बुधवार, 27 अक्टूबर, 2021
वर्ष का तीसवाँ सामान्य सप्ताह
पहला पाठ रोमियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 8:26-30
26) आत्मा भी हमारी दुर्बलता में हमारी सहायता करता है। हम यह नहीं जानते कि हमें कैसे प्रार्थना करनी चाहिए, किन्तु हमारी अस्पष्ट आहों द्वारा आत्मा स्वयं हमारे लिए विनती करता है।
27) ईश्वर हमारे हृदय का रहस्य जानता है। वह समझाता है कि आत्मा क्या कहता है, क्योंकि आत्मा ईश्वर के इच्छानुसार सन्तों के लिए विनती करता है।
28) हम जानते हैं कि जो लोग ईश्वर को प्यार करते हैं और उसके विधान के अनुसार बुलाये गये हैं, ईश्वर उनके कल्याण के लिए सभी बातों में उनकी सहायता करता है;
29) क्योंकि ईश्पर ने निश्चित किया कि जिन्हें उसने पहले से अपना समझा, वे उसके पुत्र के प्रतिरूप बनाये जायेंगे, जिससे उसका पुत्र इस प्रकार बहुत-से भाइयों का पहलौठा हो।
30) उसने जिन्हें पहले से निश्चित किया, उन्हें बुलाया भी है: जिन्हें बुलाया, उन्हें पाप से मुक्त भी किया है और जिन्हें पाप से मुक्त किया, उन्हें महिमान्वित भी किया है।
सुसमाचार : सन्त लूकस 13:22-30
22) ईसा नगर-नगर, गाँव-गाँव, उपदेश देते हुए येरूसालेम के मार्ग पर आगे बढ़ रहे थे।
23) किसी ने उन से पूछा, "प्रभु! क्या थोड़े ही लोग मुक्ति पाते हैं?’ इस पर ईसा ने उन से कहा,
24) "सँकरे द्वार से प्रवेश करने का पूरा-पूरा प्रयत्न करो, क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ - प्रयत्न करने पर भी बहुत-से लोग प्रवेश नहीं कर पायेंगे।
25) जब घर का स्वामी उठ कर द्वार बन्द कर चुका होगा और तुम बाहर रह कर द्वार खटखटाने और कहने लगोगे, ’प्रभु! हमारे लिए खोल दीजिए’, तो वह तुम्हें उत्तर देगा, ’मैं नहीं जानता कि तुम कहाँ के हो’।
26) तब तुम कहने लगोगे, ’हमने आपके सामने खाया-पीया और आपने हमारे बाज़ारों में उपदेश दिया’।
27) परन्तु वह तुम से कहेगा, ’मैं नहीं जानता कि तुम कहाँ के हो। कुकर्मियो! तुम सब मुझ से दूर हटो।’
28) जब तुम इब्राहीम, इसहाक, याकूब और सभी नबियों को ईश्वर के राज्य में देखोगे, परन्तु अपने को बहिष्कृत पाओगे, तो तुम रोओगे और दाँत पीसते रहोगे।
29) पूर्व तथा पश्चिम से और उत्तर तथा दक्षिण से लोग आयेंगे और ईश्वर के राज्य में भोज में सम्मिलित होंगे।
30) देखो, कुछ जो पिछले हैं, अगले हो जायेंगे और कुछ जो अगले हैं, पिछले हो जायेंगे।"
📚 मनन-चिंतन
ईश्वर के राज्य के रहस्य को प्रकट करने के लिए येसु एक बंद दरवाजे के प्रतीक का उपयोग करते है। बहुत देर से आने वालों के लिए दरवाज़ा बंद होने के बारे में येसु का दृष्टांत बताता है कि उन्होंने अपने मेजबान को नाराज कर दिया था और बाहर रहने के योग्य थे। येसु ने इस दृष्टांत को इस सवाल के जवाब में बताया कि कौन स्वर्ग पहुंच पायेगा। येसु के समय के अधिकांश यहूदियों ने सोचा और सिखाया कि वे अपने आप बच जाएंगे क्योंकि वे ईश्वर के चुने हुए लोग थे। येसु ने उनका और उनकी धारणाओं का सामना यह कहकर किया कि ईश्वर के राज्य में प्रवेश स्वचालित नहीं है, लेकिन योग्य होने के लिए कड़ी मेहनत करनी चाहिए।
दूसरे, येसु ने चेतावनी दी है कि यदि हम संकरे दरवाजे से प्रवेश करने का प्रयास नहीं करते हैं तो हमें बाहर रखा जा सकता है। स्वर्ग का मार्ग 'संकीर्ण द्वार' से होता है। संकरा दरवाजा 'कठिन रास्ता' होता है। येसु के लिए, संकरा द्वार क्रूस है। जिस द्वार से येसु गुजरे वह अस्वीकृति, उत्पीड़न और मृत्यु का था। हालांकि, इसके माध्यम से उन्होंने संसार को जीत लिया। क्रूस के द्वारा, येसु हमारे लिए उसके राज्य में प्रवेश करने का मार्ग खोलते हैं। लेकिन हमें क्रूस के मार्ग में येसु का अनुसरण करना चाहिए। ईश्वर के राज्य में प्रवेश करने के लिए व्यक्ति को प्रलोभन, लालच, झूठे सिद्धांतों, और जो कुछ भी हमें ईश्वर की इच्छा को पूरा करने से रोकता है, के खिलाफ प्रयास करना चाहिए और संघर्ष करना चाहिए। हम अकेले प्रयास नहीं करते हैं। ईश्वर हमारे साथ हैं और उनकी कृपा काफी है। येसु ने हमें पूर्ण विजय का आश्वासन दिया है! क्योंकि वह स्वयं द्वार है। "मैं द्वार हूँ। जो कोई मेरे द्वारा प्रवेश करेगा वह उद्धार पाएगा।” ( योहन 10:9)।
📚 REFLECTION
Jesus uses the symbol of a shut door to reveal the mystery about the kingdom of God. Jesus' parable about the door being shut to those who come too late suggests that they had offended their host and deserved to remain outside. Jesus told this story in response to the question of who will make it to heaven. Most of the Jews of Jesus’ time thought and taught that they will automatically be saved because they were the chosen people of God. Jesus confronts them and their presumption by saying that the entry to the kingdom of God is not automatic but one must strive hard to be found worthy.
