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13 नवंबर 2022 वर्ष का तैंत्तीसवाँ सामान्य इतवार

 

13 नवंबर 2022

वर्ष का तैंत्तीसवाँ सामान्य इतवार



पहला पाठ : मलआकी 3:19-20अ



19) क्योंकि वह दिन आ रहा है। वह धधकती भट्टी के सदृश है। सभी अभिमानी तथा कुकर्मी खूँटियों के सदृश होंगे। विश्वमण्डल का प्रभु यह कहता है: वह दिन उन्हें भस्म कर देगा। उनका न तो डंठल रह जायेगा और न जड़ ही।

20) किन्तु तुम पर, जो मुझ पर श्रद्धा रखते हो, धर्म के सूर्य का उदय होगा और उसकी किरणें तुम्हें स्वास्थ्य प्रदान करेंगी। तब तुम उसी प्रकार उछलने लगोगे, जैसे बछड़े बाड़े से निकल कर उछलने-कूदने लगते हैं।



दूसरा पाठ : 2 थेसलनीकियों 3:7-12



7) आप लोगों को मेरा अनुकरण करना चाहिए- आप यह स्वयं जानते हैं। आपके बीच रहते समय हम अकर्मण्य नहीं थे।

8) हमने किसी के यहाँ मुफ़्त में रोटी नहीं खायी, बल्कि हम बड़े परिश्रम से दिन-रात काम करते रहे, जिससे आप लोगों में किसी के लिए भी भार न बनें।

9) इमें इसका अधिकार नहीं था- ऐसी बात नहीं, बल्कि हम आपके सामने एक आदर्श रखना चाहते थे, जिसका आप अनुकरण कर सकें।

10) आपके बीच रहते समय हमने आप को यह नियम दिया- ’जो काम करना नहीं चाहता, उसे भोजन नहीं दिया जाये’।

11) अब हमारे सुनने में आता है कि आप में कुछ लोग आलस्य का जीवन बिताते हैं। वे स्वयं काम नहीं करते और दूसरों के काम में बाधा डालते हैं।

12) हम ऐसे लोगों को प्रभु ईसा मसीह के नाम पर यह आदेश देते हैं और उन से अनुरोध करते हैं कि वे चुपचाप काम करते रहें और अपनी कमाई की रोटी खायें।



सुसमाचार : लूकस 21:5-19



5) कुछ लोग मन्दिर के विषय में कह रहे थे कि वह सुन्दर पत्थरों और मनौती के उपहारों से सजा है। इस पर ईसा ने कहा,

6) "वे दिन आ रहे हैं, जब जो कुछ तुम देख रहे हो, उसका एक पत्थर भी दूसरे पत्थर पर नहीं पड़ा रहेगा-सब ढा दिया जायेगा"।

7) उन्होंने ईसा से पूछा, "गुरूवर! यह कब होगा और किस चिन्ह से पता चलेगा कि यह पूरा होने को है?"

8) उन्होंने उत्तर दिया, "सावधान रहो तुम्हें कोई नहीं बहकाये; क्योंकि बहुत-से लोग मेरा नाम ले कर आयेंगे और कहेंगे, ‘मैं वही हूँ’ और ‘वह समय आ गया है’। उसके अनुयायी नहीं बनोगे।

9) जब तुम युद्धों और क्रांतियों की चर्चा सुनोगे, तो मत घबराना। पहले ऐसा हो जाना अनिवार्य है। परन्तु यही अन्त नहीं है।"

10) तब ईसा ने उन से कहा, "राष्ट्र के विरुद्ध राष्ट्र उठ खड़ा होगा और राज्य के विरुद्ध राज्य।

11) भारी भूकम्प होंगे; जहाँ-तहाँ महामारी तथा अकाल पड़ेगा। आतंकित करने वाले दृश्य दिखाई देंगे और आकाश में महान् चिन्ह प्रकट होंगे।

12) "यह सब घटित होने के पूर्व लोग मेरे नाम के कारण तुम पर हाथ डालेंगे, तुम पर अत्याचार करेंगे, तुम्हें सभागृहों तथा बन्दीगृहों के हवाले कर देंगे और राजाओं तथा शासकों के सामने खींच ले जायेंगे।

