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शनिवार, 22 मई, 2021 पास्का का सातवाँ सप्ताह

 

शनिवार, 22 मई, 2021

पास्का का सातवाँ सप्ताह

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पहला पाठ : प्रेरित-चरित 28:16-20, 30-31


16) जब हम रोम पहुँचे, तो पौलुस को यह अनुमति मिली की वह पहरा देने वाले सैनिक के साथ जहाँ चाहे, रह सकता है।

17) तीन दिन बाद पौलुस ने प्रमुख यहूदियों को अपने पास बुलाया और उनके एकत्र हो जाने पर उन से कहा, भाइयो! मैंने न तो राष्ट्र के विरुद्ध कोई अपराध किया और न पूर्वजों की प्रथाओं के विरुद्ध, फिर भी मुझे बन्दी बनाया और येरुसालेम में रोमियों के हवाले कर दिया गया है।

18) वे सुनवाई के बाद मुझे रिहा करना चाहते थे, क्योंकि मैंने प्राणदण्ड के योग्य कोई अपराध नहीं किया था।

19) किंतु जब यहूदी इसका विरोध करने लगे, तो मुझे कैसर से अपील करनी पड़ी, यद्यपि मुझे अपने राष्ट्र पर कोई अभियोग नहीं लगाना था।

20) इसलिए मैंने आप लोगों से मिलने और बातें करने का निवेदन किया, क्योंकि इस्राएल की आशा के कारण मैं जंजीर पहने हूँ।’’

30) पौलुस पूरे दो वर्षों तक अपने किराये के मकान में रहा। वह सभी मिलने वालों का स्वागत करता था।

31) और आत्मविश्वास के साथ निर्विघ्न रूप से ईश्वर के राज्य का सन्देश सुनाता और प्रभु ईसा मसीह के विषय में शिक्षा देता था।


सुसमाचार : योहन 21:20-25


20) पेत्रुस ने मुड़ कर उस शिष्य को पीछे पीछे आते देखा जिसे ईसा प्यार करते थे और जिसने व्यारी के समय उनकी छाती पर झुक कर पूछा था, ’प्रभु! वह कौन है, जो आप को पकड़वायेगा?’

21) पेत्रुस ने उसे देखकर ईसा से पूछा, ’’प्रभ! इनका क्या होगा?’’

22) ईसा ने उसे उत्तर दिया, ’’यदि मैं चाहता हूँ कि यह मेरे आने तक रह जाये तो इस से तुम्हें क्या? तुम मेरा अनुसरण करो।’’

23) इन शब्दों के कारण भाइयों में यह अफ़वाह फैल गयी कि वह शिष्य नहीं मरेगा। परन्तु ईसा ने यह नहीं कहा कि यह नहीं मरेगा; बल्कि यह कि ’यदि मैं चाहता हूँ कि यह मेरे आने तक रह जाये, तो इस से तुम्हें क्या?’

24) यह वही शिष्य है, जो इन बातों का साक्ष्य देता है और जिसने यह लिखा है। हम जानते हैं कि उसका साक्ष्य सत्य है।

25) ईसा ने और भी बहुत से कार्य किये। यदि एक-एक कर उनका वर्णन किया जाता तो मैं समझता हूँ कि जो पुस्तकें लिखी जाती, वे संसार भर में भी नहीं समा पातीं।


📚 मनन-चिंतन


आज के सुसमाचार के अंश में हम संत योहन के सुसमाचार के अंतिम पदों को पाते है जहॉं पर येसु संत योहन के विषय में पेत्रुस को बताते है तथा साथ ही साथ हमें यह पता चलता है कि संत योहन ने अपने सुसमाचार में प्रभु के कार्यो का विवरण तो दिया है परंतु सभी कार्यो का विवरण नहीं दिया क्योंकि वह इतने अधिक है कि इस पुस्तक में समा नहीं पाती।

संत योहन का सुसमाचार चारों सुसमाचार के बीच में अलग पहचान बना के रखता है। संत योहन अपने सुसमाचार में गहरी से गहरी रहस्यों को हमारे समक्ष प्रकट करते है।

प्रभु येसु संत योहन के विषय में कहते है, ‘‘यदि मैं चाहता हॅूं कि यह मेरे आने तक रह जाये तो इससे तुम्हें क्या?’’ आगे चलकर इतिहास हमें बताता है कि उन बारह शिष्यों में सभी को शहादत मिली सिवाय एक शिष्य के और वे शिष्य है संत योहन।

प्रभु के जीवन को और उनके कार्यो को हमारे समक्ष रखने में संत योहन का बहुत बड़ा योगदान रहा है। संत योहन प्रभु येसु के प्रिय शिष्य थे और उन्होने प्रभु येसु के अद्भुत कार्यों, चमत्कारों, घटनाओं का प्रत्यक्ष दर्शन किया है और वहीं चीज़ों को संत योहन साक्ष्य के रूप में हमारे सामने प्रकट करते है।

आईये हम प्रार्थना करें कि संत योहन के सुसमाचार द्वारा बहुतो का उद्धार हो और बहुत से लोग विश्वासी बनें। आमेन!


📚 REFLECTION


In today’s gospel passage we see the last verses of St. John’s gospel where Jesus tells about John to Peter and at the same time we come to know that though John have given the account of Lord’s work but he did not gave the account of all the works because they were so much that the book itself will not be able to contain it.

St. John’s gospel sets a separate recognition among the four gospels. St. John reveals in front of us the deepest mysteries in his gospel.

Jesus tells about John that, “If it is my will that he remain until I come, what is that to you? Later history tells us that among the twelve disciples eleven of them receive the martyrdom except one and that disciple is St. John.

St. John had made a great contribution to us by keeping before us the life of Jesus and his works. St. John was the beloved disciple of Jesus and He saw the wonderful works, miracles and events of Lord Jesus and the same thing he put in front of us as a witness.

Let’s pray that many may receive salvation through St. John’s gospel and many may become believers. Amen!



 -Br. Biniush Topno


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Praise the Lord!