About Me

My photo
Duliajan, Assam, India
Catholic Bibile Ministry में आप सबों को जय येसु ओर प्यार भरा आप सबों का स्वागत है। Catholic Bibile Ministry offers Daily Mass Readings, Prayers, Quotes, Bible Online, Yearly plan to read bible, Saint of the day and much more. Kindly note that this site is maintained by a small group of enthusiastic Catholics and this is not from any Church or any Religious Organization. For any queries contact us through the e-mail address given below. 👉 E-mail catholicbibleministry21@gmail.com

सितंबर 27 संत विन्सेंट डी पॉल

 

सितंबर 27

संत विन्सेंट डी पॉल




संत विन्सेंट डी पॉल का जन्म 24 अप्रैल, 1581 को फ्रांसीसी गांव पौय में एक गरीब किसान परिवार में हुआ था। उनकी पहली औपचारिक शिक्षा फ्रांसिसियों द्वारा प्रदान की गई थी। उन्होंने इतना अच्छा किया कि उन्हें पास के एक धनी परिवार के बच्चों को पढ़ाने के लिए काम पर रखा गया। उन्होंने टूलूज विश्वविद्यालय में अपनी औपचारिक पढ़ाई जारी रखने के लिए अध्यापन से अर्जित धन का उपयोग किया जहां उन्होंने धर्मशास्त्र का अध्ययन किया।

उन्हें सन 1600 में पुरोहिताभिषेक दिया गया था और वे कुछ समय के लिए टूलूज में ही रहे। 1605 में, मार्सिले से नारबोन की यात्रा करने वाले एक जहाज पर, उन्हें पकड़ लिया गया, ट्यूनिस लाया गया और दास के रूप में बेचा गया। दो साल बाद वे अपने मालिक के साथ भागने में सफल रहे और दोनों फ्रांस लौट आए।

संत विन्सेंट डी पॉल अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए एविग्नन और बाद में रोम गए। वहाँ रहते हुए वे काउंट ऑफ गोगनी के याजक वर्ग बन गए और उन्हें जरूरतमंद गरीबों को पैसे बांटने का प्रभारी बनाया गया। वे थोड़े समय के लिए क्लिची में एक छोटे से पल्ली के पल्ली पुरोहित बने, साथ में उन्होंने एक शिक्षक और आध्यात्मिक निर्देशक के रूप में भी काम किया।

उस समय से उन्होंने अपना जीवन प्रचार मिशनों और गरीबों को राहत प्रदान करने में बिताया। उन्होंने उनके लिए अस्पताल भी स्थापित किए। यह काम उनके लिए जुनून बन गया। बाद में उन्होंने अपनी दिलचस्पी और प्रेरिताई को कैदीयों तक बढ़ा दिया। इन आत्माओं के बीच प्रचार करने और उनकी सहायता करने की आवश्यकता इतनी महान थी और इन मांगों को पूरा करने की उनकी अपनी क्षमता से परे कि उन्होंने मदद करने के लिए लेडीज ऑफ चैरिटी, एक सामान्य महिला संस्थान की स्थापना की, साथ ही पुरोहितों का एक धार्मिक संस्थान - पुरोहितों की मिशन मंडली, जिन्हें आमतौर पर अब विन्सेंशियन के रूप में जाना जाता है।

यह उस समय की बात है जब फ्रांस में बहुत से पुरोहित नहीं थे और वहां जो पुरोहित थे, वे न तो सुसंगठित थे और न ही अपने जीवन के प्रति वफादार थे। विन्सेंट ने याजक वर्ग को सुधारने में मदद की जिस तरीके से उन्हें निर्देश दिया जाता था और पौरोहित्य के लिए तैयार किया जाता था। उन्होंने इसे पहले रिट्रीट की प्रस्तुति के माध्यम से और बाद में हमारे आधुनिक दिन के सेमिनरी के लिए एक अग्रदूत विकसित करने में मदद करके किया। एक समय उनका समुदाय 53 उच्च स्तरीय सेमिनरी का निर्देशन कर रहा था। पुरोहितों और आम लोगों के लिए खुले उनके रिट्रीट में इतनी अच्छी तरह से भाग लिया गया था कि ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने ‘‘अपने पिछले 23 वर्षों में 20,000 से अधिक लोगों के बीच ख्रीस्तीय भावना का संचार किया।‘‘

