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इतवार, 21 नवंबर, 2021

 

इतवार, 21 नवंबर, 2021

वर्ष का चौंत्तीसवाँ सामान्य इतवार

ख्रीस्तराजा का समारोह

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पहला पाठ : दानिएल 7:13-14


13) तब मैंने रात्रि के दृश्य में देखा कि आकाश के बादलों पर मानवपुत्र-जैसा कोई आया। वह वयोवृद्ध के यहाँ पहुँचा और उसके सामने लाया गया।

14) उसे प्रभुत्व, सम्मान तथा राजत्व दिया गया। सभी देश, राष्ट्र और भिन्न-भिन्न भाषा-भाषी उसकी सेवा करेंगे। उसका प्रभुत्व अनन्त है। वह सदा ही बना रहेगा। उसके राज्य का कभी विनाश नहीं होगा।



दूसरा पाठ : प्रकाशना 1:5-8



5) और ईसा मसीह की ओर से आप लोगों को अनुग्रह और शान्ति प्राप्त हो! मसीह विश्वसनीय साक्षी, पुनर्जीवित मृतकों में से पहलौठे और पृथ्वी के राजाओं के अधिराज हैं। वह हम को प्यार करते हैं। उन्होंने अपने रक्त से हमें पापों से मुक्त किया।

6) और अपने ईश्वर और पिता के लिए हमें याजकों का राजवंश बनाया। उनकी महिमा और उनका सामर्थ्य अनन्त काल तक बना रहे! आमेन!

7) देखो, वही बादलों पर आने वाले हैं। सब लोग उन्हें देखेंगे। जिन्होंने उन को छेदा, वे भी उन्हें देखेंगे और पृथ्वी के सभी राष्ट्र उन पर विलाप करेंगे। यह निश्चित है। आमेन!

8) जो है, जो था और जो आने वाला है, वही सर्वशक्तिमान् प्रभु-ईश्वर कहता है- आल्फा और ओमेगा (आदि और अन्त ) मैं हूँ।

सुसमाचार : योहन 18:33-37

33) तब पिलातुस ने फिर भवन में जा कर ईसा को बुला भेजा और उन से कहा, "क्या तुम यहूदियों के राजा हो?"

34) ईसा ने उत्तर दिया, "क्या आप यह अपनी ओर से कहते हैं या दूसरों ने आप से मेरे विषय में यह कहा है?"

35) पिलातुस ने कहा, "क्या मैं यहूदी हूँ? तुम्हारे ही लोगों और महायाजकों ने तुम्हें मेरे हवाले किया। तुमने क्या किया है।"

36) ईसा ने उत्तर दिया, "मेरा राज्य इस संसार का नहीं है। यदि मेरा राज्य इस संसार का होता तो मेरे अनुयायी लडते और मैं यहूदियों के हवाले नहीं किया जाता। परन्तु मेरा राज्य यहाँ का नहीं है।"

37) इस पर पिलातुस ने उन से कहा, "तो तुम राजा हो?" ईसा ने उत्तर दिया, "आप ठीक ही कहते हैं। मैं राजा हूँ। मैं इसलिये जन्मा और इसलिये संसार में आया हूँ कि सत्य के विषय में साक्ष्य पेश कर सकूँ। जो सत्य के पक्ष में है, वह मेरी सुनता है।"



मनन-चिंतन



आज मसीह/ख्रीस्त राजा के पर्व पर आइए हम उन दो मूलभूत गुणों पर विचर करें जो येसु के राजत्व और राज्य को दूसरों से अलग बनाते हैं ।

विनम्र सेवा में उपयोग की जाने वाली आधिकारिक शक्तिः-शक्ति और अधिकार के बिना एक राजा एक सामान्य नागरिक के बराबर होता हैं । राजा के प्रति प्रजा की निष्ठा, अधीनता और आज्ञाकारिता राजा की शक्ति और अधिकार पर निर्भर करती है । येसु ने अधिकार के साथ बात की जिसका कोई भी विरोध नहीं कर सकता था क्योंकि वो अधिकार उन्हें ऊपर से सौंपा गया था । लेकिन उन्होंने मानवता की सेवा के लिए हमेशा विनम्रता से अपने अधिकार और शक्ति का इस्तेमाल किया । उन्होंने हमें भूखे को खाना खिलाना, नंगों को कपडें पहनाना और एकाकी को सात्वना देना सिखाया । वह एक राजा है जो दया और करूणा से ओत-प्रोत/भरा हुआ है । संत पौलुस हमें बताते है ”वह वास्तव में ईश्वर थेे और उनको पूरा अधिकार था कि वह ईश्वर की बराबरी करें, फिर भी उन्होंने दास का रूप धारण कर तथा मनुष्यों के समान बन कर अपने को दीन-हीन बना लिया और उन्होंने मनुष्य का रूप धारण करने के बाद, मरण तक, हॉं क्रूस पर मरण तक आज्ञाकारी बन कर अपने को और भी दीन बना लिया “(फिलिप्पियों 2ः6-8)। अपने जीवन को त्याग देने की हद तक सेवा करना उनके जीवन का आदर्श था । उन्होंने स्वय कहा, “मानव पुत्र अपनी सेवा कराने नही, बल्कि सेवा करने तथा बहुतों के उद्धार के लिए अपने प्राण देने आया है “(मत्ती 20ः28)। मानवता के प्यार के लिए उन्होंने खुद को क्रूस पर चढ़ा दिया और हमें दर्द का अर्थ /और उद्धेश्य दिखाया ।

