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गुरुवार, 02 सितम्बर, 2021

 

गुरुवार, 02 सितम्बर, 2021

वर्ष का बाईसवाँ सामान्य सप्ताह

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पहला पाठ : कलोसियों 1:9-14


9) जिस दिन से हमने यह सुना, हम निरंतर आप लोगों के लिए प्रार्थना करते रहे हैं। हम ईश्वर से यह निवेदन करते हैं कि वह आप को समस्त प्रज्ञा तथा आध्यात्मिक अन्तर्दृष्टि प्रदान करे, जिससे आप उसकी इच्छा पूर्ण रूप से समझ सकें।

10) इस प्रकार आप प्रभु के योग्य जीवन बिता कर सब बातों में उसे प्रसन्न करेंगे, हर प्रकार के भले कार्य करते रहेंगे और ईश्वर के ज्ञान में बढ़ते जायेंगे।

11) आप ईश्वर की महिमामय शक्ति से बल पा कर सदा दृढ़ बने रहेंगे,

12) सब कुछ आनन्द के साथ सह सकेंगे और पिता को धन्यवाद देंगे, जिसने आप को इस योग्य बनाया है कि आप ज्योति के राज्य में रहने वाले सन्तों के सहभागी बनें।

13) ईश्वर हमें अन्धकार की अधीनता से निकाल कर अपने प्रिय पुत्र के राज्य में ले आया।

14) उस पुत्र के द्वारा हमारा उद्धार हुआ है, अर्थात् हमें पापों की क्षमा मिली है।



सुसमाचार : सन्त लूकस 5:1-11



1) एक दिन ईसा गेनेसरेत की झील के पास थे। लोग ईश्वर का वचन सुनने के लिए उन पर गिरे पड़ते थे।

2) उस समय उन्होंने झील के किनारे लगी दो नावों को देखा। मछुए उन पर से उतर कर जाल धो रहे थे।

3) ईसा ने सिमोन की नाव पर सवार हो कर उसे किनारे से कुछ दूर ले चलने के लिये कहा। इसके बाद वे नाव पर बैठे हुए जनता को शिक्षा देते रहे।

4) उपदेश समाप्त करने के बाद उन्होंने सिमोन से कहा, ’’नाव गहरे पानी में ले चलो और मछलियाँ पकड़ने के लिए अपने जाल डालो’’।

5) सिमोन ने उत्तर दिया, ’’गुरूवर! रात भर मेहनत करने पर भी हम कुछ नहीं पकड़ सके, परन्तु आपके कहने पर मैं जाल डालूँगा’’।

6) ऐसा करने पर बहुत अधिक मछलियाँ फँस गयीं और उनका जाल फटने को हो गया।

7) उन्होंने दूसरी नाव के अपने साथियों को इशारा किया कि आ कर हमारी मदद करो। वे आये और उन्होंने दोनों नावों को मछलियों से इतना भर लिया कि नावें डूबने को हो गयीं।

8) यह देख कर सिमोन ने ईसा के चरणों पर गिर कर कहा, ’’प्रभु! मेरे पास से चले जाइए। मैं तो पापी मनुष्य हूँ।’’

9) जाल में मछलियों के फँसने के कारण वह और उसके साथी विस्मित हो गये।

10) यही दशा याकूब और योहन की भी हुई; ये जेबेदी के पुत्र और सिमोन के साझेदार थे। ईसा ने सिमोन से कहा, ’’डरो मत। अब से तुम मनुष्यों को पकड़ा करोगे।’’

11) वे नावों को किनारे लगा कर और सब कुछ छोड़ कर ईसा के पीछे हो लिये।



📚 मनन-चिंतन


ईश्वर का बुलाहट इस संसार में एक वरदान है क्योकि वह हमें बताता है हमारे जीवन का उद्देश्य क्या है? हम इस संसार में किस लिये आये है? अक्सर इस संसार में अधिकतर लोग बिना मकसद के जीते है और कुछ इस संसार के चीजों को प्राप्त करना अपना मकसद समझते है परंतु इस सबसे भी गहरा और विशेष मकसद है जिसके लिए ईश्वर ने हमें बनाया और इस संसार में भेजा है। उस मकसद को जानना हम सभी के लिए बेहद जरूरी है। उस उद्देश्य को जानने के लिए हमें अपना ज्ञान, बुद्धि, सोच क्षमता को परे रखकर येसु की बाते सुनकर अपने जीवन को गहराई की ओर ले जाना है।

जिस प्रकार पेत्रुस ने अपनी क्षमता ज्ञान एवं तर्जुबा को परे रखकर येसु की बातों का पालन किया तब उसे येसु में ईश्वरता और अपने में पाप नजर आया तब जाकर येसु ने उनको उनके जीवन का उद्देश्य बताया जो कि मनुष्यें के मछुआ बनने का बुलाहट है। जब कभी हम अपने ज्ञान, क्षमता, तर्जुबा पर अवश्यकता से ज्यादा निर्भर रहते है तो हम ईश्वर की आवाज़ और उसके कार्य को समझने से वंचित रह जाते है। हमारा जीवन अपने पर नहीं परंतु प्रभु निर्भर होना चाहिए जो व्यक्ति प्रभु के वचन पर निर्भर होकर जीवन बिताता है उसका जीवन चट्टान रूपी नीव में बना रहता है वह अपने जीवन के मकसद में हर दुख तकलीफ, मुसीबत से उबर कर आगे बढ़ता जाता है। हम सब अपने जीवन के मकसद को पहचानें।



📚 REFLECTION


The Call of God is a gift to the world as it tells us what is the purpose of our lives? Why we came on this earth? Oftentimes in this world may people live the lives without any purpose and some think their goal is to collect the things of this world, but there is a deeper and special purpose for which we are being created and and being send in this world. To know that purpose is very important for us. To know that purpose we need to keep aside our knowledge, intellect, thoughts, capabilities and listening to Jesus we need to take our lives to the deep.

As Peter keeping aside his knowledge and experience obeyed the words of Jesus, he realized the divinity in Jesus and sinfulness in himself and then only Jesus told his purpose of life that is the Call to be the fisher of men. Whenever we rely on our knowledge, capabilities, experience more than the necessary then we restrict ourselves to listen to God’s voice and His works. Our lives should not depend on oneself but on God. One who lives in accordance with God’s word, his/her lives stand in the foundation of stone and he/she moves forward in the purpose of his/her lives overcoming all the sorrows, difficulties and obstacles. We all may find the purpose of our lives.



 -Br Biniush Topno


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Praise the Lord!