86 देशों में लगभग 4,000 सदस्यों के साथ विंसेंशियन धर्मसमाजी आज हमारे साथ हैं। विंसेंशियन पुरोहितों के अपने तपस्वी धर्मसंघ के अलावा, संत विंसेंट ने संत लुईस डी मारिलैक के साथ डॉटर्स ऑफ चैरिटी की स्थापना की। आज 18,000 से अधिक धर्मबहने 94 देशों में गरीबों की जरूरतों को पूरा कर रही हैं। 27 सितम्बर, 1660 को जब पेरिस में उनकी मृत्यु हुई तब वे अस्सी वर्ष के थे। वे ‘‘फ्रांसीसी कलीसिया के सफल सुधारक के प्रतीक बन गए थे‘‘। संत विंसेंट को कभी-कभी ‘‘द एपोसल ऑफ चैरिटी‘‘ और ‘‘गरीबों के पिता‘‘ के रूप में जाना जाता है।

मृत्यु के बाद भी उनका हृदय अभ्रष्ट रहा और उसे कॉन्वेंट ऑफ द सिस्टर्स ऑफ चैरिटी में पाया जा सकता है और उनकी हड्डियों को चर्च ऑफ द लाजरिस्ट मिशन में स्थित संत के मोम के पुतले में जड़ा गया है। दोनों जगह पेरिस, फ्रांस में स्थित हैं।

संत विंसेंट को दो चमत्कारों के लिए श्रेय दिया गया है - अल्सर से ठीक हुई एक मठवासिनी और लकवा से ठीक हुई एक आम महिला। 16 जून, 1737 को उन्हें संत पिता क्लेमेंट तेरहवें द्वारा संत घोषित किया गया था। यह बताया गया है कि संत विंसेंट ने अपने जीवनकाल में 30,000 से अधिक पत्र लिखे थे और 18वीं शताब्दी में लगभग 7,000 पत्र एकत्र किए गए थे। उनके पत्रों के कम से कम पांच संग्रह आज अस्तित्व में हैं।



Copyright © www.catholicbibleministry1.blogspot.com
Praise the Lord!

सोमवार, 27 सितम्बर, 2021

 सोमवार, 27 सितम्बर, 2021

वर्ष का छ्ब्बीसवाँ सामान्य सप्ताह

🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥

पहला पाठ : ज़करिया 8:1-8


1) विश्वमण्डल के प्रभु की वाणी यह कहते हुए सुनाई पड़ीः

2) "विश्वमण्डल का प्रभु यह कहता हैः मैं सियोन की बहुत अधिक चिन्ता करता हूँ, मुझ में उनके प्रति प्रबल उत्साह है।

3) "प्रभु यह कहता हैः मैं सियोन लौट रहा हूँ, मैं येरूसालेम में निवास करने आ रहा हूँ। येरूसालेम निष्ठावान् नगर और विश्वमण्डल के प्रभु का पर्वत, पवित्र पर्वत कहलायेगा।

4) "विश्वमण्डल का प्रभु कहता हैः वुद्ध पुरुष और स्त्रियाँ, अपने बुढापे के कारण हाथ में छड़ी लिये हुए।

5) फिर येरूसालेम के चैकों में बैठेंगे और नगर के चैक खेलते हुए लडकों और लडकियों से भरे रहेंगे।

6) "विश्वमण्डल का प्रभु यह कहता हैः यदि यह उस दिन इस राष्ट्र के बचे हुए लोगों को असंभव-सा लगेगा, तो क्या वह मुझे भी असंभव-सा लगेगा? यह विश्वमण्डल के प्रभु की वाणी है।

7) "विश्वमण्डल का प्रभु यह कहता हैः देखो! मैं पूर्व के देशों से और सूर्यास्त के देशों से अपनी प्रजा का उद्धार करूँगा।

8) मैं उन्हें वापस ले आऊँगा और वे येरूसालेम में निवास करेंगे। वे निष्ठा और न्याय से मेरी प्रजा होंगे और मैं उनका ईश्वर होऊँगा।"



सुसमाचार : सन्त लूकस 9:46-50



46) शिष्यों में यह विवाद छिड़ गया कि हम में सब से बड़ा कौन है।

47) ईसा ने उनके विचार जान कर एक बालक को बुलाया और उसे अपने पास खड़ा कर

48) उन से कहा, "जो मेरे नाम पर इस बालक का स्वागत करता है, वह मेरा स्वागत करता है और जो मेरा स्वागत करता है, वह उसका स्वागत करता है, जिसने मुझे भेजा है; क्योंकि तुम सब में जो छोटा है, वही बड़ा है।"

