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29 जुलाई का पवित्र वचन

29 जुलाई 2020
वर्ष का सत्रहवाँ सामान्य सप्ताह, बुधवार

सन्त मार्था – अनिवार्य स्मृति

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पहला पाठ : 1 योहन 4:7-16

7) प्रिय भाइयो! हम एक दूसरे को प्यार करें, क्योंकि प्रेम ईश्वर से उत्पन्न होता है।

8) जौ प्यार करता है, वह ईश्वर की सन्तान है और ईश्वर को जानता है। जो प्यार नहीं करता, वह ईश्वर को नहीं जानता; क्येोंकि ईश्वर प्रेम है।

9) ईश्वर हम को प्यार करता है। यह इस से प्रकट हुआ है कि ईश्वर ने अपने एकलौते पुत्र को संसार में भेजा, जिससे हम उसके द्वारा जीवन प्राप्त करें।

10) ईश्वर के प्रेम की पहचान इस में है कि पहले हमने ईश्वर को नहीं, बल्कि ईश्वर ने हम को प्यार किया और हमारे पापों के प्रायश्चित के लिए अपने पुत्र को भेजा।

11) प्रयि भाइयो! यदि ईश्वर ने हम को इतना प्यार किया, तो हम को भी एक दूसरे को प्यार करना चाहिए।

12) ईश्वर को किसी ने कभी नहीं देखा। यदि हम एक दूसरे को प्यार करते हैं, तो ईश्वर हम में निवास करता है और ईश्वर के प्रति हमारा प्रेम पूर्णता प्राप्त करता है।

13) यदि वह इस प्रकार हमें अपना आत्मा प्रदान करता है, तो हम जान जाते हैं कि हम उस में और वह हम में निवास करता है।

14) पिता ने अपने पुत्र को संसार के मुक्तिदाता के रूप में भेजा। हमने यह देखा है और हम इसका साक्ष्य देते हैं।

15) जो यह स्वीकार करता है कि ईसा ईश्वर के पुत्र हैं, ईश्वर उस में निवास करता है और वह ईश्वर में।

16) इस प्रकार हम अपने प्रति ईश्वर का प्रेम जान गये और इस में विश्वास करते हैं। ईश्वर प्रेम है और जो प्रेम में दृढ़ रहता है, वह ईश्वर में निवास करता है और ईश्वर उस में।

अथवा - सुसमाचार : योहन 11:19-27

19) इसलिये भाई की मृत्यु पर संवेदना प्रकट करने के लिये बहुत से यहूदी मरथा और मरियम से मिलने आये थे।

20) ज्यों ही मरथा ने यह सुना कि ईसा आ रहे हैं, वह उन से मिलने गयी। मरियम घर में ही बैठी रहीं।

21) मरथा ने ईसा से कहा, “प्रभु! यदि आप यहाँ होते, तो मेरा भाई नही मरता

22) और मैं जानती हूँ कि आप अब भी ईश्वर से जो माँगेंगे, ईश्वर आप को वही प्रदान करेगा।“

23) ईसा ने उसी से कहा “तुम्हारा भाई जी उठेगा“।

24) मरथा ने उत्तर दिया, “मैं जानती हूँ कि वह अंतिम दिन के पुनरुथान के समय जी उठेगा“।

25) ईसा ने कहा, "पुनरुथान और जीवन में हूँ। जो मुझ में विश्वास करता है वह मरने पर भी जीवित रहेगा

26) और जो मुझ में विश्वास करते हुये जीता है वह कभी नहीं मरेगा। क्या तुम इस बात पर विश्वास करती हो?"

27) उसने उत्तर दिया, "हाँ प्रभु! मैं दृढ़ विश्वास करती हूँ कि आप वह मसीह, ईश्वर के पुत्र हैं, जो संसार में आने वाले थे।"

अथवा - सुसमाचार : लूकस 10:38-42

38) ईसा यात्रा करते-करते एक गाँव आये और मरथा नामक महिला ने अपने यहाँ उनका स्वागत किया।

39) उसके मरियम नामक एक बहन थी, जो प्रभु के चरणों में बैठ कर उनकी शिक्षा सुनती रही।

40) परन्तु मरथा सेवा-सत्कार के अनेक कार्यों में व्यस्त थी। उसने पास आ कर कहा, ’’प्रभु! क्या आप यह ठीक समझते हैं कि मेरी बहन ने सेवा-सत्कार का पूरा भार मुझ पर ही छोड़ दिया है? उस से कहिए कि वह मेरी सहायता करे।’’

