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Catholic Bible readings for today 31 Jan 2021

 Daily Mass Readings for Sunday, 31 January 2021

FOURTH SUNDAY IN ORDINARY TIME

First Reading: Deuteronomy 18: 15-20

15 The Lord thy God will raise up to thee a PROPHET of thy nation and of thy brethren like unto me: him thou shalt hear:

16 As thou desiredst of the Lord thy God in Horeb, when the assembly was gathered together, and saidst: Let me not hear any more the voice of the Lord my God, neither let me see any more this exceeding great fire, lest I die.

17 And the Lord said to me: They have spoken all things well.

18 I will raise them up a prophet out of the midst of their brethren like to thee: and I will put my words in his mouth, and he shall speak to them all that I shall command him.

19 And he that will not hear his words, which he shall speak in my name, I will be the revenger.

20 But the prophet, who being corrupted with pride, shall speak in my name things that I did not command him to say, or in the name of strange gods, shall be slain.

Responsorial Psalm: Psalms 95: 1-2, 6-7, 7-9 (8)

1 Come let us praise the Lord with joy: let us joyfully sing to God our saviour.

2 Let us come before his presence with thanksgiving; and make a joyful noise to him with psalms.

6 Come let us adore and fall down: and weep before the Lord that made us.

7 For he is the Lord our God: and we are the people of his pasture and the sheep of his hand.

9 As in the provocation, according to the day of temptation in the wilderness: where your fathers tempted me, they proved me, and saw my works.

8 Today if you shall hear his voice, harden not your hearts:

Second Reading: First Corinthians 7: 32-35

32 But I would have you to be without solicitude. He that is without a wife, is solicitous for the things that belong to the Lord, how he may please God.

33 But he that is with a wife, is solicitous for the things of the world, how he may please his wife: and he is divided.

34 And the unmarried woman and the virgin thinketh on the things of the Lord, that she may be holy both in body and in spirit. But she that is married thinketh on the things of the world, how she may please her husband.

35 And this I speak for your profit: not to cast a snare upon you; but for that which is decent, and which may give you power to attend upon the Lord, without impediment.

Gospel: Mark 1: 21-28

21 And they entered into Capharnaum, and forthwith upon the sabbath days going into the synagogue, he taught them.

22 And they were astonished at his doctrine. For he was teaching them as one having power, and not as the scribes.

23 And there was in their synagogue a man with an unclean spirit; and he cried out,

24 Saying: What have we to do with thee, Jesus of Nazareth? art thou come to destroy us? I know who thou art, the Holy One of God.

25 And Jesus threatened him, saying: Speak no more, and go out of the man.

26 And the unclean spirit tearing him, and crying out with a loud voice, went out of him.

27 And they were all amazed, insomuch that they questioned among themselves, saying: What thing is this? what is this new doctrine? for with power he commandeth even the unclean spirits, and they obey him.

28 And the fame of him was spread forthwith into all the country of Galilee.

आज का पवित्र वचन 31 जनवरी 2021, इतवार वर्ष का चौथा सामान्य रविवार

 

31 जनवरी 2021, इतवार

वर्ष का चौथा सामान्य रविवार

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पहला पाठ :विधि-विवरण ग्रन्थ18:15-20

15) तुम्हारा प्रभु ईश्वर तुम्हारे बीच, तुम्हारे ही भाइयों में से, तुम्हारे लिए मुझ-जैसा एक नबी उत्पन्न करेगा-तुम लोग उसकी बात सुनोगे।

16) जब तुम होरेब पर्वत के सामने एकत्र थे, तुमने अपने प्रभु-ईश्वर से यही माँगा था। तुम लोगों ने कहा था अपने प्रभु-ईश्वर की वाणी हमें फिर सुनाई नहीं पडे़ और हम फिर भयानक अग्नि नहीं देखे। नहीं तो हम मर जायेंगे।

17) तब प्रभु ने मुझ से यह कहा, लोगों का कहना ठीक ही है।

18) मैं उनके ही भाइयों मे से इनके लिए तुम-जैसा ही नबी उत्पन्न करूँगा। मैं अपने शब्द उसके मुख मे रखूँगा और उसे जो-जो आदेश दूँगा, वह तुम्हें वही बताएगा।

