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गुरुवार, 25 नवंबर, 2021

 

गुरुवार, 25 नवंबर, 2021

वर्ष का चौंत्तीसवाँ सामान्य सप्ताह

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⭐ पहला पाठ : दानिएल 6:12-28

12) कुछ लोगों ने दानिएल के यहाँ पहुँचने पर उसे अपने ईश्वर से प्रार्थना और अनुनय-विनय करते पाया।

13) वे राजा से मिलने गये और उसे राजकीय निषेधाज्ञा का स्मरण दिलाते हुए बोले, "राजा! क्या आपने यह निषेधाज्ञा नहीं निकाली कि तीस दिनों तक जो कोई आप को छोड़ कर किसी भी देवता अथवा मनुष्य से प्रार्थना करेगा, वह सिंहों के खड्ड में डाल दिया जायेगा?" राजा ने उत्तर दिया, "यह मेदियों और फारसियों के अपरिवर्तनीय कानून के अनुसार सुनिश्चित है।''

14) इस पर उन्होंने राजा से कहा, "दानिएल- यूदा के निर्वासितों में से एक- आपके द्वारा घोषित निषेधाज्ञा की परवाह नहीं करता। वह दिन में तीन बार अपने ईश्वर से प्रार्थना करता है।"

15) राजा को यह सुन कर बहुत दुःख हुआ। उसने दानिएल को बचाने को निश्चत किया और सूर्यास्त तक कोई रास्ता खोज निकालने का प्रयत्न किया।

16) किन्तु उन लोगों ने यह कहते हुए राजा से अनुरोध किया, "राजा! स्मरण रखिए कि मेदियों और फारसियों के कानून के अनुसार राजा द्वारा घोषित कोई भी निषेधाज्ञा अथवा आदेश अपरिवर्तनीय है"।।

17) इस पर राजा ने दानिएल को ले आने और सिंहों के खड्ड में डालने का आदेश दिया। उसने दानिएल से कहा, "तुम्हारा ईश्वर, जिसकी तुम निरन्तर सेवा करते हो, तुम्हारी रक्षा करे"।

18) एक पत्थर खड्ड के द्वार पर रखा गया और राजा ने उस पर अपनी अंगूठी और अपने सामन्तों की अंगूठी की मुहर लगायी, जिससे कोई भी दानिएल के पक्ष में हस्तक्षेप न कर सके।

19) इसके बाद राजा अपने महल चला गया; उसने उस रात को अनशन किया और अपनी उपपत्नियों को नहीं बुलाया। उसे नींद नहीं आयी और वह सबेरे,

20) पौ फटते ही उठा, और सिंहों के खड्ड की ओर जल्दी-जल्दी चल पड़ा।

21) खड्ड के निकट आ कर उसने दुःख भरी आवाज़ में दानिएल को पुकार कर कहा, "दानिएल! जीवन्त ईश्वर के सेवक! तुम जिस ईश्वर की निरन्तर सेवा करते हो, क्या वह तुम को सिंहों से बचा सका?"

22) दानिएल ने राजा को उत्तर दिया, "राजा! आप सदा जीते रहें!

23) मेरे ईश्वर ने अपना दूत भेज कर सिंहों के मुँह बन्द कर दिये। उन्होंने मेरी कोई हानि नहीं की, क्योंकि मैं ईश्वर की दृष्टि में निर्दोष था।

24) राजा! मैंने आपके विरुद्ध भी कोई अपराध नहीं किया।" राजा आनन्दित हो उठा और उसने दानिएल को खड्ड से बाहर निकालने का आदेश दिया। इस पर दानिएल को खड्ड से बाहर निकाला गया; उसके शरीर पर कोई घाव नहीं था क्योंकि उसने अपने ईश्वर पर भरोसा रखा था।

25) जिन लोगों ने दानिएल पर अभियोग लगाया था, राजा ने उन्हें बुला भेजा और उन को अपने पुत्रों तथा पत्नियों के साथ सिंहों के खड्ड में डाल देने का आदेश दिया। वे खड्ड के फर्श तक भी नहीं पहुँचे थे कि सिंहों न उन पर टूट कर उनकी सब हाड्डियाँ तोड़ डाली

26) इसके बाद राजा ने पृथ्वी भर के लोगों, राष्ट्रों और भाषा-भाशियों को लिखा,

27) "आप लोगों को शांति मिले! मेरी राजाज्ञा यह है कि मेरे राज्य क्षेत्र समस्त क्षेत्र के लोग दानिएल के ईश्वर पर श्रद्धा रखें और उससे डरेंः क्योंकि वह सदा बना रहने वाला जीवन्त ईश्वर है, उसका राज्य कभी नष्ट नहीं किया जायेगा और उसके प्रभुत्व का कभी अंत नहीं होगा।