41) प्रभु ने उसे उत्तर दिया, ’’मरथा! मरथा! तुम बहुत-सी बातों के विषय में चिन्तित और व्यस्त हो;

42) फिर भी एक ही बात आवश्यक है। मरियम ने सब से उत्तम भाग चुन लिया है; वह उस से नहीं लिया जायेगा।’’

📚 मनन-चिंतन - 1

आज हम बेथानिया की संत मरथा का त्योहार मनाते हैं, जो मरियम और लाज़रुस की बहन थी। मरथा को उनके आतिथ्य के लिए याद किया जाता है। जब येसु उनके परिवार में आते हैं, तब वह उनकी सेवा में व्यस्त हो जाती है। वह न केवल सेवा करती है, बल्कि अपनी बहन मरियम से भी अपेक्षा करती है कि वह प्रभु की सेवा में उसकी मदद करें। फिर, जब लाज़रुस की मृत्यु के बाद येसु बेथानिया में उनसे मिलने जाते हैं, तो मरथा येसु से मिलने के लिए निकल पड़ती है। इस प्रकार वह आतिथ्य के कर्तव्य को पूरा करती है। योहन 12: 2 में येसु के आगमन पर, सुसमाचार लेखक लिखता है - "मरथा परोसती थी"। यह अक्सर कई पिताओं के खिलाफ शिकायत है कि उनके पास बच्चों के लिए समय नहीं है। कई पिता अपनी पत्नी और बच्चों के लिए आजीविका कमाने में इतने व्यस्त हैं कि वे कभी-कभी परिवार के साथ रहने का समय नहीं निकाल पाते हैं। वे अपने कर्तव्यों और कार्यों में व्यस्त हैं और अपने प्रियजनों के लिए अपना प्यार प्रकट करने के लिए बहुत कम समय पाते हैं। सुसमाचर में हम मरथा को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में पाते हैं जो अपने सेवा-कार्य में व्यस्त है, लेकिन वह उस अतिथि के साथ समय बिताने में विफल रहती है जिसकी वह सेवा करती है। येसु उसे समझाते हैं कि प्रभु के चरणों में बैठना, ईश्वर के वचन को सुनना और उसे आंतरिक करना प्रभु के नाम पर हमारी सेवा के कार्यों से अधिक महत्वपूर्ण है। यदि हम ईश्वर के वचन की उपेक्षा करते हैं, तो हमारी प्रशंसनीय मेहनत भी एक जोखिम हो सकती है। संत योहन के सुसमाचार में हम कई विश्वास की घोषणाएं पाते हैं। मरथा भी जब येसु से कहती है, "मैं दृढ़ विश्वास करती हूँ कि आप वह मसीह, ईश्वर के पुत्र हैं, जो संसार में आने वाले थे" (योहन 11:27)। यह संत पेत्रुस की विश्वास-घोषणा के समान है जो हमें मत्ती 16:16 में मिलता है। उससे पहले उसने मृतकों के पुनरुत्थान में अपना विश्वास व्यक्त किया था। इस प्रकार मरथा हमें आतिथ्य, सेवा और विश्वास के महान सबक सिखाती है!


📚 REFLECTION

Today we celebrate the feast of St. Martha of Bethany, sister of Mary and Lazarus. Martha is remembered for her hospitality. When Jesus comes to her family she gets busy with serving him. She not only serves, but expects her sister Mary too to help her in serving the Lord. Again, when Jesus comes to visit her family at Bethany after the death of Lazarus, it is Martha who comes to greet Jesus, fulfilling her duty of hospitality. In Jn 12:2 at yet another visit of Jesus, the evangelist mentions – “Martha served”.

It is often a complaint against many Dads that they have no time for children. Many of the dads are too busy with earning a livelihood for their wife and children that they may sometimes fail to find time to be with the family. They are busy with their duties and tasks and find little time to express their love for their dear ones. In the Gospel we find Martha as a person who is busy with her act of serving, but fails to spend time with the guest whom she serves. Jesus makes her understand that sitting at the feet of the Lord, listening to and interiorising the Word of God is more important than our acts of service in the name of the Lord. Even our laudable hard work can be at risk if the Word of God is neglected.

In the Gospel of St. John, we find many Christological declarations. Martha too makes a Christological declaration when she says to Jesus, “I believe that you are the Messiah, the Son of God, the one coming into the world” (Jn 11:27). This is very similar the Christological declaration of St. Peter which we find in Mt 16:16. Prior to that, she expressed her belief in the resurrection of the dead. Thus Martha teaches us great lessons of hospitality, service and faith.

 -Br. Biniush Topno

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