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Daily Mass Readings for Sunday, 8 August 2021

 Daily Mass Readings for Sunday, 8 August 2021



First Reading: First Kings 19: 4-8


4 And he went forward, one day’s journey into the desert. And when he was there, and sat under a juniper tree, he requested for his soul that he might die, and said: It is enough for me, Lord, take away my soul: for I am no better than my fathers.

5 And he cast himself down, and slept in the shadow of the juniper tree: and behold an angel of the Lord touched him, and said to him: Arise and eat.

6 He looked, and behold there was at his head a hearth cake, and a vessel of water: and he ate and drank, and he fell asleep again.

7 And the angel of the Lord came again the second time, and touched him, and said to him: Arise, eat: for thou hast yet a great way to go.

8 And he arose, and ate, and drank, and walked in the strength of that food forty days and forty nights, unto the mount of God, Horeb.

Responsorial Psalm: Psalms 34: 2-3, 4-5, 6-7, 8-9


R. (9a) Taste and see the goodness of the Lord.

2 I will bless the Lord at all times, his praise shall be always in my mouth.

3 In the Lord shall my soul be praised: let the meek hear and rejoice.

R. Taste and see the goodness of the Lord.

4 O magnify the Lord with me; and let us extol his name together.

5 I sought the Lord, and he heard me; and he delivered me from all my troubles.

R. Taste and see the goodness of the Lord.

6 Come ye to him and be enlightened: and your faces shall not be confounded.

7 This poor man cried, and the Lord heard him: and saved him out of all his troubles.

R. Taste and see the goodness of the Lord.

8 The angel of the Lord shall encamp round about them that fear him: and shall deliver them.

9 O taste, and see that the Lord is sweet: blessed is the man that hopeth in him.

R. Taste and see the goodness of the Lord.

Second Reading: Ephesians 4: 30 – 5: 2


30 And grieve not the holy Spirit of God: whereby you are sealed unto the day of redemption.

31 Let all bitterness, and anger, and indignation, and clamour, and blasphemy, be put away from you, with all malice.

32 And be ye kind one to another; merciful, forgiving one another, even as God hath forgiven you in Christ.

5:1 Be ye therefore followers of God, as most dear children;

2 And walk in love, as Christ also hath loved us, and hath delivered himself for us, an oblation and a sacrifice to God for an odour of sweetness.

Alleluia: John 6: 51

R. Alleluia, alleluia.

51 I am the living bread that came down from heaven, says the Lord; whoever eats this bread will live forever.

R. Alleluia, alleluia.

Gospel: John 6: 41-51


41 The Jews therefore murmured at him, because he had said: I am the living bread which came down from heaven.

42 And they said: Is not this Jesus, the son of Joseph, whose father and mother we know? How then saith he, I came down from heaven?

43 Jesus therefore answered, and said to them: Murmur not among yourselves.

44 No man can come to me, except the Father, who hath sent me, draw him; and I will raise him up in the last day.

45 It is written in the prophets: And they shall all be taught of God. Every one that hath heard of the Father, and hath learned, cometh to me.

46 Not that any man hath seen the Father; but he who is of God, he hath seen the Father.

47 Amen, amen I say unto you: He that believeth in me, hath everlasting life.

48 I am the bread of life.

49 Your fathers did eat manna in the desert, and are dead.

50 This is the bread which cometh down from heaven; that if any man eat of it, he may not die.

51 I am the living bread which came down from heaven.If any man eat of this bread, he shall live for ever; and the bread that I will give, is my flesh, for the life of the world.

-Br. Biniush Topno




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Praise the Lord!

इतवार, 08 अगस्त, 2021 वर्ष का उन्नीसवाँ सामान्य इतवार

 

इतवार, 08 अगस्त, 2021

वर्ष का उन्नीसवाँ सामान्य इतवार




पहला पाठ : राजाओं का पहला ग्रन्थ 19:4-8


4) और वह मरुभूमि में एक दिन का रास्ता तय कर एक झाड़ी के नीचे बैठ गया और यह कह कर मौत के लिए प्रार्थना करने लगा, ‘‘प्रभु! बहुत हुआ। मुझे उठा ले, क्योंकि मैं अपने पुरखों से अच्छा नहीं हूँ।’’

5) वह झाड़ी के नीचे लेट कर सो गया। किन्तु एक स्वर्गदूत ने उसे जगा कर कहा, ‘‘उठिए और खाइए’’।

6) उसने देखा कि उसके सिरहाने पकायी हुई रोटी और पानी की सुराही रखी हुई है। उसने खाया-पिया और वह फिर लेट गया।

