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Mass Readings for today 2 November 2020

 

Daily Mass Readings for Monday, 2 November 2020

THE COMMEMORATION OF ALL THE FAITHFUL DEPARTED (ALL SOULS)





First Reading: Wisdom 3: 1-9

1 But the souls of the just are in the hand of God, and the torment of death shall not touch them.

2 In the sight of the unwise they seemed to die: and their departure was taken for misery:

3 And their going away from us, for utter destruction: but they are in peace.

4 And though in the sight of men they suffered torments, their hope is full of immortality.

5 Afflicted in few things, in many they shall be well rewarded: because God hath tried them, and found them worthy of himself.

6 As gold in the furnace he hath proved them, and as a victim of a holocaust he hath received them, and in time there shall be respect had to them.

7 The just shall shine, and shall run to and fro like sparks among the reeds.

8 They shall judge nations, and rule over people, and their Lord shall reign for ever.

9 They that trust in him, shall understand the truth: and they that are faithful in love shall rest in him: for grace and peace is to his elect.

Responsorial Psalm: Romans 5: 5-11 or Romans 6:3-9

5 And hope confoundeth not: because the charity of God is poured forth in our hearts, by the Holy Ghost, who is given to us.

6 For why did Christ, when as yet we were weak, according to the time, die for the ungodly?

7 For scarce for a just man will one die; yet perhaps for a good man some one would dare to die.

8 But God commendeth his charity towards us; because when as yet we were sinners, according to the time,

9 Christ died for us; much more therefore, being now justified by his blood, shall we be saved from wrath through him.

10 For if, when we were enemies, we were reconciled to God by the death of his Son; much more, being reconciled, shall we be saved by his life.

11 And not only so; but also we glory in God, through our Lord Jesus Christ, by whom we have now received reconciliation.

or

3 Know you not that all we, who are baptized in Christ Jesus, are baptized in his death?

4 For we are buried together with him by baptism into death; that as Christ is risen from the dead by the glory of the Father, so we also may walk in newness of life.

5 For if we have been planted together in the likeness of his death, we shall be also in the likeness of his resurrection.

6 Knowing this, that our old man is crucified with him, that the body of sin may be destroyed, to the end that we may serve sin no longer.

7 For he that is dead is justified from sin.

8 Now if we be dead with Christ, we believe that we shall live also together with Christ:

9 Knowing that Christ rising again from the dead, dieth now no more, death shall no more have dominion over him.

Gospel: John 6: 37-40

37 All that the Father giveth to me shall come to me; and him that cometh to me, I will not cast out.

38 Because I came down from heaven, not to do my own will, but the will of him that sent me.

39 Now this is the will of the Father who sent me: that of all that he hath given me, I should lose nothing; but should raise it up again in the last day.

40 And this is the will of my Father that sent me: that every one who seeth the Son, and believeth in him, may have life everlasting, and I will raise him up in the last day.



02 नवंबर का पवित्र वचन

 

02 नवंबर 2020, सोमवार

सब मॄतविश्वासियों का स्मरणोत्सव

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पहला मिस्सा

📒 पहला पाठ : योब 19:1,23-27

1) अय्यूब ने उत्तर देते हुए कहाः

23 (23-24) ओह! कौन मेरे ये शब्द लिखेगा? कौन इन्हें लोहे की छेनी और शीशे से किसी स्मारक पर अंकित करेगा? इन्हें सदा के लिए चट्टान पर उत्कीर्ण करेगा?

25) मैं यह जानता हूँ कि मेरा रक्षक जीवित हैं और वह अंत में पृथ्वी पर खड़ा हो जायेगा।

26) जब मैं जागूँगा, मैं खड़ा हो जाऊँगा, तब मैं इसी शरीर में ईश्वर के दर्शन करूँगा।

27) मैं स्वयं उसके दर्शन करूँगा, मेरी ही आँखे उसे देखेंगी। मेरा हृदय उसके दर्शनों के लिए तरसता है।

अथवा पहला पाठ : रोमियों 5:5-11

5) आशा व्यर्थ नहीं होती, क्योंकि ईश्वर ने हमें पवित्र आत्मा प्रदान किया है और उसके द्वारा ही ईश्वर का प्रेम हमारे हृदयों में उमड़ पड़ा है।

