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गुरुवार, 23 दिसंबर, 2021

 

गुरुवार, 23 दिसंबर, 2021

आगमन का चौथा सप्ताह

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पहला पाठ: मलआकी का ग्रन्थ 3:1-4.23-24


1) प्रभु-ईश्वर यह कहता है, “देखो, मैं अपने दूत भेजूँगा, जिससे वह मेरे लिए मार्ग तैयार करे। वह प्रभु, जिसे तुम खोजते हो, अचानक अपने मन्दिर आ जायेगा। देखो, विधान का वह दूत, जिस के लिए तुम तरसते हो, आ रहा है।

2) कौन उसके आगमन के दिन का सामना कर सकेगा? जब वह प्रकट होगा, तो कौन टिकेगा? क्योंकि वह सुनार की आग और धोबी के खार के सदृश है।

3) वह चाँदी गलाने वाले और शोधन करने वाले की तरह बैठ कर लेवी के पुत्रों को शुद्ध करेगा और सोने-चाँदी की तरह उनका परिष्कार करेगा।

4) तब वे योग्य रीति से ईश्वर को भेंट चढ़ायेंगे और प्रभु-ईश्वर प्राचीन काल की तरह यूदा और यरूसलेम की भेंट स्वीकार करेगा।

23) “देखो, उस महान् एवं भयानक दिन के पहले, प्रभु के दिन के पहले, मैं नबी एलियाह को तुम्हारे पास भेजूँगा।

24) वह पिता का हृदय पुत्र की ओर अभिमुख करेगा और पुत्र का हृदय पिता की ओर। कहीं ऐसा न हो कि मैं आ कर देश का सर्वनाश कर दूँ।“



सुसमाचार : सन्त लूकस 1:57-66



57) एलीज़बेथ के प्रसव का समय पूरा हो गया और उसने एक पुत्र को जन्म दिया।

58) उसके पड़ोसियों और सम्बन्धियों ने सुना कि प्रभु ने उस पर इतनी बड़ी दया की है और उन्होंने उसके साथ आनन्द मनाया।

59) आठवें दिन वे बच्चे का ख़तना करने आये। वे उसका नाम उसके पिता के नाम पर ज़करियस रखना चाहते थे,

60) परन्तु उसकी माँ ने कहा, ’’जी नहीं, इसका नाम योहन रखा जायेगा।’’

61) उन्होंने उस से कहा, ’’तुम्हारे कुटुम्ब में यह नाम तो किसी का भी नहीं है’’।

62) तब उन्होंने उसके पिता से इशारे से पूछा कि वह उसका नाम क्या रखना चाहता है।

63) उसने पाटी मँगा कर लिखा, ’’इसका नाम योहन है’’। सब अचम्भे में पड़ गये।

64) उसी क्षण ज़करियस के मुख और जीभ के बन्धन खुल गये और वह ईश्वर की स्तुति करते हुए बोलने लगा।

65) सभी पड़ोसी विस्मित हो गये और यहूदिया के पहाड़ी प्रदेश में ये सब बातें चारों ओर फैल गयीं।

66) सभी सुनने वालों ने उन पर मन-ही-मन विचार कर कहा, ’’पता नहीं, यह बालक क्या होगा?’’ वास्तव में बालक पर प्रभु का अनुग्रह बना रहा।



📚 मनन-चिंतन



मनुष्य का जन्म ईश्वर का अनमोल वरदान है। ईश्वर हम प्रत्येक जन को प्यार करते है। हम सभी का जन्म संयोगवश नही लेकिन ईश्वरीय योजना के तहत हुआ है- जैसे योहन बपतिस्ता का जन्म । उनका जन्म दूसरों की ही तरह था लेकिन उनके जन्म की एक विशेषता थी। इसी विशेषता के कारण वे पूरी मानव जाति के लिए एक संदेशवाहक बन गये । उन्होंने आने वाले मुक्तिदाता के मार्ग को प्रशस्त किया और आने वाले मुक्तिदाता को दुनिया के सामने प्रकट किया। हर व्यक्ति अपने नाम से नहीं बल्कि अपने कार्यों से महान होता है। योहन अपने कर्मों से महान बन गये | इनके माता पिता भी धार्मिक और कर्तव्यनिष्ठ थे। इसलिये ईश्वर ने उन्हें बुढ़ापे में पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया।

सुनने में यह असंभव सा प्रतीत होता है। लेकिन ईश्वर के लिए कुछ भी असंभव नहीं है। हम भी धार्मिक व कर्तव्यनिष्ठ बने और ईश्वर के वरदानों को ग्रहण करे।



📚 REFLECTION




Man's birth is a priceless gift of God. God loves each and every one of us. We are all born not by chance but according to the divine plan. Like the birth of John the Baptist. He was born like everyone else. But there was one specialty of his birth. Due to this specialty, he became a messenger for the entire human race. He paved the way for the coming Savior, and also revealed the coming Savior to the world.

Every person is great not by his name but by his actions. John became great by his actions. His parents were also religious and conscientious. Therefore God gave them the boon of having a son in their old age. It seems impossible to hear. But nothing is impossible for God. Let us also become religious and conscientious and accept the blessings of God.



मनन-चिंतन - 2


ज़करिया के परिवार को ईश्वर की योजनाओं के साथ तालमेल बिठाना पड़ा। एलिजाबेथ बांझ थीं। ज़करिया और एलिजाबेथ दोनों बूढ़े हो चले थे। प्रभु ने उस दंपति को अपने बुढ़ापे में एक बच्चा दे कर आशीर्वाद दिया, एक बच्चा जो मसीहा का अग्रदूत बनेगा। उन्हें प्रभु की मांग को पूरा करने के लिए पिता के नाम पर बच्चे का नामकरण करने की परंपरा से हटना पड़ा। जकरियस और एलिजाबेथ के परिवार के अनुभवों से हम सीखते हैं, सबसे पहले, कि बच्चे ईश्वर के हैं और ईश्वर के उपहार हैं। इसलिए बच्चों को ईश्वर से धन्यवाद और निष्ठा के साथ प्राप्त किया जाना चाहिए। उनमें से प्रत्येक की इतिहास में एक विशिष्ट भूमिका है और प्रभु की उनमें से प्रत्येक के लिए एक विशिष्ट योजना है। हमें उनका ऐसा पालन-पोषण करना चाहिए कि वे प्रभु द्वारा निर्धारित व्यक्तित्व बन जाये। जकरियस के परिवार की तरह, हमारे परिवारों को अपने पड़ोसियों और संबंधियों के लिए खुला रहना है।



REFLECTION


The family of Zachariah had to adjust to God’s designs. Elizabeth was barren. Both Zachariah and Elizabeth were advanced in years. The Lord blessed the couple in their old age with a child, a child who would become the precursor of the Messiah. They had to depart from the tradition of naming the child after the father in order to fulfill the demand of the Lord. From the experiences of the family of Zachariah and Elizabeth we learn, first of all, that children belong to God and are gifts of God. We should not take children for granted. Hence children are to be received with thanksgiving and loyalty to God. Each of them has a unique role to play in history and the Lord has a specific plan for each one them. We need to nurture them to become what they are indented to be by the Lord. Like the family of Zachariah, our families are to be open to their neighbors and relations.


 -Br. Biniush topno


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Praise the Lord!