना और उल्लसित होना उचित ही था; क्योंकि तुम्हारा यह भाई मर गया था और फिर जी गया है, यह खो गया था और मिल गया है’।"



📚 मनन-चिंतन



आज हमें उड़ाऊ पुत्र के दृष्टान्त पर चिंतन करने का आह्वान किया गया है। प्रभु येसु ने यह दृष्टान्त दो प्रकार के लोगों के सामने सुनाया था। एक तरफ नाकेदार और पापी हैं जिन्होंने अपने पिछले जीवन में की गई बुराईयों के लिए खेद महसूस किया और पश्चाताप के साथ प्रभु की ओर अभिमुख होते हैं। दूसरी ओर शास्त्री और फरीसी हैं जो न केवल खुद को धर्मी मानते थे, बल्कि दूसरों में दोष ही दोष ही पाते थे। यह आत्म-धार्मिक रवैया अपने आप में बुरा था। उड़ाऊ पुत्र और उसका बड़ा भाई लोगों के इन दो समूहों का प्रतिनिधित्व करते हैं। उड़ाऊ पुत्र, यद्यपि वह पिता के घर से बहुत दूर चला गया और कुछ समय के लिए पाप में भटकता रहा, उसे पिता की कृपा और दयालु प्रेम का एहसास होता है और वह पिता के घर वापस आ जाता है। बड़ा भाई यद्यपि शारीरिक रूप से पिता के घर के क्षेत्र में रह रहा था, वह मानसिक रूप से पिता से बहुत दूर था। ख्रीस्तीय विश्वासियों की बुलाहट केवल हानिरहित बनने की ही नहीं, बल्कि अपने स्वर्गीय पिता के प्रेम का आनंद लेने और उस प्रेम को दूसरों के साथ साझा करने की भी है। एक सच्चा पवित्र व्यक्ति दूसरों में दोष खोजने के बजाय स्वयं के दोषों को खोजता है और उन्हें सुधारता है। एक सच्चा पवित्र व्यक्ति, निराशावादी और उदास होने से दूर, प्रेम, आनंद और शांति फैलाता है।




📚 REFLECTION


Today we are called upon to reflect over the parable of the prodigal son. Jesus told this parable before two types of people. On the one side we have the tax collectors and sinners who felt sorry about the evil they committed in their past life and turned to God with repentance. On the other hand we have the scribes and Pharisees who not only considered themselves as righteous, but also found fault with others. This self-righteous attitude itself was evil. The prodigal son and his elder brother represent these two groups of people. The prodigal son, although he went far away from the father’s house and wandered about in sin for some time, he comes to realize the father’s graciousness and merciful love and is drawn back to the father’s house. The heart of the elder brother, although he was staying geographically within the area of the house of the father, was far away from the father. As Christians we are called not only to be harmless people, but also to relish the love of our heavenly father and share that love with others with ever-grateful hearts. A truly holy person would find one’s own faults and correct them instead of finding fault with others. A truly holy person, far from being pessimistic and melancholic, radiates love, joy and peace.



मनन-चिंतन - 2



उडाऊँ पुत्र का दृष्टांत पुत्र की दुष्टता से अधिक पिता की सहद्यता एवं दयालुता पर केंद्रित दृष्टांत हैं। पुत्र का अपने पिता से संपत्ति का हिस्सा मांगना न सिर्फ परंपरा के प्रतिकूल था बल्कि एक प्रकार की उद्दण्डता भी थी। किन्तु पिता पुत्र की अयोग्यता को जानते हुये भी उसे सम्पति का हिस्सा दे देता है। पुत्र जल्द ही अपनी सम्पत्ति का हिस्सा भोग-विलास में उडा देता है तथा अत्यंत दयनीय तथा दरिद्रता का जीवन जीने लगता है। उसे पराये देश में सेवक की नौकरी करनी पडती हैं। वहॉ उसे सूअरों की देखभाल करने का कार्य दिया जाता है। उस देश में अकाल पडा था इसलिये वह सूअर का खाना खाकर “अपना पेट भरना चाहता था, लेकिन कोई उसे उन में से कुछ नहीं देता था” (लूकस 15:16)। तब जाकर वह सोचता है कि उसके पिता के सेवकों के साथ कितना अच्छा व्यवहार किया जाता है। अतः वह सेवक के रूप में ही पिता के घर लौटना चाहता है। हैरानी की बात है कि वह अपने पिता को उसका इंतजार करते हुये पाता है। पिता बिना किसी हिचकिचाहट से उसका स्वागत करता है तथा उसे पुत्र का दर्जा पुनः प्रदान करता है। पिता और पुत्र का व्यवहार निम्नलिखित बातें प्रदर्शित करता है।