6) हम निस्सहाय ही थे, जब मसीह निर्धारित समय पर विधर्मियों के लिए मर गये।

7) धार्मिक मनुष्य के लिए शायद ही कोई अपने प्राण अर्पित करे। फिर भी हो सकता है कि भले मनुष्य के लिए कोई मरने को तैयार हो जाये,

8) किन्तु हम पापी ही थे, जब मसीह हमारे लिए मर गये थे। इस से ईश्वर ने हमारे प्रति अपने प्रेम का प्रमाण दिया है।

9) जब हम मसीह के रक्त के कारण धार्मिक माने गये, तो हम निश्चिय ही मसीह द्वारा ईश्वर के दण्ड से बच जायेंगे।

10) हम शत्रु ही थे, जब ईश्वर के साथ हमारा मेल उसके पुत्र की मृत्यु द्वारा हो गया था और उसके साथ मेल हो जाने के बाद उसके पुत्र के जीवन द्वारा निश्चय ही हमारा उद्धार होगा।

11) इतना ही नहीं, अब तो हमारे प्रभु ईसा मसीह द्वारा ईश्वर से हमारा मेल हो गया है; इसलिए हम उन्हीं के द्वारा ईश्वर पर भरोसा रख कर आनन्दित हैं।

सुसमाचार : योहन 6:37-40

37) पिता जिन्हें मुझ को सौंप देता है, वे सब मेरे पास आयेंगे और जो मेरे पास आता है, मैं उसे कभी नहीं ठुकराऊँगा ;

38) क्योंकि मैं अपनी इच्छा नहीं, बल्कि जिसने मुझे भेजा, उसकी इच्छा पूरी करने के लिए स्वर्ग से उतरा हूँ।

39) जिसने मुझे भेजा, उसकी इच्छा यह है कि जिन्हें उसने मुझे सौंपा है, मैं उन में से एक का भी सर्वनाश न होने दूँ, बल्कि उन सब को अन्तिम दिन पुनर्जीवित कर दूँ।

40) मेरे पिता की इच्छा यह है कि जो पुत्र को पहचान कर उस में विश्वास करता है, उसे अनन्द जीवन प्राप्त हो। मैं उसे अन्तिम दिन पुनर्जीवित कर दूँगा।"

दूसरा मिस्सा

📒 पहला पाठ : इसायाह 25:6‍-9

6) विश्वमण्डल का प्रभु इस प्रर्वत पर सब राष्ट्रों के लिए एक भोज का प्रबन्ध करेगाः उस में रसदार मांस परोसा जायेगा और पुरानी तथा बढ़िया अंगूरी।

7) वह इस पर्वत पर से सब लोगों तथा सब राष्ट्रों के लिए कफ़न और शोक के वस्त्र हटा देगा,

8) श्वह सदा के लिए मृत्यु समाप्त करेगा। प्रभु-ईश्वर सबों के मुख से आँसू पोंछ डालेगा। वह समस्त पृथ्वी पर से अपनी प्रजा का कलंक दूर कर देगा। प्रभु ने यह कहा है।

9) उस दिन लोग कहेंगे - “देखो! यही हमारा ईश्वर है। इसका भरोसा था। यह हमारा उद्धार करता है। यही प्रभु है, इसी पर भरोसा था। हम उल्लसित हो कर आनन्द मनायें, क्योंकि यह हमें मुक्ति प्रदान करता है।“

अथवा पहला पाठ : रोमियों 8:14-23

14) लेकिन यदि आप आत्मा की प्रेरणा से शरीर की वासनाओें का दमन करेंगे, तो आप को जीवन प्राप्त होगा।

15) जो लोग ईश्वर के आत्मा से संचालित हैं, वे सब ईश्वर के पुत्र हैं- आप लोगों को दासों का मनोभाव नहीं मिला, जिस से प्रेरित हो कर आप फिर डरने लगें। आप लोगों को गोद लिये पुत्रों का मनोभाव मिला, जिस से प्रेरित हो कर हम पुकार कर कहते हैं, "अब्बा, हे पिता!

