About Me

My photo
Duliajan, Assam, India
Catholic Bibile Ministry में आप सबों को जय येसु ओर प्यार भरा आप सबों का स्वागत है। Catholic Bibile Ministry offers Daily Mass Readings, Prayers, Quotes, Bible Online, Yearly plan to read bible, Saint of the day and much more. Kindly note that this site is maintained by a small group of enthusiastic Catholics and this is not from any Church or any Religious Organization. For any queries contact us through the e-mail address given below. 👉 E-mail catholicbibleministry21@gmail.com

सोमवार, 04 अक्टूबर, 2021 वर्ष का सताईसवाँ सामान्य सप्ताह असीसी के सन्त फ़्रान्सिस

 

सोमवार, 04 अक्टूबर, 2021

वर्ष का सताईसवाँ सामान्य सप्ताह

असीसी के सन्त फ़्रान्सिस

🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥

पहला पाठ :योना का ग्रन्थ 1:1-2,1,11


1) प्रभु की वाणी अमित्तय के पुत्र योना के यह कहते हुए सुनाई पड़ी,

2) ’’उठों! महानगर निनीवे जा कर वहाँ के लोगों को डाँटो, क्योंकि मैं उनकी बुराई को अनदेखा नहीं कर सकता’’।

3) किन्तु योना ने प्रभु के सामने से भाग कर तरशीश के लिए प्रस्थान किया। यह याफा पहुँख और उसे वहाँ तरशीश जाने वाला जहाज मिला। उसने किराया दिया और प्रभु के सामने से तरशीश भागने के उद्देश्य से वह नाव पर सवार हो गया।

4) प्रभु ने समुद्र पर जोरों की आँधी भेजी और समुद्र में ऐसा भयंकर तूफान पैदा हुआ कि जहाज टूटने-टूटने को हो गया।

5) मल्लाहों पर भय छा गया और वे अपने-अपने देवता की दुहाई देने लगे। उन्होंने जहाज का भार कम करने के लिए सामान समुद्र में फेंक दिया। योना जहाज के भीतरी भाग में उतर कर लेट गया था और गहरी नींद सो रहा था।

6) कप्तान ने उसके पास आ कर कहा, ’’सोते क्यों हो? उठ कर अपने ईश्वर की दुहाई दो। वह ईश्वर शायद हमारी सुध ले, जिससे हमारा विनाश न हो।’’

7) इसके बाद मल्लाह एक दूसरे से कहने लगे, ’’आओ! हम चिट्ठि डाल कर देखें कि किस व्यक्ति के कारण यह विपत्ति हम पर आयी है’’। उन्होंने चिट्ठि डाली और योना का नाम निकला।

8) उन्होंने उस से कहा, ’’हमें अपना परिचय दो। तुम कहाँ से आये? तुम किस देश के निवासी हो? किस राष्ट्र के सदस्य हो?’’

9) उसने उन्हें उत्तर दिया, ’’मैं इब्रानी हूँ। मैं स्वर्ग के ईश्वर, प्रभु पर श्रद्धा रखता हूँ, जिससे समुद्र और पृथ्वी बनायी है।’’

10) महल्लाह यह सुन कर बहुत डर गये और उन्होंने उस से कहा, ’’तुमने ऐसा क्यों किया?’’ योना ने उन्हें बताया था कि वह प्रभु के सामने से भाग गया था।

11) तब उन्होंने उस से पूछा, ’’हम तुम्हारे साथ क्या करें जिससे समुद्र हमारे लिए शांत हो जाये?’’ क्योंकि समुद्र में तूफान बढता जा रहा था।

12) उसने उन्हें उत्तर दिया, ’’मुझे उठा कर समुद्र में फेंक दो और समुद्र तुम्हारे लिए शान्त हो जायेगा; क्योकि मैं जानता हूँ कि मेरे ही कारण यह भयंकर तूफान तुम लोगों को सता रहा है।’’

13) इस पर मल्लाहों ने डाँड़ के सहारे जहाज़ को किनारे तक पहुँचाने का प्रयत्न किया, किन्तु वे ऐसा नहीं कर सके, क्योंकि समुद्र में उनके चारों और ऊँची-ऊँची लहरें उठने लगीं।