49) योहन ने कहा, “गुरूवर! हमने किसी को आपका नाम ले कर अपदूतों को निकालते देखा है और हमने उसे रोकने की चेष्टा की, क्योंकि वह हमारी तरह आपका अनुसरण नहीं करता“।

50) ईसा ने कहा, “उसे मत रोको। जो तुम्हारे विरुद्ध नहीं है, वह तुम्हारे साथ हैं।“



मनन-चिंतन


हम अधिकतर आगमन काल में और अपनी प्रार्थनाओं में यही प्रार्थना करते है कि प्रभु मेरे जीवन में आ जाइये मेरे हृदय में आ जाईये। अर्थात् हम प्रभु येसु को अपने जीवन में, अपने परिवारों में, अपने समुह में स्वागत करते है। आज का वचन हमें एक तरिका बताता है कि हम किस प्रकार से प्रभु का स्वागत कर सकते है। प्रभु कहते है, ‘‘जो मेरे नाम पर इस बालक का स्वागत करता है, वह मेरा स्वागत करता है।’’ अर्थात् जो छोटे बालको जैसे निर्मल हृदय या विनम्र व्यक्ति या दीन व्यक्ति का स्वागत करता है तो मानो वह येसु का स्वागत करता है जिस प्रकार संत मदर तेरेसा ने गरीब दीन दुखियों, अनाथों के लिए किया वह उनके लिए नहीं परंतु येसु के लिए किया। हम अपने जीवन में अपने से छोटो का कभी तिरस्कार न करें बल्कि उनका आदर करें जिससे हम येसु की उपस्थिति से भर जायंे।



📚 REFLECTION



In the Advent Season and in our prayers we usually pray to Lord to come in our lives, to come in our hearts; that means to say we invite or welcome Lord Jesus in our lives, in our families, in our groups. Today’s God’s word tells us one way how we can welcome Jesus. Jesus says, “Whoever welcomes this child in my name welcomes me” That means to say whoever welcomes the child like heart people or humble or poor people they welcome Jesus; as St. Mother Teresa did for the poor, sad and abandoned people he didn’t serve them but served Jesus. Let’s not reject the one who is lower than us but give them the due honour so that we can be filled with Jesus presence.



मनन-चिंतन - 2



हम देखते हैं कि संत योहन और साथियों ने किसी व्यक्ति को येसु का नाम ले कर अपदूतों को निकालते देखा और उसे रोकने की चेष्टा की, क्योंकि वह उनके साथ नहीं था। लेकिन येसु ने कहा, “उसे मत रोको। जो तुम्हारे विरुद्ध नहीं है, वह तुम्हारे साथ हैं।“ हमें पवित्र बाइबिल को बाइबिल से ही समझना चाहिए। संत पौलुस कहते हैं, “कोई ईश्वर के आत्मा से प्रेरित हो कर यह नहीं कहता, "ईसा शापित हो" और कोई पवित्र आत्मा की प्रेरणा के बिना यह नहीं कह सकता, "ईसा की प्रभु है" (1कुरिन्थियों 12:3)। संत याकूब कहते हैं, “सभी उत्तम दान और सभी पूर्ण वरदान ऊपर के हैं और नक्षत्रों के उस सृष्टिकर्ता के यहाँ से उतरते हैं, जिसमें न तो कोई परिवर्तन है और न परिक्रमा के कारण कोई अन्धकार” (याकूब 1:17)। इस प्रकार सभी फलाईयों का स्रोत ईश्वर ही है। इसलिए हमें सभी भलाईयों को स्वीकार करना तथा बढ़ावा देना चाहिए।




We see in the Gospel that St. John and his companions saw someone casting out demons in the name of Jesus and tried to stop him because he was not with them. But Jesus said to them, “You must not stop him; anyone who is not against you is for you”. We need to understand the Bible with the Bible. St. Paul says, “Therefore I want you to understand that no one speaking by the Spirit of God ever says “Jesus be cursed!” and no one can say “Jesus is Lord” except by the Holy Spirit” (1Cor 12:3). St. James says, “ Every good endowment and every perfect gift is from above, coming down from the Father of lights with whom there is no variation or shadow due to change” (Jam 1:17). Thus God is the source of all goodness. Hence we have to accept and encourage all goodness.


 -Br. Biniush Topno


Copyright © www.catholicbibleministry1.blogspot.com
Praise the Lord!