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सोमवार, 13 सितम्बर, 2021 वर्ष का चौबीसवाँ सामान्य सप्ताह

 

सोमवार, 13 सितम्बर, 2021

वर्ष का चौबीसवाँ सामान्य सप्ताह

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पहला पाठ : 1तिमथी 2:1-8


1 (1-2) मैं सब से पहले यह अनुरोध करता हूँ कि सभी मनुष्यों के लिए, विशेष रूप से राजाओं और अधिकारियों के लिए, अनुनय-विनय, प्रार्थना निवेदन तथा धन्यवाद अर्पित किया जाये, जिससे हम भक्ति तथा मर्यादा के साथ निर्विघ्न तथा शान्त जीवन बिता सकें।

3) यह उचित भी है और हमारे मुक्तिदाता ईश्वर को प्रिय भी,

4) क्योंकि वह चाहता है कि सभी मनुष्य मुक्ति प्राप्त करें और सत्य को जानें।

5) क्योंकि केवल एक ही ईश्वर है और ईश्वर तथा मनुष्यों के केवल एक ही मध्यस्थ हैं, अर्थात् ईसा मसीह,

6) जो स्वयं मनुष्य हैं और जिन्होंने सब के उद्धार के लिए अपने को अर्पित किया। उन्होंने उपयुक्त समय पर इसके सम्बन्ध में अपना साक्ष्य दिया।

7) मैं सच कहता हूँ, झूठ नहीं बोलता। मैं इसी का प्रचारक तथा प्रेरित, गैर-यहूदियों के लिए विश्वास तथा सत्य का उपदेशक नियुक्त हुआ हूँ।

8) मैं चाहता हूँ कि सब जगह पुरुष, बैर तथा विवाद छोड़ कर, श्रद्धापूर्वक हाथ ऊपर उठा कर प्रार्थना करें।



सुसमाचार : सन्त लूकस 7:1-10



1) जनता को अपने ये उपदेश सुनाने के बाद ईसा कफ़रनाहूम आये।

2) वहाँ एक शतपति का अत्यन्त प्रिय नौकर किसी रोग से मर रहा था।

3) शतपति ने ईसा की चर्चा सुनी थी; इसलिए उसने यहूदियों के कुछ प्रतिष्ठित नागरिकों को ईसा के पास यह निवेदन करने के लिए भेजा कि आप आ कर मेरे नौकर को बचायें।

4) वे ईसा के पास आ कर आग्रह के साथ यह कहते हुए उन से विनय करते रहे, ’’वह शतपति इस योग्य है कि आप उसके लिए ऐसा करें।

5) वह हमारे राष्ट्र से प्रेम करता है और उसी ने हमारे लिए सभागृह बनवाया।’’

6) ईसा उनके साथ चले। वे उसके घर के निकट पहुँचे ही थे कि शतपति ने मित्रों द्वारा ईसा के पास यह कहला भेजा, ’’प्रभु! आप कष्ट न करें, क्योंकि मैं इस योग्य नहीं हूँ कि आप मेरे यहाँ आयें।

7) इसलिए मैने अपने को इस योग्य नहीं समझा कि आपके पास आऊँ। आप एक ही शब्द कह दीजिए और मेरा नौकर चंगा हो जायेगा।

8) मैं एक छोटा-सा अधिकारी हूँ। मेरे अधीन सिपाही रहते हैं। जब मैं एक से कहता हूँ- ’जाओ’, तो वह जाता है और दूसरे से- ’आओ’, तो वह आता है और अपने नौकर से-’यह करो’, तो वह यह करता है।’’

9) ईसा यह सुन कर चकित हो गये और उन्होंने पीछे आते हुए लोगों की ओर मुड़ कर कहा, ’’मै तुम लोगों से कहता हूँ- इस्राएल में भी मैंने इतना दृढ़ विश्वास नहीं पाया’’।

10) और भेजे हुए लोगों ने घर लौट कर रोगी नौकर को भला-चंगा पाया।


📚 मनन-चिंतन



जीवन में यदि विश्वास है तो आशा है, और यदि जीवन में येसु के प्रति सच्चा विश्वास है तो हमारे लिए सबकुछ संभव है। विश्वास के बारे में प्रभु येसु कहते है, ‘‘यदि तुम्हारा विश्वास राई के दाने के बराबर भी हो और तुम इस पहाड़ से यह कहो, यहॉं से वहॉं तक हट जा, तो यह हट जायेगा, और तुम्हारे लिए कुछ भी असम्भव नहीं होगा।’’ (मत्ती 17ः20) इस संुदर विश्वास का उदाहरण हम आज के सुसमाचार में पाते है जहॉं पर एक शतपति के दृढ़ विश्वास और नम्रता द्वारा उसके बिमार नौकर को प्रभु येसु द्वारा चंगाई मिलती है।

उस शतपति को प्रभु येसु के शब्द मात्र पर इतना विश्वास था कि येसु जो कहेंगे वह जायेगा। वे समझ गये थे कि प्रभु येसु के पास सम्पूर्ण अधिकार और शक्ति है। इस प्रकार का विश्वास होना वास्तव में एक सच्चे विश्वासी का निशानी है। जिस प्रकार ईश्वर ने शब्द मात्र से संसार की सृष्टि की, ठीक उसी प्रकार येसु के शब्द मात्र से विभिन्न चीजें़ संभव है। शतपति का यह विश्वास हमारे सामने एक प्रश्न रखता है कि हमारा विश्वास येसु के प्रति किस प्रकार का है? विश्वास के द्वारा जिंदगी में पहाड़ जैसे लगने वाली समस्याएॅं, परेशानियॉं येसु के शब्द मात्र से दूर हो सकती है। आईये हम अपने विश्वास में दृढ़ता लायें।



📚 REFLECTION



In life if there is faith than there is hope and in life if there is true faith in Jesus then there everything is possible for us. About faith Jesus tells, “If you have faith the size of a mustard seed, you will say to this mountain, Move from here to there, and it will move; and nothing will be impossible for you.” (Mt 17:20). We find the beautiful example of such faith in today’s gospel where the faith and humility of a Centurian towards Jesus lead to the healing of his servant.

The Centurian had deep faith in Jesus that whatever Jesus will say it will happen. He understood that Jesus has all the authority and power. Having such a faith is a sign of true believer. Just as God created the universe with mere words so also with Jesus’ words everything is possible. The faith of Centurian places a question in front of us that how is our faith towards Jesus? Through faith all the troubles and problems which seem like mountains can be removed just by the words of Jesus. Let’s bring firmness in our faith.


 -Br Biniush Topno


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Praise the Lord!