1. उडाऊँ पुत्र का रवैया हमे सिखलाता है कि जब हम अपनी स्वतंत्रता का दुरूपयोग करते हैं तो पाप करते हैं तथा इस परिणामस्वरूप सदैव कष्ट उठाते हैं। संत पौलुस कहते हैं, “पाप का वेतन मृत्यु है” (रोमियों 6:23)। आदम और हेवा को ईश्वर ने सबकुछ के साथ उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता भी प्रदान की थी। किन्तु जब उन्होंने अपनी स्वतंत्रता का मनमाना इस्तेमाल किया तो उन्होंने पाप किया तथा वे ईश्वर से दूर हो गये। धर्मग्रंथ हमें इस विषय में चेतावनी देता है, “भाइयो! आप जानते हैं कि आप लोग स्वतंत्र होने के लिए बुलाये गये हैं। आप सावधान रहें, नहीं तो यह स्वतन्त्रता भोग-विलास का कारण बन जायेगी।” (गलातियों 5:13) तथा “आप लोग स्वतन्त्र व्यक्तियों की तरह आचरण करें, किन्तु स्वतन्त्रता की आड् में बुराई न करें।” (1 पेत्रुस 2:16) उडाऊँ पुत्र के पिता ने जो स्वतंत्रता उसे प्रदान की थी उसका दुरूपयोग कर वह पिता से सम्पत्ति का बंटवारा करने को कहता है।

2. पुत्र का व्यवहार बताता है कि जब उसने अपनी स्वतंत्रता का दुरूपयोग किया तो वह प्रारंभिक दौर में तो भोग-विलास का आनन्द उठाता है किन्तु बाद में उसे घोर यंत्रणा उठानी पडती हैं। ईश्वर से दूर जाकर, उनकी आज्ञाओं का उल्लंघन कर शुरूआत में तो हमें स्वतंत्रता का अहसास होता है किन्तु जल्द ही हम अनेक बातों, वस्तुओं, परिस्थितियों या व्यक्तियों के गुलाम बन जाते हैं जो हमारे तिरसकार एवं पतन का कारण बन जाता है।

3. पुत्र अपना सबकुछ लुटाने के बाद भी अपने पिता के घर लौटने में देर करता है। पहले उसे किसी बैगाने देश में सेवक बनना पडता है। फिर उसे सूअरों की देखभाल करने का कार्य दिया जाता है। इसके बाद भी उसे पिता के घर लौटने की याद नहीं आती। फिर उसे सूअरों का खाना खाकर अपना जीवन गुजारना पडता है। इतनी दयनीय स्थिति से गुजरने के बाद वह अपने पिता के घर लौटने की सोचता है। एक पापी के रूप में जब हम ईश्वर से दूर हो जाते हैं तो हमारा जीवन भी विभिन्न दुखमयी परिस्थितियों से गुजरता है। हम सांसारिक ’जुगाड’ लगाकर टाल मटोल का रवैया अपनाते हैं। ईश्वर की ओर लौटने के बजाय जब तक हम मजबूर नहीं होते या टूट नहीं जाते हैं तब तक शायद हम ईश्वर की ओर न लौटे। उडाऊँ पुत्र का व्यवहार हमें शिक्षा देता है कि जब हम जीवन में ईश्वर से दूर हो जायें तो यह कहने में “मैं उठकर अपने पिता के पास जाऊँगा...” देर न करें।

4. उडाऊँ पुत्र का अपने जीवन को सही मार्ग पर लाने का एकमात्र रास्ता पश्चातापी हृदय से अपने पिता के घर लौटने का था। इस बात को समझने में उसे बहुत कष्ट उठाना पडता है तथा समय लगता है। यदि हम ईश्वर से दूर है तो हमें भी पश्चाताप कर ईश्वर की ओर लौटना चाहिये क्योंकि बचने का यही एकमात्र उपाय है।

5. पिता का व्यवहार ईश्वर का मानव के प्रति दृष्टिकोण को प्रदर्शित करता है। जब पुत्र ने पिता से अलग हो जाना चाहा तो पिता ने यह जानते हुये भी कि पुत्र की मांग मर्यादा के अनुरूप नहीं है उसकी स्वतंत्रता के अनुसार निर्णय करने देता है।

6. जब पुत्र लौटता है तब वह पिता को उसका इंतजार करते हुये पाता है। पिता का उसे इस प्रकार दूर से ही देख लेना एक संयोग मात्र नहीं था बल्कि पिता रोजाना ही अपने पुत्र की राह देखता रहता था। ईश्वर भी हमारे लौटने के प्रति आशावादी है तथा हमारे सही मार्ग पर लौटने की प्रतीक्षा करते हैं।

7. पिता अपने पुत्र का बिना शर्त स्वागत करता है। वह उसे न तो डांटता है और न ही उसमें ग्लानि का भाव उत्पन्न कराने के लिए कुछ कहता है। बल्कि वह उसे पुत्र के रूप में स्वीकार कर उसका स्वागत करता है। वह उसे पुत्र के वस्त्र एवं अॅगूठी पुनः प्रदान कर उसे पहली जैसी गरिमा प्रदान करता है।

8. जब बडा लडका पिता के इस व्यवहार पर कडी आपत्ति उठाता है तथा घर में आने से इंकार कर देता है तो पिता अपनी उदारता न्यायोचित बताता है। वह बडे बेटे को मनाने के लिए बहाना नहीं बनाता बल्कि प्रदर्शित करता है कि पिता की उदारता पश्चातापी पुत्र के लिए सदैव बनी रहती है।


 -Br. Biniush Topno



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