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शनिवार, 20 नवंबर, 2021

 

शनिवार, 20 नवंबर, 2021

वर्ष का तैंत्तीसवाँ सामान्य सप्ताह

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पहला पाठ: मक्काबियों का पहला ग्रन्थ 6:1-13


1) जब अंतियोख पहाड़ी प्रांतों का दौरा कर रहा था, तो उसने सुना कि फारस देश का एलिमईस नगर अपनी संपत्ति और सोना-चाँदी के लिए प्रसिद्ध है।

2) और यह कि वहाँ का मंदिर अत्यंत समृद्ध है और उस में वे स्वर्ण ढाले, कवच और अस्त्र-शस्त्र सुरक्षित हैं, जिन्हें फिलिप के पुत्र सिंकदर, मकूदूनिया के राजा और यूनानियों के प्रथम शासक, ने वहाँ छोड दिया था।

3) इसलिए वह उस नगर पर अधिकार करने और उसे लूटने के उद्देश्य से चल पडा, किंतु वह ऐसा नहीं कर पाया; क्योंकि नागरिकों को उस अभियान का पता चल गया था।

4) उन्होंने हथियार ले कर उसका सामना किया और उसे भागना पड़ा। उसने दुःखी हो कर वहाँ से बाबुुल के लिए प्रस्थान किया।

5) वह फारस में ही था, जब उसे यह समाचार मिला कि जो सेना यहूदिया पर आक्रमण करने निकली थी, वह पराजित हो कर भाग रही है।

6) लीसियस एक विशाल सेना ले कर वहा गया था, किंतु उसे यहूदियों के सामने से पीछे हट जाना पडा। अब यहूदी अपने अस्त्रों, अपने सैनिकों की संख्या और पराजित सेनाओं की लूट के कारण शक्तिशाली बन गये थे।

7) उन्होंने येरुसालेम की होम-वेदी पर अन्तियोख द्वारा स्थापित घृणित मूर्ति को ढाह दिया, पहले की तरह मंदिर के चारों ओर ऊँची दीवार बनवायी और उसके नगर बेत-सूर की भी किलाबंदी की।

8) राजा यह सुन कर चकित रह गया वह बहुत घबराया, पलंग पर लेट गया और दुःख के कारण बीमार हो गया; क्योंकि वह जो चाहता था, वह नहीं हो पाया था।

9) वह इस तरह बहुत दिनों तक पड़ा रहा, क्योंकि एक गहरा विषाद उस पर छाया रहा। तब वह समझने लगा कि वह मरने को है

10) और उसने अपने सब मित्रों को बुला कर उन से कहा, ’’मुझे पर दुःख का कितना बड़ा पहाड टूट पड़ा है! मैं तो अपने शासन के दिनों में दयालु और लोकप्रिय था’।

11) मैंने पहले अपने मन में कहा, मैं कितना कष्ट सह रहा हूँ ओर मुझ पर दुःख का कितना बड़ा पहाड़ टूट पड़ा है। मैं तो अपने शासन के दिनों दयालु और लोकप्रिय था।

12) किंतु अब मुझे याद आ रहा है कि मैंने येरुसालेम के साथ कितना अत्याचार किया- मैं वहाँ के चाँदी और सोने के पात्र चुरा कर ले गया और मैंने अकारण यूदा के निवासियों को मारने का आदेश दिया।

13) मुझे लगता है कि मैं इसी से कष्ट भोग रहा हूँ और गहरे शोक के कारण यहाँ विदेश में मर रहा हूँ’’



सुसमाचार : सन्त लूकस 20:27-40



27) इसके बाद सदूकी उनके पास आये। उनकी धारणा है कि मृतकों का पुनरूत्थान नहीं होता। उन्होंने ईसा के सामने यह प्रश्न रखा,

28) ‘‘गुरूवर! मूसा ने हमारे लिए यह नियम बनाया-यदि किसी का भाई अपनी पत्नी के रहते निस्सन्तान मर जाये, तो वह अपने भाई की विधवा को ब्याह कर अपने भाई के लिए सन्तान उत्पन्न करे।

29) सात भाई थे। पहले ने विवाह किया और वह निस्सन्तान मर गया।

30) दूसरा और

31) तीसरा आदि सातों भाई विधवा को ब्याह कर निस्सन्तान मर गये।

32) अन्त में वह स्त्री भी मर गयी।

33) अब पुनरूत्थान में वह किसकी पत्नी होगी? वह तो सातों की पत्नी रह चुकी है।’’