19) वह मेरे नाम पर जो बातें कहेगा, यदि कोई उसकी उन बातों को नहीं सुनेगा, तो मैं स्वंय उस मनुष्य से उसका लेखा लूँगा।

20) यदि कोई नबी मेरे नाम पर ऐसी बात कहने का साहस करेगा, जिसके लिए मैंने उसे आदेश नहीं दिया, या वह अन्य देवताओं के नाम पर बोलेगा, तो वह मर जायेगा।’

दूसरा पाठ : कुरिन्थियों के नाम सन्त पौलुस का पहला पत्र 7:32-35

32) मैं तो चाहता हूँ कि आप लोगों को कोई चिन्ता न हो। जो अविवाहित है, वह प्रभु की बातों की चिन्ता करता है। वह प्रभु को प्रसन्न करना चाहता है।

33) जो विवाहित है, वह दुनिया की बातों की चिन्ता करता है। वह अपनी पत्नी को प्रसन्न करना चाहता है।

34) उस में परस्पर-विरोधी भावों का संघर्ष है जिसका पति नहीं रह गया और जो कुँवारी है, वे प्रभु की बातों की चिन्ता करती है। तो विवाहित है, वह दुनिया की बातों की चिन्ता करती हैं, और अपने पति को प्रसन्न करना चाहती है।

35) मैं आप लोगों की भलाई के लिए यह कह रहा हूँ। मैं आपकी स्वतन्त्रता पर रोक लगाना नहीं चाहता। मैं तो आप लोगों के सामने प्रभु की अनन्य भक्ति का आदर्श रख रहा हूँ।

सुसमाचार : सन्त मारकुस 1:21b-28

21) वे कफ़नाहूम आये। जब विश्राम दिवस आया, तो ईसा सभागृह गये और शिक्षा देते रहे।

22) लोग उनकी शिक्षा सुनकर अचम्भे में पड़ जाते थे; क्योंकि वे शास्त्रियों की तरह नहीं, बल्कि अधिकार के साथ शिक्षा देते थे।

23) सभागृह में एक मनुष्य था, जो अशुद्ध आत्मा के वश में था। वह ऊँचे स्वर से चिल्लाया,

24) ’’ईसा नाज़री! हम से आप को क्या? क्या आप हमारा सर्वनाश करने आये हैं? मैं जानता हूँ कि आप कौन हैं- ईश्वर के भेजे हुए परमपावन पुरुष।’’

25) ईसा ने यह कहते हुए उसे डाँटा, ’’चुप रह! इस मनुष्य से बाहर निकल जा’’।

26) अपदूत उस मनुष्य को झकझोर कर ऊँचे स्वर से चिल्लाते हुए उस से निकल गया।

27) सब चकित रह गये और आपस में कहते रहे, ’’यह क्या है? यह तो नये प्रकार की शिक्षा है। वे अधिकार के साथ बोलते हैं। वे अशुद्ध आत्माओं को भी आदेश देते हैं और वे उनकी आज्ञा मानते हैं।’’

28) ईसा की चर्चा शीघ्र ही गलीलिया प्रान्त के कोने-कोने में फैल गयी।

📚 मनन-चिंतन

आज सामान्य काल का चौथा रविवार है। आज के पहले पाठ में नबी मूसा लोगों को उनके ही जैसे एक नबी की प्रतिज्ञा के बारे में बताते हैं। ईश्वर उनके बीच से एक नबी उत्पन्न करेगा जिसकी बात उन्हें माननी है क्योंकि ईश्वर स्वयं उसके मुख में अपने शब्द डालेगा। दूसरे पाठ में सन्त पौलुस विवाहित स्त्री-पुरुषों और अविवाहित स्त्री-पुरुषों को सलाह देते हैं। उनके अनुसार हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण यह है कि हम संसार की बातों से अधिक प्रभु की बातों की चिंता करें। और आज के सुसमाचार में हम देखते हैं कि लोग प्रभु येसु की शिक्षा सुनकर अचंभित हो जाते हैं और अशुद्ध आत्माएँ उनकी पवित्रता को पहचान लेती हैं।