7) किन्तु प्रभु के दूत ने फिर आ उसका स्पर्श किया और कहा, ‘‘उठिए और खाइए, नहीं तो रास्ता आपके लिए अधिक लम्बा हो जायेगा’’।

8) उसने उठ कर खाया-पिया और वह उस भोजन के बल पर चालीस दिन और चालीस रात चल कर ईश्वर के पर्वत होरेब तक पहुँचा।



दूसरा पाठ: एफ़ेसियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 4:30-5:2



30) पवित्र आत्मा ने मुक्ति के दिन के लिए आप लोगों पर अपनी मोहर लगा दी है। आप उसे दुःख नहीं दें।

31) आप लोग सब प्रकार की कटुता, उत्तेजना, क्रोध, लड़ाई-झगड़ा, परनिन्दा और हर तरह की बुराई अपने बीच से दूर करें।

32) एक दूसरे के प्रति दयालु तथा सहृदय बनें। जिस तरह ईश्वर ने मसीह के कारण आप लोगों को क्षमा कर दिया, उसी तरह आप भी एक दूसरे को क्षमा करें।

1) आप लोग ईश्वर की प्रिय सन्तान हैं, इसलिए उसका अनुसरण करें

2) और प्रेम के मार्ग पर चलें, जिस तरह मसीह ने आप लोगों को प्यार किया और सुगन्धित भेंट तथा बलि के रूप में ईश्वर के प्रति अपने को हमारे लिए अर्पित कर दिया।

3) जैसा कि सन्तों के लिए उचित है, आप लोगों के बीच किसी प्रकार के व्यभिचार और अशुद्धता अथवा लोभ की चर्चा तक न हो,

4) और न भद्यी, मूर्खतापूर्ण या अश्लील बातचीत; क्योंकि यह अशोभनीय है- बल्कि आप ईश्वर को धन्यवाद दिया करें।

5) आप लोग यह निश्चित रूप से जान लें कि कोई व्यभिचारी, लम्पट या लोभी - जो मूर्तिपूजक के बराबर है- मसीह और ईश्वर के राज्य का अधिकारी नहीं होगा।



सुसमाचार : सन्त योहन का सुसमाचार 6:41-51



41) ईसा ने कहा था, ‘‘स्वर्ग से उतरी हुई रोटी मैं हूँ’’। इस पर यहूदी यह कहते हुए भुनभुनाते थे,

42) ‘‘क्या वह यूसुफ का बेटा ईसा नहीं है? हम इसके माँ-बाप को जानते हैं। तो यह कैसे कह सकता है- मैं स्वर्ग से उतरा हूँ?’’

43) ईसा ने उन्हें उत्तर दिया, ‘‘आपस में मत भुनभुनाओ।

44) कोई मेरे पास तब तक नहीं आ सकता, जब तक कि पिता, जिसने मुझे भेजा, उसे आकर्षित नहीं करता। मैं उसे अन्तिम दिन पुनर्जीवित कर दूंगा।

45) नबियों ने लिखा है, वे सब-के-सब ईश्वर के शिक्षा पायेंगे। जो ईश्वर की शिक्षा सुनता और ग्रहण करता है, वह मेरे पास आता है।

46) ‘‘यह न समझो कि किसी ने पिता को देखा है; जो ईश्वर की ओर से आया है, उसी ने पिता को देखा है

47) मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ- जो विश्वास करता है, उसे अनन्त जीवन प्राप्त है।

48) जीवन की रोटी मैं हूँ।

49) तुम्हारे पूर्वजों ने मरुभूमि में मन्ना खाया, फिर भी वे मर गये।

50) मैं जिस रोटी के विषय में कहता हूँ, वह स्वर्ग से उतरती है और जो उसे खाता है, वह नहीं मरता।

51) स्वर्ग से उतरी हुई वह जीवन्त रोटी मैं हूँ। यदि कोई वह रोटी खायेगा, तो वह सदा जीवित रहेगा। जो रोटी में दूँगा, वह संसार के लिए अर्पित मेरा मांस है।’’