क्षेत्रों के बिना/सीमांकन के बिना चिरस्थायी राज्यः येसु का राज्य किसी के भी द्वारा नष्ट नहीं किया जा सकता कयोंकि वह शक्ति, धन या लोकप्रियता पर आधारित । नहीं बना है । उसका राज्य न्याय और सच्चाई,प्रेम और शांति, पवित्रता और अनुग्रह से बना है । प्रत्येक राज्य अपने सीमांकन द्वारा सीमित है । लेकिन येसु के राज्य की कोई सीमा नहीं है । उसका राज्य उन लोगों का राज्य है जिन्हें ईश्वर ने बुलाया है । उनके राज्य में प्रवेश करने की केवल दो मॉंगे हैः परिवर्तन और विश्वासं । इस प्रकार जो लोग अपने पापों पर पश्चाताप करते हैं और मसीह और उसके सुसमाचार में विश्वास करते है। वे ईश्वर के राज्य में प्रवेश कर सकते है ।

एक पश्चातापी हृदय और विश्वास की घोषणा के साथ आइए हम उसके अनंत राज्य में प्रवेश करें और उसके प्रति अपनी वफादारी और आज्ञाकारिता को प्रजा के रूप में घोषित करें ।


REFLECTION




Today on the feast of Christ the King let us reflect on two basic qualities that make Jesus’ kingship and Kingdom different from the others.

Authoritative Power used in humble service: A king without power and Authority is equal to an ordinary citizen. The loyalty, allegiance and obedience of the subjects to the king depend on the power and authority of the king. Jesus also spoke with authority which no one could oppose because it was assigned from above. But he always used his authority and power in humility for the service of humanity. . He taught us to feed the hungry, clothe the naked and console the lonely. He is a king who is full of compassion and mercy. St. Paul tells us, “even though He was in the form of God, did not regard equality with God as something to be grasped at, but emptied Himself, taking the form of a slave and being born in human likeness. He humbled Himself, becoming obedient to the point of death, even death on a cross” (Phil 2:6-8). Service to the point of giving up one’s life was his motto. He Himself said, “The Son of Man came not to be served but to serve, to give His life as a ransom for many” (Mt. 20:28). For the love of humanity he offered himself on the Cross and showed us the meaning and purpose of pain.

Everlasting Kingdom without territories: Kingdom of Jesus cannot be destroyed by anyone because it is not built on power, wealth or popularity. His kingdom is built on justice and truth, love and peace, holiness and grace. Every kingdom is limited by its territory. But kingdom of Jesus has no territories. His kingdom is a kingdom of people who are called by God. Entry to His kingdom has only two demands, conversion and faith. Thus those who repent of their sins and believe in Christ and his gospel could enter in the kingdom of God.

With a repentant heart and profession of faith let us enter into his everlasting kingdom and declare our loyalty and obedience to him as subjects.



मनन-चिंतन - 2



कुछ वर्ष पहले एक अमेरिकी सैनिक बस से स्वीडन की यात्रा कर रहा था और उसने अपने बगल में बैठे सहयात्री से कहा, “अमेरिका विश्व का सबसे बड़ा जनतंत्र देश है जहाँ जनसाधारण व्यक्ति भी व्हाइट हाउस (राष्ट्रपति भवन) जाकर राष्ट्रपति से मिलकर अपनी समस्याओं का समाधान कर सकता है”। उसके सहयात्री ने कहा- “वह तो कुछ भी नहीं है; स्वीडन में तो राजा खुद अपनी प्रज्ञा के साथ बस में बैठकर यात्रा करते हैं”। इसे सुनकर अमेरिकी सैनिक उठ कर चला गया और उसे बताया गया कि जिस बस पर वह सवार है उसी बस में राजा गुस्ताव अडोल्फ 6वें अपनी प्रजा के साथ यात्रा कर रहे हैं।

प्रभु येसु ख्रीस्त, हमारे राजा हमारी जीवनरूपी बस में हमेशा हमारे साथ स्वर्ग की यात्रा करते हैं, जो हमारा गंतव्य स्थान है। वही हमारे राजा और सर्वस्व है। उन्हीं में हम जीवन जीते और बने रहते हैं। वह हमारी जीवन की यात्रा के साथी ही नहीं, वे हमारे जीवन के केन्द्र बिन्दु भी हैं, आदि और अंत, अल्फा और ओमेगा हैं।

