About Me

My photo
Duliajan, Assam, India
Catholic Bibile Ministry में आप सबों को जय येसु ओर प्यार भरा आप सबों का स्वागत है। Catholic Bibile Ministry offers Daily Mass Readings, Prayers, Quotes, Bible Online, Yearly plan to read bible, Saint of the day and much more. Kindly note that this site is maintained by a small group of enthusiastic Catholics and this is not from any Church or any Religious Organization. For any queries contact us through the e-mail address given below. 👉 E-mail catholicbibleministry21@gmail.com

गुरुवार, 28 अक्टूबर, 2021

 

गुरुवार, 28 अक्टूबर, 2021

वर्ष का तीसवाँ सामान्य सप्ताह

सन्त सिमोन और यूदा थदेयुस, प्रेरित : पर्व

🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥

पहला पाठ एफ़ेसियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 2:19-22


19) आप लोग अब परेदशी या प्रवासी नहीं रहे, बल्कि सन्तों के सहनागरिक तथा ईश्वर के घराने के सदस्य बन गये हैं।

20) आप लोगों का निर्माण भवन के रूप में हुआ है, जो प्रेरितों तथा नबियों की नींव पर खड़ा है और जिसका कोने का पत्थर स्वयं ईसा मसीह हैं।

21) उन्हीं के द्वारा समस्त भवन संघटित हो कर प्रभु के लिए पवित्र मन्दिर का रूप धारण कर रहा है।

22) उन्हीं के द्वारा आप लोग भी इस भवन में जोड़े जाते हैं, जिससे आप ईश्वर के लिए एक आध्यात्मिक निवास बनें।


सुसमाचार : सन्त लूकस 6:12-19


12) उन दिनों ईसा प्रार्थना करने एक पहाड़ी पर चढ़े और वे रात भर ईश्वर की प्रार्थना में लीन रहे।

13) दिन होने पर उन्होंने अपने शिष्यों को पास बुलाया और उन में से बारह को चुन कर उनका नाम ’प्रेरित’ रखा-

14) सिमोन जिसे उन्होंने पेत्रुस नाम दिया और उसके भाई अन्द्रेयस को; याकूब और योहन को; फि़लिप और बरथोलोमी को,

15) मत्ती और थोमस को; अलफाई के पुत्र याकूब और सिमोन को, जो ’उत्साही’ कहलाता है;

16) याकूब के पुत्र यूदस और यूदस इसकारियोती को, जो विश्वासघाती निकला।

17) ईसा उनके साथ उतर कर एक मैदान में खड़े हो गये। वहाँ उनके बहुत-से शिष्य थे और समस्त यहूदिया तथा येरुसालेम का और समुद्र के किनारे तीरूस तथा सिदोन का एक विशाल जनसमूह भी था, जो उनका उपदेश सुनने और अपने रोगों से मुक्त होने के लिए आया था।

18) ईसा ने अपदूतग्रस्त लोगों को चंगा किया।

19) सभी लोग ईसा को स्पर्श करने का प्रयत्न कर रहे थे, क्योंकि उन से शक्ति निकलती थी और सब को चंगा करती थी।


📚 मनन-चिंतन


जब येसु ने अपना मिशन शुरू किया, तो उन्होनें अपने प्रेरित होने के लिए बारह लोगों को चुना। बारह के चुनाव में, हम एक विशेषता देखते हैं जो उन सभी बारहों के लिए समान थी कि येसु ने बहुत ही साधारण लोगों को चुना।