13) यह तुम्हारे लिए साक्ष्य देने का अवसर होगा।

14) अपने मन में निश्चय कर लो कि हम पहले से अपनी सफ़ाई की तैयारी नहीं करेंगे,

15) क्योंकि मैं तुम्हें ऐसी वाणी और बुद्धि प्रदान करूँगा, जिसका सामना अथवा खण्डन तुम्हारा कोई विरोधी नहीं कर सकेगा।

16) तुम्हारे माता-पिता, भाई, कुटुम्बी और मित्र भी तुम्हें पकड़वायेंगे। तुम में से कितनों को मार डाला जायेगा

17) और मेरे नाम के कारण सब लोग तुम से बैर करेंगे।

18) फिर भी तुम्हारे सिर का एक बाल भी बाँका नहीं होगा।

19) अपने धैर्य से तुम अपनी आत्माओं को बचा लोगे।



📚 मनन-चिंतन



मनुष्य हमेशा भविष्य की ओर देखने, उसकी चिंता करने, उसे वास्तव में जो है उससे अधिक कुछ बनाने के लिए ललचाता है। हमारे पास यह तय करने की वह सामाजिक प्रवृत्ति होती है जो हमें यहां और अभी रहने के बजाय भविष्य के लिए जीने की जरूरत का अहसास कराता है। इसलिए हम अपने जीवन का निर्माण करते हैं जो हमारे भविष्य को सुरक्षित करने की कोशिश करता है। हम नए और अधिक आकर्शषित घर, कार, बीमा पॉलिसियां और सेवानिवृत्ति योजनाएं खरीदते हैं क्योंकि हम भविष्य का निर्माण करने में सक्षम होना चाहते हैं। वास्तविकता यह है, जैसा कि येसु स्पष्ट रूप से और लगातार सिखाते हैं - हम नहीं जानते कि भविष्य कैसा होने वाला है, और हमको इसकी कीमत का अंदाज़ा नहीं होता है यदि हम येसु के शिष्य के रूप में जीना चाहते।

आज का सुसमाचार पढ़ना वास्तव में बहुत ही भयावह और संघर्षपूर्ण है। भविष्य के बारे में अनिश्चितता के कारण नहीं, बल्कि येसु के शिष्य होने की कीमत के कारण। येसुु उनके पीछे चलने की कीमत के बारे में स्पष्ट रूप से जानते है - और वह कीमत है ‘सब कुछ’। लेकिन हमें निराश या चिंता करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि कीमत का दूसरा पहलू यह है कि हम, जो येसु का अनुसरण करते हैं और उनकी शरण लेने के लिए चुनते है, वे घनिष्ठ रूप से जाने जाते हैं, प्यार किये जाते हैं, पोषित होते हैं और संरक्षित होते हैं।

हमें येसु का अनुसरण करने हेतु विकल्प का सामना करना पड़ रहा है, न ही न करने का। येसु के पीछे चलने पर भारी कीमत चुकानी पड़ती है। कम से कम, जिस दुनिया में हम रहते हैं, इसका मतलब है गहराई से प्रतिसांस्कृतिक होना। इसका अर्थ है सादा, अगोचर जीवन जीना, गरीबों, टूटे और तिरस्कृतों की सेवा करने के लिए खुद को समर्पित करना। इसका मतलब है कि टीवी के बदले प्रार्थना को प्राथमिकता देना, भौतिक वस्तुओं के बदले दरिद्रता को प्राथमिकता देना। इसका अर्थ है येसु को हमारे सभी संबंधों का केंद्र बनाना। इसका अर्थ यह पहचानना है कि येसु के अनुयायी होने का अर्थ सभी से प्रेम करना है, चाहे हम उनके बारे में कैसा भी महसूस करें। हमें प्रेम का चुनाव करने, सेवा करने का चुनाव करने और सेवक के रूप में बने रहने का चुनाव करने और इन सभी में अंत तक बने रहने के लिए के लिए बुलावा मिला है।



📚 REFLECTION



Human beings are always tempted to look to the future, to worry about it, to make it into something more than it really is. We have this social tendency to decide that we need to live for the future, instead of living here and now. So we build ourselves lives that seek to secure our future. We buy new and more exciting houses, cars, insurance policies and superannuation plans because we want to be able to construct a future. The reality is, as Jesus clearly and consistently teaches - we don’t know what the future is going to be like, and we don’t quite get the cost of that if we seek to live as Jesus’ disciple.