34) ईसा ने उन से कहा, ‘‘इस लोक में पुरुष विवाह करते हैं और स्त्रियाँ विवाह में दी जाती हैं;

35) परन्तु जो परलोक तथा मृतकों के पुनरूत्थान के योग्य पाये जाते हैं, उन लोगों में न तो पुरुष विवाह करते और न स्त्रियाँ विवाह में दी जाती हैं।

36) वे फिर कभी नहीं मरते। वे तो स्वर्गदूतों के सदृश होते हैं और पुनरूत्थान की सन्तति होने के कारण वे ईश्वर की सन्तति बन जाते हैं।

37) मृतकों का पुनरूत्थान होता हैं मूसा ने भी झाड़ी की कथा में इसका संकेत किया है, जहाँ वह प्रभु को इब्राहीम का ईश्वर, इसहाक का ईश्वर और याकूब का ईश्वर कहते है।

38) वह मृतकों का नहीं, जीवितों का ईश्वर है, क्योंकि उसके लिये सभी जीवित है।’’

39) इस पर कुछ शास्त्रियों ने उन से कहा, ‘‘गुरुवर! आपने ठीक ही कहा’’।

40) इसके बाद उन्हें ईसा से और कोई प्रश्न पूछने का साहस नहीं हुआ।



मनन-चिंतन



आज का सुसमाचार येसु के पुररूत्थान के संदर्भ/ में सदूकियों की सोच और ईश्वर की अवधारणा में दो गलतियों की ओर इंगित । करता है ।

सदूकी पुनरूत्थान की धारणा गलत थी कयोंकि पृथ्वी के संदर्भ में स्वर्ग के बारे में सोचना और समय के संदर्भ में अनंत काल के विषय में सोचने में त्रुटि थी । उनका यह मानना था कि स्वर्ग में जीवन पृथ्वी पर जीवन की निरंतरता होगी । लेकिन येसु कहते है कि स्वर्ग इस दुनिया का एक सिलसिला या विस्तार के रूप में नही होगा । इन दोनों में मूलभूत अंतर यह कि स्वर्ग में लोग अब नही मर सकते । मृतयु के बिना जीवन एक अद्भुुत अनुभव है । संत पौलुस कुरिन्थियों के नाम अपने पहले पत्र में कहते है (15ः20-23) “किन्तु मसीह सचमुच मृतकों में से जी उठे ।

- - - उसी तरह सब मसीह के कारण पुर्नीवित किये जायेगे।

”हम येसु के पुनर्जीवित जीवन में सहभागी होंगे जिस पर मृत्यु की कोई भी शक्ति का वश नहीं है चूॅंकि यह एक अनंत जीवन है । इसलिए विवाह या संतानोत्पत्ति की कोई आवश्यकता नही है । यदि कोई संतान नहीं है तो रिश्ते भी अनंत जीवन में भिन्न-भिन्न हो जाएॅंगे । शारीरिक संबंध जो हम वर्तमान में अनुभव करते है अपितु वे रिश्ते इसकी तुलना में कई अधिक बडे़ होंगे । इसके साथ ही” उनका कहना है कि हर किसी के पास स्वर्गदूतों के समान एक स्वर्गीय/शरीर भी होगा । येसु ईश्वर के संदीर्भ में उन्हें जीवितों का ईश्वर कहकर संबोधित करते है । येसु उन्हें पूर्व का हवाला देते हुए उनका ध्यान निर्गमन गं्रथ 3ः6 पर आकर्षित करते हुए कहते है कि भले ही इब्राहीम, इसहाक और याकूब मर गए हों, परन्तु अभी भी ईश्वर उनका सच्चा ईश्वर है। वहं उनके लिए जीवित रहता है और वे उसकी उपस्थिति में रहते हुए उसके लिए जीवित रहते हैं इन तीन महान कुलपतियों के साथ ईश्वर का जो प्रेम और विश्वासयोग्य बंधन है, वह मृत्यु से भी नही टूट। सकता है ।

येसु का तात्पर्य है कि हमारे प्रति ईश्वर का प्रेम और विश्वास हमारे संसारिक जीवन और मृत्यु के बाद बना रहता है । ईश्वर अपने वादों को इस संसारिक जीवन से परे रखता है ।

येसु आज हमंे उसके प्रति विश्वास योग्य रहने के लिए आमंत्रित करते हैं ताकि उसके प्रेम और विश्वास के द्वारा हम उस अनन्त जीवन में प्रवेश कर सकें जिसकी उसने हम से प्रतिज्ञा की है ।



REFLECTION



Today’s gospel Jesus points out two mistakes in the thinking of Sadducees about the resurrection and their concept of God

Sadduees notion of resurrection was wrong because there was an error of thinking of heaven in terms of earth and thinking of eternity in terms of time. Their question of presumed that life in heaven will be a continuation of life on earth. But Jesus says that heaven is not going to be a continuation or an extension of this world. The fundamental difference is that, in heaven people can no longer die. A life without death is a wonderful experience. St. Paul says in 1Cor. 15:20-23 “Christ has been raised from the dead …. so all will be made alive in Christ”. We will be sharing the risen life of Jesus over which death has no power.