Secondly, Jesus warns that we can be excluded if we do not strive to enter by the narrow door. The way to heaven is through the ‘narrow door’. The narrow door stands for ‘hard way’. For Jesus, it is the cross that is a narrow door. A door through which he passed was of rejection, persecution, and death. However, it is through this he triumphed the world. Through the cross, Jesus opens the way for us to enter into his kingdom. But we must follow Jesus in the way of the cross. To enter the kingdom of God one must strive and struggle against the forces of temptation, allurement, false doctrines, and whatever would hinder us from doing the will of God. We do not strive alone. God is with us and his grace is sufficient. Jesus assures us of complete victory! For he himself is the door. “I am the gate. Whoever enters by me will be saved.” (John 10:9).
मनन-चिंतन - 2
किसी ने येसु से पूछा, "प्रभु! क्या थोड़े ही लोग मुक्ति पाते हैं?" प्रभु येसु सीधे सवाल का जवाब नहीं देते हैं, लेकिन उससे कहते हैं, “सँकरे द्वार से प्रवेश करने का पूरा-पूरा प्रयत्न करो”। यदि आप येसु के जवाब देने के तरीके पर विचार करते हैं, तो आप समझेंगे कि येसु उसे बताना चाहते हैं कि उसे इस बात की चिंता नहीं करनी चाहिए कि कितने को बचाया जाएगा, बल्कि यह चिंता करनी चाहिए कि क्या वह खुद बच जाएगा। इसलिए अंत में प्रभु कहते हैं, " जब तुम इब्राहीम, इसहाक, याकूब और सभी नबियों को ईश्वर के राज्य में देखोगे, परन्तु अपने को बहिष्कृत पाओगे, तो तुम रोओगे और दाँत पीसते रहोगे"। हमें "अपने को बहिष्कृत" पाये जाने की संभावना के बारे में चिंता करनी चाहिए।
प्रभु येसु ने आज के सुसमाचार में तीन वास्तविकताओं पर जोर दिया है। सबसे पहले, वे कहते हैं कि स्वर्ग का दरवाजा संकीर्ण है। इसलिए यदि आप स्वर्ग में प्रवेश करने में रुचि रखते हैं, तो आपको यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि आप सही रास्ते पर हैं और आपका ध्यान संकीर्ण दरवाजे पर है। दूसरा, हमें स्वर्ग में प्रवेश करने के लिए खुद को तैयार करने हेतु आवंटित समय सीमित है और अचानक समाप्त हो सकता है। यह मांग करता है कि हम हमें उपलब्ध समय बर्बाद न करें, लेकिन बिना किसी विलंब के उस पर काम करना जरूरी मानें। तीसरा, स्वर्ग में प्रवेश करने की संभावना उन सभी के लिए खुली है जो भलाई करते रहते हैं और बुराई करने वाले सभी के लिए बंद हैं। इसलिए हमें अपने बुरे तरीकों तथा आदतों को त्यागने और दूसरों का भला करने में व्यस्त होना चाहिए। हमें सभी के कल्याण के लिए काम करना होगा।
SHORT REFLECTION
Someone asked Jesus, “Will there be only a few saved?” Jesus does not answer the question directly, but tells him, “Try your hardest to enter by the narrow door…”. If you reflect on the way Jesus replies, you will understand that Jesus wants to tell him that he should not worry about how many will be saved, but should worry as to whether he himself will be saved. That is why at the end Jesus says, “Then there will be weeping and grinding of teeth, when you see Abraham and Isaac and Jacob and all the prophets of the kingdom of God, and yourself thrown out”. We should worry about the possibility of us ourselves “thrown out”.
Jesus emphasises three realities in today’s Gospel. Firstly, he states that the door to heaven is narrow. Hence if you are interested in entering heaven, you need to make sure that you are on the right path and that your focus is on the narrow door. Secondly, the time allotted to us to prepare ourselves to enter heaven is limited and can finish abruptly. This demands that we do not waste any time, but consider it urgent to work at it without procrastination. Thirdly, the possibility of entering heaven is open to all who do good and is closed to all who do evil. Therefore we need to abandon our evil ways and get busy doing good to others. We have to work for the welfare of everyone.
✍ -Br Biniush Topno
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