16) आत्मा स्वयं हमें आश्वासन देता है कि हम सचमुच ईश्वर की सन्तान हैं।

17) यदि हम उसकी सन्तान हैं, तो हम उसकी विरासत के भागी हैं-हम मसीह के साथ ईश्वर की विरासत के भागी हैं। यदि हम उनके साथ दुःख भोगते हैं, तो हम उनके साथ महिमान्वित होंगे।

18) मैं समझता हूँ कि हम में जो महिमा प्रकट होने को है, उसकी तुलना में इस समय का दुःख नगण्य है;

19) क्योंकि समस्त सृष्टि उत्कण्ठा से उस दिन की प्रतीक्षा कर रही है, जब ईश्वर के पुत्र प्रकट हो जायेंगे।

20) यह सृष्टि तो इस संसार की असारता के अधीन हो गयी है-अपनी इच्छा से नहीं, बल्कि उसकी इच्छा से, जिसने उसे अधीन बनाया है- किन्तु यह आशा भी बनी रही

21) कि वह असारता की दासता से मुक्त हो जायेगी और ईश्वर की सन्तान की महिमामय स्वतन्त्रता की सहभागी बनेगी।

22) हम जानते हैं कि समस्त सृष्टि अब तक मानो प्रसव-पीड़ा में कराहती रही है और सृष्टि ही नहीं, हम भी भीतर-ही-भीतर कराहते हैं।

23) हमें तो पवित्र आत्मा के पहले कृपा-दान मिल चुके हैं, लेकिन इस ईश्वर की सन्तान बनने की और अपने शरीर की मुक्ति की राह देख रहे हैं।

📙 सुसमाचार : मत्ती 25:31-46

31) "जब मानव पुत्र सब स्वर्गदुतों के साथ अपनी महिमा-सहित आयेगा, तो वह अपने महिमामय सिंहासन पर विराजमान होगा

32) और सभी राष्ट्र उसके सम्मुख एकत्र किये जायेंगे। जिस तरह चरवाहा भेड़ों को बकरियों से अलग करता है, उसी तरह वह लोगों को एक दूसरे से अलग कर देगा।

33) वह भेड़ों को अपने दायें और बकरियों को अपने बायें खड़ा कर देखा।

34) "तब राजा अपने दायें के लोगों से कहेंगे, ’मेरे पिता के कृपापात्रों! आओ और उस राज्य के अधिकारी बनो, जो संसार के प्रारम्भ से तुम लोगों के लिए तैयार किया गया है;

35) क्योंकि मैं भूखा था और तुमने मुझे खिलाया; मैं प्यासा था तुमने मुझे पिलाया; मैं परदेशी था और तुमने मुझको अपने यहाँ ठहराया;

36) मैं नंगा था तुमने मुझे पहनाया; मैं बीमार था और तुम मुझ से भेंट करने आये; मैं बन्दी था और तुम मुझ से मिलने आये।’

37) इस पर धर्मी उन कहेंगे, ’प्रभु! हमने कब आप को भूखा देखा और खिलाया? कब प्यासा देखा और पिलाया?

38) हमने कब आपको परदेशी देखा और अपने यहाँ ठहराया? कब नंगा देखा और पहनाया ?

39) कब आप को बीमार या बन्दी देखा और आप से मिलने आये?"

40) राजा उन्हें यह उत्तरदेंगे, ’मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ- तुमने मेरे भाइयों में से किसी एक के लिए, चाहे वह कितना ही छोटा क्यों न हो, जो कुछ किया, वह तुमने मेरे लिए ही किया’।

41) "तब वे अपने बायें के लोगों से कहेंगे, ’शापितों! मुझ से दूर हट जाओ। उस अनन्त आग में जाओ, जो शैतान और उसके दूतों के लिए तैयार की गई है;

42) क्योंकि मैं भूखा था और तुम लोगों ने मुझे नहीं खिलाया; मैं प्यासा था और तुमने मुझे नहीं पिलाया;

43) मैं परदेशी था और तुमने मुझे अपने यहाँ नहीं ठहराया; मैं नंगा था और तुमने मुझे नहीं पहनाया; मैं बीमार और बन्दी था और तुम मुझ से नहीं मिलने आये’।

44) इस पर वे भी उन से पूछेंगे, ’प्रभु! हमने कब आप को भूखा, प्यासा, परदेशी, नंगा, बीमार या बन्दी देखा और आपकी सेवा नहीं की?"

