शुक्रवार, 29 अक्टूबर, 2021
वर्ष का तीसवाँ सामान्य सप्ताह
पहला पाठ रोमियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 9:1-5
1) मैं मसीह के नाम पर सच कहता हूँ और मेरा अन्तःकरण पवित्र आत्मा से प्रेरित हो कर मुझे विश्वास दिलाता है कि मैं झूठ नहीं बोलता-
2) मेरे हृदय में बड़ी उदासी तथा निरन्तर दुःख होता है।
3) मैं अपने रक्त-सम्बन्धी भाइयों के कल्याण के लिए मसीह से वंचित हो जाने के लिए तैयार हूँ।
4) वे इस्राएली हैं। ईश्वर ने उन्हें गोद लिया था। उन्हें ईश्वर के सान्निध्य की महिमा, विधान, संहिता, उपासना तथा प्रतिज्ञाएं मिली है।
5) कुलपति उन्हीं के हैं और मसीह उन्हीं में उत्पन्न हुए हैं। मसीह सर्वश्रेष्ठ हैं तथा युगयुगों तक परमधन्य ईश्वर हैं। आमेन।
सुसमाचार : सन्त लूकस 14:1-6
1) ईसा किसी विश्राम के दिन एक प्रमुख फ़रीसी के यहाँ भोजन करने गये। वे लोग उनकी निगरानी कर रहे थे।
2) ईसा ने अपने सामने जलोदर से पीडि़त एक मनुष्य को देख कर
3) शास्त्रियों तथा फ़रीसियों से यह कहा, ’’विश्राम के दिन चंगा करना उचित है या नहीं?’’
4) वे चुप रहे। इस पर ईसा ने जलोदर-पीडि़त का हाथ पकड़ कर उसे अच्छा कर दिया और विदा किया।
5) तब ईसा ने उन से कहा, ‘‘यदि तुम्हारा पुत्र या बैल कुएँ में गिर पड़े, तो तुम लोगों में ऐसा कौन है, जो उसे विश्राम के दिन ही तुरन्त बाहर निकाल नहीं लेगा?’’
6) और वे ईसा को कोई उत्तर नहीं दे सके।
📚 मनन-चिंतन
यहूदियों का धार्मिक नेतृत्व विशेषकर फरीसी लोग येसु से बहुत परेशान थे। दूसरी ओर, येसु ने चंगाई और बहाली के अपने सेवाकाई को निर्बाध रूप से जारी रखा। प्रत्येक घटना धार्मिक नेताओं से उनकी बढ़ती शत्रुता को उकसाती प्रतीत होती थी। फरीसियों के क्रोध को भड़काने वाली चीजों में से एक यह थी कि येसु विश्राम के दिन चमत्कार कर रहे थे। वे निश्चित थे कि येसु एक खतरनाक और अधार्मिक व्यक्ति थे, एक विश्राम दिवस तोड़ने वाला, जिसे हर कीमत पर रोका जाना चाहिए। इसलिए, हम उस फरीसी की मंशा पर ही सवाल उठा सकते हैं जिसने येसु को विश्राम के दिन खाने के लिए आमंत्रित किया था।
खाने के दौरान, शास्त्री और फरीसी येसु को बड़े शक की निगाह से देख रहे थे। वे येसु को पकड़ना चाहते थे ताकि वे उन पर विश्राम के दिन ईश्वर की व्यवस्था को तोड़ने का आरोप लगाया जा सकें। लेकिन येसु का ध्यान जलोदर से पीड़ित एक व्यक्ति की ज़रूरतों को पूरा करने पर लगा था।
इस अवसर पर येसु ने दो बातें स्थापित करते हैं। सबसे पहले, येसु अपने काम में केंद्रित है। वे इस बात की चिंता करने के बजाय कि उसके विरोधी क्या सोचेंगे और क्या करेंगे, अपने काम को पूरा करने में अधिक केंद्रित है । दूसरे, वे यह साबित करते है कि प्रेम का नियम विश्राम के नियम से बडा है। येसु विश्राम के दिन के लिए परमेश्वर की, अच्छा करने और चंगा करने के लिए, की मंशा की ओर इशारा करते हुए फरीसियों के तर्क की खामियों को दिखाते है: ।
हमारे जीवन में हमें अपने काम पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और याद रखना चाहिये कि, प्यार कानूनीवाद को पीछे छोड़ देता है।
📚 REFLECTION
The Jews’ religious leadership particularly the Pharisees were terribly upset with Jesus. Jesus on the other hand continued unperturbedly his ministry of healing and restoration. Each incident seemed to incite increasing hostility from the religious leaders. One of the things that drew pharisees’ wrath was Jesus performing miracles on the Sabbath day. They were certain that Jesus was a dangerous and irreligious man, a Sabbath-breaker, who must be stopped at all costs. So, we may question the motive of the Pharisee who invited Jesus to dinner on the Sabbath, after he had already repeatedly broken their Sabbath regulations.
During the dinner, the scribes and Pharisees were watching Jesus carefully, with great suspicion. They wanted to catch Jesus so they might accuse him of breaking God's law on Sabbath. Jesus' attention was fixed on meeting the needs of a man who had dropsy.
Jesus establishes two things on this occasion. Firstly, Jesus is focused. He is more focused in fulfilling his work rather than worrying about what his opponents might think and do. Secondly, he proves that the law of love supersedes the law of rest. Jesus shows the loophole of the Pharisees' argument by pointing out God's intention for the Sabbath: to do good and to heal.
In our life, we must be focused on doing our work and in every situation, love supersedes legalism.
✍ -Br Biniush Topno
No comments:
Post a Comment