Today’s gospel reading is actually be deeply frightening and confronting. Not because of the uncertainty about the future, but because of the cost of being Jesus’ disciple. Jesus is clear about the cost of following him - the cost is everything. But we’re not to despair or worry, because the flip side of the cost is that we, who follow Jesus and have chosen to take refuge in him, are intimately known, loved, cherished and preserved.

We’re faced with the choice to follow Jesus, nor not to. Following Jesus has tremendous costs. At the very least, in the world we live in, it means being profoundly countercultural. It means living simple inconspicuous lives, of devoting ourselves to serving the poor, the broken and the despised. It means preferring prayer to TV, preferring poverty to material goods. It means making Jesus the centre of all of our relationships. It means recognising that to be a follower of Jesus is to love everyone, regardless of how we feel about them. We are called to choose to love, to choose to serve, and to choose to keep going on as servants, staying with it till the end.



मनन-चिंतन -2



शान्त पानी में नाव चलाना आसान है। बहते पानी की दिशा में यात्रा करना और भी आसान है। पानी के प्रवाह के विरुध्द चलना मुश्किल है। यह हमारे जीवन की भी सच्चाई है। हम हमेशा शांतिपूर्ण समय की उम्मीद करते हैं ताकि हमारा जीवन आसान हो। प्रवाह के साथ चलने की हमारी प्रवृत्ति है। हम लोकप्रिय तरीकों और पथों का अनुसरण करते हैं। हम बहुमत की तरह रहना पसंद करते हैं। सहकर्मियों तथा सहपाठियों का दबाव हमें प्रभावित करता है, विशेष रूप से युवा अवस्था में। प्रभु येसु ने हमें बताया कि हमें भेड़ियों के बीच भेड़ों की तरह भेजा जाता है और इसलिए हमें सांपों के समान बुध्दिमान और कबूतर की तरह निर्दोष बने रहना चाहिए (देखें मत्ती 10:16)। यह स्पष्ट है कि हमें अशांत जल पर पाल चलाने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। प्रभु चाहते हैं कि न केवल हमारे लक्ष्य बल्कि हमारे साधन भी उचित हों। समाज में ऐसे कई लोग हैं जो हमें धोखा देना और गुमराह करना चाहते हैं। आज के सुसमाचार में प्रभु हमें चेतावनी देते हैं - "सावधान रहो तुम्हें कोई नहीं बहकाये"। सुसमाचार के लिए प्रतिबद्ध शिष्यों को सताया जाएगा। फिर भी हमें प्रभु से सुखदायक आश्वासन प्राप्त है, “…अपने मन में निश्चय कर लो कि हम पहले से अपनी सफ़ाई की तैयारी नहीं करेंगे, क्योंकि मैं तुम्हें ऐसी वाणी और बुद्धि प्रदान करूँगा, जिसका सामना अथवा खण्डन तुम्हारा कोई विरोधी नहीं कर सकेगा। तुम्हारे माता-पिता, भाई, कुटुम्बी और मित्र भी तुम्हें पकड़वायेंगे। तुम में से कितनों को मार डाला जायेगा और मेरे नाम के कारण सब लोग तुम से बैर करेंगे। फिर भी तुम्हारे सिर का एक बाल भी बाँका नहीं होगा। अपने धैर्य से तुम अपनी आत्माओं को बचा लोगे।“ (लूकस 21: 14-19)



