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बुधवार, 22 सितम्बर, 2021

बुधवार, 22 सितम्बर, 2021

वर्ष का पच्चीसवाँ सामान्य सप्ताह



पहला पाठ : एज़्रा का ग्रन्थ 9 :5-9


5) सन्ध्याकालीन यज्ञ के समय मैं अपने विषाद की अवस्था से जागा। मेरा कुरता और मेरी चादर फटी हुई थी। मैं घुटनों के बल गिर कर और अपने प्रभु-ईश्वर की ओर हाथ फैला कर

6) इस प्रकार प्रार्थना करने लगाः ’’मेरे ईश्वर! मैं इतना लज्जित हूँ कि तेरी ओर दृष्टि लगाने का साहस नहीं हो रहा है, क्योंकि हम अपने पापों में डूब गये हैं और हमारा दोष आकाश छूने लगा है।

7) अपने पूर्वजों के समय से आज तक हम भारी अपराध करते आ रहे हैं। अपने पापों के कारण हम, हमारे राजा और हमारे याजक विदेशी राजाओं के हाथ, तलवार, निर्वासन, लूट और अपमान के हवाले कर दिये गये, जैसी कि आज हमारी दुर्गति है।

8) अब हमारे प्रभु-ईश्वर ने हम पर थोड़े समय के लिए दया प्रदर्शित की। उसने कुछ लोगों को निर्वासन से वापस बुलाया और हमें अपने पवित्र स्थान में शरण दी है। उसने हमारी आँखों को फिर ज्योति प्रदान की और हमें हमारी दासता में विश्राम दिया है;

9) क्योंकि हम दास ही हैं, किन्तु हमारे ईश्वर ने हमें हमारी दासता में नहीं त्यागा और हमें फ़ारस के राजाओं का कृपापात्र बनाया है। उन्होंने हमें हमारे ईश्वर का मन्दिर फिर बनाने और उसका पुनरुद्धार करने की अनुमति दी और यूदा तथा येरुसालेम में सुरक्षित स्थान दिलाया हैं।


सुसमाचार : सन्त लूकस 9:1-6


1) ईसा ने बारहों को बुला कर उन्हें सब अपदूतों पर सामर्थ्य तथा अधिकार दिया और रोगों को दूर करने की शक्ति प्रदान की।

2) तब ईसा ने उन्हें ईश्वर के राज्य का सुसमाचार सुनाने और बीमारों को चंगा करने भेजा।

3) उन्होंने उन से कहा, ’’रास्ते के लिए कुछ भी न ले जाओ-न लाठी, न झोली, न रोटी, न रुपया। अपने लिए दो कुरते भी न रखो।

4) जिस घर में ठहरने जाओ, नगर से विदा होने तक वहीं रहो।

5) यदि लोग तुम्हारा स्वागत न करें, तो उनके नगर से निकलने पर उन्हें चेतावनी देने के लिए अपने पैरों की धूल झाड़ दो।’’

6) वे चले गये और सुसमाचार सुनाते तथा लोगों को चंगा करते हुए गाँव-गाँव घूमते रहे।


मनन-चिंतन


प्रभु येसु शिष्यों को सुसमाचार सुनाने और चंगा करने के लिए भेजते है। येसु शिष्यों को वही कार्य करने के लिए भेजते है जो कार्य वे स्वयं कर रहे थे। इस बात को जानना उनके अनुयायियों के लिए बहुत जरूरी है क्योंकि बहुत लोग प्रभु के अनुयायी बनने के लिए आगे आतेेे है परंतु वे अपने इस जीवन में आगे बढ़कर शायद बड़े बड़े कार्य करने लगते सिवाये येसु के कार्यो को छोड़कर। जहॉं हम देखते है इस संसार के दूसरें सभी कार्यों को करने के लिये बहुत चीजों की जरूरत होती है, परंतु प्रभु के कार्यो को करने के लिए किसी चीज़ की जरूरत नहीं पड़ती; जिस प्रकार आज का वचन बताता है, ’’रास्ते के लिए कुछ भी न ले जाओ न लाठी, न झोली, न रोटी, न रुपया।’’ कहने का तात्पर्य है प्रभु के कार्य करने के लिए जिस चीज की भी जरूरत है उसको प्रदान करने वाला ईश्वर है, क्योंकि वह उसका कार्य है। हम प्रभु पर आश्रित होना सीखें।



📚 REFLECTION



Lord Jesus sends the disciples to proclaim the Kingdom of God and to heal. Lord Jesus sends the disciples to do the same work which he was doing. This thing should be know to the followers because many come forward to follow him but as they go ahead in life they do all the big big works accept the works of Jesus. As we see that many things are required to do the works of the world but to do the work of God no things are required, as the word of God says today, “Take nothing for your journey, no staff, nor bag, nor bread, nor money.” That means to say the things required to do the work of God will be provided by God himself because it is his work. Let’s learn to depend on God.



मनन-चिंतन - 2


ख्रीस्तीय विश्वासी देने के लिए बुलाये गये हैं, लेने के लिए नहीं। प्रभु येसु हमें सिखाते हैं कि हम अपने पास जो कुछ हैं उनमें से ज़रूरतमंदों को दें। वे धनी युवक से कहते हैं, “जाओ, अपना सब कुछ बेच कर ग़रीबों को दे दो” (मारकुस 10:21) प्रभु स्वयं अपना शरीर और रक्त भी दे देते हैं। शिष्यों के विषय में संत लूकस 9:6 कहता है, “वे चले गये और सुसमाचार सुनाते तथा लोगों को चंगा करते हुए गाँव-गाँव घूमते रहे”। वे प्रभु येसु के अनुदेश के अनुसार शुभ संदेश, चंगाई और शांति देते हुए जा रहे थे। प्रभु ने उन्हें अनुदेश दिया कि जब लोग उनका तिरस्कार करते हैं, तब वे “उनके नगर से निकलने पर उन्हें चेतावनी देने के लिए अपने पैरों की धूल झाड़ दें”। (लूकस 9:5) यह इस बात का भी प्रमाण है कि हम आप से कुछ लेने के लिए नहीं बल्कि देने के लिए आए हैं, हम आप के गाँव की धूल तक लेकर नहीं जायेंगे। हर ख्रीस्तीय विश्वासी को देना सीखना चाहिए, जितना ज्यादा हम दे सकेंगे उतना ज्यादा हम ख्रीस्तीय बनेंगे। सब से बडा दान हम जो दे सकते हैं – वह है जीवन की कुर्बानी।




Christians are called to give, not to take. The Lord teaches us that we should give to those in need from whatever we have. He told the rich young man, “go, sell what you own, and give the money to the poor” (Lk 10:21). In Lk 9:6 we are told that the disciples went from village to village preaching the good news and healing people. According to the instructions of Jesus they were going around giving good news, healing and peace. Jesus had instructed them, “Wherever they do not welcome you, as you are leaving that town shake the dust off your feet as a testimony against them” (Lk 9:5). This is also a testimony that the preacher of the good news does not expect to receive anything from those to whom he is sent, not even the dust. He receives only from God. It is God who provides for him in his own mysterious ways. It is also a warning to them who have rejected God himself when they rejected his disciples.


 -Br. Biniush Topno


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Praise the Lord!