प्रत्येक विश्राम-दिवस के दिन हम देखते हैं कि प्रभु येसु नियमित रूप से सभागृह जाते हैं और शिक्षा देते हैं। उनके शब्द इतने प्रभावशाली और शक्तिशाली होते थे कि लोग उनमें सत्य देखते और और प्रभु येसु में अधिकार देखते हैं। उनकी शिक्षाओं और शास्त्रियों की शिक्षाओं में लोगों को बहुत फ़र्क़ दिखता है। यह फ़र्क़ इसलिए था क्योंकि प्रभु येसु अधिकार के साथ बोलते थे और वे उनके अपने शब्द थे, वे शब्द उनके जीवन में भी फलीभूत होते थे। लेकिन फरीसियों और शास्त्रियों की शिक्षाएँ केवल शब्द मात्र थे, उनमें अधिकार नहीं था। लोग अधिकार के साथ बोले गए शब्दों और खोखले शब्दों में अंतर साफ़ समझते थे।

प्रभु येसु अधिकार के साथ इसलिए बोलते थे क्योंकि वे ईश्वर के शब्दों को बोलते थे, और वह उन्हें लोगों को सीधे-सीधे एवं बिना तोड़-मरोड़ कर समझाते थे, और इसलिए उनके शब्द फलप्रद होते थे। जब रविवार को हम चर्च आते हैं, तो ईश्वर हमसे भी बातें करते हैं। वह अपने शब्द हमारे हृदय और मुख में रख देते हैं ताकि हम जहाँ कहीं भी जाएँ, और जो कुछ भी करें उसमें बहुत फल उत्पन्न करें। लेकिन हम ईश्वर के शब्दों को बोलने से मुकर जाते हैं, ईश्वर का वचन सुनाने से डर जाते है। हो सकता है हमारे पड़ौसी को अपने जीवन के मार्गदर्शन के लिए ईश्वर के उन शब्दों की ज़रूरत हो, लेकिन हम में उन्हें ईश्वर का वचन सुनाने की हिम्मत नहीं है। शायद इसलिए कि हम स्वयं अपने जीवन में उनका पालन नहीं करते। ईश्वर का वचन हमारे जीवन में फलप्रद होने के लिए उसे हमें अपने कार्यों एवं व्यवहार में उतारना होगा। ईश्वर से प्रार्थना करें कि वह हमें अपने वचनों के सच्चे वाहक बनाये। आमेन।



📚 REFLECTION


Today is the fourth Sunday in ordinary time. In the first reading prophet Moses tells the people about the promise of God raising a great prophet from among them, whom they should listen to, because God will put his words in his mouth. In the second reading Saint Paul gives instructions to the married men and women and unmarried men and women. According to him what is important for us is that we focus on the affairs of the Lord more than the affairs of the world. And in the gospel we see people amazed at the words of Jesus and unclean spirits revealing him to be the Holy one of God.

Every sabbath we see Jesus going to the synagogue and teaching. The words of his teaching were so effective and powerful that people find them to be authentic and Jesus as the one with authority. There was a difference between his words of teaching and the teachings of the scribes. This difference was there because Jesus spoke with authority, and they were his own words, they were very well reflected in his life. Those words became action in his life whereas the words of the scribes and Pharisees remained mere words. They could not own them. And people could easily differentiate between the two.

Jesus could speak the words with authority because they were the words of God and he delivered them without distorting or vitiating the message and so they became effective and fruit yielding. When we come to church on Sundays, God speaks to us also. He puts his words in our hearts and mouth so that they go with us where ever we go and bear fruit in whatever we do. Very often we control ourselves in speaking the words of God. We fear to utter the words of God. Our brother or sister may need them for their guidance but we have no courage to share the words of God to them. Perhaps because we have no authority, perhaps we may speak them without practising them. God’s word in order to bear fruit in our life, need to be translated into our actions. Let us ask the Lord to make us true instruments of his words. Amen.