📚 मनन-चिंतन


आज येसु हमें बुलाते हैं कि हम उनके पास आएं ताकि वो हमें तृप्त कर सकें। येसु स्वयं को उस रोटी के रूप में वर्णित करते हैं जो स्वर्ग से उतरती है और वे हमें इस रोटी को खाने के लिए बुलाते हैं। जब हम रोटी की बात सुनते हैं तो हम शायद सहज रूप से यूखारिस्त के बारे में सोचते हैं। फिर भी, यह बेहतर होगा कि आज हम यूखारिस्त से थोड़ा हटकर मनन चिंतन करें। प्रभु हमें आमंत्रित करते है कि हम उनके पास आएं और उसकी उपस्थिति का भोजन करें, और विशेष रूप से उनके वचन का भोजन करें। यहूदी शास्त्रों याने पुराने विधान में रोटी अक्सर ईश्वर के वचन का प्रतीक है। हम विधि विवरण ग्रन्थ के इस उद्धरण से परिचित हैं- "इससे उसने तुमको यह समझाना चाहा कि मनुष्य रोटी से ही नहीं जीता है। वह ईश्वर के मुख से निकलने वाले हर एक शब्द से जीता है।" (वि. वि. 8:3) हमें भौतिक रोटी तो की तो ज़रूरत पड़ती ही है, लेकिन हमें ईश्वर के वचन की आत्मिक रोटी भी चाहिए।

हम यीशु के पास उसके वचन से पोषित होने के लिए आते हैं। पिता हमें अपने पुत्र के पास ले जाता है ताकि उनके वचन से हमारा पोषण हो। उसके वचन का भोजन हमें जीवन की हमारी यात्रा में मज़बूत बनाए रखेगा, ठीक वैसे ही जैसे पहले पाठ में, एक पकी हुई रोटी से एलिय्याह अपने गंतव्य, ईश्वर के पर्वत तक पहुँचने तक जीवित रहा। जब हम येसु के पास आते रहेंगे और उसके वचन को खाते रहेंगे, तो वह वचन हमारे जीवन को आकार और एक नया स्वरुप देगा। यह हमें उस तरह का जीवन जीने की शक्ति देता है जो संत पौलुस आज के दूसरे पाठ में हमारे सामने रखते हैं, अनिवार्य रूप से प्रेम का जीवन, एक ऐसा जीवन जिसमें हम एक दूसरे को मसीह के रूप में प्यार करते हैं। संक्षेप में, यह हमारी बपतिस्माँ की बुलाहट है।


📚 REFLECTION




Today, Jesus calls on us to come to him with a view to our feeding on him. The language of the Gospel reading is very graphic. Jesus speaks of himself as the bread that comes down from heaven and calls on us to eat this bread. When we hear that kind of language we probably think instinctively of the Eucharist. Yet, it might be better not to jump to the Eucharist too quickly. The Lord invites us come to him and to feed on his presence, and in particular to feed on his Word. In the Jewish Scriptures bread is often a symbol of the word of God. We may be familiar with the quotation from the Deuteronomy, ‘we do not live on bread alone but on every word that comes from the mouth of God’. We need physical bread, but we also need the spiritual bread of God’s word. We come to Jesus to be nourished by his word. The Father draws us to his Son to be fed by his Word. The food of his Word will sustain us on our journey through life, just as, in the first reading, the baked scones sustained Elijah, until he reached his destination, the mountain of God. When we keep coming to Jesus and feeding on his Word, that Word will shape our lives. It empowers us to live the kind of life that Saint Paul puts before us in this morning’s second reading, a life of love essentially, a life in which we love one another as Christ as loved us, forgive one another as readily as God forgives us. That, in essence, is our baptismal calling.



मनन-चिंतन - 2



राजाओं के दूसरे ग्रंथ में हम नबी एलियस के जीवन की उस घटना के बारे में पढते हैं जब वे शत्रुओं से भाग रहे थे। थकान, भूख और विषम परिस्थितियों के कारण वे अत्याधिक क्षीण होकर सो जाते हैं। इस दौरान स्वर्गदूत उन्हें जगाते तथा रोटी और जल प्रदान करते हैं। इस प्रकार ईश्वर स्वयं नबी को रोटी प्रदान करते हैं। (1राजाओं 19:4-8) धर्मग्रंथ में अनेक अवसरों पर ईश्वर मनुष्यों को रोटी प्रदान करते हैं। मरूभूमि में ईश्वर लोगों को मन्ना अर्थात रोटी प्रदान करते हैं। ’’प्रभु ने मूसा से कहा, मैं तुम लोगों के लिए आकाश से रोटी बरसाऊँगा।...मूसा ने लोगों से कहा, ’’यह वही रोटी है, जिसे प्रभु तुम लोगों को खाने के लिए देता है।’’ (निर्गमन 16:4,15) जब नबी दानिएल को सिंहों के खडड में डाल दिया गया था तो ईश्वर नबी हबक्कूक को दानिएल के लिए भोजन ले जाने को कहते हैं, ’’प्रभु के दूत ने हबक्कूक से कहा, ’अपने पास का यह भोजन बाबुल के सिंहों के खड्ड में दानिएल के पास ले जाओ’’। (दानिएल 14:34) इसी प्रकार प्रभु सरेप्ता की विधवा को भी अकाल के दौरान रोटी प्रदान करते हैं। ’’इस्राएल का प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः जिस दिन तक प्रभु पृथ्वी पर पानी न बरसाये, उस दिन तक न तो बर्तन में आटा समाप्त होगा और न तेल की कुप्पी खाली होगी।’’ (1राजाओं 17:14) सुसमाचार में येसु रोटी के चमत्कार के द्वारा लोगों के लिए रोटी का प्रबंध करते हैं, (मत्ती 14:13-21; मारकुस 6:30-44; लूकस 9:10-17; योहन 6:1-15)