28) वह रक्षा करता और बचाता है, वह स्वर्ग और पृथ्वी पर चिन्ह और चमत्कार दिखाता है, उसने दानिएल को सिंहों के पंजों से छुडाया है।"


⭐ सुसमाचार : लूकस 21:20-28


20) "जब तुम लोग देखोगे कि येरूसालेम सेनाओं से घिर रहा है, तो जान लो कि उसका सर्वनाश निकट है।

21) उस समय जो लोग यहूदिया में हों, वे पहाड़ों पर भाग जायें; जो येरूसालेम में हों, वे बाहर निकल जायें और जो देहात में हों, वे नगर में न जायें;

22) क्योंकि वे दण्ड के दिन होंगे, जब जो कुछ लिखा है, वह पूरा हो जायेगा।

23) उनके लिए शोक, जो उन दिनों गर्भवती या दूध पिलाती होंगी! क्योंकि देश में घोर संकट और इस प्रजा पर प्रकोप आ पड़ेगा।

24) लोग तलवार की धार से मृत्यु के घाट उतारे जायेंगे। उन को बन्दी बना कर सब राष्ट्रों में ले जाया जायेगा और येरूसालेम ग़ैर-यहूदी राष्ट्रों द्वारा तब तक रौंदा जायेगा, जब तक उन राष्ट्रों का समय पूरा न हो जाये।

25) "सूर्य, चन्द्रमा और तारों में चिन्ह प्रकट होंगे। समुद्र के गर्जन और बाढ़ से व्याकुल हो कर पृथ्वी के राष्ट्र व्यथित हो उठेंगे।

26) लोग विश्व पर आने वाले संकट की आशंका से आतंकित हो कर निष्प्राण हो जायेंगे, क्योंकि आकाश की शक्तियाँ विचलित हो जायेंगी।

27) तब लोग मानव पुत्र को अपार सामर्थ्य और महिमा के साथ बादल पर आते हुए देखेंगे।

28) "जब ये बातें होने लगेंगी, तो उठ कर खड़े हो जाओ और सिर ऊपर उठाओ, क्योंकि तुम्हारी मुक्ति निकट है।"


📚 मनन-चिंतन


आज का सुसमाचार येरूसालेम के विनाश और मनुष्य के पुत्र के आगमन की बात करता है।

येरूसालेम का विनाशः येसु लोगों को येरूसालेम के विनाश की प्रक्रिया समझाते हैं। 1. सेनाओं से घिरा होनाः येरूसालेम रोमियों द्वारा घिरा हुआ था और उन्हें पूरे शहर को घेरने में काफी समय लगा। एक बार जब शहर को घेर लिया गया तो उनके प्रावधानों को रोक दिया गया। 2. जेरूसलम से पलायनः खाद्य सामग्री की कमी के कारण एक आंदोलन/संचलन की आवश्यकता पड़ी। प्रावधानों के बिना लोगों का संघर्ष बढ़ता गया और उनके पास शहर से बाहर जाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था। यह आंदोलन/संचलन वास्तव में दुनिया भर में ईसाई धर्म के प्रसार के लिए एक आशीर्वाद था। 3. संघर्षः जिन लोगों ने शहर से बाहर जाने से इनकार कर दिया, उन्हें एक वास्तविक संघर्ष से गुजरना पड़ा, खासकर गर्भवती महिलाओं और शिशुओं वाली महिलाओं को। कई मारे गए और अन्य को बंदी बना लिया गया। 4. अन्यजातियों/अन्यराष्ट्रों का समयः बाइबल बताती है कि संघर्ष तब तक जारी रहेगा जब तक अन्यजातियों का समय पूरा नहीं हो जाता। वह समय कब आएगा यह स्पष्ट नहीं है।

मनुष्य के पुत्र का आगमनः पाठ का दूसरा भाग येसु के आने की पूर्व सावधानी, उनके प्रकट होने का स्थान और उनके आने के उद्देश्य की बात करता है। आकाशीय पिंड और पार्थिव पिंड में अशांति को मनुष्य के पुत्र के आने से पूर्व एक चेतावनी के रूप में बताया गया है। कहा जाता है कि वह बादलों में शक्ति और महिमा के साथ प्रकट होगा। दानिएल 7ः13 में, हम पढ़ते हैं, ‘‘मैंने देखा कि आकाश के बादलों पर मानवपुत्र-जैसा कोई आया।’’ उसके आने का उद्देश्य मानवता की मुक्ति के रूप में घोषित किया गया है। ईश्वर के साथ प्रेम और आत्मीयता का आनंद लेने के लिए, उनके स्वतंत्रता, शांति और आनंद का अनुभव करने के लिए पाठ अंतिम मुक्ति की आशा के साथ समाप्त होता है