मनन-चिंतन - 2

निर्गमन ग्रन्थ, अध्याय 3 में हमे देखते हैं कि ईश्वर ने जलती हुई झाडी में से मूसा को दर्शन दिया और उन्हें मिस्र देश में फिराऊन के पास जा कर इस्राएलियों छुडाने का आदेश दिया। तब उन्होंने मूसा से कहा, “मैं तुम्हारे साथ रहूँगा। मैंने तुम को भेजा है, तुम्हारे लिए इसका प्रमाण यह होगा कि जब तुम इस्राएल को मिस्र से निकाल लाओगे, तो तुम लोग इस पर्वत पर प्रभु की आराधना करोगे (निर्गमन 3:12)। मिस्र देश से निकलने के ठीक तीन महीने बाद इस्राएली सीनई की मरुभूमि पहुँचे। प्रभु ईश्वर के आदेश के अनुसार मूसा ने इस्राएली लोगों को ईश्वर से मिलने के लिए एकत्रित किया। लेकिन इस्राएली लोग बहुत डरे हुए थे। निर्गमन 20:18-21 में हम पढ़ते हैं, “जब सब लोगों ने बादलों का गरजन, बिजलियाँ, नरसिंगे की आवाज़ और पर्वत से निकलता हुआ धुआँ देखा, तो वे भयभीत होकर काँपने लगे। वे कुछ दूरी पर खड़े रहे और मूसा से कहने लगे, “आप हम से बोलिए और हम आपकी बात सुनेंगे, किन्तु ईश्वर हम से नहीं बोले, नहीं तो हम मर जायेंगे।” मूसा ने लोगों को उत्तर दिया, ''डरो मत; क्योंकि ईश्वर तो तुम्हारी परीक्षा लेने आया है, जिससे तुम्हारे मन में उसके प्रति श्रद्धा बनी रहे और तुम पाप न करो। लोग दूर ही खड़े रहे, परन्तु मूसा उस सघन बादल के पास पहुँचा, जिसमें ईश्वर था।“

डरे सहमे लोगों को देख कर ईश्वर अपने आप को एक साधारण मनुष्य के रूप में प्रकट करने की बात करते हैं। इसलिए आज के पाठ में मूसा लोगों से कहते हैं, “तुम्हारा प्रभु ईश्वर तुम्हारे बीच, तुम्हारे ही भाइयों में से, तुम्हारे लिए मुझ-जैसा एक नबी उत्पन्न करेगा - तुम लोग उसकी बात सुनोगे। जब तुम होरेब पर्वत के सामने एकत्र थे, तुमने अपने प्रभु-ईश्वर से यही माँगा था। तुम लोगों ने कहा था अपने प्रभु-ईश्वर की वाणी हमें फिर सुनाई नहीं पडे़ और हम फिर भयानक अग्नि नहीं देखे। नहीं तो हम मर जायेंगे। तब प्रभु ने मुझ से यह कहा, लोगों का कहना ठीक ही है। मैं उनके ही भाइयों मे से इनके लिए तुम-जैसा ही नबी उत्पन्न करूँगा। मैं अपने शब्द उसके मुख मे रखूँगा और उसे जो-जो आदेश दूँगा, वह तुम्हें वही बताएगा। वह मेरे नाम पर जो बातें कहेगा, यदि कोई उसकी उन बातों को नहीं सुनेगा, तो मैं स्वंय उस मनुष्य से उसका लेखा लूँगा।” (विधि-विवरण 18:15-19) प्रेरितों ने लोगों को सिखाया कि प्रभु येसु ही वह मूसा-जैसा नबी हैं (देखिए प्रेरित-चरित 3:22-23)। मसीह के विषय में नबी इसायाह ने भविष्यवाणी की थी, “यह न तो चिल्लायेगा और न शोर मचायेगा, बाजारों में कोई भी इसकी आवाज नहीं सुनेगा। यह न तो कुचला हुआ सरकण्डा ही तोड़ेगा और न धुआँती हुई बत्ती ही बुझायेगा। यह ईमानदारी से धार्मिकता का प्रचार करेगा।” (इसायाह 42:2-3)

हमारे ईश्वर एक श्रध्दालु ईश्वर है। वे हमारे कल्याण में रुचि रखते हैं। वे अपने आप को हमारे लिए उपगम्य (accessible), सुगम्य तथा मिलनसार बनाते हैं ताकि हम उनके पास जा सकें। दुनिया भर के गिरजाघरों के प्रकोशों में पवित्र परम प्रसाद में प्रभु रोटी के रूप में उपस्थित रहते हैं। पाप-स्वीकार संस्कार में उडाऊ पुत्र के प्रेममय पिता के समान पिता ईश्वर हमेशा उपस्थित रहते हैं। ईश्वर सर्वव्यापी है, वे सब जगह उपस्थित रहते हैं। जो कोई उनकी खोज करता है, वह उन्हें अवश्य ही पायेगा। नबी यिरमियाह से प्रभु ने कहा, “यह उस प्रभु की वाणी है, जिसने पृथ्वी बनायी, उसका स्वरूप गढ़ा और उसे स्थिर किया। उसका नाम प्रभु है। यदि तुम मुझे पुकारोगे, तो मैं तुम्हें उत्तर दूँगा और तुम्हें वैसी महान् तथा रहस्यमय बातें बताऊँगा, जिन्हें तुम नहीं जानते।” (यिरमियाह 33:2-3) यिरमियाह 29:12-14 में वचन कहता है, “जब तुम मुझे पुकारोगे और मुझ से प्रार्थना करोगे, तो मैं तुम्हारी प्रार्थना सुनूँगा। जब तुम मुझे ढूँढ़ोगे, तो मुझे पा जाओगे। यदि तुम मुझे सम्पूर्ण हृदय से ढूँढ़ोगे, तो मैं तुम्हे मिल जाऊँगा“- यह प्रभु की वाणी है- “और मैं तुम्हारा भाग्य पलट दूँगा।”

जब लोग प्रेम से मिल-जुल कर रहते हैं, तब ईश्वर न केवल उससे प्रसन्न होते हैं, बल्कि वे वहाँ अपने आप को प्रकट भी करते हैं। प्रभु येसु कहते हैं, “जहाँ दो या तीन मेरे नाम इकट्टे होते हैं, वहाँ में उनके बीच उपस्थित रहता हूँ” (मत्ती 18:20)। स्तोत्रकार कहता है, “वह उन सबों के निकट है, जो उसका नाम लेते हैं, जो सच्चे हृदय से उस से विनती करते हैं। जो उस पर श्रद्धा रखते हैं, वह उनका मनोरथ पूरा करता है। वह उनकी पुकार सुन कर उनका उद्धार करता है।” (स्तोत्र 145:18-19) प्रभु दीन-दुखियों के करीब हैं। “प्रभु दुहाई देने वालों की सुनता और उन्हें हर प्रकार के संकट से मुक्त करता है। प्रभु दुःखियों से दूर नहीं है। जिनका मन टूट गया, प्रभु उन्हें संभालता है।” (स्तोत्र 34:18-19)

प्रभु येसु सबके करीब थे और करीब है। उनकी संगति में लोग शांति और आनन्द महसूस करते हैं। बच्चे भी उन से मिलने आते थे। परन्तु शैतान और उसके दूत बेचैन होते हैं। यही आज का सुसमाचार हमें बताता है। प्रभु येसु सब को विश्राम प्रदान करते हैं। वे कहते हैं, “थके-माँदे और बोझ से दबे हुए लोगो! तुम सभी मेरे पास आओ। मैं तुम्हें विश्राम दूँगा। मेरा जूआ अपने ऊपर ले लो और मुझ से सीखो। मैं स्वभाव से नम्र और विनीत हूँ। इस तरह तुम अपनी आत्मा के लिए शान्ति पाओगे, क्योंकि मेरा जूआ सहज है और मेरा बोझ हल्का।” (मत्ती 11:28-30)

आइए, हमारे बीच हमारे जैसे बन कर आने वाले ईश्वर की हम प्यार भरे हृदयों से आराधना करें।

- बिनियश टोपनो

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Praise the Lord!