वे गैर-पेशेवर थे, जिनके पास कोई धन या पद नहीं था। वे मछुआरे थे। वे आम लोगों में से चुने गए थे जिन्होंने सामान्य काम किया था, उनके पास कोई विशेष शिक्षा नहीं थी, और उनके पास कोई सामाजिक लाभ का पद नहीं था। येसु ऎसे साधारण पुरुषों को चाहते थे जो एक कार्यभार ग्रहण कर सकें और इसे असाधारण रूप से अच्छी तरह से कर सकें। उनहोंने इन लोगों को इस लिए नहीं चुना कि वे क्या थे, बल्कि इसलिए कि वे उसके मार्गदर्शन और शक्ति के अधीन रहकर क्या बनने में सक्षम थे। संत पौलुस ने तत्थ को सुंदरता के साथ सारांशित किया, "ज्ञानियों को लज्जित करने के लिए ईश्वर ने उन लोगों को चुना है, जो दुनिया की दृष्टि में मूर्ख हैं। शक्तिशालियों को लज्जित करने के लिए उसने उन लोगों को चुना है, जो दुनिया की दृष्टि में दुर्बल हैं। गण्य-मान्य लोगों का घमण्ड चूर करने के लिए उसने उन लोगों को चुना है, जो दुनिया की दृष्टि में तुच्छ और नगण्य हैं, (१ कुरिन्थियों १:२७-२८) जब प्रभु हमें सेवा करने के लिए बुलाते हैं, तो हमें पीछे नहीं हटना चाहिए क्योंकि हम सोचते हैं कि हमारे पास देने के लिए बहुत कम या कुछ भी नहीं है। हमारे जैसे सामान्य लोग जो कुछ भी दे सकते हैं, प्रभु उसे लेते है और अपने राज्य में महानता के लिए उसका उपयोग करते है। हम अपना जीवन ईश्वर के लिये भेंट करें, और जैसा वह ठीक समझे, वैसा ही उसका उपयोग करे।



📚 REFLECTION



When Jesus embarked on his mission, he chose twelve men to be his apostles. In the choice of the twelve, we see a particular feature that was common to all twelve of them. Jesus chose very ordinary men.

They were non-professionals, who had no wealth or position. They were fishermen. They were chosen from the common people who did ordinary things, had no special education, and had no social advantages. Jesus wanted ordinary men who could take an assignment and do it extraordinarily well. He chose these men, not for what they were, but for what they would be capable of becoming under his guidance and power. St. Paul beautiful summarizes it, “But God chose what is foolish in the world to shame the wise; God chose what is weak in the world to shame the strong; God chose what is low and despised in the world, things that are not, to reduce to nothing things that are,” (1 Corinthians 1:27-28)

When the Lord calls us to serve, we must not hesitate back because we think that we have little or nothing to offer. The Lord takes what ordinary people, like us, can offer and uses it for greatness in his kingdom. we should make our life an offering to the Lord and allow him to use you as he sees fit.



मनन-चिंतन - 2


अपने बारह शिष्यों को चुनने से पहले प्रभु येसु ने पूरी रात प्रार्थना में बिताई। आज की दुनिया में हमें चयन के कई तरीके मिलते हैं। हमारे पास लिखित परीक्षा, मौखिक परीक्षा, इन्टर्व्यू और अन्य तरीके हैं। प्रभु येसु के पास चुनाव का एक ही तरीका है - विवेचन। वे यह जानने की कोशिश करते हैं कि अपने स्वर्गिक पिता क्या चाहते हैं। यदि हम बारह शिष्यों के स्वभाव को देखें, तो हमें आश्चर्य होगा कि ये बारह येसु के समय के हजारों लोगों में से क्यों चुने गए। क्या वे अधिक बुद्धिमान, अधिक कुशल, अधिक प्रतिभाशाली, अधिक पढ़े-लिखे थे? नहीं। क्या वे अच्छे वक्ता थे? नहीं। क्या वे सार्वजनिक संबंधों में निपुण थे? बिलकुल नहीं। तो इन बारह का चयन कैसे हुआ? जवाब बस यही है - स्वर्गिक पिता की स्वतंत्र इच्छा। स्वर्गिक पिता ने उन्हें चुना और येसु ने बस अपने स्वर्गिक पिता की इच्छा को समझा और उन्हें बुलाया। जब हम निर्णय लेते हैं तो हम कभी पूछते हैं - "ईश्वर की इच्छा क्या है?"



SHORT REFLECTION


Before he chose the twelve disciples, Jesus spent the whole night in prayer. The choice is made out of discernment. In today’s world we find very many ways of selection. We have written texts, oral exams, interviews and other methods of selection. Jesus has only one way of choice – discernment. He tries to find out what the Heavenly Father wants. If we look at the temperaments of the twelve disciples, we shall wonder as why these twelve chosen from among thousands of people of the time of Jesus. Were they more intelligent, more efficient, more talented, more learned? Were they good speakers? Were they good at public relationships? How did these twelve get selected? The answer is simply – the Heavenly Father’s free will. The heavenly father simply chose them and Jesus simply discerned the heavenly Father’s will and called them. When we make decision do we ever ask – “What is the will of God?”


 -Br Biniush Topno


All Copyright received © www.catholicbibleministry1.blogspot.com
Praise the Lord!

No comments: