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बुधवार, 01 सितम्बर, 2021

 

बुधवार, 01 सितम्बर, 2021

वर्ष का बाईसवाँ सामान्य सप्ताह

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पहला पाठ : कलोसियों 1:1-8


1) कलोस्सै- निवासी सन्तो, मसीह में विश्वास करने वाले भाइयों के नाम पौलुस, जो ईश्वर द्वारा ईसा मसीह का प्रेरित नियुक्त हुआ है, और भाई तिमथी का पत्र।

2) हमारा पिता ईश्वर और प्रभु ईसा मसीह आप लोगों को अनुग्रह तथा शान्ति प्रदान करें!

3 (3-4) हमने ईसा मसीह में आप लोगों के विश्वास और सभी विश्वासियों के प्रति आपके भ्रातृप्रेम के विषय में सुना है। इसलिए हम आप लोगों के कारण अपने प्रभु ईसा के पिता को निरन्तर धन्यवाद देते और अपनी प्रार्थनाओं में आपका स्मरण करते रहते हैं।

5) आपका विश्वास और भ्रातृप्रेम उस आशा पर आधारित है, जो स्वर्ग में आपके लिए सुरक्षित है और जिसके विषय में आपने तब सुना, जब सच्चे सुसमाचार का सन्देश

6) आपके पास पहुँचा। यह समस्त संसार में फैलता और बढ़ता जा रहा है। आप लोगों के यहाँ यह उस दिन से फैलता और बढ़ता रहा है, जिस दिन आपने ईश्वर के अनुग्रह के विषय में सुना और उसका मर्म समझा।

7) आप को हमारे प्रिय सहयोगी एपाफ्रास से इसकी शिक्षा मिली है। एपाफ्रास हमारे प्रतिनिधि के रूप में मसीह के विश्वासी सेवक है।

8) उन्होंने हमें बताया है कि आत्मा ने आप लोगों में कितना प्रेम उत्पन्न किया है।


सुसमाचार : सन्त लूकस 4:38-44


38) वे सभागृह से निकल कर सिमोन के घर गये। सिमोन की सास तेज़ बुखार में पड़ी हुई थी और लोगों ने उसके लिए उन से प्रार्थना की।

39) ईसा ने उसके पास जा कर बुख़ार को डाँटा और बुख़ार जाता रहा। वह उसी क्षण उठ कर उन लोगों के सेवा-सत्कार में लग गयी।

40) सूरज डूबने के बाद सब लोग नाना प्रकार की बीमारियों से पीडि़त अपने यहाँ के रोगियों को ईसा के पास ले आये। ईसा एक-एक पर हाथ रख कर उन्हें चंगा करते थे।

41) अपदूत बहुतों में से यह चिल्लाते हुये निकलते थे, ’’आप ईश्वर के पुत्र हैं’’। परन्तु वह उन को डाँटते और बोलने से रोकते थे, क्योंकि अपदूत जानते थे कि वह मसीह हैं।

42) ईसा प्रातःकाल घर से निकल कर किसी एकान्त स्थान में चले गये। लोग उन को खोजते-खोजते उनके पास आये और अनुरोध करते रहे कि वह उन को छोड़ कर नहीं जायें।

43) किन्तु उन्होंने उत्तर दिया, ’’मुझे दूसरे नगरों को भी ईश्वर के राज्य का सुसमाचार सुनाना है-मैं इसीलिए भेजा गया हूँ’’

44) और वे यहूदिया के सभागृहों में उपदेश देते रहे।


📚 मनन-चिंतन


प्रभु येसु का जीवन कार्य या जीवन चर्या उनके उद्देश्य या लक्ष्य पर आधारित था। पिता ईश्वर जैसा चाहते प्रभु येसु वैसा ही इस जीवन में कार्यांवित करते थे। येसु ने हमेशा से अपने जीवन के द्वारा ईश्वर के राज्य को इस संसार में बढ़ावा दिया है और इस हेतु वे लोगों को उपदेश देते, रोगियों को चंगा करते और अपदूतों को निकालते थे। यह कार्य उनके जीवन के मकसद को दर्शाता था। येसु ने अपने इस कार्य को किसी क्षेत्र में सिमित नहीं रखा। वे चाहते थे कि संुसमाचार हर क्षेत्र में फैलता जाये जिस प्रकार वे आज के वचनों में कहते है, ’’मुझे दूसरे नगरों को भी ईश्वर के राज्य का सुसमाचार सुनाना है’’ और यही चीज़ वे अपने शिष्यों को भी कहते है कि ’संसार के कोने कोने में जाकर सारी सृष्टि को सुसमाचार सुनाओ’ (मारकुस 16ः15)। ईश्वर के राज्य को फैलाना हम सभी विश्वासियांे का दायित्व है, इसके लिए सबसे पहले हमें ईश्वर के राज्य को जानना और उसमें जीना होगा। वैसे तो ईश्वर के राज्य के विषय में प्रभु येसु ने बहुत सी बाते बतायी है; उनमें से एक प्रभु येसु मारकुस के सुसमाचार 12 में उस शास्त्री से कहते है जो उनसे प्रश्न करने आया था, ‘‘तुम ईश्वर के राज्य से दूर नहीं हो’’ उस वृतांत मंे प्रभु ने यह वाक्य इसलिए कहा क्योंकि उस शास्त्री ने येसु के उत्तर का समर्थन किया था और वह उत्तर है ईश्वर से प्रेम और पड़ोसी से प्रेम। जो इस आज्ञा का पालन करता है वह ईश्वर के राज्य में जीता है और उसी के द्वारा ईश्वर के राज्य का फैलाव हो सकेगा। ईश्वर का राज्य अर्थात ईश्वर का प्रेम संसार के कोने कोने में फैलता जाये।



📚 REFLECTION



The life of Jesus was based on the goal or the purpose of his life. As the Father Almighty wills like wise Lord Jesus accomplishes them in the life. Jesus always in his life time on this earth gave the importance to the Kingdom of God and for this He used to give sermons, healing the sick and casting out the demons. This works demonstrate the purpose of his life. Jesus did not limit his works to only one particular place. He wished that Kingdom of God may spread to all the places, as he tells in today’s word, “I must proclaim the good news of the kingdom of God to the other cities also” and this he tells to the disciples also, “Go into all the world and proclaim the good news to the whole creation” (Mk16:15). To spread the Kingdom of God is the duty of all the believers for that we have to know and live in the Kingdom of God. About the Kingdom of God Jesus has told many things, among them he says to one scribe in Mark 12 who came to ask a question to Jesus, “You are not far from the Kingdom of God.” In that incident Jesus said this because the Scribe had supported the answer of Jesus regarding Love of God and love of neibhour. One who observes this commandment, he/she lives in the Kingdom of God and through him/her only the Kingdom of God can be spread. The kingdom of God in other words the Love of God may spread to every corner of the world.


 -Br Biniush Topno


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Praise the Lord!