45) तब राजा उन्हें उत्तर देंगे, ’मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ - जो कुछ तुमने मेरे छोटे-से-छोटे भाइयों में से किसी एक के लिए नहीं किया, वह तुमने मेरे लिए भी नहीं किया’।

46) और ये अनन्त दण्ड भोगने जायेंगे, परन्तु धर्मी अनन्त जीवन में प्रवेश करेंगे।"

तीसरा मिस्सा

📒 पहला पाठ : प्रज्ञा-ग्रन्थ 3:1-9

1) धर्मियों की आत्माएँ ईश्वर के हाथ में हैं। उन्हें कभी कोई कष्ट नहीं होगा।

2) मूर्ख लोगों को लगा कि वे मर गये हैं। वे उनका संसार से उठ जाना घोर विपत्ति मानते थे।

3) और यह समझते थे कि हमारे बीच से चले जाने के बाद उनका सर्वनाश हो गया है; किन्तु धर्मियों को शान्ति का निवास मिला है।

4) मनुष्यों को लगा कि विधर्मियों को दण्ड मिल रहा है, किन्तु वे अमरत्व की आशा करते थे।

5 थोड़ा कष्ट सहने के बाद उन्हें महान् पुरस्कार दिया जायेगा। ईश्वर ने उनकी परीक्षा ली और उन्हें अपने योग्य पाया है।

6) ईश्वर ने घरिया में सोने की तरह उन्हें परखा और होम-बलि की तरह उन्हें स्वीकार किया।

7) ईश्वर के आगमन के दिन वे ठूँठी के खेत में धधकती चिनगारियों की तरह चमकेंगे।

8) वे राष्ट्रों का शासन करेंगे; वे देशों पर राज्य करेंगे, किन्तु प्रभु सदा-सर्वदा उनका राजा बना रहेगा।

9) जो ईश्वर पर भरोसा रखते हैं, वे सत्य को जान जायेंगे; जो प्रेम में दृढ़ रहते हैं, वे उसके पास रहेंगे; क्योंकि जिन्हें ईश्वर ने चुना है, वे कृपा तथा दया प्राप्त करेंगे।

अथवा पहला पाठ : प्रकाशना 21:1-7

1) तब मैंने एक नया आकाश और एक नयी पृथ्वी देखी। पुराना आकाश तथा पुरानी पृथ्वी, दोनों लुप्त हो गये थे और समुद्र भी नहीं रह गया था।

2) मैंने पवित्र नगर, नवीन येरुसालेम को ईश्वर के यहाँ से आकाश में उतरते देखा। वह अपने दुल्हे के लिए सजायी हुई दुल्हन की तरह अलंकृत था।

3) तब मुझे सिंहासन से एक गम्भीर वाणी यह कहते सुनाई पड़ी, "देखो, यह है मनुष्यों के बीच ईश्वर का निवास! वह उनके बीच निवास करेगा। वे उसकी प्रजा होंगे और ईश्वर स्वयं उनके बीच रह कर उनका अपना ईश्वर होगा।

4) वह उनकी आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा। इसके बाद न मृत्यु रहेगी, न शोक, न विलाप और न दुःख, क्योंकि पुरानी बातें बीत चुकी हैं।"

5) तब सिंहासन पर विराजमान व्यक्ति ने कहा, "मैं सब कुछ नया बना देता हूँ"।

6) इसके बाद उसने कहा, "ये बातें लिखो, क्योंकि ये विश्वासनीय और सत्य हैं"। उसने मुझ से कहा, "समाप्त हो गया है। आल्फा और ओमेगा, आदि और अन्त, मैं हूँ। मैं प्यासे को संजीवन जल के स्त्रोत से मुफ़्त में पिलाउँगा।