हमारे जीवन में जिन संघर्षों से हम गुजरते हैं, वे हमारे लिए ईश्वर की ओर लौटने के लिए एक सबक हों और हम मुक्ति के उपहार के लिए आभारी रहें, जो येसु हमारे लिए लेकर आयें हैं।



📚 REFLECTION

Gospel of today speaks of the destruction of Jerusalem and the coming of the son of man.

Destruction of Jerusalem: Jesus explains to the people the process of destruction of Jerusalem. 1. Surrounded by armies: Jerusalem was surrounded by the Romans and it took long time for them to encircle the entire city. Once the city was surrounded their provisions were stopped. 2. Escape from Jerusalem: A movement was necessitated due to lack of food materials. Without the provisions the struggle of people increased and they had no other option than to move out of the city. This movement was in fact a blessing for the spread of Christianity around the world. 3. The struggle: For those who refused to move out of the city had to undergo a real struggle, especially the pregnant women and the women with infants. Many were killed and others were taken as captives. 4. Time of Gentiles: The bible says that the struggles will continue until the times of gentiles are fulfilled. It is not clear when that time would arrive.

Coming of the Son of Man: The second part of the reading speaks of prior caution of Jesus’ coming, place of his appearance and purpose of his coming. Disturbance in the heavenly and earthly bodies are stated as a warning prior to the coming of Son of Man. He is said to appear in the clouds with power and glory. In Dan. 7:13 we read, “I saw one like human being coming with the clouds of heaven” The purpose of His coming is declared as redemption of humanity. The reading ends with a hope of final liberation.

May the process of struggles we undergo in our life be a lesson for us to return to god and Let us be grateful for the gift of redemption that Jesus has brought for us.


📚 मनन-चिंतन - 2

आज के सुसमाचार में, प्रभु अपने दूसरे आगमन के बारे कहते हैं, “जब ये बातें होने लगेंगी, तो उठ कर खड़े हो जाओ और सिर ऊपर उठाओ, क्योंकि तुम्हारी मुक्ति निकट है"। संत पौलुस कहते हैं, “हम जानते हैं कि समस्त सृष्टि अब तक मानो प्रसव-पीड़ा में कराहती रही है और सृष्टि ही नहीं, हम भी भीतर-ही-भीतर कराहते हैं। हमें तो पवित्र आत्मा के पहले कृपा-दान मिल चुके हैं, लेकिन इस ईश्वर की सन्तान बनने की और अपने शरीर की मुक्ति की राह देख रहे हैं।” (रोमियों 8:22-23) कलकत्ता की संत तेरेसा अपनी मौत को हमेशा “अपना घर जाने” से तुलना करती थीं। योहन 14 में प्रभु येसु ने अपने शिष्यों से कहा कि वे उनके लिए जगह तैयार करने जा रहे हैं और जगह तैयार होने पर वे वापस उन्हें लेने आयेंगे ख्रीस्तीय विश्वास के अनुसार, मृत्यु जीवन का अंत नहीं है बल्कि एक नए जीवन की शुरुआत है। एक ख्रीस्तीय विश्वासी आशावादी और अंतहीन आशावाद का व्यक्ति है क्योंकि वह एक प्रेममय और दयालु ईश्वर में विश्वास करता है।



📚 REFLECTION


In today’s Gospel, when Jesus speaks about his second coming and says “when these things begin to take place, stand up and raise your heads, because your redemption is drawing near”. St. Paul says, “We know that the whole creation has been groaning in travail together until now; and not only the creation, but we ourselves, who have the first fruits of the Spirit, groan inwardly as we wait for adoption as sons, the redemption of our bodies.” (Rom 8:22-23) St. Theresa of Calcutta used to refer to her death as “going home”. In Jn 14 Jesus told his disciples that he was going to prepare a place for them and once it was ready he would come and take them. In the Christian understanding, death is not the end but beginning of a new life. A Christian is a person of undying hope and endless optimism because he believes in a loving and merciful God.


 -Br. Biniush topno


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Praise the Lord!