योहन 6:41-51 में येसु समझाते हैं कि जो रोटी मरुभूमि में उन्हें प्रदान की गयी थी वह रोटी सचमुच में ईश्वर ने प्रदान की थी किन्तु वह भोजन मात्र था जिसका उद्देश्य शारीरिक भूख मिटाना था। वह रोटी उन्हें अनंत मृत्यु से बचाने में असमर्थ थी। ’’तुम्हारे पूर्वजों ने मरुभूमि में मन्ना खाया; फिर भी वे मर गये।’’ किन्तु येसु आगे कहते हैं ’’स्वर्ग से उतरी हुई वह जीवंत रोटी मैं हूँ। यदि कोई वह रोटी खाये, तो वह सदा जीवित रहेगा।’’

येसु ने शिष्यों के साथ अपने भोज में यूखारिस्त की स्थापना करते हुये पुनः अपने शरीर को रोटी के रूप में घोषित किया, ’’यह मेरा शरीर है, जो तुम्हारे लिए दिया जा रहा है। यह मेरी स्मृति में किया करो’’ (लूकस 22:19) (देखिए मत्ती 26:26; मारकुस 14:22; 1कुरि.11:24) येसु तो उस भोज के दौरान रोटी देते हैं किन्तु कलवारी पर वह अपने शरीर, जिसे उन्होंने रोटी कहा था, को क्रूस पर चढा कर सचमुच में अपने शरीर को वह रोटी बना देते हैं जो हम विश्वासियों को मुक्ति प्रदान करेगी।

जो येसु को रोटी के रूप में ग्रहण करता है वह अपने जीवन में क्रूस की शिक्षा को भी अपनाता है। इसके द्वारा वह सदैव प्रभु में जीवित रहता है तथा प्रभु उसमें। इस विश्वास के द्वारा हम जीवन की सारी अनिश्चिताओं एवं विपत्तियों पर विजयी प्राप्त कर सकते हैं। येसु जो ’स्वर्ग से उतरी जीवंत रोटी’ के रहस्य हैं, उनको समझने के लिए विश्वास की आवश्यकता पडती है जो केवल पिता ही दे सकता है। ’’कोई मेरे पास तक नही आ सकता जब तक कि पिता, जिसने मुझे भेजा है, उसे आकर्षित न करे।’’(योहन 6:44) ’’इसलिए मैंने तुम लोगों से यह कहा कि कोई भी मेरे पास तब तक नहीं आ सकता, जब तक उसे पिता से यह वरदान न मिला हो।’’ (6:65) इसलिए हमें येसु में ईश्वरीयता को पहचानने तथा उसे स्वीकार करने के लिए विश्वास के वरदान के लिए पिता से प्रार्थना करना चाहिए तथा सांसारिक सोच से ऊपर उठकर येसु को अपनाना चाहिए। यहूदी येसु को मात्र मनुष्य समझते और तिरस्कृत करते हुए कहते हैं, ’’क्या यह यूसुफ का बेटा येसु नहीं है? हम इसके मॉ-बाप को जानते हैं। तो यह कैसे कह सकता है-मैं स्वर्ग से उतरा हूँ?’’ ऐसी सांसारिक सोच के विरूद्ध संत पौलुस चेतावनी देते हैं, ’’यदि मसीह पर हमारा भरोसा इस जीवन तक ही सीमित है, तो हम सब मनुष्यों में सब से अधिक दयनीय है। (1 कुरि. 15:19) कई बार हमारी सोच इस नश्वर संसार तक सीमित रहती है। इस कारण हम येसु में अंनत जीवन के महान रहस्य को समझने में विफल होकर भटकते रहते हैं। आईये हम विश्वास के वरदान के लिए प्रार्थना करे तथा येसु जो जीवंत रोटी है को ग्रहण कर अंनत जीवन प्राप्त करे।


-Br. Biniush Topno



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