7) यह विजयी की विरासत है। मैं उसका ईश्वर होउँगा और वह मेरा पुत्र होगा।

सुसमाचार : मत्ती 5:1-12

(1) ईसा यह विशाल जनसमूह देखकर पहाड़ी पर चढ़े और बैठ गए। उनके शिष्य उनके पास आये।

(2) और वे यह कहते हुए उन्हें शिक्षा देने लगेः

(3) "धन्य हैं वे, जो अपने को दीन-हीन समझते हैं! स्वर्गराज्य उन्हीं का है।

(4) धन्य हैं वे जो नम्र हैं! उन्हें प्रतिज्ञात देश प्राप्त होगा।

(5) धन्य हैं वे, जो शोक करते हैं! उन्हें सान्त्वना मिलेगी।

(6) घन्य हैं, वे, जो धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं! वे तृप्त किये जायेंगे।

(7) धन्य हैं वे, जो दयालू हैं! उन पर दया की जायेगी।

(8) धन्य हैं वे, जिनका हृदय निर्मल हैं! वे ईश्वर के दर्शन करेंगे।

(9) धन्य हैं वे, जो मेल कराते हैं! वे ईश्वर के पुत्र कहलायेंगे।

(10) धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के कारण अत्याचार सहते हैं! स्वर्गराज्य उन्हीं का है।

(11) धन्य हो तुम जब लोग मेरे कारण तुम्हारा अपमान करते हैं, तुम पर अत्याचार करते हैं और तरह-तरह के झूठे दोष लगाते हैं।

(12) खुश हो और आनन्द मनाओ - स्वर्ग में तुम्हें महान् पुरस्कार प्राप्त होगा। तुम्हारे पहले के नबियों पर भी उन्होंने इसी तरह अत्याचार किया।

📚 मनन-चिंतन

जीवन और मृत्यु इस संसार की यथार्थ सच्चाई है जो हम सभी को इससे गुजरना हैं। जो इस संसार में आता है, उसे इस संसार से जाना भी पड़ता है। कोरोना की महामारी में पूरा संसार एक भयावक स्थिति से गुजर रहा है जहॉं पर बहुतों ने इस महामारी के कारण अपनी जान गवाई। इस महामारी ने मृत्यु को और भी ज्वलंत तरीके से हमारे बीच में रखा। मृत्यु एक ऐसी सच्चाई है जिससे हमारे पूर्वज और हमारे परिवार के कुछ सदस्य गुजर कर जा चुके है और हमें भी इससे गुजर कर जाना पड़ेगा, चाहे वह कोराना के माध्यम से हो या कोई अन्य माध्यम से।

अक्सर लोग मृत्यु से डरते हैं क्योकि उनको मालूम नहीं था कि मृत्यु के बाद हमारा क्या होगा? किसी किसी का मानना है कि मृत्यु के बाद कुछ नहीं रहता। मृत्यु के बाद का जीवन के रहस्य को प्रभु येसु ने पुनर्जीवित होकर खोल दिया। इतना ही नहीं प्रभु येसु ने अपने वचनों द्वारा हम सब को आने वाले जीवन और स्वर्गराज्य के विषय में विभिन्न-विभिन्न दृष्टांतों के जरिये समझाया एवं बताया कि वही हमारा अंतिम लक्ष्य या अंतिम स्थान है जहॉं हमें पहुॅंचने का भरपूर प्रयास करना चाहिए। मृत्यु हमें ज्ञात दिलाती है कि हम केवल शरीर के ही नहीं बने है परंतु हम शरीर और आत्मा से बनें है। मत्ती 10ः28 बताता है कि, ‘‘उन से नहीं डरो, जो शरीर को मार डालते हैं, किन्तु आत्मा को नहीं मार सकते, बल्कि उससे डरो, जो शरीर और आत्मा दोनें का नरक में सर्वनाश कर सकता हैं।’’ हमें अपने शरीर और आत्मा दोनों को नरक में डाले जाने से बचाना है।