आज माता कलीसिया राजा राजेश्वर ख्रीस्त का पर्व मनाती है। यह त्यौहार हमारे लिए अंत्यत महत्वपूर्ण है क्योंकि आज की पूजन विधि के साथ यह पूजन-वर्ष सम्पन्न होता है। अगले इतवार को हम नये पूजन-वर्ष में प्रवेश करते हैं - आगमन काल।

‘राजा‘ शब्द येसु ख्रीस्त हमारे जीवन में ईश्वर के प्रतिरूप को उजागर करता है। हमारे प्रभु येसु ख्रीस्त किसी अतीत के राजा नहीं, अपितु हमारे साथ हमारे बीच सदैव उपस्थित रहते हैं। प्रभु येसु ख्रीस्त ने अपने को इतिहास तक ही सीमित नहीं रखा वरन् अपनी प्रजा के साथ हमेशा-हमेशा के लिए रहने का वचन दिया है।

प्रभु येसु ख्रीस्त को राजा कहना विरोधाभास प्रतीत होता है, लेकिन यह हमारे विश्वास का केन्द्रिय विरोधाभास है। संत योहन आज के सुसमाचार में प्रभु येसु ख्रीस्त को राजा के रूप में प्रस्तुत करते हैं। लेकिन इस बारे मे उनकी एक अलग समझ थी। वे एक अजीब से राजा थे। वे पिलातुस या रोमन गर्वनर से अलग थे। सुसमाचार में, पिलातुस येसु से पूछते हैं, “क्या तुम यहूदियों के राजा हो”? येसु उन्हें उत्तर देते हैं, “मेरा राज्य इस संसार का नहीं है। यदि यह मेरा राज्य इस संसार का होता तो, मेरे अनुयायी लड़ते और यहूदियों के हवाले नहीं किया जाता। परन्तु मेरा राज्य यहाँ का नहीं है।” पिलातुस फिर येसु से पूछते हैं, “तो, तुम राजा हो”। येसु उत्तर देते हैं, “आप ठीक ही कहते हैं। मैं राजा हूँ। मैं इसलिए जन्मा और संसार में आया हूँ कि सत्य के विषय में साक्ष्य दूँ।” योहन १८:३६-३७)

अतः प्रभु येसु ख्रीस्त के राज्य की तुलना इस संसार से नहीं की जा सकती है। उनके राज्य में किसी प्रकार का ऊंच-नीच, धनी-गरीब और कोई ओहदे पद का भेद्भाव नहीं होता। उनके राज्य में सभी एक समान है उनमें कोई भेद भाव नहीं है। प्रभु येसु एक सांसारिक राजा नहीं हैं, बल्कि हमारे दिल के राजा हैं। वे दुनिया भर के लोगों के दिलों में राज करते हैं। वे शांति और उदारता, क्षमा और सहनशीलता, विनम्रता तथा सादगी के राजा हैं।

आज के पहले पाठ में, दानिएल के ग्रंथ में हमें बताया गया है कि नबी दानिएल यहूदियों में एक नयी आशा का संचार करते हैं जो अपने जीवन में विपत्तियों का सामना करते आये थे। नबी दानिएल के द्वारा उन्हें आश्वासन दिया जाता है कि अब से उन्हें किसी भी विपत्ति का सामना नहीं करना पडे़गा। वे अब से शंकामुक्त जीवन व्यतीत करेंगे और स्वर्ग से मानव पुत्र को आते हुए दिखाई देंगे और उनके जीवन में एक नयी आशा का संचार होगा जो ईश्वर की आत्मा द्वारा संचालित होगी। प्रभु येसु के द्वितीय आगमन के समय हम सभी उसी राजा के राज्य में उत्तराधिकारी बनने के लिए बुलाये गये हैं जो सदैव हमारे साथ रहते हैं।

अंत में हम इसे एक महान नाटककार के शब्द में कह सकते हैं, “प्रभु येसु ख्रीस्त ही एक ऐसे राजा हैं जो सभी सान्सारिक राजाओं से भिन्न थे; उनके राज्य में धनी और गरीब, छोटे और बड़े सभी रह सकते थे। राजा ने अपनी प्रजा के साथ सदैव रहने तथा उनकी सेवा के लिए जीवन समर्पित किया।”

आइये आज ख्रीस्त राजा राजेश्वर का पर्व मनाते हुये उनके जीवन के रहस्यों को समझें और उन्हीं की तरह सबो के साथ ईश्वरीय राज्य का बीज बोने के लिए अपने आप को तैयार करें जिससे हम भी प्रभु येसु की तरह अपने लिए नहीं, लेकिन दूसरों के लिए जीवन जी सकें। आमेन


-Br. Biniush topno


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Praise the Lord!

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