Since it is an eternal life, there is no need for marriage or procreation. If no procreation the relationships also will be deferent in eternal life. There would be greater relationships than the physical relationships that we experience now. Added to that he says everyone will have a heavenly body like the angels as well.

Jesus speaks of God as the God of the living. Citing Ex. 3:6 he clarifies that even though Abraham, Isaac and Jacob have died, God remains their God. He remains alive to them and they remain alive to Him living in His presence. The bond of love and faithfulness that God has with these three great patriarchs has not been broken by death. Jesus implies that God’s love and faithfulness to us, also endures beyond our earthly life and death. God keeps His promises beyond this earthly life.

Jesus invites us today to remain faithful to him so that through his love and faithfulness we may enter into that eternal life which he has promised us.




मनन-चिंतन - 2



सदूकियों ने मृतकों के पुनरुत्थान का सवाल उठाया और यह प्रश्न किया कि पुनरुत्थान के बाद हमें किस तरह का जीवन मिलेगा। प्रभु येसु ने उन्हें समझाया कि पुनरुत्थान के समय हमारे जीवन और संबंधों को बदल दिया जाएगा। हम फिर स्वर्गदूतों की तरह होंगे। हम ईश्वर के परिवार में पैदा होंगे जहां सभी ईश्वर के बच्चों के साथ एक नए प्रकार के रिश्ते होंगे। संत पौलुस कहते हैं, "अभी तो हमें आईने में धुँधला-सा दिखाई देता है, परन्तु तब हम आमने-सामने देखेंगे। अभी तो मेरा ज्ञान अपूर्ण है; परन्तु तब मैं उसी तरह पूर्ण रूप से जान जाऊँगा, जिस तरह ईश्वर मुझे जान गया है।”(1कुरिन्थियों 13:12) संत योहन कहते हैं, "अब हम ईश्वर की सन्तान हैं, किन्तु यह अभी तक प्रकट नहीं हुआ है कि हम क्या बनेंगे। हम इतना ही जानते हैं कि जब ईश्वर का पुत्र प्रकट होगा, तो हम उसके सदृश बन जायेंगे; क्योंकि हम उसे वैसा ही देखेंगे, जैसा कि वह वास्तव में है। " (1योहन 3: 2)। हम स्वर्ग की आशा में इस दुनिया में रहते हैं। संत पौलुस हमारे सांसारिक शरीर तथा पुनर्जीवित शरीर के बीच के अन्तर को प्रकट करते हुए कहते हैं, “मृतकों के पुनरुत्थान के विषय में भी यही बात है। जो बोया जाता है, वह नश्वर है। जो जी उठता है, वह अनश्वर है। जो बोया जाता है, वह दीन-हीन है। जो जी उठता है, वह महिमान्वित है। जो बोया जाता है, वह दुर्बल है। जो जी उठता है, वह शक्तिशाली है। एक प्राकृत शरीर बोया जाता है और एक आध्यात्मिक शरीर जी उठता है। प्राकृत शरीर भी होता है और आध्यात्मिक शरीर भी।” (1 कुरिन्थियों 15:42-44)



REFLECTION



The Sadducees raised the question of the resurrection of the dead and the kind of life we shall have after the resurrection. Jesus explained to them that our life and relationships will be changed at the resurrection. We shall then be like angels. We will be born into the family of God where there will be a new kind of relationships with all God’s children. St. Paul says, “For now we see in a mirror, dimly, but then we will see face to face. Now I know only in part; then I will know fully, even as I have been fully known” (1Cor 13:12). St. John says, “What we do know is this: when he is revealed, we will be like him, for we will see him as he is” (1Jn 3:2). Let us live in this world in the hope of heaven. St. Paul distinguishes between the earthly body and the risen body in this way – “What is sown is perishable, what is raised is imperishable. It is sown in dishonor, it is raised in glory. It is sown in weakness, it is raised in power. It is sown a physical body, it is raised a spiritual body. If there is a physical body, there is also a spiritual body.” (1Cor 15:42-44)


 -Br. Biniush topno


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Praise the Lord!

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