14) तब उन्होंने यह कहते हुए प्रभु से प्रार्थना की, ’’प्रभु! इस मनुय की हत्या से हमारा विनाश न हो। तू हम पर निर्दोष रक्त बहाने का अभियोग नहीं लगा; क्योंकि, प्रभु! तूने चाहा कि ऐसा हो।’’

15) इस पर उन्होंने योना को उठा कर समुद्र में फेंक दिया और समुद्र शान्त हो गया।

16) मल्लाह प्रभु से बहुत डर गये। उन्होंने प्रभु को बलि चढायी और मन्नतें मानीं।

1) प्रभु के आदेशानुसार एक मच्छ योना को निगल गया और योना तीन दिन और तीन रात मच्छ के पेट में पडा रहा।

2) योना ने मच्छ के पेट से ही प्रभु, अपने ईश्वर से प्रार्थना की। उसने कहाः

3) मैंने अपने संकट में प्रभु की दुहाई दी और उसने मेरी प्रार्थना स्वीकार कर ली; मैंने अधोलोक में से तुझे पुकारा और तूने मेरी सुनी।

4) तूने मुझे गहरे महासागर में फेंक दिया था, बाढ़ ने मुझे घेर लिया था। तेरी उमड़ती लहरें मुझे डुबा कर ले गयी थीं।

5) मैंने अपने मन में कहा, ’’तूने मुझे अपने सामने से निकाल दिया। मैं तेरे पवत्रि मन्दिर फिर कैसे देख पाऊँगा?

6) मैं समुद्र में डूब रहा था, मेरे चारों ओर जल ही जल था;

7) मैंने पर्वतों की जड तक पहुँच गया था और मेरे सिर में सिवार लिपट गया था।

8) जब मैं निराशा में डूबा जा रहा था, तो मैंने प्रभु को याद किया और मेर प्रार्थना तेरे पवत्रि मन्दिर में तेरे पास पहुँची।

9) जो मिथ्या देवताओं की पूजा करते हैं, वे भले ही सच्ची भक्ति त्याग दें,

10) किन्तु मैं तेरा ही गुणगान गाते हुए तुझ को बलि चढाऊँगा। मैं अपनी मन्नत पूरी करूँगा। प्रभु-ईश्वर ही उद्धारक है।

11) इसके बाद प्रभु ने मच्छ को आदेश दिया और उसने योना को तट पर उगल दिया।



सुसमाचार : सन्त लूकस 10:25-37



25) किसी दिन एक शास्त्री आया और ईसा की परीक्षा करने के लिए उसने यह पूछा, ’’गुरूवर! अनन्त जीवन का अधिकारी होने के लिए मुझे क्या करना चाहिए?’’

26) ईसा ने उस से कहा, ’’संहिता में क्या लिखा है?’’ तुम उस में क्या पढ़ते हो?’’

27) उसने उत्तर दिया, ’’अपने प्रभु-ईश्वर को अपने सारे हृदय, अपनी सारी आत्मा, अपनी सारी शक्ति और अपनी सारी बुद्धि से प्यार करो और अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करो’’।

28) ईसा ने उस से कहा, ’’तुमने ठीक उत्तर दिया। यही करो और तुम जीवन प्राप्त करोगे।’’

29) इस पर उसने अपने प्रश्न की सार्थकता दिखलाने के लिए ईसा से कहा, ’’लेकिन मेरा पड़ोसी कौन है?’’

