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4 सितंबर का पवित्र वचन

 04 सितंबर 2020

वर्ष का बाईसवाँ सामान्य सप्ताह, शुक्रवार

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📒 पहला पाठ : 1 कुरिन्थियों 4:1-5

1) लोग हमें मसीह के सेवक और ईश्वर के रहस्यों के कारिन्दा समझे।


2) अब कारिन्दा से यह आशा की जाती है कि वह ईमानदार निकले।


3) मेरे लिए इस बात का कोई महत्व नहीं कि आप लोग अथवा मनुष्यों का कोई न्यायालय मुझे योग्य समझे। मैं स्वयं भी अपना न्याय नहीं करता।


4) मैं अपने में कोई दोष नहीं पाता, किन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि मैं निर्दोष हूँ। प्रभु ही मेरे न्यायकर्ता हैं।


5) इसलिए प्रभु के आने तक कोई किसी का न्याय नहीं करे। वह अन्धकार के रहस्य प्रकाश में लायेंगे और हृदयों के गुप्त अभिप्राय प्रकट करेंगे। उस समय हर एक को ईश्वर की ओर से यथायोग्य श्रेय दिया जायेगा।



सुसमाचार : लूकस 5:33-39

33) उन्होंने ईसा से कहा "योहन के शिष्य बारम्बार उपवास करते हैं और प्रार्थना में लगे रहते हैं और फरीसियों के शिष्य भी ऐसा ही करते हैं, किन्तु आपके शिष्य खाते-पीते हैं"।


34) ईसा ने उन से कहा, "जब तक दुलहा उनके साथ हैं, क्या तुम बारातियों से उपवास करा सकते हो?


35) किन्तु वे दिन आयोंगे, जब दुलहा उनके स बिछुड़ जायेगा। उन दिनों वे उपवास करेंगे।"


36) ईसा ने उन्हें यह दृष्टान्त भी सुनाया, "कोई नया कपड़ा फाड़ कर पुराने कपड़े में पैबंद नहीं लगाता। नहीं तो वह नया कपड़ा फाड़ेगा और नये कपड़े का पैबंद पुराने कपड़े के साथ मेल भी नहीं खायेगा।


37) और कोई पुरानी मशकों में नयी अंगूरी नहीं भरता। नहीं तो नयी अंगूरी पुरानी मशकों को फाड़ देगी, अंगूरी बह जायेगी और मशकें बरबाद हो जायेंगी।


38) नयी अंगूरी को नयी मशकों में ही भरना चाहिए।


39) "कोई पुरानी अंगूरी पी कर नयी नहीं चाहता। वह तो कहता है, ’पुरानी ही अच्छी है।"


📚 मनन-चिंतन

आज के सुसमाचार में हम पढ़ते हैं शास्त्री और फरीसी येसु से उपवास को लेकर सवाल करते हुए कहते हैं कि योहन के शिष्य और फरीसियों के शिष्य उपवास करते हैं पर उनके शिष्य क्यों खाते - पीते हैं। प्रभु येसु उनके प्रश्न का जवाब अन्य प्रश्न से ही देते हैं। वे उनसे पूछते हैं कि जब तक दूल्हा साथ है क्या तुम बारातियों से उपवास करा सकते हो ? जब दूल्हा उनसे बिछुड़ जायेगा तब वे उपवास करेंगे।


यहाँ पर दो बिंदु मनन-चिंतन के लिए हमारा ध्यान खींचते हैं। 1 ) हमारे उपवास या फिर किसी भी भले कार्य के पीछे एक उद्द्देश्य होना चाहिए। कई बार देखा जाता है कि कई लोगों की धार्मिक क्रियाएं या तो किसी की देखा देखी में की जाती है या फिर दूसरों को दिखने के लिए की जाती है। कुछ - कुछ काम हम बस रिवाज के नाम पर करते रहते हैं जिसका ना हमें अर्थ पता होता है और न कारण ही।


2 ) हर कार्य का अपना एक समय होता है। बारात के समय शोक और मौत के समय जश्न मनाना उचित नहीं है। उपदेशक ग्रन्थ 3:1 में उपदेशक कहता है पृथ्वी पर हर बात का अपना वक्त और हर काम का अपना समय होता है। उस समय जब येसु शरीर रूप में अपने शिष्यों के साथ थे उनका उपवास करना बेवजह था। पर आज, हमें उपवास करने की ज़रुरत है। ये उपवास, प्रार्थना, पश्चाताप और प्रायश्चित का समय है। आइये हम सब विश्वासी मिलकर उपवास प्रार्थना व प्रायश्चित करते हुए कोरोना महामारी, प्राकृतिक आपदायें, दुर्घटनाएँ, और हिंसा झेल रहे हमारे संसार के लिए प्रार्थना करें।