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सोमवार, 25 अक्टूबर, 2021

 

सोमवार, 25 अक्टूबर, 2021

वर्ष का तीसवाँ सामान्य सप्ताह

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पहला पाठ रोमियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 8:12-17


12) इसलिए, भाइयो! शरीर की वासनओं का हम पर कोई अधिकर नहीं। हम उनके अधीन रह कर जीवन नहीं बितायें।

13) यदि आप शरीर की वासनाओं के अधीन रह कर जीवन बितायेंगे, तो अवश्य मर जायेंगे।

14) लेकिन यदि आप आत्मा की प्रेरणा से शरीर की वासनाओें का दमन करेंगे, तो आप को जीवन प्राप्त होगा।

15) जो लोग ईश्वर के आत्मा से संचालित हैं, वे सब ईश्वर के पुत्र हैं- आप लोगों को दासों का मनोभाव नहीं मिला, जिस से प्रेरित हो कर आप फिर डरने लगें। आप लोगों को गोद लिये पुत्रों का मनोभाव मिला, जिस से प्रेरित हो कर हम पुकार कर कहते हैं, ’’अब्बा, हे पिता!

16) आत्मा स्वयं हमें आश्वासन देता है कि हम सचमुच ईश्वर की सन्तान हैं।

17) यदि हम उसकी सन्तान हैं, तो हम उसकी विरासत के भागी हैं-हम मसीह के साथ ईश्वर की विरासत के भागी हैं। यदि हम उनके साथ दुःख भोगते हैं, तो हम उनके साथ महिमान्वित होंगे।


सुसमाचार : सन्त लूकस 13:10-17


10) ईसा विश्राम के दिन किसी सभागृह में शिक्षा दे रहे थे।

11) वहाँ एक स्त्री आयी, जो अपदूत लग जाने के कारण अठारह वर्षों से बीमार थी। वह एकदम झुक गयी थी और किसी भी तरह सीधी नहीं हो पाती थी।

12) ईसा ने उसे देख कर अपने पास बुलाया और उस से कहा, ’’नारी! तुम अपने रोग से मुक्त हो गयी हो’’

13) और उन्होंने उस पर हाथ रख दिये। उसी क्षण वह सीधी हो गयी और ईश्वर की स्तुति करती रही।

14) सभागृह का अधिकारी चिढ़ गया, क्योंकि ईसा ने विश्राम के दिन उस स्त्री को चंगा किया था। उसने लोगों से कहा, ’’छः दिन हैं, जिन में काम करना उचित है। इसलिए उन्हीं दिनों चंगा होने के लिए आओ, विश्राम के दिन नहीं।’’

15) परन्तु प्रभु ने उसे उत्तर दिया, ’’ढोंगियो! क्या तुम में से हर एक विश्राम के दिन अपना बैल या गधा थान से खोल कर पानी पिलाने नहीं ले जाता?

16) शैतान ने इस स्त्री, इब्राहीम की इस बेटी को इन अठारह वर्षों से बाँध रखा था, तो क्या इसे विश्राम के दिन उस बन्धन से छुड़ाना उचित नहीं था?’’

17) ईसा के इन शब्दों से उनके सब विरोधी लज्जित हो गये; लेकिन सारी जनता उनके चमत्कार देख कर आनन्दित होती थी।


📚 मनन-चिंतन


जब येसु का सामना एक ऎसी बूढ़ी औरत से हुआ जिसने अपना समस्त धन इलाज में खर्च कर दिया और अठारह साल तक सीधे खड़े होने में असमर्थ थी, तो उन्होंने तुरंत उस महिला को ठीक कर दिया। वह विश्राम का दिन था। सभाग्रह का शासक इस बात से क्रोधित था कि येसु ने विश्राम के पवित्र दिन ऐसा चमत्कारी कार्य किया। अधिकांश यहूदी नेता विश्राम दिवस के नियमों के पालन में इतने मशगूल थे कि उन्होंने परमेश्वर की दया और भलाई की दृष्टि खो दी। वे इतने अंधे थे कि इतना बड़ा चमत्कार भी उसकी ईश्वर की समझ को नहीं खोल सका। वह सभाग्रह का शासक था फिर भी उसका विश्वास अंधा था और शायद सामान्य विश्वासियों से भी बदतर।

इसके विपरीत येसु ने विश्राम के दिन चंगा किया क्योंकि ईश्वर अपनी दया और प्रेम दिखाने से कभी आराम नहीं करता। ईश्वर की कृपा हर समय उपलब्ध है और हमें आपत्ति करने का कोई अधिकार नहीं है और ईश्वर के वचन में हमें आध्यात्मिक, शारीरिक और भावनात्मक रूप से बदलने की शक्ति है। क्या कोई ऐसी चीज है जो हमें बांधे रखती है या जो हमें नीचे गिराती है? क्या हम ईश्वर के पास जाने के लिए किसी विशेष अवसर की प्रतीक्षा कर रहे हैं? क्या हम कुछ अन्य कारणों से ईश्वर के पास जाने को टाल रहे हैं? आइए हम तुरंत ईश्वर के पास आएं क्योंकि वह हमेशा उपलब्ध हैं और सभी बाधाओं के खिलाफ अपनी दया दिखाने के लिए तैयार हैं और ईश्वर हमसे अपना वचन कहें और हमें आजादी दें।



📚 REFLECTION



When Jesus encountered an elderly woman who had spent of her strength and was unable to stand upright for eighteen years, he instantly healed the woman. It was Sabbat day. The ruler of the Synagogue was indignant that Jesus performed such a miraculous work on the Sabbath, the holy day of rest. Most of the Jewish leaders were so caught up in their ritual observance of the Sabbath that they lost sight of God's mercy and goodness. He was so blind that even such a great miracle could not open his understanding of God. He was the ruler of the Synagogue yet his faith was blind and perhaps worse than the ordinary faithful.

Jesus on the contrary healed on the Sabbath because God does not ever rest from showing his mercy and love. God’s grace is available all the time and we have no right to object and God's word has the power to change us, spiritually, physically, and emotionally. Is there anything that keeps us bound up or that weighs us down? Are we waiting for a particular occasion to approach God? Are we postponing approaching God for some of the other reasons? Let us come to God immediately for he is always available and willing to show his mercy against all odds and may the Lord speak his word to us and give us freedom.


 -Br Biniush Topno


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Praise the Lord!