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शुक्रवार, 23 जुलाई, 2021 वर्ष का सोलहवाँ सामान्य सप्ताह

 

शुक्रवार, 23 जुलाई, 2021

वर्ष का सोलहवाँ सामान्य सप्ताह

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पहला पाठ : निर्गमन 20:1-17

1) ईश्वर ने मूसा से यह सब कहा,

2) ''मैं प्रभु तुम्हारा ईश्वर हूँ। मैं तुमको मिस्र देश से गुलामी के घर से निकाल लाया।

3) मेरे सिवा तुम्हारा कोई ईश्वर नहीं होगा।

4) ''अपने लिये कोई देव मूर्ति मत बनाओ। ऊपर आकाश में या नीचे पृथ्वी तल पर या पृथ्वी के नीचे के जल में रहने वाले किसी भी प्राणी अथवा वस्तु का चित्र मत बनाओ।

5) उन मूर्तियों को दण्डवत कर उनकी पूजा मत करो; क्योंकि मैं प्रभु, तुम्हारा ईश्वर, ऐसी बातें सहन नहीं करता जो मुझ से बैर करते हैं, मैं तीसरी और चौथी पीढ़ी तक उनकी सन्तति को उनके अपराधों का दण्ड देता हूँ।

6) जो मुझे प्यार करते हैं और मेरी आज्ञाओं का पालन करते है मैं हजार पीढ़ियों तक उन पर दया करता हूँ।

7) प्रभु अपने ईश्वर का नाम व्यर्थ मत लो; क्योंकि जो व्यर्थ ही प्रभु का नाम लेता है, प्रभु उसे अवश्य दण्डित करेगा।

8) विश्राम-दिवस को पवित्र मानने का ध्यान रखो।

9) तुम छः दिनों तक परिश्रम करते रहो और अपना सब काम करो;

10) परन्तु सातवाँ दिन तुम्हारे प्रभु ईश्वर के आदर में विश्राम का दिन है। उस दिन न तो तुम कोई काम करो न तुम्हारा पुत्र, न तुम्हारी पुत्री, न तुम्हारा नौकर, न तुम्हारी नौकरानी, न तुम्हारे चौपाये और न तुम्हारे शहर में रहने वाला परदेशी।

11) छः दिनों में प्रभु ने आकाश, पृथ्वी, समुद्र और उन में से जो कुछ है वह सब बनाया है और उसने सातवें दिन विश्राम किया। इसलिए प्रभु ने विश्राम दिवस को आशिष दी है और उसे पवित्र ठहराया है।

12) अपने माता-पिता का आदर करों जिससे तुम बहुत दिनों तक उस भूमि पर जीते रहो, जिसे तुम्हारा प्रभु ईश्वर तुम्हें प्रदान करेगा।

13) हत्या मत करो।

14) व्यभिचार मत करो।

15) चोरी मत करो।

16) अपने पड़ोसी के विरुद्ध झूठी गवाही मत दो। अपने पड़ोसी के घर-बार का लालच मत करो।

17) न तो अपने पड़ोसी की पत्नी का, न उसके नौकर अथवा नौकरानी का, न उसके बैल अथवा गधे का - उसकी किसी भी चीज का लालच मत करो।''


सुसमाचार : मत्ती 13:18-23


18) ’’अब तुम लोग बोने वाले का दृष्टान्त सुनो।

19) यदि कोई राज्य का वचन सुनता है, लेकिन समझता नहीं, तब उसके मन में जो बोया गया है, उसे शैतान आ कर ले जाता हैः यह वह है, जो रास्ते के किनारे बोया गया है।

20) जो पथरीली भूमि मे बोया गया है, यह वह है, जो वचन सुनते ही प्रसन्नता से ग्रहण करता है;

21) परन्तु उस में जड़ नहीं है, और वह थोड़े ही दिन दृढ़ रहता है। वचन के कारण संकट या अत्याचार आ पड़ने पर वह तुरन्त विचलित हो जाता है।

22) जो काँटों में बोया गया हैः यह वह है, जो वचन सुनता है; परन्तु संसार की चिन्ता और धन का मोह वचन को दबा देता है और वह फल नहीं लाता।

23) जो अच्छी भूमि में बोया गया हैः यह वह है, जो वचन सुनता और समझता है और फल लाता है, कोई सौ गुना, कोई साठ गुना, और कोई तीस गुना।’’


📚 मनन-चिंतन


आमतौर पर दृष्टान्त का अर्थ होता है, दृष्टा-अन्त = देखने वाले के अनुसार अन्त. दृष्टान्त का मतलब हुआ कि कोई उदाहरण या कहानी जिसका सन्देश सुनाने वाले पर निर्भर करता है. वह उदाहरण जिसके जीवन में जैसे सटीक बैठता है, वैसा ही उसके लिए उसका सन्देश होगा. अक्सर ऐसी कहानी का कोई एक निष्कर्ष नहीं निकलता. प्रभु येसु द्वारा कही गई बातें सुनाने वाले की समझ के अनुसार फल उत्पन्न करती थी. आज के सुसमाचार में प्रभु येसु बीज बोने वाले का दृष्टान्त का अर्थ बताते हैं. यह शायद एकमात्र ऐसा दृष्टान्त है जिसकी व्याख्या स्वयं प्रभु येसु करते हैं, अन्यथा उनके दृष्टान्त उनके सुनने वालों को खुद समझने पड़ते हैं.

बीज बोने वाले के दृष्टान्त का वास्तविक विषय बीज से बढ़कर वह मिट्टी और वातावरण है जिसमें वे बीज गिरे. हम जानते हैं कि सबसे अच्छी मिट्टी वही थी जिसमें वह बीज गिरने पर कई गुना फल लाता है. इसकी व्याख्या करने का मकसद यही है कि हमारा हृदय भी उसी उपजाऊ मिट्टी के समान बने. आखिर हम उस उपजाऊ मिट्टी के समान कैसे बन सकते हैं? सबसे पहले हमें ईश्वर के वचन के प्रति अपना हृदय और जीवन खुला रखना है, उन सभी कमियों को दूर करना है जिनके कारण हमारे हृदय में ईश्वर का बीज पनप नहीं पाता है. हो सकता है ईश्वर के वचन से बहुत फल उत्पन्न करने के लिए हमारे हृदयरूपी मिट्टी को उचित रूप से तैयार करने के लिए बहुत परिश्रम करने की आवश्यकता है. आइये इसके लिए हम ईश्वर से कृपा माँगें.



📚 REFLECTION



One of the characteristics of a parable is that it is open-ended, which means the end or the conclusion is left to the audience. Very often its meaning is interpreted according to the audience and the intended message. A Parable will have the meaning as per the people to whom it is narrated. Usually it can be interpreted in multiple ways. The words spoken by Jesus, bore fruit according to the type of the listeners. Jesus explains the meaning of the parable of the sower. Jesus usually talks to people in parables and leaves the people to understand their meaning, off course he would explain them privately to his disciples.

The parable of the sower is more about the soil and the atmosphere in which the seeds fell, than the sower himself. We know the best soil is the one falling into which the seed yields maximum. Jesus explains this parable so that we also may prepare the soil of our hearts to bear much fruit. How do we prepare the ground of our hearts to be more productive? First of all we need to keep our hearts and lives open to the Word of God, and remove all the obstacles and hurdles that block the healthy growth of the seed. We may have to work a lot hard with the soil to make it more productive. Let us ask God’s grace for this endeavour. Amen.



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Praise the Lord!