30) ईसा ने उसे उत्तर दिया, ’’एक मनुष्य येरुसालेम से येरीख़ो जा रहा था और वह डाकुओं के हाथों पड़ गया। उन्होंने उसे लूट लिया, घायल किया और अधमरा छोड़ कर चले गये।

31) संयोग से एक याजक उसी राह से जा रहा था और उसे देख कर कतरा कर चला गया।

32) इसी प्रकार वहाँ एक लेवी आया और उसे देख कर वह भी कतरा कर चला गया।

33) इसके बाद वहाँ एक समारी यात्री आया और उसे देख कर उस को तरस हो आया।

34) वह उसके पास गया और उसने उसके घावों पर तेल और अंगूरी डाल कर पट्टी बाँधी। तब वह उसे अपनी ही सवारी पर बैठा कर एक सराय ले गया और उसने उसकी सेवा शुश्रूषा की।

35) दूसरे दिन उसने दो दीनार निकाल कर मालिक को दिये और उस से कहा, ’आप इसकी सेवा-शुश्रूषा करें। यदि कुछ और ख़र्च हो जाये, तो मैं लौटते समय आप को चुका दूँगा।’

36) तुम्हारी राय में उन तीनों में कौन डाकुओं के हाथों पड़े उस मनुष्य का पड़ोसी निकला?’’

37) उसने उत्तर दिया, ’’वही जिसने उस पर दया की’’। ईसा बोले, ’’जाओ, तुम भी ऐसा करो’’।



📚 मनन-चिंतन



भले सामरी का दृष्टान्त ख्रीस्तीय उदारता का प्रतीक रहा है। दृष्टांत के माध्यम से, ईश्वर दूसरों के प्रति हमारे दान का मार्ग और असीमता बताते हैं। हमें यह नहीं पूछना है कि मेरा पड़ोसी कौन है बल्कि यह कि मैं किसका पड़ोसी हो सकता हूं।

याजक और लेवी के लिए जो घायल व्यक्ति के रास्ते से गुजरे थे, वह एक बाधा और एक समस्या थी जिसमें वे शामिल नहीं होना चाहते थे। क्योंकि उनके लिए शायद मंदिर में ईश्वर की सेवा करना सबसे महत्वपूर्ण और जरूरी बात थी। हालाँकि, सामरी के लिए, यह परमेश्वर की सेवा करने का एक अवसर था। उसने घायल व्यक्ति की देखभाल करने में असाधारण उदारता और विचारशीलता दिखाई। दृष्टांत के माध्यम से, येसु बताते हैं कि हर कोई जरूरतमंद हमारी सामाजिक और ख्रिस्तीय जिम्मेदारी बन जाता है। दूसरा, हमारी क्षमता के भीतर एक पूर्ण और व्यापक मदद जरूरतमंदों को उपलब्ध कराई जानी चाहिए। मदद के लिए कोई मौसम या अनुकूल स्थिति की जरुरत नहीं है। हमें एक सामरी की तरह गतिशील होना चाहिए, स्वेच्छा से और लोगों तक पहुंचने के लिए अपने जीवन और संसाधनों के साथ उदार होना चाहिए। सन्त विंसेंट डीपॉल ने इन शब्दों के साथ येसु के मन को खूबसूरती से अभिव्यक्त किया है, "जब हम वेदी पर ईश्वर की आराधना करते हैं और कोई द्वार पर घंटी बजाता है तो हमें उठना चाहिए और दरवाजे पर ईश्वर की सेवा करना शुरू करना चाहिए।"



📚 REFLECTION



The parable of the Good Samaritan has been the epitome of Christian charity. Through the parable, the Lord explains the way and the limitlessness of our charity towards others. We are not to ask who is my neighbor but rather whose neighbor can I be.

For the priest and the Levite who had passed by the wayside of the wounded person, he was an obstacle and a problem they did not want to get involved in. For them perhaps serving God in the temple was the most important and urgent thing. However, for the Samaritan, it was an opportunity to serve God. He showed extraordinary generosity and thoughtfulness in taking care of the wounded man. Through the parable, Lord explains that everyone in need becomes our social and Christian responsibility. Secondly, it is not just a help but a complete and comprehensive help within our capacity should be made available to the needy. There is no season or a tailor-made situation for help. One should be like the Samaritan dynamic, willingly and generous with his life and resources to reach out to the people. St. Vincent DePaul beautifully sums up the mind of Jesus with these words, “while we adore God on the altar and someone ring the bell. We must get up and begin to serve God at the doorstep.”


 -Br. Biniush Topno


Copyright © www.catholicbibleministry1.blogspot.com
Praise the Lord!