कल हमसब ने सभी संतों का पर्व मनाया जो इस संसार से विदा होकर स्वर्ग में ईश्वर की संगति में है और ईश्वर की महिमा एवं आराधना कर रहे है। आज काथलिक कलीसिया सभी मृतविश्वासियों का दिवस को मनाती हैं, जो इस संसार से विदा तो ले लिये है परंतु वे स्वर्गराज्य मे न पहुॅंच कर अधोलोक में संघर्ष कर रहे है। आज के दिन हम उन सभी को याद करते है जो हमसे पहले इस संसार से विदा हो गयें हैं और अधोलोक में हैं। हम उन सभी के लिए प्रार्थना करने की जरूरत है जिससे कि उनके सारे पाप और गुनाह क्षमा हो जाये और वे अनंत जीवन में येसु के साथ स्वर्गराज्य में जीवन बिता सकें। यह दिन हमारे सभी मृत परिवार जनों, रिश्तादारों, शुभचिंतकों, और दोस्तो को याद करते हुए उनके लिए प्रार्थना करने का दिन है।

यह दिन हमें यह भी याद दिलाता हैं कि मृत्यु एक सच्चाई हैं तथा स्वर्गराज्य ही हमारा धाम है हमें इस संसार में ऐसे जीवन जीना है जैसे हम स्वर्गराज्य के प्रजा है। जो इस प्रकार का जीवन बिताता है उसे मृत्यु से कोई डर नहीं जैसे कि संत पौलुस कहते हैं, ‘‘मेरे लिए तो जीवन है-मसीह, और मृत्यु है उनकी पूर्ण प्राप्ति।’’ (फिल्ली. 1ः21) क्योंकि स्वर्गराज्य ही हम सभी विश्वासियों का धाम है इसलिए मृत्यु हमारे लिए शोक मनाने का दिन नहीं परंतु अनंत जीवन में प्रवेश पाने का आनंद है।

आइये आज के दिन हम सभी मृत विश्वासी भाई-बहनों के लिए प्रार्थना करें जिन्हंे हम जानते हैं साथ ही साथ उनके लिए भी जिन्हें हम नहीं जानते और जिनकें लिए प्रार्थना करने के लिए कोई नहीं हैं। प्रभु ईश्वर उनके सारे गुनाहों को क्षमा कर अनंत राज्य में प्रवेश पाने में मदद करें। आमेन



📚 REFLECTION

Life and death is true reality which all of us have to undergo. Anyone who comes in this world has to go also from this world. Today the whole world is going through the dangerous situation of corona pandemic where many have lost their near and dear ones. This pandemic has highlighted the reality of death in more striking way. Death is a reality through which our ancestors have gone through and one day we also have to go through it can be through corona or any other means.

Usually people are afraid of death because they do not know what will happen after death. Some have the view that death is the ultimate and there is nothing after death. By Resurrection of Jesus, Jesus revealed the mystery of life after death. Not only this but Jesus has explained about after-life and Kingdom of God in his words and through various parables that Heaven is our ultimate destination and we have to try our best to reach there. Death reminds us that we are not made of body alone but we are made of both body and soul. Mt. 10:28 tells us, “Don't be afraid of those who kill the body but cannot kill the soul. Instead, fear the one who can destroy both body and soul in hell.” We have to save our body and soul to be destroyed in hell.

Yesterday we celebrated All Saints day, the saints who departed from this world and are now living in the presence of God adoring and glorifying God. Today the Catholic Church is remembering all the departed souls who have gone from this world but are struggling in purgatory to be purified. Today we remember all those who departed from us and are remaining in purgatory. We need to pray for them so that their sins may be forgiven and they will be able to enter heaven. This is the day to remember all our departed family members, relatives, benefactors and friends and to pray for them if they are still in purgatory.

This day also reminds us of the reality of death and our ultimate destination that is heaven. We need to live this life as we are the heirs of Kingdom of heaven. Those who live like this they do not have the fear of death as St. Paul says, “For to me, living is Christ and dying is gain.” (Phil. 1:21) Since Kingdom of heaven is the destination of us believers, death is not the moment of mourning but it is the joy of entering into eternal life or eternal happiness.

Today let’s pray for our departed brothers and sisters whom we know as well as whom we do not know and for whom there is no one to pray for them. May Almighty God forgive their sins and help them to enter in His Kingdom. Amen

 -Br. Biniush Topno

(Duliajan Assam)


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Praise the Lord!