REFLECTION



It is easy to sail in still waters. It is easier to flow with the current. It is difficult to move against the current. This is true of our lives too. We expect calm and peaceful time always so that our lives are easy. We have a tendency to flow with the current. We follow popular ways and trodden paths. We like to be like the majority. Peer pressure influences us, especially the young. Jesus tells us that we are sent like lambs among wolves and so we have to be wise as serpents and innocent as doves (cf. Mt 10:16). It is evident that we are set to sail on troubled waters. He wants not only our goals but also our means to be proper. There are those who want to deceive and mislead us. In today’s Gospel he warns us – “Take care not to be deceived”. The disciples who are committed to the Gospel will be persecuted. Yet there is the soothing assurance from the Lord, “…make up your minds not to prepare your defense in advance; for I will give you words and a wisdom that none of your opponents will be able to withstand or contradict. You will be betrayed even by parents and brothers, by relatives and friends; and they will put some of you to death. You will be hated by all because of my name. But not a hair of your head will perish. By your endurance you will gain your souls.” (cf. Lk 21:14-19)



प्रवचन



आज के तीनों पाठों में हम अंत के बारे में सुनते हैं। पवित्र धर्मग्रंथ बाइबल हमें बताता है कि इस दुनिया का अंत होगा। और अंतिम दिनों में हमें विचलित करने वाली कई घटनायें घटेगी। हमारे सेमिनारी जीवन में एक पूरा साल सिर्फ अध्यात्मिकता के लिए होता है जिसमें हम सालभर बाइबल के गहन पठन, मनन चिंतन प्रार्थना व त्याग तपस्या में बिताते हैं। इसी के तहत, मैं अपने साथियों के साथ वर्ष 2011-12 में आद्यात्मिक साधना केंद्र रिसदा, बिलासपुर में था। और शायद आप लोगों को याद होगा कि उन दिनों 2012 में दुनिया के अंत होने की एक अपवाह फैली थी। जिसे टीवी, अखबार व सोशल मिडिया ने भी बहुत जोर-शोर से उछाला था। मैं वास्तव में इस प्रकार की बातों पर न तो विश्वास करता हूँ और न ही इन्हें अधिक महत्व देता हूँ। पर उस साल हुआ यूँ कि 31 दिसम्बर मध्य रात्री की मिस्सा के बाद बारिश शुरू हुई, इसलिए मिस्सा के तुरन्त बाद हम सब जाकर सो गये। हम जाकर सोये ही थे कि इतनी तेज हवा चलने लगी कि कई खडकी दरवाजे जोर-जोर से टकराने लगे। कुछ खिडिकियों के काँच भी टूट गये। बाहर झाँककर देखा तो बडे-बडे ओले गिर रहे थे। मुझे ये सब देखकर डर लगने लगा, मैं सोचने लगा कि कहीं जो भविष्यवाणी की गयी थी वो सही तो नहीं हो रही है। लेकिन थोडे समय बाद सब कुछ सामान्य हो गया। आज जब मैं उस समय के बारे में सोचता हूँ तो स्वयं से पूछता हूँ कि मुझे आखिर डर किस बात का लग रहा था। मरने का? मरना तो मुझे एक न एक दिन है ही। तो फिर डर किस बात का था? मुझे डर इस बात का था कि मैं तैयार नहीं था। मैं मरने के लिए तैयार नहीं था। मुझे यह भय सता रहा था कि अगर मैं उस घडी मर जाता तो क्या मैं स्वर्ग पहूँच पाता? क्या मैं प्रभु के न्याय-सिंहासन के सामने खडे होकर खुद को निर्दोष साबित करने की स्थिति में था? वो दिन भले ही मेरे जीवन का अंतिम दिन नहीं था पर मेरे अंतिम दिन के बारे में मुझे कुछ सिखा गया।

आज के पहले पाठ में प्रभु का वचन कहता है- ‘‘वह दिन उन्हें भस्म कर देगा। उनका न तो डंठल रह जायेगा और न जड ही।’’ वहीं प्रभु येसु आज के सुसमाचार में कहते हैं - ‘‘राष्ट के विरूद्ध,राष्ट उठ खडा होगा, ... भारी भूकम्प होंगे; जहाँ-तहाँ महामारी तथा अकाल पडेगा। आतंकित करने वाले दृष्य दिखाई देंगे।’’ कुल मिलाकर अंत में एक भयंकर तबाही का मंज़र होगा। अंत के बारे में ये सारी बातें एक सामन्य व्यक्ति को बहुत विचलित कर सकती हैं। परन्तु इन सब भयभीत करने वाली बातों के बाद प्रभु येसु हमें एक बहुत ही सांत्वना भरी बात कहते हैं – “फिर भी तुम्हारे सिर का बाल भी बाँका नहीं होगा। अपने धैर्य से तुम अपनी आत्माओं को बचा लोगे”। कितनी सुन्दर बात प्रभु ने हम से कही है कि इतनी सारी तबाही के बाद भी हमारे सिर का बाल भी बाँका नहीं होगा। आज के पहले पाठ में भी प्रभु ने कहा है – “किंतु तुम जो मुझ पर श्रद्धा रखते हो, तुम्हारे ऊपर धर्म के सूर्य का उदय होगा और उसकी किरणें तुम्हें स्वास्थ्य प्रदान करेंगी। तब तुम उसी प्रकार उछलोगे, जैसे बछडे बाडे से निकल कर उछलने कूदने लगते हैं।“

हम पर, जो उनपर श्रद्धा रखते हैं प्रभु यह कृपा करेंगे और हमें अपने सूर्य जैसे स्वर्गिक प्रकाश में ले जायेंगे। स्वर्गिक आनन्द की तुलना यहाँ बाडे से बाहर निकलने पर मस्ती में उछलते बछडे से की गई है। जिसने अपने बाडे से बाहर निकले बछडे या फिर रस्सी से छोडे गये बछडे को देखा है वही इस आज़दी के आनन्द को समझ सकता है।

परन्तु यह आनन्द हमें यूँ ही नहीं मिल जाने वाला है। संत पौलुस अपने जीवन के अंत में इस आनन्द व मुक्ति के मुकुट को पाने की अभिलाषा रखते हुए कहते हैं – “अब मेरे लिए धार्मिकता का वह मुकुट तैयार है, जिसे न्यायी विचारपति प्रभु मुझे उस दिन (न्याय के दिन) प्रदान करेंगे।”

परन्तु उस मुकुट को प्राप्त करने के लिए वे कहते हैं - उन्हें एक अच्छी लडाई लडनी पडी, उन्हें एक दौड पूरी करनी पडी, और वे पूर्ण रूप से उन सब बातों में वफादार व ईमानदार रहे जिसे प्रभु ने उन्हें सौंपा था। जी हाँ, प्यारे मित्रों, हमें भी हमारे इस दुनियाई जीवन में एक अच्छी लडाई लडनी है। अपने मित्रों व परिजनों से नहीं बल्कि शैतान और उसकी ताकतों से जैसा कि एफेसियों को लिखे पत्र 6:12 में संत पौलुस स्वयं कहते हैं – “हमें निरे मनुष्यों से नहीं, बल्कि अंधकारमय संसार के अधिपतियों, अधिकारियों तथा शासकों और आकाश के दुष्ट आत्माओं से संघर्ष करना पडता है।’’

और आगे संत पौलुस हमें बताते हैं कि हमें कैसे शैतान व उसकी सारी शक्तियों को कुचलना है। उसके लिए हमें आध्यात्मिक हत्यारों से अपने को लेस करना है। ये हत्यार हैं - सत्य, धार्मिकता, सुसमाचार का उत्साह, विश्वास, तथा ईश्वर का का वचन।

पहले पाठ में जिन्हें प्रभु पर श्रद्धा रखने वाले लोग कहा गया है वे वही लोग होंगे जो अपने जीवन संघर्ष में इन अध्यात्मिक हत्यारों का उपयोग करते हुए हमेशा, शैतान का सामना करते हैं और कभी भी उसकी अधीनता स्वीकार नहीं करते। वे सब अंत में महिमा और सम्मान का मुकुट प्राप्त करेंगे। ऐसे लोगों को अंत समय का डर नहीं सताता, वे तो संत पौलुस की तरह बडी उत्सुकता से उस महिमामय समय की राह देखते रहते हैं। हम अपने आप से पूछें, क्या हम संत पौलुस की तरह हमारे अंत का इंतजार करते हैं या फिर हमारे अंत की खबर हमें विचलित कर देती है? आमेन।


 -Br. Biniush Topno


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